desiCNN - Items filtered by date: अगस्त 2015

सत्ता की भनक सूँघने में कांग्रेसियों से ज्यादा माहिर कोई नहीं होता, इसलिए आज यदि कई कांग्रेसियों को लग रहा है कि राहुल गाँधी उन्हें सत्ता दिलवाने में नाकाम हो रहे हैं तो षड्यंत्र और गहराएँगे. काँग्रेस पार्टी और खासकर राहुल गाँधी को सबसे पहले “अपने घर” पर ध्यान देना चाहिए. एकाध बार तो ठीक है, परन्तु हमेशा खामख्वाह दाढ़ी बढ़ाकर प्रेस कांफ्रेंस में एंग्री यंगमैन की भूमिका उनके लिए घातक सिद्ध हो रही है. 

Published in ब्लॉग

भारत के इतिहास की पुस्तकों में अधिकांशतः हिन्दू राजाओं-रानियों एवं योद्धाओं को “पराजित” अथवा युद्धरत ही दर्शाया गया है. विजेता हिन्दू योद्धाओं के साम्राज्य, उनकी युद्ध रणनीति, उनके कौशल का उल्लेख या तो पुस्तकों में है ही नहीं, अथवा बहुत ही कम किया गया है.

Published in ब्लॉग

ख़ासा स्मार्ट, परिवार या पास-पड़ौस के ही शरारती लड़के जैसा किशोर, अभी मसें भी नहीं भीगीं, मीठी मुस्कराहट बिखेरता चेहरा और उदगार "मैं यहाँ हिन्दुओं को मारने आया हूं, मुझे ऐसा करने में मज़ा आता है " ये वर्णन जम्मू के नरसू क्षेत्र में बीएसएफ की एक बस पर ताबड़तोड़ फायरिंग के बाद गांव वालों की साहसिक सूझ-बूझ से दबोचे गये एक आतंकवादी का है।

Published in ब्लॉग

सदियों से भारतीय ज्ञान एवं संस्कारों की एक महान परंपरा रही है. वेदों-पुराणों-ग्रन्थों सहित विभिन्न उत्सवों एवं सामान्य सी दिखाई देने वाली प्रक्रियाओं में भी हमारे ऋषि-मुनियों ने मनुष्य के स्वास्थ्य एवं प्रकृति के संतुलन का पूरा ध्यान रखा है.

Published in ब्लॉग

इंटरनेट के कारण हिंदुस्तान में Cognitive Dissonance का सब से बड़ा मारा कोई है तो युवा मुसलमान है. वह जानता है कि अब सब जानते हैं कि जब उसके पुरखों ने इस्लाम कुबूल किया होगा, वह कोई बहुत गौरवशाली घटना नहीं होगी. वह जिनसे अपना संबंध बता रहा है, उनकी नजर में तो उसकी औकात धूल बराबर भी नहीं है यह भी सब जानते हैं. समाज के तथाकथित रहनुमाओं ने समाज को मजहब के नाम पर पिछड़ा रखा है, यह भी उसे पता है.

Published in आलेख

 

क्या कभी आपने सोचा है कि हमारी अपनी संस्कृति पर अधिकार जताने के लिए हम क्यों विवश हैं? क्यों ग्लोबलाइजेशन व उदारवादी विश्व अर्थव्यवस्था के नाम पर अनाचार, अश्लील, अनैतिक व अवैध कार्यों को वैध बनाने की कुछ विकृत मानसिकता वाले लोगों व बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की साजिश में हमें भागीदार बनाया जा रहा है?

Published in आलेख

हमारे भारत के “तथाकथित मेनस्ट्रीम” मीडिया में कभीकभार भूले-भटके महानगरों में काम करने वाले घरेलू नौकरों अथवा नौकरानियों पर होने वाले अत्याचारों एवं शोषण की दहला देने वाली कथाएँ प्रस्तुत होती हैं. परन्तु चैनलों अथवा अखबारों से जिस खोजी पत्रकारिता की अपेक्षा की जाती है वह इस मामले में बिलकुल नदारद पाई जाती है. आदिवासी इलाके से फुसलाकर लाए गए गरीब नौकरों-नौकरानियों की दर्दनाक दास्तान बड़ी मुश्किल से ही “हेडलाइन”, “ब्रेकिंग न्यूज़” या किसी “स्टिंग स्टोरी” में स्थान पाती हैं. ऐसा क्यों होता है?

Published in ब्लॉग