चूंकि हिन्दू बर्बर और असभ्य होते हैं… इसलिये उनके खिलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिये…?… Thanks Giving Day, Bakrid, Animal Rights, Hinduism
Written by Super User गुरुवार, 03 दिसम्बर 2009 12:22
नेपाल के बरियापुर में प्रत्येक पाँच वर्ष में एक त्योहार पर हजारों हिन्दू एकत्रित होते हैं, जहाँ एक पूजा के दौरान अनुमानतः लगभग 2 लाख पशु-पक्षियों की बलि दी जाती है। इस उत्सव के दौरान नेपाल के केन्द्रीय मंत्री भी उपस्थित रहते हैं तथा हिन्दू देवी गाधिमाई की पूजा के दौरान, मुर्गे, बकरे, भैंसे आदि की बलि दी जाती है, और देश की खुशहाली के लिये प्रार्थना की जाती है। इस अवसर पर गत 24 नवम्बर को हजारों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, “एनीमल राईट्स” और पशुप्रेमियों के संगठनों ने विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। कई संगठनों ने इस परम्परा का कड़ा विरोध किया और इसके खिलाफ़ कई लेख आदि छापे गये। इस मुहिम में न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी हिन्दुओं की इस “बर्बरता”(?) को दर्शाते हुए खबर छापी।
http://www.nytimes.com/2009/11/25/world/asia/25briefs-Nepal.html?_r=2
अमेरिका में एक त्योहार होता है “थैंक्स गिविंग डे”, इस अवसर पर लगभग प्रत्येक अमेरिकी परिवार में टर्की (एक प्रकार का पक्षी) पकाया जाता है और उसकी पार्टी होती है। अब यदि मान लें कि 20 करोड़ अमेरिकी परिवारों में यह थैंक्स गिविंग डे मनाया जाता है और एक परिवार में यदि औसतन चार सदस्य हों तो कम से कम 5 करोड़ टर्कियों को इस दिन मारकर खाया जाता है… यदि किसी को पता हो कि न्यूयॉर्क टाइम्स ने कभी टर्कियों के इस बड़े पैमाने पर संहार के खिलाफ़ कुछ छापा हो तो अवश्य बताएं या लिंक दें। (चित्र -- जॉर्ज बुश टर्की की गरदन दबोचने की फ़िराक में…)
ऐसा ही एक त्योहार है बकरीद, जिसमें “कुर्बानी”(किसकी?) के नाम पर निरीह बकरों को काटा जाता है। मान लें कि समूचे विश्व में 2 अरब मुसलमान रहते हैं, जिनमें से लगभग सभी बकरीद अवश्य मनाते होंगे। यदि औसतन एक परिवार में 10 सदस्य हों, और एक परिवार मात्र आधा बकरा खाता हो तब भी तकरीबन 100 करोड़ बकरों की बलि मात्र एक दिन में दी जाती है (साल भर के अलग)।
(मैं तो समझता था कि कुर्बानी का मतलब होता है स्वयं कुछ कुर्बान करना। यानी हरेक मुस्लिम कम से कम अपनी एक उंगली का आधा-आधा हिस्सा ही कुर्बान करें तो कैसा रहे? बेचारे बकरों ने क्या बिगाड़ा है।)
अब सवाल उठता है कि यदि 2 लाख प्राणियों को मारना “बर्बरता” और असभ्यता है तो 5 करोड़ टर्की और 10 करोड़ बकरों को मारना क्या है? सिर्फ़ “परम्परा” और “कुर्बानी” की पवित्रता??? इससे ऐसा लगता है, कि परम्पराएं सिर्फ़ मुसलमानों और ईसाईयों के लिये ही होती हैं, हिन्दुओं के लिये नहीं।
