जैसा कि अब पूरी दुनिया जानती है 16 दिसम्बर 2012 को दिल्ली में “कुख्यात” निर्भया बलात्कार काण्ड हुआ था. इस घृणित एवं नृशंस हत्याकांड काण्ड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था एवं भारत में महिला सुरक्षा को लेकर कई सुधार हुए, नए क़ानून बने. इस भीषण बलात्कार काण्ड के अधिकाँश आरोपियों को पहले-दूसरे चरण में फाँसी की सजा हो चुकी है, अंतिम अपील वाला चरण बाकी है. बीबीसी की एक संवाददाता ने बड़ी बेशर्मी से इन दुर्दांत अपराधियों में से एक आरोपी रामसिंह पर एक डाक्यूमेंट्री को टीवी चैनलों पर प्रसारित भी कर दिया जिसमें उस बलात्कारी को बड़ी निर्लज्जता के साथ इंटरव्यू देते हुए भी दिखाया जा चुका है. परन्तु इस काण्ड का एक प्रमुख अपराधी जिसका नाम मोहम्मद अफरोज है, वह अपराध के समय सत्रह वर्ष का होने के कारण भारत के कानूनों की पतली गली (अर्थात जुवेनाईल एक्ट) द्वारा नाबालिग होने की वजह से ना सिर्फ फाँसी से बच गया, बल्कि पूरे देश के माता-पिताओं के लिए चिंता की बात यह है कि आगामी दिसम्बर 2015 के मध्य में उसे “बाल सुधार गृह” से वापस उसके घर भेज दिया जाएगा... बिलकुल सुरक्षित, बिलकुल आराम से और बिना कोई सजा दिए. जी हाँ, यह जानकर अब आपकी रीढ़ की हड्डी में कंपकंपी छूटी होगी. मोहम्मद अफरोज नामक दरिंदा जिसने पहले तो निर्भया और उसके मित्र को बस में चढ़ने के लिए पटाया, और जब ये पाँच दरिंदे और अफरोज़ मिलकर निर्भया के साथ बलात्कार कर चुके थे, तब अफरोज़ ने निर्भया की योनि में लोहे की राड भी घुसेड़ी थी... यह सब उसने पूरे होशोहवास और समझदारी के साथ किया था. लेकिन अपराध करते समय उसकी आयु सत्रह वर्ष थी, इसलिए उसे बालिग़ होने के बाद सिर्फ दो वर्ष के लिए बाल अपराधी सुधार गृह में रहने की कथित सजा(???) मिली, और अब वह उससे भी आज़ाद होने जा रहा है.
बाल सुधार गृह के नियमों के मुताबिक़ बाल अपराधियों के दिमाग को अपराध से मुक्त करने तथा उन्हें सुधारने के लिए एक मनोचिकित्सक, एक वकील एवं एक सलाहकार (काउंसलर) की नियुक्ति होती है, जो उन अपराधियों से बातचीत करके, उनकी गतिविधियों पर निगाह रखकर उनके बारे में अपनी रिपोर्ट देते हैं. भारत के कानूनों के अनुसार नाबालिग अपराधी (चाहे उसने कितना भी घृणित अपराध किया हो) की पहचान उजागर नहीं की जाती. मोहम्मद अफरोज़ के मामले में भी यही होने जा रहा है, लेकिन इस बीच अफरोज़ बीस वर्ष का हो चुका है और काउंसिलर के मुताबिक़ अफरोज़ को अपने किए का कतई पछतावा नहीं है. वह अपने उस दुष्कर्म को बड़े ठंडे दिमाग से बयान करता है. अफरोज़ के अनुसार निर्भया को बस में चढाने से पहले उसने एक और अकेली लड़की को बस में बैठने के लिए आमंत्रित किया था, परन्तु अचानक वहाँ एक ऑटो आ गया और वह लड़की उसमें चली गई, परन्तु निर्भया और उसका दोस्त दुर्भाग्यशाली निकले और इनके चंगुल में फँस गए. अफरोज़ की काउंसिलिंग करने वाले सलाहकार के अनुसार उसकी मानसिक स्थिति में कोई खराबी नहीं है, बल्कि तथाकथित सुधार गृह में दूसरे बाल(??) अपराधियों के साथ रहकर वह इतना शातिर हो चुका है कि अब वह कोई भी वस्तु अथवा उसकी नाजायज़ माँग पुलिस या प्रशासन से नहीं माँगता, न्यायालय के माध्यम से माँगता है. क्योंकि उसे पता है कि पुलिस उसे कुछ नहीं देगी, लेकिन क़ानून की खामियों के चलते वह न्यायालय से हासिल कर लेगा. दिल्ली पुलिस ने चिकित्सक की रिपोर्ट के साथ न्यायालय में शपथ-पत्र दायर करके यह बता दिया है कि मोहम्मद अफरोज़ के सभी पुरुष प्रधान अंग पूर्ण विकसित एवं स्वस्थ हैं तथा निर्भया के साथ बलात्कार करते समय उसने जैसी क्रूरता और बर्बरता दिखाई है उसे देखते हुए अफरोज़ को सुधार गृह से तिहाड़ भेजा जाए. परन्तु वर्तमान कानूनों की पतली गलियों के कारण अफरोज़ को रिहा किया जाने वाला है. बाल सुधार गृह के समूचे स्टाफ को न्यायालय द्वारा चेतावनी दी जा चुकी है कि किसी भी परिस्थिति में मोहम्मद अफरोज़ का चेहरा जनता के बीच न पहुँचने पाए, उसकी पहचान समाज में उजागर ना होने पाए (ऐसा ही क़ानून है). यानी जनवरी 2016 के बाद यह बलात्कारी समाज में कहाँ जाकर छिप जाएगा, और अपने कुकर्मों को अंजाम देता रहेगा कौन जाने?
