मध्य-पूर्व देशों से भी इस्लामिक स्टेट फंडिंग का विरोध

मध्य-पूर्व एशिया के देशों में भी अब धीरे-धीरे जागरूकता आ रही है कि ISIS, उन्हें और उनके देश के एजेंडा को निगल रहा है.

नागरिकों और विभिन्न संगठनों तथा फोरम्स की तरफ से अब यह मांग उठने लगी है कि ISIS को जहाँ-जहाँ से फंडिंग मिल रही है, उसे रोकने के प्रयास किए जाएँ. इसी सिलसिले में काउन्सिल ऑफ़ अमेरिकन-इस्लामिक रिलेशंस (CAIR) ने सबसे पहले एक याचिका में सिलिकॉन वैली में स्थित बड़ी कंपनियों से आग्रह किया है कि वे मध्य-पूर्व में स्थित इसी उद्योग समूह की शाखा अर्थात सिलिकॉन वैली कम्युनिटी फ़ौंडेशन (SVCF) से आग्रह करे कि वे सभी चरमपंथी इस्लामिक समूहों को चन्दा देना बंद करे.

इस्लामिक दुनिया की फंडिंग पर निगाह रखने वाले एक स्वतन्त्र संगठन ने बताया है कि सिलिकॉन वैली की कंपनियों के माध्यम से कम से कम आठ लाख डॉलर का डोनेशन इस्लामिक समूहों को मिला हुआ है. दिखने में यह राशि ISIS तेल से होने वाले धंधे के सामने मामूली सी है, लेकिन संगठन का कहना है कि उन्हें इतना भी क्यों मिले? और इन प्रतिष्ठित कंपनियों की देखादेखी दूसरी कम्पनियां भी उन्हें डोनेशन देना शुरू कर चुकी हैं, तो इस पर कहीं न कहीं लगाम कसना जरूरी है. जिस प्रकार भारत में ज़ाकिर नाईक का इस्लामिक रिसर्च फौंडेशन है, और सरकार इस पर कठोर कार्यवाही कर रही है, उसी प्रकार सऊदी अरब और अमेरिका में विभिन्न छद्म नामों से इस्लामिक रिसर्च और इस्लामिक शिक्षा के नाम पर कई संगठन चल रहे हैं, जो ऊपर से देखने में तो बेहद सीधे और भोले नजर आते हैं, लेकिन उन्हें मिलने वाली फंडिंग में से एक बड़ा हिस्सा अंततः ISIS की जेब में चला जाता है. कुछ संस्थाएँ अरब देशों में इस्लामिक चैरिटी के नाम से भी गठित हुई हैं और जिस प्रकार वेटिकन पोषित ईसाई मिशनरी चुपचाप अपने काम को अंजाम देती है वैसे ही ये “चैरिटी(??)” संस्थाएँ भी करती हैं.

लेकिन अब इनके खिलाफ आवाज़ उठने लगी है और यह तलाशा जा रहा है कि कौन-कौन सी इस्लामिक संस्था, किस-किस प्रकार के काम में मसरूफ है, कौन सी इस्लामिक रिसर्च संस्था को कहाँ से, कितना पैसा मिल रहा है और उसका खर्च कैसे किया जा रहा है. संतोष की बात यह है कि यह सब खुद इस्लामिक देशों के भीतर से उठने वाली आवाजों के मद्देनज़र हो रहा है, क्योंकि अब उन्हें भी लगने लगा है कि यदि ISIS के खिलाफ अब आवाज़ नहीं उठाई तो समूचे विश्व में जिस प्रकार से राष्ट्रवाद की लहर उठ रही है, मुस्लिमों के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया है वह कहीं इस्लामिक देशों के भविष्य के लिए खतरनाक सिद्ध ना हो.

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