हाल ही में कहीं एक बेहूदा सा तर्क पढ़ा था कि बकरीद के दौरान कटने वाले बकरों को गर्दन की एक विशेष नस काटकर मारा जाता है, और उसके कारण उस पशु की पहले दिमागी मौत हो जाती है फ़िर शारीरिक मौत होती है, तथा इस प्रक्रिया में उसे बहुत कम कष्ट होता है। शायद इसीलिये कश्मीर और फ़िलीस्तीन के मुस्लिम आतंकवादियों (सॉरी…स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों) का पसन्दीदा मानवाधिकारवादी तरीका, बंधक व्यक्ति का "गला रेतना" ही है, जिससे उसे कम तकलीफ़ हो। अब एक नया सवाल उठता है कि यदि वाकई इस इस्लामिक पद्धति (हलाल) से जानवरों को बहुत कम कष्ट होता है तो क्यों न कसाब और अफ़ज़ल का गला भी इसी पद्धति से काटा जाये ताकि उन्हें कम से कम तकलीफ़ हो (मानवाधिकारवादी ध्यान दें…)। जबकि शोध से ज्ञात हुआ है कि "झटका" पद्धति कम तकलीफ़देह होती है, बजाय इस्लामिक "हलाल" और यहूदी "काशरुट" पद्धति के। (यहाँ देखें)
एक सर्वे होना चाहिये जिसमें यह पता लगाया जाये कि "धार्मिक कर्मकाण्ड" के नाम पर भारत और बाकी विश्व में कितने मन्दिरों में अभी भी "बलि" की परम्परा वास्तविक रूप में मौजूद है (जहाँ वार्षिक या दैनिक पशु कटाई होती है) तथा भारत में कितने हिन्दू परिवारों में धर्म के नाम पर पशु कटने की परम्परा अभी भी जारी है (आहार के लिये काटे जाने वाले पशु-पक्षियों को अलग रखा जाये), फ़िर हिसाब लगाया जाये कि इस वजह से हिन्दू धर्म के नाम पर कितने पशु-पक्षी कटते हैं। ताकि न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे अखबार तथा "एनिमल राइट्स" के नाम पर चन्दाखोरी करने वालों के मुँह पर वे आँकड़े मारे जा सकें तथा अमेरिका तथा ईसाई जगत में कटने वाले टर्की तथा बकरीद के दौरान पूरे विश्व में कटने वाले बकरों की संख्या से उसकी तुलना की जा सके।
मैं व्यक्तिगत रूप से इस पशु बलि वाली बकवास धार्मिक परम्परा के खिलाफ़ हूं, लेकिन इस प्रकार का दोगलापन बर्दाश्त नहीं होता कि सिर्फ़ हिन्दुओं की परम्पराओं के खिलाफ़ माहौल बनाकर उन्हें असभ्य और बर्बर बताया जाये। सारे विरोध प्रदर्शन हिन्दुओं की परम्पराओं के खिलाफ़ ही क्यों भाई, क्या इसलिये कि हिन्दू हमेशा से एक "आसान टारगेट" रहे हैं? एक बात तय है कि हम अंग्रेजी प्रेस को कितने भी आँकड़े दे लें, मार्क्स-मुल्ला-मैकाले-मिशनरी के हाथों बिका हुआ मीडिया हिन्दुओं के खिलाफ़ दुष्प्रचार से बाज नहीं आयेगा। जरा एक बार बकरीद के दिन मीडिया, मानवाधिकारवादी और एनिमल राईट्स के कार्यकर्ता कमेलों और कत्लगाहों में जाकर विरोध प्रदर्शन करके तो देखें… ऐसे जूते पड़ेंगे कि निकलते नहीं बनेगा उधर से… या फ़िर पश्चिम में "थैंक्स गिविंग डे" के दिन टर्कियों को मारने के खिलाफ़ कोई मुकदमा दायर करके देखें… खुद अमेरिका का राष्ट्रपति इनके पीछे हाथ-पाँव धोकर पड़ जायेगा… जबकि हिन्दुओं के साथ ऐसा कोई खतरा नहीं होता… कभी-कभार शिवसेना या राज ठाकरे, एकाध चैनल वाले का बाजा बजा देते हैं, बाकी तो जितनी मर्जी हो हिन्दुओं के खिलाफ़ लिखिये, खिलाफ़ बोलिये, खिलाफ़ छापिये, कुछ नहीं होने वाला।
लेख का सार -
