“सोनिया सरकार” का पहला तोहफ़ा– विदेशी संस्था का हस्तक्षेप यानी राष्ट्रीय स्वाभिमान को ठोकर… USCIRF visit Religious Freedom and Human Rights in India
Written by Super User शुक्रवार, 22 मई 2009 12:49
किसी भी देश की सार्वभौमिकता, एकता और अखण्डता के साथ-साथ उस देश का “राष्ट्रीय स्वाभिमान” या राष्ट्र-गौरव भी एक प्रमुख घटक होता है। भारत की अब तक यह नीति रही है कि “हमारे अन्दरूनी मामलों में कोई भी देश, संस्था या अन्तर्राष्ट्रीय संगठन हस्तक्षेप नहीं कर सकता…”, लेकिन सोनिया सरकार ने इस नीति को उलट दिया है। अमेरिका की एक संस्था है “USCIRF” अर्थात US Commission on International Religious Freedom, इस संस्था को जून 2009 में पहली बार भारत का दौरा करने की अनुमति “सोनिया गाँधी सरकार” द्वारा प्रदान कर दी गई है। यह संस्था (कमीशन) अमेरिकी कांग्रेस द्वारा बनाई गई है जिसे अमेरिकी सरकार द्वारा पैसा दिया जाता है। इस संस्था का गठन 1998 में अमेरिका के एक कानून International Religious Freedom Act 1998 के तहत किया गया है, और 1998 से लगातार यह संस्था भारत पर दौरा करने का दबाव बनाये हुए थी, लेकिन भारत की सरकार ने उसे अनुमति और इसके सदस्यों को वीज़ा नहीं दिया। भारत के अन्दरूनी मामलों में दखल-अंदाजी को बर्दाश्त न करने की इस नीति को NDA (1999-2004) और UPA (2004-2009) की सरकारों ने बनाये रखा, जो कि नरसिम्हाराव, देवेगौड़ा और गुजराल सरकार की भी नीति रही।
आईये देखें कि यह अमेरिकी संस्था आखिर करती क्या है? इस अमेरिकी संस्था का गठन अमेरिकी कानूनों के अन्तर्गत हुआ है, लेकिन जिस तरह “दुनिया का खून चूसकर खुद भी और दुनिया को भी आर्थिक मन्दी में फ़ँसाने वाला अमेरिका” अभी भी सोचता है कि वह “विश्व का चौधरी” है, ठीक वैसे ही यह संस्था USCIRF समूचे विश्व में “धार्मिक स्वतन्त्रता” और मानवाधिकारों का हनन कहाँ-कहाँ हो रहा है यह देखती है। भारत में “धार्मिक स्वतन्त्रता” और “मानवाधिकारों” का हनन किस सम्प्रदाय पर ज्यादा हो रहा है? जी हाँ, बिलकुल सही पहचाना आपने, सिर्फ़ और सिर्फ़ “ईसाईयों” पर। वैसे तो कहने के लिये “मुस्लिमों” पर भी भारत में “भारी अत्याचार”(??) हो रहे हैं, लेकिन उनकी फ़िक्र करने के लिये इधर पहले से ही बहुत सारे “सेकुलर” मौजूद हैं, और अमेरिका को वैसे भी मुस्लिमों से विशेष प्रेम नहीं है, सो वह इस संस्था के सदस्यों को पूरे विश्व में सिर्फ़ “ईसाईयों” पर होने वाले अत्याचारों की रिपोर्ट लेने भेजता है।
इस संस्था के भारत दौरे पर पहले विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी नाखुशी जता चुके हैं और दबे स्वरों में इसका विरोध भी कर चुके हैं, लेकिन चूंकि मामला “ईसाईयों” से जुड़ा है और जब “महारानी” की अनुमति है तो विदेश नीति और देश का स्वाभिमान जाये भाड़ में, किसे परवाह है?
