सोनिया गाँधी के अनाड़ीपन और कांग्रेस की मूर्खता की वजह से जल रहा है आंध्रप्रदेश… Telangana Movement, Sonia Gandhi and Reddy
Written by Super User सोमवार, 21 दिसम्बर 2009 13:23
अभी यह ज्यादा पुरानी बात नहीं हुई है जब भारत में तीन नये राज्यों छत्तीसगढ़, झारखण्ड और उत्तरांचल का निर्माण बगैर किसी शोरशराबे और हंगामे के हो गया और तीनों राज्यों में तथा उनसे अलग होने वाले राज्यों में वहाँ के मूल निवासियों(?) और प्रवासियों(?) के बीच रिश्ते कड़वाहट भरे नहीं हुए। इन राज्यों में शान्ति से आम चुनाव आदि निपट गये और पिछले कई सालों से ये राज्य अपना कामकाज अपने तरीके चला रहे हैं। फ़िर तेलंगाना और आंध्र में ऐसा क्या हो गया कि पिछले 15 दिनों से दोनों तरफ़ आग लगी हुई है? दरअसल, यह सब हुआ है सोनिया गाँधी के अनाड़ीपन, खुद को महारानी समझने के भाव और कांग्रेसियों की चाटुकारिता की वजह से।
उल्लेखनीय है कि तेलंगाना का आंदोलन सन् 1952 से चल रहा है और एक बार पहले भी यह गम्भीर रूप ले चुका है जब अनशन के दौरान आंदोलनकारियों की मौत होने पर आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया था। महबूबनगर, वारंगल, आदिलाबाद, खम्मम, नलगोंडा, करीमनगर, निज़ामाबाद, मेडक, रंगारेड्डी तथा हैदराबाद को मिलाकर बनने वाले इस राज्य का हक भी उतना ही बनता है, जितना छत्तीसगढ़ का। 70 के दशक में जब यह आंदोलन अपने चरम पर था और चेन्ना रेड्डी उसका नेतृत्व कर रहे थे, तब इंदिरा गाँधी ने चेन्ना को मुख्यमंत्री पद देकर इस आंदोलन को लगभग खत्म सा कर दिया था, हालांकि आग अन्दर ही अन्दर सुलग रही थी। रही-सही कसर आंध्र के शक्तिशाली रेड्डियों ने तेलंगाना को पिछड़ा बनाये रखकर और सारी नौकरियाँ और संसाधनों पर कब्जे को लेकर पूरी कर दी।
तेलंगाना इलाके की ज़मीनी स्थिति यह है कि आंध्र की दो मुख्य नदियाँ कृष्णा और गोदावरी इसी इलाके से बहते हुए आगे जाती हैं, लेकिन सभी प्रमुख बाँध और नहरें बनी हुई हैं आंध्र वाले हिस्से में, जिस वजह से उधर की ज़मीन बेहद उपजाऊ और कीमती बन चुकी है। रावों और रेड्डियों ने आंध्र तथा रायलसीमा का जमकर दोहन किया है और अरबों-खरबों की सम्पत्ति बनाई है, जबकि तेलंगाना को छोटे-मोटे लॉलीपाप देकर बहलाया जाता रहा है। अधिकतर बड़े उद्योग और खनन माफ़िया आंध्र/रायलसीमा में हैं, नौकरियों-रोज़गार पर आंध्रवासियों का कब्जा बना हुआ है। ऊपर से तुर्रा यह कि आंध्र वाले लोग तेलंगाना के निवासियों के बोलने के लहज़े (उर्दू मिक्स तेलुगु) की हँसी भी उड़ाते हैं और इधर के निवासियों को (ज़ाहिर है कि जो कि गरीब हैं) को नीची निगाह से भी देखते हैं, यहाँ तक कि उस्मानिया विश्वविद्यालय जो कि तेलंगाना समर्थकों का गढ़ माना जाता है, वहाँ होने वाले किसी भी छात्र आंदोलन के दौरान उन्हें पीटने के लिये पुलिस भी विशाखापत्तनम से बुलवाई जाती है। अब ऐसे में अलगाव की भावना प्रबल न हो तो आश्चर्य ही है। यह तो हुई पृष्ठभूमि… अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर…
