जानिए
उर्दू अखबारों में क्या चल रहा है...
उर्दू
अखबार “सियासत” (६ नवंबर के अंक) के अनुसार तेलंगाना सरकार ने अपने ताज़ा बजट में
मुस्लिमों के लिए योजनाओं की झड़ी लगा दी है. मुस्लिम लड़कियों को निकाह के अवसर पर 51000 रूपए दिए जाएँगे, इसके
अलावा वक्फ बोर्ड को उन्नत बनाने के लिए ५३ करोड़, पुस्तकों का अनुवाद उर्दू में
करने के लिए दो करोड़ रूपए तथा मुस्लिम छात्रों को ऋण एवं फीस वापसी में सहायता के
लिए ४०० करोड़ रूपए की व्यवस्था की गई है. इसके अलावा अल्पसंख्यकों को स्वरोजगार शुरू
करने के लिए सौ करोड़ रूपए की धनराशी ब्याज मुक्त कर्जे के रूप में दी जाएगी.
उर्दू हिन्दुस्तान एक्सप्रेस (१२ नवंबर अंक) की खबर के
अनुसार अलग-अलग दलों के टिकट पर चुनाव जीते हुए मुस्लिम विधायकों ने एक संयुक्त
मोर्चा बनाने का फैसला किया है. जमीयत उलेमा द्वारा आयोजित एक समारोह में गुलज़ार
आज़मी ने कहा कि वे भले ही भिन्न-भिन्न पार्टियों के टिकटों से चुनाव जीते हों,
लेकिन “मिल्लत” की समस्याओं को लेकर उनका रुख एक ही रहेगा. आज़मी ने कहा कि
महाराष्ट्र पुलिस जानबूझकर मुस्लिम युवकों को फँसाती है, उनकी आवाज़ संयुक्त रूप से
उठाने तथा उन्हें कानूनी मदद पहुँचाने की दृष्टि से इस मोर्चे का गठन किया जा रहा
है.
अजीजुल-हिंद (२८ अक्टूबर का अंक) लिखता है कि ऑल इण्डिया
मजलिस मुशावरात के अध्यक्ष ज़फरुल इस्लाम ने आरोप लगाया है कि केन्द्रीय जाँच
एजेंसियां कतई विश्वसनीय नहीं हैं और वे बंगाल के बर्दवान धमाके को जानबूझकर
बढाचढा कर पेश कर रही हैं ताकि ममता बनर्जी सरकार एवं मदरसों को बदनाम करके बंगाल
में भी हिन्दू-मुस्लिम एकता में दरार पैदा की जा सके. बंगाल के जमाते इस्लामी
अध्यक्ष मौलाना नूरुद्दीन ने बनर्जी से शिकायत की है कि केन्द्र की मोदी सरकार
धार्मिक ग्रंथों को संदेह के घेरे में लाकर और मदरसों पर जाँच बैठाकर दबाव बढ़ाना
चाहते हैं. उन्होंने दावा किया कि बांग्ला के ख्यात पत्रकार तृणमूल सांसद अहमद हसन
इमरान को झूठे मामलों में फँसाया गया है. भाजपा सरकार ने उन पर सिमी का एजेंट होने
तथा सारधा घोटाले का पैसा बांग्लादेश भेजने का आरोप लगाया है वह गलत है.
अखबार मुंसिफ (३ नवंबर अंक) के अनुसार सऊदी अरब में तलाक
के मामलों में भारी वृद्धि हुई है. पिछले दस
साल में चौंतीस हजार तलाक हुए, जबकि विवाह सिर्फ ग्यारह हजार ही हुए. सऊदी
पत्रिका “अल-सबक” के अनुसार स्मार्टफोन एवं कंप्यूटर के बढ़ते प्रयोग के कारण तलाक
बढ़ रहे हैं. अनजान नंबरों से बुर्कानशीं महिलाओं के स्मार्टफोन पर आने वाले नंबर
देखकर पतियों को उन पर शक होता है और वे तलाक दे देते हैं. पिछले सप्ताह एक महिला
को सऊदी युवक ने सिर्फ इसलिए तलाक दिया क्योंकि वह उसके कहने पर कार का दरवाजा बंद
नहीं कर रही थी. तलाक के अधिकाँश मामले वही हैं जहाँ विवाह को सिर्फ दो या तीन
वर्ष ही हुए हैं.
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इन सभी रिपोर्ट्स का अर्थ निकालने के लिए आप स्वतन्त्र हैं... मैं अपना कोई मत नहीं थोपता... :)
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