इस वर्ष जून में इस संस्था का भारत दौरा प्रस्तावित हो चुका है। इसके सदस्य भारत में कहाँ का दौरा करेंगे? इस आसान सवाल पर कोई ईनाम नहीं मिलेगा, क्योंकि वे गुजरात में डांग, गोधरा तथा उड़ीसा में कंधमाल का दौरा करने वाले हैं। नवीन पटनायक तो शायद इसके सवाल-जवाबों से बच जायेंगे, क्योंकि भाजपा का साथ छोड़ते ही वे “शर्मनिरपेक्ष” बन गये हैं, लेकिन USCIRF के सदस्य डांग्स और गोधरा का दौरा करेंगे तथा नरेन्द्र मोदी और भाजपा से सवाल-जवाब करेंगे। ये अमेरिकी संस्था हमें बतायेगी कि “धार्मिक स्वतन्त्रता” और मानवाधिकार क्या होता है, तथा इसके “निष्पक्ष महानुभाव सदस्य”(?) भारत सरकार के अधिकृत आँकड़ों को दरकिनार करते हुए अपनी खुद की तैयार की हुई रिपोर्ट अमेरिकी कांग्रेस को पेश करेंगे।
इस समिति के सदस्यों के “असीमित ज्ञान” के बारे में यही कहा जा सकता है कि गत वर्ष पेश की गई अपनी आंतरिक रिपोर्ट में इन्होंने नरेन्द्र मोदी को “गुजरात राज्य का गवर्नर” (मुख्यमंत्री नहीं) बताया है, और नरेन्द्र मोदी की स्पेलिंग कई जगह “Nahendra” लिखी गई है, और यह स्थिति तब है जबकि इस संस्था के पास 17 सदस्यों का “दक्षिण एशिया विशेषज्ञों” का एक शोध दल है जो इलाके में धार्मिक स्वतन्त्रता हनन पर नज़र रखता है।
किसी मूर्ख को भी साफ़ दिखाई दे रहा है कि यह साफ़ तौर पर भारत में खुल्लमखुल्ला “अतिक्रमण” है, एक प्रकार का अनुचित हस्तक्षेप है। भारत के अन्दरूनी मसलों पर जाँच करने या दौरा करके अपनी रिपोर्ट अमेरिकी कांग्रेस को पेश करने का इस समिति को क्या हक है? क्या यह एक सार्वभौम राष्ट्र का अपमान नहीं है? यदि एक मिनट के लिये कांग्रेस-भाजपा या सेकुलर-साम्प्रदायिक के मतभेदों को अलग रख दिया जाये तो यह कृत्य प्रत्येक देशभक्त भारतीय को निश्चित ही यह अपमानजनक लगेगा, लेकिन बुद्धिजीवियों की एक कौम है “सेकुलर”… शायद उन्हें यह अपमानजनक या आपत्तिजनक न लगे, क्योंकि इस कौम को उस वक्त भी “बहुत खुशी” महसूस हुई थी, जब अमेरिका ने नरेन्द्र मोदी को वीज़ा देने से इन्कार कर दिया था। उस वक्त इस सेकुलर कौम के लिये नरेन्द्र मोदी, भारत नामक सबसे बड़े लोकतन्त्र के लगातार तीसरी बार निर्वाचित मुख्यमंत्री नहीं थे, बल्कि एक “हिन्दू” थे। सेकुलरों का मानना है कि नरेन्द्र मोदी को वीज़ा न देना “भारत का अपमान” नहीं था, बल्कि एक “हिन्दू” का अपमान था, इससे ये लोग बहुत खुश हुए थे, ये नज़रिया है इन लोगों का देश और खासकर “हिन्दुओं” के प्रति। नरेन्द्र मोदी को वीज़ा न देने सम्बन्धी भारत गणराज्य के अपमान का ऊँची आवाज़ में विरोध करना तो दूर, सेकुलरिस्टों ने दबी आवाज़ में भी अमेरिका के प्रति नाराज़गी तक नहीं दिखाई, जबकि यही लोग देवी-देवताओं की नंगी तस्वीरें बनाने वाले एमएफ़ हुसैन के भारत लौटने के लिये ऐसे बुक्का फ़ाड़ रहे हैं, जैसे इनका कोई “सगा-वाला” इनसे बिछुड़ गया हो, जबकि तसलीमा नसरीन के साथ सरेआम प्रेस कांफ़्रेंस में मारपीट करने वाले हैदराबाद के एक “सेकुलर नेता” की कोई आलोचना नहीं होती… इनके दोगलेपन की कोई हद नहीं है।