जैसा कि सभी जानते हैं केसीआर के नाम से मशहूर के चन्द्रशेखर राव पिछले कई दशकों से तेलंगाना आंदोलन के मुख्य सूत्रधारों में से एक रहे हैं। अभी उन्होंने इस मुद्दे पर आमरण अनशन किया तथा उनकी हालत बेहद खराब हो गई, तब सोनिया गाँधी को तुरन्त कूटनीतिक और राजनैतिक कदम उठाने चाहिये थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उल्टे उनके जन्मदिन पर तेलंगाना के सांसदों को खुश करने के लिये उनकी महंगी शॉलों के रिटर्न गिफ़्ट के रूप में तेलंगाना राज्य बनाने का वादा कर दिया (मानो वे एक महारानी हों और राज्य उनकी मर्जी से बाँटे जाते हों)। बस फ़िर क्या था, सोनिया की मुहर लगते ही चमचेनुमा कांग्रेसियों ने तेलंगाना का जयघोष कर दिया। गृहमंत्री ने संसद में ऐलान कर दिया कि अलग तेलंगाना राज्य बनाने के लिये आंध्र की राज्य सरकार एक विधेयक पास करके केन्द्र को भेजेगी। इस मूर्खतापूर्ण कवायद ने आग को और भड़का दिया। सबसे पहला सवाल तो यही उठता है कि चिदम्बरम कौन होते हैं नये राज्य के गठन की हामी भरने वाले? क्या तेलंगाना और आंध्र, कांग्रेस के घर की खेती है या सोनिया गाँधी की बपौती हैं? इतना बड़ा निर्णय किस हैसियत और प्रक्तिया के तहत लिया गया? न तो केन्द्रीय कैबिनेट में कोई प्रस्ताव रखा गया, न तो यूपीए के अन्य दलों को इस सम्बन्ध में विश्वास में लिया गया, न ही किसी किस्म की संवैधानिक पहल की गई, राज्य पुनर्गठन आयोग बनाने के बारे में कोई बात नहीं हुई, आंध्र विधानसभा ने प्रस्ताव पास किया नहीं… फ़िर किस हैसियत से सोनिया और चिदम्बरम ने तेलंगाना राज्य बनाने का निर्णय बाले-बाले ही ले लिया? इनके साथ दिक्कत यह हो गई कि सोनिया ने अपने जन्मदिन पर तेलंगाना सांसदों को खुश करने के चक्कर में अपनी जेब से रेवड़ी बाँटने के अंदाज़ में राज्य की घोषणा कर दी, उधर चिदम्बरम ने भी चन्द्रशेखर राव को अधिक राजनैतिक भाव न मिल सके तथा कांग्रेस की टांग दोनों तरफ़ फ़ँसी रहे इस भावना से बिना किसी भूमिका के आंध्र के बंटवारे की घोषणा कर दी।
अब इसका नतीजा ये हो रहा है कि ऊपर से नीचे तक न सिर्फ़ कांग्रेस बल्कि आंध्र के लोगों की भावनाएं उफ़ान मार रही हैं, और आपस में झगड़े और दो-फ़ाड़ शुरु हो चुका है। चिरंजीवी पहले तेलंगाना के पक्ष में थे, विधानसभा चुनाव तक उनके समर्थक भी उनके साथ ही रहे, जैसे कांग्रेस ने यह तमाशा खेला, चिरंजीवी की फ़िल्मों का बॉयकॉट प्रारम्भ हो गया, आंध्र की तरफ़ अपना अधिक फ़ायदा देखकर मजबूरन उन्हें भी पलटी खाना पड़ी और जब पलटी खाई तो अब तेलंगाना में उनकी फ़िल्मों के पोस्टर फ़ाड़े-जलाये जाने लगे हैं, लोकसभा में सोनिया गाँधी के सामने ही आंध्र और तेलंगाना के सांसद एक-दूसरे को देख लेने की धमकियाँ दे रहे हैं, जो "कथित" अनुशासन था वह तार-तार हो चुका, तात्पर्य यह कि ऊपर से नीचे तक हर कोई अलग पाले में बँट गया है। पहले चन्द्रशेखर राव ने भावनाएं भड़काईं और फ़िर सोनिया और उनके सिपहसालारों ने अपनी मूर्खता की वजह से स्थिति और बिगाड़ दी। ऐसे मौके पर याद आता है जब, वाजपेयी जी के समय छत्तीसगढ़ सहित अन्य दोनों राज्यों का बंटवारा शान्ति के साथ हुआ था और मुझे तो लगता है कि बंटवारे के बावजूद जितना सौहार्द्र मप्र-छत्तीसगढ़ के लोगों के