पेट पर लात पड़ी, तब वामपंथ समझे स्टरलाईट के मजदूर

Written by मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018 21:00

जो लोग घटनाओं पर निगाह बनाए रखते हैं, उन्हें इस बात की जानकारी अवश्य होगी कि कुछ माह पहले किस तरह से तमिलनाडु के थोठुकुदी स्थित भारत के सबसे बड़े तांबा निर्माण उद्योग अर्थात वेदांता समूह के स्टरलाईट इंडस्ट्रीज के सामने मजदूरों का प्रदर्शन हुआ था. यह प्रदर्शन आगे चलकर हिंसक भी हुआ और पुलिस को गोली चलानी पड़ी, जिसमें कुछ मजदूर मारे गए. यह सारा आंदोलन एक वामपंथी NGO द्वारा प्रायोजित था, जिसने “पर्यावरण प्रदूषण” के नाम पर मजदूरों को भड़काया था. याद है ना??

असल में हारे-थके और निराश वामपंथियों को जब भी अपनी जमीन बनानी होती है, तब उन्हें केवल हिंसा का मार्ग सूझता है. वामपंथ ने हमेशा मजदूरों को उल्लू बनाया और देश के उद्योगपतियों को केवल कोसा है. इसी कारण पश्चिम बंगाल और केरल आज उद्योग एवं रोजगार के मामले में बेहद पीछे हैं. बहरहाल, जब वामपंथ द्वारा बन्द करवाए गए उद्योग के जाने के पश्चात यह विषैला वायरस उतरता है, यानी मजदूरों के सिर से क्रान्ति का भूत उतरता है और उन्हें पेट की चिंता सताती है, तब उन्हें अक्ल आती है कि “अरे!!! ये हमने क्या कर दिया..”. यह बात पहले भी बंगाल में टाटा समूह की नैनो कार के प्लांट को लेकर हुआ... यही घटनाक्रम पहले एक बार हरियाणा में मारुती सुजुकी के प्लांट में भी हो चुका है और अब यही तमिलनाडु में वेदांता के स्टरलाईट इंडस्ट्री में हुआ है.

जी हाँ!!! स्टरलाईट कॉपर कम्पनी को किसानों, ट्रांसपोर्टरों और विभिन्न कर्मचारी-मजदूर यूनियनों द्वारा पिछले एक माह में लगभग डेढ़ लाख प्रतिवेदन प्राप्त हुए हैं, जिसमें इस कम्पनी के प्लांट को पुनः शुरू करने का निवेदन किया गया है. यह डेढ़ लाख पत्र बाकायदा एक ऑन्लाइन याचिका के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय को भी भेजे गए हैं, जिसमें अनुरोध किया गया है कि वह मामले में हस्तक्षेप करते हुए इस कॉपर स्मीयर प्लांट को शुरू करें. याचिका पर हस्ताक्षर करने वाले किसानों-मजदूरों इत्यादि का कहना है कि उनके जीवन-मरण और आजीविका का प्रश्न बहुत गहरा गया है, और उन्हें इस कम्पनी के खिलाफ फैलाए गए दुष्प्रचार की हकीकत पता चल गई है. डेढ़ लाख लोगों द्वारा लिखे गए पत्र के अनुसार भारत के इस सबसे विशाल कॉपर प्लांट के बन्द होने से हजारों लोगों के समक्ष भूखे मरने की नौबत आ गई है. जो लोग इस फैक्ट्री से जुड़े हुए थे, तथा जिनके रोजगार फैक्ट्री के कारण आसपास के इलाके में फलफूल रहे थे, वे सब बर्बादी की कगार पर हैं, चाहे वे ट्रांसपोर्ट वाले हों, चाहे किसान हों या आसपास के होटल या दूसरे बिजनेस हों.