बहरहाल, बात हो रही थी अमेरिकी समिति USCIRF की, इस समिति की निगाहे-करम कुछ खास देशों पर हमेशा रही है, जैसे क्यूबा, रूस, चीन, वियतनाम, म्यांमार, उत्तर कोरिया आदि (और ये देश अमेरिका को कितने “प्रिय” हैं यह अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है)। ये और बात है कि इस समिति को क्यूबा सरकार ने देश में घुसने की अनुमति नहीं दी, चीन सरकार ने भी लगातार तीन साल तक लटकाने के बाद कड़ी शर्तों के बाद ही इन्हें सन् 2005 में देश में घुसने दिया था और इसकी रिपोर्ट आते ही चीन ने उसे “विद्वेषपूर्ण कार्यवाही” बता दिया था। वियतनाम ने 2002 में इसकी रिपोर्ट सिरे से ही खारिज कर दी थी। भारत के बारे में इस संस्था की रिपोर्ट इनकी वेबसाईट पर देखी जा सकती है। USCIRF धर्म परिवर्तन विरोधी कानून बनाने वालों के खिलाफ़ खास “लॉबी” बनाती है, यह समिति विभिन्न देशों को अलग-अलग “कैटेगरी” में रखती है, जैसे – Countries of Particular Concern (CPC), Country Watch List (CWL) तथा Additional Countries Monitored (ACM)। भारत का दर्जा फ़िलहाल ACM में रखा गया है, जहाँ “धार्मिक स्वतन्त्रता” (यानी धर्मान्तरण की छूट) को खतरा उत्पन्न होने की आशंका है, श्रीलंका भी इसी श्रेणी में रखा गया है, जहाँ हाल ही में चीन की मदद से श्रीलंका ने “चर्च” की तमिल ईलम बनाने की योजना को ध्वस्त कर दिया है।
सवाल यह भी उठता है कि क्या यह अमेरिकी कमीशन केरल भी जायेगा, जहाँ ननों के साथ बलात्कार और हत्याएं हुई हैं? क्या यह कमीशन कश्मीर भी जायेगा जहाँ से हिन्दुओं को बेदखल कर दिया गया है? क्या यह कमीशन पाकिस्तान भी जायेगा जहाँ सिखों से जज़िया न मिलने की सूरत में उन पर अत्याचार हो रहे हैं? जब यह समिति कंधमाल जायेगी, तो स्वामी लक्षमणानन्द सरस्वती की हत्या क्यों हुई, इस पर भी कोई विचार करेगी? क्या यह समिति गुजरात के दंगों में 200 से अधिक हिन्दू “भी” क्यों मारे गये, इसकी जाँच करेगी? ज़ाहिर है कि यह ऐसा कुछ नहीं करेगी। असल में दोगले सेकुलर, इस समिति से अपनी “पसन्दीदा” रिपोर्ट चाहते हैं, इसका एक उदाहरण यह भी है कि गत मार्च में ऐसी ही एक और मानवाधिकार कार्यकर्ता पाकिस्तान की अस्मां जहाँगीर को भारत सरकार ने गुजरात का दौरा करने की अनुमति दी थी (अस्मां जहाँगीर यूएन मानवाधिकार आयोग की विशेष सदस्या भी हैं)। उम्मीदों के विपरीत नरेन्द्र मोदी ने असमां जहाँगीर का स्वागत किया था और उन्हें सभी सुविधायें मुहैया करवाई थीं, तब सभी “मानवाधिकारवादी” और “सेकुलरिस्ट” लोगों ने असमां जहाँगीर की इस बात के लिये आलोचना की कि उन्हें नरेन्द्र मोदी से नहीं मिलना चाहिये था। यानी कि जो भी रिपोर्ट उनकी पसन्द की होगी वही स्वीकार्य होगी, अन्यथा नहीं। इसलिये इस अमेरिकी समिति की “धर्मान्तरण” और “भारत में धार्मिक स्वतन्त्रता” सम्बन्धी रिपोर्ट क्या होगी, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है। यह देखना रोचक होगा कि “हिन्दू हृदय सम्राट” नरेन्द्र मोदी भी आडवाणी की तरह “सेकुलरता” का ढोंग करके USCIRF के गोरे साहबों का स्वागत करते हैं या सच्चे हिन्दू देशभक्त की तरह उन्हें लतियाकर बेरंग लौटाते हैं, यह भी देखना मजेदार होगा कि ताजा-ताजा सेकुलर बने पटनायक उन्हें उड़ीसा के आदिवासी इलाकों में चल रही “हरकतों” की असलियत बतायेंगे या नहीं।