बीच है उतना किसी भी राज्य में नहीं होगा। हालांकि छत्तीसगढ़ के अलग होने से सबसे अधिक नुकसान मप्र का हुआ है लेकिन मप्र के लोगों के मन में छत्तीसगढ़ के लोगों और नेताओं के प्रति दुर्भावना अथवा बैर की भावना नहीं है, और इसी को सफ़ल राजनीति-कूटनीति कहते हैं जिसे सोनिया और कांग्रेस क्या जानें… कांग्रेस को तो भारत-पाकिस्तान, हिन्दू-मुस्लिम और तेलंगाना-आंध्र जैसे बंटवारे करवाने में विशेषज्ञता हासिल है।
बहरहाल इस “खेल”(?) में आंध्र के शक्तिशाली रेड्डियों ने पहली बार सोनिया गाँधी को उनकी असली औकात दिखा दी है। पहले भी जब तक वायएसआर सत्ता में रहे, सोनिया अथवा कांग्रेस उनके खिलाफ़ एक शब्द भी नहीं बोल पाते थे, वे भी भरपूर धर्मान्तरण करवा कर “मैडम” को खुश रखते थे, उनकी मृत्यु के बाद रेड्डियों ने पूरा जोर लगाया कि जगनमोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनवाया जाये, लेकिन सोनिया ने ऐसा नहीं किया और उसी समय रेड्डियों ने सोनिया को मजा चखाने का मन बना लिया था। रेड्डियों की शक्ति का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोकसभा में सर्वाधिक सम्पत्ति वाले सांसदों में पहले और दूसरे नम्बर पर आंध्र के ही सांसद हैं, तथा देश में सबसे अधिक प्रायवेट हेलीकॉप्टर रखने वाला इलाका बेल्लारी, जो कहने को तो कर्नाटक में है, लेकिन वहाँ भी रेड्डियों का ही साम्राज्य है।
पिछले 15 दिनों से आंध्र में हंगामा मचा हुआ है, वैमनस्य फ़ैलता जा रहा है, बनने वाले राज्य और न बनने देने के लिये संकल्पित राज्यों के लोग एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं, राजनीति हो रही है, फ़िल्म, संस्कृति, खेल धीरे-धीरे यह बंटवारा नीचे तक जा रहा है, आम जनता महंगाई के बोझ तले पिस रही है और आशंकित भाव से इन बाहुबलियों को देख रही है कि पता नहीं ये लोग राज्य का क्या करने वाले हैं…। उधर महारानी और उनका “भोंदू युवराज” अपने किले में आराम फ़रमा रहे हैं… क्योंकि देश में जब भी कुछ बुरा होता है तब उन दोनों का दोष कभी नहीं माना जाता… सिर्फ़ अच्छी बातों पर उनकी तारीफ़ की जाती है, ज़ाहिर है कि उनके पास चमचों-भाण्डों और मीडियाई गुलामों की एक पूरी फ़ौज मौजूद है…
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उल्लेखनीय है कि तेलंगाना का आंदोलन सन् 1952 से चल रहा है और एक बार पहले भी यह गम्भीर रूप ले चुका है जब अनशन के दौरान आंदोलनकारियों की मौत होने पर आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया था। महबूबनगर, वारंगल, आदिलाबाद, खम्मम, नलगोंडा, करीमनगर, निज़ामाबाद, मेडक, रंगारेड्डी तथा हैदराबाद को मिलाकर बनने वाले इस राज्य का हक भी उतना ही बनता है, जितना छत्तीसगढ़ का। 70 के दशक में जब यह आंदोलन अपने चरम पर था और चेन्ना रेड्डी उसका नेतृत्व कर रहे थे, तब इंदिरा गाँधी ने चेन्ना को मुख्यमंत्री पद देकर इस आंदोलन को लगभग खत्म सा कर दिया था, हालांकि आग अन्दर ही अन्दर सुलग रही थी। रही-सही कसर आंध्र के शक्तिशाली रेड्डियों ने तेलंगाना को पिछड़ा बनाये रखकर और सारी नौकरियाँ और संसाधनों पर कब्जे को लेकर पूरी कर दी।