इस बिंदु पर कई कानूनविदों में मतभेद हैं, अधिकाँश का मानना है कि जिस लड़की का बलात्कार हुआ है उसकी पहचान छिपाना तो वैध कारण माना जा सकता है, परन्तु जो खतरनाक अपराधी अब पूर्ण बालिग़ होकर समाज की मुख्यधारा में जाने वाला है उसकी पहचान छिपाने का क्या मतलब?? इससे तो उसे छिपने में आसानी ही होगी. अव्वल तो अफरोज़ जैसे अपराधी कभी सुधरते नहीं हैं, लेकिन यदि कोई बाल अपराधी वास्तव में सुधर भी गया हो तब भी उसका चेहरा और पहचान छिपाकर रखना समाज के लिए भविष्य में बेहद घातक सिद्ध हो सकता है. यही हो रहा है. काउंसिलर के अनुसार पिछले तीन वर्ष में अफरोज़ ने जेल में सिवाय मौज-मस्ती और चित्रकारी के अलावा कुछ नहीं किया. बढ़िया भोजन मिलने के कारण उसका वजन भी दस किलो बढ़ गया है. पिछले तीन साल में सिर्फ उसकी माँ उससे चार-छः बार मिलने आई, और कोई नहीं आया.
बाल सुधार गृह एवं “जुवेनाईल एक्ट” का गठन इसलिए किया गया था, ताकि बाल अपराधियों को सजा की बजाय सुधारा जा सके. परन्तु भारत जैसे देश में ये कथित “बाल सुधार गृह”(?) कितने सक्षम एवं सफल हुए हैं इस बात पर कोई शोध अब तक नहीं किया गया है. बाल संरक्षण गृहों एवं सुधार गृहों के भ्रष्टाचार से सभी वाकिफ हैं, वहाँ के हालातों की दयनीय स्थिति और जिस निचले सामाजिक वातावरण से ऐसे अपराधी पनपते हैं, उसे देखते हुए मोहम्मद अफरोज़ जैसे अपराधियों में सुधार होने की उम्मीद नहीं के बराबर ही है. मूल सवाल यह है कि क्या अब भारत के जुवेनाईल एक्ट में संशोधन नहीं किया जाना चाहिए?? आधुनिक युग में जब छोटे-छोटे बच्चे टीवी और मोबाईल के कारण समय से पहले बड़े हो रहे हैं तब सत्रह साल के युवक को “नाबालिग” कैसे माना जा सकता है? निर्भया के साथ अफरोज़ ने जो हिंसक कृत्य किया, वह करते समय उसकी हरकतें पूर्ण वयस्क के समान थीं.
इसके अलावा दूसरा डरावना सवाल यह है कि चूँकि अफरोज़ की पहचान गुप्त रखी गई है, इसलिए क्या यह संभव नहीं कि वह दुर्दान्त बलात्कारी अभी इस समय आपके आसपास ही हो... संभव है कि वह आपकी बेटी के स्कूल बस का ड्रायवर हो... या बाज़ार जा रही आपकी बीवी का ऑटोचालक हो... ऐसे में तथाकथित मानवाधिकारवादियों से यह माँग होनी चाहिए कि वे मोहम्मद अफरोज़ को अगले तीन-चार वर्ष तक अपने घर में रखें. चूँकि उन्हें विश्वास है कि अफरोज़ “सुधर” गया है, तो वे तमाम “एक्टिविस्ट” अपनी बेटी से उसकी दोस्ती करवाएँ. क्या यह माँग जायज़ नहीं है?? यदि यह माँग गलत है, तो फिर क्यों ना अफरोज़ की पहचान उजागर कर दी जाए, ताकि जनता उसे पहचान ले और सावधान रहे.