देश पर हो रहे इस “अनैतिक अतिक्रमण” को केन्द्र सरकार का पूर्ण समर्थन हासिल है। क्या इस प्रकार की गतिविधि देश की अखण्डता के साथ खिलवाड़ नहीं है? काल्पनिक ही सही लेकिन भविष्य में अगले कदम के तौर पर हो सकता है कि अमेरिका कहे कि आपसे कश्मीर नहीं संभलता इसलिये हम अपनी सेना वहाँ रखना चाहते हैं। क्या यह हमें मंजूर होगा? लेकिन यहाँ मामला सिर्फ़ और सिर्फ़ येन-केन-प्रकारेण भाजपा-मोदी-संघ को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करके ओछी राजनीति करने का है, जबकि उसकी बहुत बड़ी कीमत यह देश चुकायेगा। इन्हें यह छोटी सी बात समझ नहीं आती कि देश की घरेलू राजनीति में भले ही कांग्रेस-भाजपा और सेकुलर-साम्प्रदायिक में घोर मतभेद हों, लेकिन उस मतभेद का पूरी दुनिया के सामने इस तरह से भौण्डा प्रदर्शन करने की कोई जरूरत नहीं है, सवाल है कि “सेकुलर” राजनीति बड़ी है या देश का स्वाभिमान? अल्पसंख्यकों को खुश करने और हिन्दुओं की नाक मोरी में रगड़ने के लिये सेकुलरिस्ट किस हद तक जा सकते हैं यह अगले 5 साल में हमें देखने मिलेगा, क्योंकि आखिर इस देश की जनता ने “स्थिर सरकार”, “रोजी-रोटी देने वाली सरकार”, “गरीबों का साथ देने वाली सरकार” को चुन लिया है…
(खबरों के स्रोत के लिये यहाँ तथा यहाँ चटका लगाया जा सकता है…)
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आईये देखें कि यह अमेरिकी संस्था आखिर करती क्या है? इस अमेरिकी संस्था का गठन अमेरिकी कानूनों के अन्तर्गत हुआ है, लेकिन जिस तरह “दुनिया का खून चूसकर खुद भी और दुनिया को भी आर्थिक मन्दी में फ़ँसाने वाला अमेरिका” अभी भी सोचता है कि वह “विश्व का चौधरी” है, ठीक वैसे ही यह संस्था USCIRF समूचे विश्व में “धार्मिक स्वतन्त्रता” और मानवाधिकारों का हनन कहाँ-कहाँ हो रहा है यह देखती है। भारत में “धार्मिक स्वतन्त्रता” और “मानवाधिकारों” का हनन किस सम्प्रदाय पर ज्यादा हो रहा है? जी हाँ, बिलकुल सही पहचाना आपने, सिर्फ़ और सिर्फ़ “ईसाईयों” पर। वैसे तो कहने के लिये “मुस्लिमों” पर भी भारत में “भारी अत्याचार”(??) हो रहे हैं, लेकिन उनकी फ़िक्र करने के लिये इधर पहले से ही बहुत सारे “सेकुलर” मौजूद हैं, और अमेरिका को वैसे भी मुस्लिमों से विशेष प्रेम नहीं है, सो वह इस संस्था के सदस्यों को पूरे विश्व में सिर्फ़ “ईसाईयों” पर होने वाले अत्याचारों की रिपोर्ट लेने भेजता है।
इस संस्था के भारत दौरे पर पहले विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी नाखुशी जता चुके हैं और दबे स्वरों में इसका विरोध भी कर चुके हैं, लेकिन चूंकि मामला “ईसाईयों” से जुड़ा है और जब “महारानी” की अनुमति है तो विदेश नीति और देश का स्वाभिमान जाये भाड़ में, किसे परवाह है?