1) सभी प्रकार की बलि अथवा पशु क्रूरता, अधर्म है, चाहे वह जिस भी धर्म में हो।
2) सिर्फ़ हिन्दुओं को "सिंगल-आउट" करके बदनाम करने की किसी भी कोशिश का विरोध होना चाहिये, विरोध करने वालों से कहा जाये कि पहले ज़रा दूसरे "धर्मों के कर्मों" को देख लो फ़िर हिन्दू धर्म की आलोचना करना…
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विषयान्तर :- आज ही चिदम्बरम साहब ने भी "हिन्दू आतंकवाद" नामक शब्द फ़िर से फ़रमाया है, उनसे यह जानने का इच्छुक हूं कि भारत और बाकी विश्व में इन "हिन्दू आतंकवादियों"(?) ने अब तक कितने बम विस्फ़ोट किये हैं, कितने विमान अपहरण किये हैं, कितने बन्धक बनाये हैं, कितनी हत्याएं की हैं… ताकि बाकियों से तुलना का कोई आधार तो बने…। शायद चिदम्बरम साहब के पास आँकड़े होंगे और वे हमें बतायेंगे कि "हिन्दू आतंकवादी" कितने खतरनाक हैं… मैं इन्तज़ार करूंगा…
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http://www.nytimes.com/2009/11/25/world/asia/25briefs-Nepal.html?_r=2
अमेरिका में एक त्योहार होता है “थैंक्स गिविंग डे”, इस अवसर पर लगभग प्रत्येक अमेरिकी परिवार में टर्की (एक प्रकार का पक्षी) पकाया जाता है और उसकी पार्टी होती है। अब यदि मान लें कि 20 करोड़ अमेरिकी परिवारों में यह थैंक्स गिविंग डे मनाया जाता है और एक परिवार में यदि औसतन चार सदस्य हों तो कम से कम 5 करोड़ टर्कियों को इस दिन मारकर खाया जाता है… यदि किसी को पता हो कि न्यूयॉर्क टाइम्स ने कभी टर्कियों के इस बड़े पैमाने पर संहार के खिलाफ़ कुछ छापा हो तो अवश्य बताएं या लिंक दें। (चित्र -- जॉर्ज बुश टर्की की गरदन दबोचने की फ़िराक में…)
ऐसा ही एक त्योहार है बकरीद, जिसमें “कुर्बानी”(किसकी?) के नाम पर निरीह बकरों को काटा जाता है। मान लें कि समूचे विश्व में 2 अरब मुसलमान रहते हैं, जिनमें से लगभग सभी बकरीद अवश्य मनाते होंगे। यदि औसतन एक परिवार में 10 सदस्य हों, और एक परिवार मात्र आधा बकरा खाता हो तब भी तकरीबन 100 करोड़ बकरों की बलि मात्र एक दिन में दी जाती है (साल भर के अलग)।
(मैं तो समझता था कि कुर्बानी का मतलब होता है स्वयं कुछ कुर्बान करना। यानी हरेक मुस्लिम कम से कम अपनी एक उंगली का आधा-आधा हिस्सा ही कुर्बान करें तो कैसा रहे? बेचारे बकरों ने क्या बिगाड़ा है।)
अब सवाल उठता है कि यदि 2 लाख प्राणियों को मारना “बर्बरता” और असभ्यता है तो 5 करोड़ टर्की और 10 करोड़ बकरों को मारना क्या है? सिर्फ़ “परम्परा” और “कुर्बानी” की पवित्रता??? इससे ऐसा लगता है, कि परम्पराएं सिर्फ़ मुसलमानों और ईसाईयों के लिये ही होती हैं, हिन्दुओं के लिये नहीं।