उल्लेखनीय है कि वेदान्ता समूह का यह प्लांट भारत का सबसे बड़ा कॉपर, एल्यूमिनियम और जिंक उत्पादन का केन्द्र है. साथ ही इस फैक्ट्री के परिसर में ही एक रिफायनरी, फॉस्फोरिक एसिड तथा सल्फ्यूरिक एसिड का भी खासा उत्पादन होता है. अब वामियों द्वारा भड़काए जाने और अपने फर्जी NGOS के माध्यम से पर्यावरण के नाम पर बवाल और उत्पात मचाने के कारण हुआ यह कि कोर्ट और तमिलनाडु सरकार ने इस फैक्ट्री को बन्द करने के आदेश जारी कर दिए. उसी दिन से भारत को बाहर से तांबा आयात करना शुरू करना पड़ा, क्योंकि जो फैक्ट्री सर्वाधिक तांबा उत्पादन करती थी, वह तो वामी धूर्तों ने बन्द करवा दी. साथ ही तमिलनाडु में रासायनिक खाद के भाव में वृद्धि हो गई तो किसान के पेट पर भी लात पड़ी. इसी प्रकार सल्फ्यूरिक एसिड के दाम 4000 रूपए मीट्रिक टन से बढ़कर सीधे 9000 रूपए मीट्रिक टन पहुँच गए. इन सभी का उत्पादन स्टरलाईट कॉपर इंडस्ट्री में होता था. जैसे-जैसे यह खबर आम होने लगी कि स्टरलाईट बन्द होने के कारण ही दैनिक वेतनभोगी मजदूरों की रोजीरोटी पर भी संकट आ गया है तथा जिन “कथित” मजदूर नेताओं ने गरीबों को भडकाया था, उन्हें NGO द्वारा पचास लाख का भुगतान भी किया गया है, जनता को असलियत समझ में आने लगी. लोग यह समझने लगे कि पर्यावरण और प्रदूषण के नाम पर इस फैक्ट्री को बन्द करवाने वाली कोई तगड़ी लॉबी है, जो वेदांता समूह की प्रतिद्वंद्वी है. धीरे-धीरे ग्रामीणों को समझ में आने लगा और वे एकजुट होने लगे. देखते ही देखते प्रधानमंत्री कार्यालय को लगभग डेढ़ लाख पत्र पहुँच गए कि यह फैक्ट्री पुनः आरम्भ करने की कानूनी एवं प्रशासनिक कार्यवाही की जाए.

अब मूल सवाल उठते हैं कि –

१) वे कौन से तथाकथित पर्यावरण प्रेमी थे जो इस फैक्ट्री को बन्द होते देखना चाहते थे?

२) इन कथित “एक्टिविस्टों” के राजनैतिक सम्बन्ध किस पार्टी से हैं? 

३) ग्रामीणों द्वारा इन एक्टिविस्टों को पचास लाख रूपए के भुगतान की जो बात की जा रही है, उसकी गहन जाँच होनी चाहिए.

४) कंपनी के खिलाफ दुष्प्रचार करके देश को नुक्सान पहुँचाने वाली शक्तियाँ कौन हैं? वे देशद्रोही कौन हैं, जिनकी वजह से तांबे के भाव आसमान छूने लगे और देश को आयात करना पड़ा?

५) प्लांट बन्द होने से रासायनिक खाद और सल्फ्यूरिक एसिड के दामों में हुई वृद्धि से जिन किसानों को आर्थिक नुक्सान हुआ, क्या उसकी भरपाई ये कथित वामी क्रान्तिकारी लोग कर पाएँगे?

६) फैक्ट्री बन्द होने के कारण भारत सरकार को हुई विदेशी मुद्रा के नुक्सान तथा तमिलनाडु की राज्य सरकार को हुए करोड़ों रूपए के राजस्व की भरपाई अब कैसे होगी?
कहने का तात्पर्य यह है कि वामपंथी पहले तो जनता को उकसाकर, भड़काकर अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं, अपने विदेशी आकाओं से मोटा पैसा वसूलकर देश में अशांति फैलाने में कामयाब हो जाते हैं. बेचारा मजदूर और किसान इनकी चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर अपना ही घर फूँक डालता है.

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