इस वर्ष जून में इस संस्था का भारत दौरा प्रस्तावित हो चुका है। इसके सदस्य भारत में कहाँ का दौरा करेंगे? इस आसान सवाल पर कोई ईनाम नहीं मिलेगा, क्योंकि वे गुजरात में डांग, गोधरा तथा उड़ीसा में कंधमाल का दौरा करने वाले हैं। नवीन पटनायक तो शायद इसके सवाल-जवाबों से बच जायेंगे, क्योंकि भाजपा का साथ छोड़ते ही वे “शर्मनिरपेक्ष” बन गये हैं, लेकिन USCIRF के सदस्य डांग्स और गोधरा का दौरा करेंगे तथा नरेन्द्र मोदी और भाजपा से सवाल-जवाब करेंगे। ये अमेरिकी संस्था हमें बतायेगी कि “धार्मिक स्वतन्त्रता” और मानवाधिकार क्या होता है, तथा इसके “निष्पक्ष महानुभाव सदस्य”(?) भारत सरकार के अधिकृत आँकड़ों को दरकिनार करते हुए अपनी खुद की तैयार की हुई रिपोर्ट अमेरिकी कांग्रेस को पेश करेंगे।
इस समिति के सदस्यों के “असीमित ज्ञान” के बारे में यही कहा जा सकता है कि गत वर्ष पेश की गई अपनी आंतरिक रिपोर्ट में इन्होंने नरेन्द्र मोदी को “गुजरात राज्य का गवर्नर” (मुख्यमंत्री नहीं) बताया है, और नरेन्द्र मोदी की स्पेलिंग कई जगह “Nahendra” लिखी गई है, और यह स्थिति तब है जबकि इस संस्था के पास 17 सदस्यों का “दक्षिण एशिया विशेषज्ञों” का एक शोध दल है जो इलाके में धार्मिक स्वतन्त्रता हनन पर नज़र रखता है।
किसी मूर्ख को भी साफ़ दिखाई दे रहा है कि यह साफ़ तौर पर भारत में खुल्लमखुल्ला “अतिक्रमण” है, एक प्रकार का अनुचित हस्तक्षेप है। भारत के अन्दरूनी मसलों पर जाँच करने या दौरा करके अपनी रिपोर्ट अमेरिकी कांग्रेस को पेश करने का इस समिति को क्या हक है? क्या यह एक सार्वभौम राष्ट्र का अपमान नहीं है? यदि एक मिनट के लिये कांग्रेस-भाजपा या सेकुलर-साम्प्रदायिक के मतभेदों को अलग रख दिया जाये तो यह कृत्य प्रत्येक देशभक्त भारतीय को निश्चित ही यह अपमानजनक लगेगा, लेकिन बुद्धिजीवियों की एक कौम है “सेकुलर”… शायद उन्हें यह अपमानजनक या आपत्तिजनक न लगे, क्योंकि इस कौम को उस वक्त भी “बहुत खुशी” महसूस हुई थी, जब अमेरिका ने नरेन्द्र मोदी को वीज़ा देने से इन्कार कर दिया था। उस वक्त इस सेकुलर कौम के लिये नरेन्द्र मोदी, भारत नामक सबसे बड़े लोकतन्त्र के लगातार तीसरी बार निर्वाचित मुख्यमंत्री नहीं थे, बल्कि एक “हिन्दू” थे। सेकुलरों का मानना है कि नरेन्द्र मोदी को वीज़ा न देना “भारत का अपमान” नहीं था, बल्कि एक “हिन्दू” का अपमान था, इससे ये लोग बहुत खुश हुए थे, ये नज़रिया है इन लोगों का देश और खासकर “हिन्दुओं” के प्रति। नरेन्द्र मोदी को वीज़ा न देने सम्बन्धी भारत गणराज्य के अपमान का ऊँची