वेदों और गीता का आपसी सम्बन्ध :- एक तार्किक अध्ययन
वैदिक व्यवस्था को आधार मानकर राज्य व्यवस्था एवं राष्ट्र निर्माण के सर्वोत्कृष्ट अनुभव हमें गीता करवाती है, भगवन श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन एवं उनके भाइयों को जो उपदेश युद्ध के मैदान में दिए गए वह सभी उपदेश वेदों की आज्ञा ही तो है, किन्तु अज्ञानवश हम उन वेदाज्ञाओं को भूलकर गीता में न जाने कौन सा ज्ञान खोजने लग जाते है कि चाहे राष्ट्र, समाज, संस्कृति पूर्ण नष्ट हो जाये परन्तु फिर भी हम यही सोचते रहते है की कोई चमत्कार हो जायेगा.
क्या श्रीमद्भगवद्गीता की प्रजनन क्षमता खो गई है??
बड़ा ही विचित्र सा शीर्षक है यह, क्या श्री भगवद्गीता की पुनरुत्पादन क्षमता पर कोई लेख भी लिखा जा सकता है? गीता (Bhagvadgita and Krishna) क्या कोई बीज है? जिसे बोने से कुछ उत्पन्न हो सकेगा? गीता तो ज्ञान की पुस्तक है, उपदेश है एवं इसका पठन, पाठन एवं जीवन में इसके उपदेशों को उतारना ही गीता की क्षमता है एवं हमारे देश में हजारों वर्षों से साधू संत एवं विद्वान् इस विषय पर भांति भांति के लेखन कर चुके हैं एवं कई विद्वानों ने गीता रहस्य, प्रस्थान त्रयी पर भाष्य, श्री कृष्ण भावनामृत आदि आदि द्वारा गीता के रहस्यों को उद्घाटित किया है, फिर यह उलटबांसी किसी वामपंथी या अज्ञानी के ही दिमाग की उपज हो सकती है.
गीता ग्रन्थ :- वामपंथी दुर्भावना और हिन्दू अज्ञानता
श्रीमद्भागवद्गीता (Bhagvad Gita) सनातन धर्म का कालजयी ग्रन्थ है इस तथ्य को कोई नहीं नकार सकता है। इसे ग्रंथ को ग्रन्थ शिरोमणि कहा गया है, अर्थात यह इस जगत के सभी ग्रन्थों में से सर्वाधिक पूज्य और प्रतिष्ठित ग्रंथ है.
वर्तमान राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भगवदगीता की उपयोगिता
आज की स्थिति में भारत सहित समूची दुनिया में कई चुनौतियाँ सामने खड़ी हैं, चाहे वह इस्लामिक आतंकवाद हो, बेरोजगारी हो या आर्थिक गतिविधियाँ हों....