एक मुख्यमंत्री की पत्नी का इस तरह सरेआम एक सार्वजनिक कार्यक्रम में किसी ऐसी संस्था अथवा किसी ऐसे पंथ को लेकर प्रचार करना जो पहले से ही धर्मांतरण के लिए बुरी तरह बदनाम है स्वाभाविक रूप से विवाद पैदा करने वाला था. तो विवाद हुआ भी... सोशल मीडिया से लेकर अखबारों तक हुआ.... परन्तु हमें यह समझना जरूरी है कि आखिर अमृता फडनवीस ने ईसाईयत के इस प्रतीक, जो कि "काल्पनिक बुढ्ढा यानी सांता क्लाज" है, का प्रचार करने की जरूरत क्यों महसूस हुई??
जैसा कि सभी जानते हैं ईसाईयत के प्रचार और धर्मान्तरण के लिए ईसाई संस्थाएँ जबरदस्त ब्रांडिंग, इवेंट मैनेजमेंट तथा सेलेब्रिटीज़ को अपने साथ अधिकाधिक जोड़ने का प्रयास करती हैं, ताकि उन्हें समाज में एक स्वीकार्यता प्राप्त हो सके तथा दलितों और आदिवासियों के वैध-अवैध धर्मान्तरण के कामों पर पर्दा पड़ा रहे. फिल्मों में आए दिन सिर से लेकर कंधे के दोनों तरफ क्रॉस का निशान बनाते “हिन्दू नामधारी” हीरो-हीरोईनें तो प्रकार का हथियार हैं जबकि जॉनी लीवर और दक्षिण भारत के प्रसिद्ध सितारों से लेकर अमृता फडनवीस जैसी प्रसिद्ध और प्रभावशाली महिला भी इसी खेल की एक कड़ी हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि ये “नेशनल प्रेयर ब्रेकफास्ट” आखिर क्या बला है?? आईये जानते हैं...
2 फरवरी 2017 (यानी इसी वर्ष की शुरुआत में) अमृता फडनवीस अमेरिका के वॉशिंगटन DC के एक विशाल समारोह में शामिल हुई थीं, जिसका नाम है 65वां “नेशनल प्रेयर ब्रेकफास्ट” (National Prayer Breakfast). इस समारोह में विश्व भर के लगभग 3500 राजनैतिक नेता, सैन्य अफसर, कारपोरेट जगत के दिग्गज एकत्रित हुए थे. अमृता फडनवीस को यहाँ किस हैसियत से बुलाया गया था, यह जानकारी नहीं है, लेकिन वे वहाँ मौजूद थीं. 140 देशों से आए प्रतिनिधियों ने इस समारोह में जीसस के नाम पर शपथ ली, जाम से जाम टकराए और जीसस की भलाई के लिए काम करने की प्रतिबद्धता दर्शाई गई. आप सोचेंगे कि ये “नेशनल प्रेयर ब्रेकफास्ट” क्या चीज़ है, कहाँ से आया??
तो बात यूँ है कि 1953 में अमेरिका के राष्ट्रपति द्वाईट आईजन्हावर ने इस “ब्रेकफास्ट” की परंपरा शुरू की थी. उस समय के तत्कालीन एवेंजेलिस्ट (अर्थात ईसाई धर्म परिवर्तक) बिली ग्राहम ने ही यह योजना बनाई थी. इस पहले समारोह में बिली ग्राहम और राष्ट्रपति आईजन्हावर के अलावा 400 राजनैतिक, धार्मिक और व्यापारिक हस्तियाँ मौजूद थीं (यह संख्या अब बढ़ते-बढ़ते 3500 तक पहुँच गई है.... क्योंकि ईसाई पंथ का फैलाव भी तो हुआ है). तो 1953 में इन 400 लोगों की भीड़ को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा था कि “सभी मुक्त और लोकतांत्रिक सरकारें एक धार्मिक विश्वास के आधार पर टिकी होती हैं”. आईजनहावर ने नेशनल प्रेयर ब्रेकफास्ट में आगे कहा कि “किसी भी मजबूत देश के लिए धार्मिक विश्वास, राष्ट्रवाद और मुक्त लोकतंत्र सबसे महत्त्वपूर्ण घटक हैं, लेकिन इन तीनों में सबसे ऊपर है धार्मिक विश्वास और बाईबल की शक्ति...”. अब आप समझ सकते हैं कि ये नेशनल प्रेयर ब्रेकफास्ट क्या है, इसका छिपा उद्देश्य क्या है और धर्मान्तरण करने वाली ईसाई लॉबी अमेरिका से लेकर भारत तक कितनी शक्तिशाली है. एक संक्षिप्त उदाहरण और... 1995 के “नेशनल प्रेयर ब्रेकफास्ट” दिवस में भारत से गईं मदर टेरेसा ने अपने भाषण में ईसाई पंथ की मान्यताओं के अनुसार महिलाओं द्वारा गर्भपात करवाने के अधिकार की कड़ी आलोचना की और उनके सामने महिला अधिकारों की पैरवी करने वाले बिल क्लिंटन चुपचाप बैठे उन्हें सुनते रहे, प्रतिवाद तक न कर सके.