आवाज़ में विरोध करना तो दूर, सेकुलरिस्टों ने दबी आवाज़ में भी अमेरिका के प्रति नाराज़गी तक नहीं दिखाई, जबकि यही लोग देवी-देवताओं की नंगी तस्वीरें बनाने वाले एमएफ़ हुसैन के भारत लौटने के लिये ऐसे बुक्का फ़ाड़ रहे हैं, जैसे इनका कोई “सगा-वाला” इनसे बिछुड़ गया हो, जबकि तसलीमा नसरीन के साथ सरेआम प्रेस कांफ़्रेंस में मारपीट करने वाले हैदराबाद के एक “सेकुलर नेता” की कोई आलोचना नहीं होती… इनके दोगलेपन की कोई हद नहीं है।
बहरहाल, बात हो रही थी अमेरिकी समिति USCIRF की, इस समिति की निगाहे-करम कुछ खास देशों पर हमेशा रही है, जैसे क्यूबा, रूस, चीन, वियतनाम, म्यांमार, उत्तर कोरिया आदि (और ये देश अमेरिका को कितने “प्रिय” हैं यह अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है)। ये और बात है कि इस समिति को क्यूबा सरकार ने देश में घुसने की अनुमति नहीं दी, चीन सरकार ने भी लगातार तीन साल तक लटकाने के बाद कड़ी शर्तों के बाद ही इन्हें सन् 2005 में देश में घुसने दिया था और इसकी रिपोर्ट आते ही चीन ने उसे “विद्वेषपूर्ण कार्यवाही” बता दिया था। वियतनाम ने 2002 में इसकी रिपोर्ट सिरे से ही खारिज कर दी थी। भारत के बारे में इस संस्था की रिपोर्ट इनकी वेबसाईट पर देखी जा सकती है। USCIRF धर्म परिवर्तन विरोधी कानून बनाने वालों के खिलाफ़ खास “लॉबी” बनाती है, यह समिति विभिन्न देशों को अलग-अलग “कैटेगरी” में रखती है, जैसे – Countries of Particular Concern (CPC), Country Watch List (CWL) तथा Additional Countries Monitored (ACM)। भारत का दर्जा फ़िलहाल ACM में रखा गया है, जहाँ “धार्मिक स्वतन्त्रता” (यानी धर्मान्तरण की छूट) को खतरा उत्पन्न होने की आशंका है, श्रीलंका भी इसी श्रेणी में रखा गया है, जहाँ हाल ही में चीन की मदद से श्रीलंका ने “चर्च” की तमिल ईलम बनाने की योजना को ध्वस्त कर दिया है।
सवाल यह भी उठता है कि क्या यह अमेरिकी कमीशन केरल भी जायेगा, जहाँ ननों के साथ बलात्कार और हत्याएं हुई हैं? क्या यह कमीशन कश्मीर भी जायेगा जहाँ से हिन्दुओं को बेदखल कर दिया गया है? क्या यह कमीशन पाकिस्तान भी जायेगा जहाँ सिखों से जज़िया न मिलने की सूरत में उन पर अत्याचार हो रहे हैं? जब यह समिति कंधमाल जायेगी, तो स्वामी लक्षमणानन्द सरस्वती की हत्या क्यों हुई, इस पर भी कोई विचार करेगी? क्या यह समिति गुजरात के दंगों में 200 से अधिक हिन्दू “भी” क्यों मारे गये, इसकी जाँच करेगी? ज़ाहिर है कि यह ऐसा कुछ नहीं करेगी। असल में दोगले सेकुलर, इस समिति से अपनी “पसन्दीदा” रिपोर्ट