हाल ही में कहीं एक बेहूदा सा तर्क पढ़ा था कि बकरीद के दौरान कटने वाले बकरों को गर्दन की एक विशेष नस काटकर मारा जाता है, और उसके कारण उस पशु की पहले दिमागी मौत हो जाती है फ़िर शारीरिक मौत होती है, तथा इस प्रक्रिया में उसे बहुत कम कष्ट होता है। शायद इसीलिये कश्मीर और फ़िलीस्तीन के मुस्लिम आतंकवादियों (सॉरी…स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों) का पसन्दीदा मानवाधिकारवादी तरीका, बंधक व्यक्ति का "गला रेतना" ही है, जिससे उसे कम तकलीफ़ हो। अब एक नया सवाल उठता है कि यदि वाकई इस इस्लामिक पद्धति (हलाल) से जानवरों को बहुत कम कष्ट होता है तो क्यों न कसाब और अफ़ज़ल का गला भी इसी पद्धति से काटा जाये ताकि उन्हें कम से कम तकलीफ़ हो (मानवाधिकारवादी ध्यान दें…)। जबकि शोध से ज्ञात हुआ है कि "झटका" पद्धति कम तकलीफ़देह होती है, बजाय इस्लामिक "हलाल" और यहूदी "काशरुट" पद्धति के। (यहाँ देखें)
एक सर्वे होना चाहिये जिसमें यह पता लगाया जाये कि "धार्मिक कर्मकाण्ड" के नाम पर भारत और बाकी विश्व में कितने मन्दिरों में अभी भी "बलि" की परम्परा वास्तविक रूप में मौजूद है (जहाँ वार्षिक या दैनिक पशु कटाई होती है) तथा भारत में कितने हिन्दू परिवारों में धर्म के नाम पर पशु कटने की परम्परा अभी भी जारी है (आहार के लिये काटे जाने वाले पशु-पक्षियों को अलग रखा जाये), फ़िर हिसाब लगाया जाये कि इस वजह से हिन्दू धर्म के नाम पर कितने पशु-पक्षी कटते हैं। ताकि न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे अखबार तथा "एनिमल राइट्स" के नाम पर चन्दाखोरी करने वालों के मुँह पर वे आँकड़े मारे जा सकें तथा अमेरिका तथा ईसाई जगत में कटने वाले टर्की तथा बकरीद के दौरान पूरे विश्व में कटने वाले बकरों की संख्या से उसकी तुलना की जा सके।
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लेख का सार -
1) सभी प्रकार की बलि अथवा पशु क्रूरता, अधर्म है, चाहे वह जिस भी धर्म में हो।
2) सिर्फ़ हिन्दुओं को "सिंगल-आउट" करके बदनाम करने की किसी भी कोशिश का विरोध होना चाहिये, विरोध करने वालों से कहा जाये कि पहले ज़रा दूसरे "धर्मों के कर्मों" को देख लो फ़िर हिन्दू धर्म की आलोचना करना…
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विषयान्तर :- आज ही चिदम्बरम साहब ने भी "हिन्दू आतंकवाद" नामक शब्द फ़िर से फ़रमाया है, उनसे यह जानने का इच्छुक हूं कि भारत और बाकी विश्व में इन "हिन्दू आतंकवादियों"(?) ने अब तक कितने बम विस्फ़ोट किये हैं, कितने विमान अपहरण किये हैं, कितने बन्धक बनाये हैं, कितनी हत्याएं की हैं… ताकि बाकियों से तुलना का कोई आधार तो बने…। शायद चिदम्बरम साहब के पास आँकड़े होंगे और वे हमें बतायेंगे कि "हिन्दू आतंकवादी" कितने खतरनाक हैं… मैं इन्तज़ार करूंगा…
Thanks Givind Day, Turkeys Killing, Bakrid, Goat Salughter, Muslims and Jews, Hindu Rituals and Cruelty, Nepal Government and Hinduism, New York Times, थैंक्स गिविंग डे, टर्की, बकरीद, बकरे, मुस्लिम-यहूदी परम्पराएं, हिन्दू परम्पराएं और क्रूरता अधिनियम, नेपाल सरकार और हिन्दुत्व, न्यूयॉर्क टाइम्स, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
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