अमृता फडनवीस को नेशनल प्रेयर ब्रेकफास्ट में क्यों बुलाया, किस हैसियत से बुलाया ये सवाल अपनी जगह पर तो हैं ही, लेकिन अब जिस तरह से देवेन्द्र फडनवीस खुलकर क्रिसमस का प्रचार कर रहे हैं और उनकी पत्नी सरेआम सांता क्लाज़ को प्रमोट कर रही हैं, उससे कई प्रकार के शक उत्पन्न होते हैं. शनि शिंगणापुर की सारी घटनाओं और तृप्ति देसाई की हरकतों पर फडनवीस की चुप्पी... महाराष्ट्र में कई मंदिरों को ध्वस्त किया जाना... शिक्षा के अधिकार क़ानून में हिंदुओं द्वारा संचालित शिक्षण संस्थाओं के एक के बाद एक बन्द होते चले जाने... जैसी घटनाएँ हिंदुओं के मन में आशंका पैदा करने के लिए पर्याप्त हैं... और इन सभी से ऊपर एक और घटना थी दिल्ली के कुख्यात रेयान स्कूल की मालकिन ईसाई प्रचारक श्रीमती ग्रेस पिंटो को महाराष्ट्र भाजपा के महिला मोर्चे में शामिल करना... ये सारी घटनाएँ किस तरफ इशारा करती हैं??
मुम्बई के नायगांव इलाके में एक ईसाई पड़ोसी द्वारा एक हिन्दू परिवार का जीना दूभर किए जाने वाला वीडियो हाल ही में सोशल मीडिया पर प्रसारित हुआ था, लेकिन उस मामले में भी कई-कई बार आवेदन दिए जाने के बावजूद राज्य सरकार और पुलिस-प्रशासन की तरफ से घनघोर चुप्पी बनी हुई है और वह परिवार आज भी ईसाई पड़ोसियों की प्रताड़ना झेल रहा है. स्वाभाविक है कि न सिर्फ मिशनरियों के हौसले बढ़े हुए हैं, बल्कि ईसाई बहुल इलाकों में हिंदुओं की हालत खराब है. इस सब में अमेरिका के नेशनल प्रेयर ब्रेकफास्ट जैसे घोर मिशनरी कार्यक्रमों में अमृता फडनवीस की उपस्थिति दिक्कत देती है.
आज जबकि पूरे भारत में मिशनरीज़ का कार्य बड़े आराम से बेरोकटोक जारी है, उत्तर-पूर्व की आबादी जो पहले हिन्दू आदिवासी थी वह 70-80 प्रतिशत तक ईसाई बन गई. उड़ीसा-छग-मध्यप्रदेश-गुजरात जैसे राज्यों के आदिवासी इलाकों में केवल 250 की जनसँख्या वाले गाँवों तक एक कमरे वाले चर्च पहुँच चुके हैं, दक्षिण भारत में तमिलनाडु-आंधप्रदेश (सेमुअल राजशेखर रेड्डी की वजह से) और केरल में धर्मान्तरण बड़े आराम से हो रहा है... इस परिस्थिति में एक “हिंदूवादी मानी जाने वाली” (लेकिन वास्तव में है नहीं) पार्टी के एक मुख्यमंत्री की पत्नी का इस तरह से क्रिसमस समारोहों और सांता क्लाज़ का प्रचार करना कहीं से कहीं तक ठीक नहीं कहा जा सकता. यह आचरण न केवल सार्वजनिक जीवन में उनके आचरण पर प्रश्नचिन्ह खड़े करता है, बल्कि देवेन्द्र फडनवीस (जो खुद भी क्रिसमस के प्रचार में लगे हैं) की छवि पर भी असर डालता है. महाराष्ट्र में पन्द्रह वर्षों के संघर्ष के बाद भाजपा-शिवसेना की सरकार बनी है, और इस तरह के कार्य करके हिंदुओं के बीच इसे इस तरह से बदनाम नहीं किया जाना चाहिए. अमृता फडनवीस को इस प्रकार की गतिविधि में शामिल होने से बचना चाहिए, इसका सन्देश गलत जाता है और मिशनरियों को बल मिलता है.
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desicnn पर मिशनरी की संदिग्ध गतिविधियों संबंधी कुछ लेख इस प्रकार हैं...
रेयान ग्रेस पिंटो की नियुक्ति और राजनैतिक सम्बन्ध :- http://www.desicnn.com/news/grace-pinto-of-ryan-international-school-has-dubious-record-and-share-market-scamster
शिक्षा का अधिकार क़ानून : हिंदुओं के लिए जजिया समान -- http://www.desicnn.com/news/right-to-education-law-is-blatantly-anti-hindu