चाहते हैं, इसका एक उदाहरण यह भी है कि गत मार्च में ऐसी ही एक और मानवाधिकार कार्यकर्ता पाकिस्तान की अस्मां जहाँगीर को भारत सरकार ने गुजरात का दौरा करने की अनुमति दी थी (अस्मां जहाँगीर यूएन मानवाधिकार आयोग की विशेष सदस्या भी हैं)। उम्मीदों के विपरीत नरेन्द्र मोदी ने असमां जहाँगीर का स्वागत किया था और उन्हें सभी सुविधायें मुहैया करवाई थीं, तब सभी “मानवाधिकारवादी” और “सेकुलरिस्ट” लोगों ने असमां जहाँगीर की इस बात के लिये आलोचना की कि उन्हें नरेन्द्र मोदी से नहीं मिलना चाहिये था। यानी कि जो भी रिपोर्ट उनकी पसन्द की होगी वही स्वीकार्य होगी, अन्यथा नहीं। इसलिये इस अमेरिकी समिति की “धर्मान्तरण” और “भारत में धार्मिक स्वतन्त्रता” सम्बन्धी रिपोर्ट क्या होगी, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है। यह देखना रोचक होगा कि “हिन्दू हृदय सम्राट” नरेन्द्र मोदी भी आडवाणी की तरह “सेकुलरता” का ढोंग करके USCIRF के गोरे साहबों का स्वागत करते हैं या सच्चे हिन्दू देशभक्त की तरह उन्हें लतियाकर बेरंग लौटाते हैं, यह भी देखना मजेदार होगा कि ताजा-ताजा सेकुलर बने पटनायक उन्हें उड़ीसा के आदिवासी इलाकों में चल रही “हरकतों” की असलियत बतायेंगे या नहीं।
देश पर हो रहे इस “अनैतिक अतिक्रमण” को केन्द्र सरकार का पूर्ण समर्थन हासिल है। क्या इस प्रकार की गतिविधि देश की अखण्डता के साथ खिलवाड़ नहीं है? काल्पनिक ही सही लेकिन भविष्य में अगले कदम के तौर पर हो सकता है कि अमेरिका कहे कि आपसे कश्मीर नहीं संभलता इसलिये हम अपनी सेना वहाँ रखना चाहते हैं। क्या यह हमें मंजूर होगा? लेकिन यहाँ मामला सिर्फ़ और सिर्फ़ येन-केन-प्रकारेण भाजपा-मोदी-संघ को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करके ओछी राजनीति करने का है, जबकि उसकी बहुत बड़ी कीमत यह देश चुकायेगा। इन्हें यह छोटी सी बात समझ नहीं आती कि देश की घरेलू राजनीति में भले ही कांग्रेस-भाजपा और सेकुलर-साम्प्रदायिक में घोर मतभेद हों, लेकिन उस मतभेद का पूरी दुनिया के सामने इस तरह से भौण्डा प्रदर्शन करने की कोई जरूरत नहीं है, सवाल है कि “सेकुलर” राजनीति बड़ी है या देश का स्वाभिमान? अल्पसंख्यकों को खुश करने और हिन्दुओं की नाक मोरी में रगड़ने के लिये सेकुलरिस्ट किस हद तक जा सकते हैं यह अगले 5 साल में हमें देखने मिलेगा, क्योंकि आखिर इस देश की जनता ने “स्थिर सरकार”, “रोजी-रोटी देने वाली सरकार”, “गरीबों का साथ देने वाली सरकार” को चुन लिया है…
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