युद्धकाल में वीरता दिखाने एवं दुश्मन के दांत खट्टे करने वाले वीर सैनिकों को दिया जाने वाला सम्मान है “परमवीर चक्र”. यह पदक सैनिकों को युद्ध में दिखाई गयी अतुलनीय वीरता के पुरस्कार स्वरूप दिया जाता है. भारत का यह सम्मान ब्रिटेन के “विक्टोरिया क्रॉस” अथवा अमेरिका के “मेडल ऑफ़ ऑनर” के बराबर माना जा सकता है.
1947 से अभी तक यह परमवीर चक्र केवल 21 बहादुरों को दिया गया है. जिनमें से 14 हुतात्माओं को यह पुरस्कार मरणोपरांत प्राप्त हुआ है. यह पदक 3.49 सेमी व्यास का काँसे का बना हुआ होता है, जिसके चारों तरफ भगवान इंद्र के अस्त्र यानी “वज्र” का निशान अंकित होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि परमवीर चक्र का एक दूर का स्विट्ज़रलैंड से सम्बन्ध भी है? जी हाँ... इस पदक की डिजाईन सावित्रीबाई खानोलकर ने 1947 में बनाई थी. कौन सावित्रीबाई खानोलकर?? शायद आपने कभी नाम भी नहीं सुना होगा... और इस खानोलकर नामक मराठी स्त्री का स्विस कनेक्शन क्या हो सकता है? असल में सावित्रीबाई खानोलकर का विवाह पूर्व नाम था ईवा मैडी-डे-मेरोस. ईवा एक हंगेरियन माता तथा रशियन पिता की संतान थीं लेकिन जन्म से ही स्विस नागरिक थीं. मात्र 16 वर्ष की आयु में अर्थात 1929 में, ईवा की भेंट सिख रेजिमेंट के विक्रम खानोलकर नामक भारतीय सैनिक से हुई. विक्रम खानोलकर उस समय तत्कालीन ब्रिटिश सरकार की रॉयल मिलिट्री एकेडमी में अपनी ट्रेनिंग के लिए आए थे, और छुट्टियों में स्विट्ज़रलैंड घूमने चले गए. यहाँ उन्हें ईवा मिलीं और उनमें प्रेम हो गया.
फोटो: सौ सावित्रीबाई खानोलकर और मेजर जनरल विक्रम खानोलकर, परम वीर चक्र, तथा पहले परमवीरचक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा
ट्रेनिंग समाप्त होने के पश्चात विक्रम भारत लौट गए, लेकिन दोनों के बीच प्रेम कायम रहा. ईवा ने अपने माता-पिता के घोर विरोध के बावजूद विक्रम खानोलकर (जो आगे चलकर भारत के मेजर जनरल भी बने) के साथ प्रेम विवाह किया. ईवा के मन में हिन्दू धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा पहले से ही थी, इसीलिए उन्होंने विवाह के पश्चात हिन्दू धर्म अपनाकर अपना नाम ईवा मेरौस से बदलकर सावित्रीबाई खानोलकर रख लिया. चूंकि उनके पति अर्थात विक्रम सेना में उच्च पद पर थे इसलिए 1947 में अंग्रेजों के जाने के बाद तत्कालीन मेजर जनरल हीरालाल अटल ने सावित्रीबाई खानोलकर से कहा कि वे एक शानदार परमवीर चक्र की डिजाईन बनाएँ जिसमें भारतीय संस्कृति की झलक भी दिखे. यह काम उन्होंने बखूबी निभाया, और इस प्रकार भारतीय सेना को मिला परमवीर चक्र जिसका स्विट्ज़रलैंड से “दूर का नाता” है. जैसा कि पहले बताया, यह मैडल काँसे का बना हुआ है, जिसमें चारों तरफ इंद्र के अस्त्र “वज्र” का चिन्ह अंकित है. सावित्रीबाई खानोलकर के मन में ऋषि दाधीचि के प्रति बहुत सम्मान था, जिन्होंने अतुलनीय त्याग करते हुए अपनी हड्डियाँ दान करके भगवान इंद्र के लिए “वज्र” बनाया था, ताकि देवताओं के राजा असुरों का संहार कर सकें. परमवीर चक्र के पिछले भाग में कमल के फूल की दो आकृतियाँ हैं, एवं इस पर हिन्दी-अंगरेजी भाषा में परमवीर चक्र गुदा हुआ है. इसमें हलके बैगनी रंग की 1.3 इंची रिबन भी लगी होती है, जो वर्दी पर टाँकने के काम भी आती है.
जिन मेजर जनरल हीरालाल अटल ने सावित्रीबाई को इस मैडल को डिजाईन करने की आज्ञा दी थी, खुद उन्हें भी भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के हाथों “विक्टोरिया क्रॉस” का सम्मान प्राप्त हुआ था, क्योंकि उस समय तक परमवीर चक्र देने की परंपरा शुरू ही नहीं हुई थी. जब श्रीमती खानोलकर ने परमवीर चक्र का डिजाईन बनाया और 26 जनवरी 1950 से उसे स्वीकृति मिली तब जाकर यह अस्तित्त्व में आया. हालाँकि इसे 15 अगस्त 1947 से ही मान्यता प्रदान की गयी, इस प्रकार सबसे पहला परमवीर चक्र सम्मान मेजर सोमनाथ शर्मा को दिया गया. मेजर सोमनाथ शर्मा ने जबरदस्त बहादुरी दिखाते हुए नवम्बर 1947 में कश्मीरी घुसपैठियों को मार भगाया था. संयोग देखिये कि प्रथम परमवीर अर्थात मेजर सोमनाथ शर्मा, सावित्रीबाई खानोलकर की बड़ी बेटी के देवर भी थे.
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परमवीर चक्र से सम्बंधित ख़ास बात यह है कि अभी तक 21 बार जिन्हें यह परमवीर चक्र मिला है, उसमें से बीस बार यह भारतीय थलसेना को, और केवल एक बार भारतीय वायुसेना के जांबाज फ्लाईंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों को दिया गया है. सर्वाधिक तीन बार यह परम सम्मान सेना की ग्रेनेडियर बटालियन को मिला है, जबकि इतनी ही बार यह सम्मान गोरखा राईफल रेजिमेंट को भी मिला है. अधिकाँश लोग परमवीर चक्र और अशोक चक्र के बीच अंतर को लेकर भ्रमित हो जाते हैं. वास्तविकता यह है कि परमवीर चक्र युद्धकाल और युद्ध में दिखाई गयी वीरता को लेकर दिया जाता है, जबकि अशोक चक्र शांतिकाल में दिखाई गयी वीरता हेतु सर्वोच्च नागरिक सम्मान है. इसीलिए वरीयता क्रम में परमवीर चक्र का स्थान अशोक चक्र से ऊपर रखा गया है. चूंकि 1999 के करगिल युद्ध के पश्चात अभी तक भारत ने कोई युद्ध नहीं लड़ा है, इसलिए अंतिम बार "परमवीर चक्र" 1999 में मनोज कुमार पाण्डेय, योगेन्द्र सिंह यादव, संजय कुमार और विक्रम बत्रा को दिया गया है. अर्थात 21 परमवीर चक्र विजेताओं में से केवल दो ही अब इस समय जीवित हैं, नायब सूबेदार संजय कुमार एवं सूबेदार योगेन्द्र सिंह यादव...