तेलंगाना इलाके की ज़मीनी स्थिति यह है कि आंध्र की दो मुख्य नदियाँ कृष्णा और गोदावरी इसी इलाके से बहते हुए आगे जाती हैं, लेकिन सभी प्रमुख बाँध और नहरें बनी हुई हैं आंध्र वाले हिस्से में, जिस वजह से उधर की ज़मीन बेहद उपजाऊ और कीमती बन चुकी है। रावों और रेड्डियों ने आंध्र तथा रायलसीमा का जमकर दोहन किया है और अरबों-खरबों की सम्पत्ति बनाई है, जबकि तेलंगाना को छोटे-मोटे लॉलीपाप देकर बहलाया जाता रहा है। अधिकतर बड़े उद्योग और खनन माफ़िया आंध्र/रायलसीमा में हैं, नौकरियों-रोज़गार पर आंध्रवासियों का कब्जा बना हुआ है। ऊपर से तुर्रा यह कि आंध्र वाले लोग तेलंगाना के निवासियों के बोलने के लहज़े (उर्दू मिक्स तेलुगु) की हँसी भी उड़ाते हैं और इधर के निवासियों को (ज़ाहिर है कि जो कि गरीब हैं) को नीची निगाह से भी देखते हैं, यहाँ तक कि उस्मानिया विश्वविद्यालय जो कि तेलंगाना समर्थकों का गढ़ माना जाता है, वहाँ होने वाले किसी भी छात्र आंदोलन के दौरान उन्हें पीटने के लिये पुलिस भी विशाखापत्तनम से बुलवाई जाती है। अब ऐसे में अलगाव की भावना प्रबल न हो तो आश्चर्य ही है। यह तो हुई पृष्ठभूमि… अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर…
जैसा कि सभी जानते हैं केसीआर के नाम से मशहूर के चन्द्रशेखर राव पिछले कई दशकों से तेलंगाना आंदोलन के मुख्य सूत्रधारों में से एक रहे हैं। अभी उन्होंने इस मुद्दे पर आमरण अनशन किया तथा उनकी हालत बेहद खराब हो गई, तब सोनिया गाँधी को तुरन्त कूटनीतिक और राजनैतिक कदम उठाने चाहिये थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उल्टे उनके जन्मदिन पर तेलंगाना के सांसदों को खुश करने के लिये उनकी महंगी शॉलों के रिटर्न गिफ़्ट के रूप में तेलंगाना राज्य बनाने का वादा कर दिया (मानो वे एक महारानी हों और राज्य उनकी मर्जी से बाँटे जाते हों)। बस फ़िर क्या था, सोनिया की मुहर लगते ही चमचेनुमा कांग्रेसियों ने तेलंगाना का जयघोष कर दिया। गृहमंत्री ने संसद में ऐलान कर दिया कि अलग तेलंगाना राज्य बनाने के लिये आंध्र की राज्य सरकार एक विधेयक पास करके केन्द्र को भेजेगी। इस मूर्खतापूर्ण कवायद ने आग को और भड़का दिया। सबसे पहला सवाल तो यही उठता है कि चिदम्बरम कौन होते हैं नये राज्य के गठन की हामी भरने वाले? क्या तेलंगाना और आंध्र, कांग्रेस के घर की खेती है या सोनिया गाँधी की बपौती हैं? इतना बड़ा निर्णय किस हैसियत और प्रक्तिया के तहत लिया गया? न तो केन्द्रीय कैबिनेट में कोई प्रस्ताव रखा गया, न तो यूपीए के अन्य दलों को इस सम्बन्ध में विश्वास में लिया गया, न ही किसी किस्म की संवैधानिक पहल की गई, राज्य पुनर्गठन आयोग बनाने के बारे में कोई बात नहीं हुई, आंध्र विधानसभा ने प्रस्ताव पास किया नहीं… फ़िर किस हैसियत से सोनिया और चिदम्बरम ने तेलंगाना राज्य बनाने का निर्णय बाले-बाले ही ले लिया? इनके साथ दिक्कत यह हो गई कि सोनिया ने अपने जन्मदिन पर तेलंगाना सांसदों को खुश करने के चक्कर में अपनी जेब से रेवड़ी बाँटने के अंदाज़ में राज्य की घोषणा कर दी, उधर चिदम्बरम ने भी चन्द्रशेखर राव को अधिक राजनैतिक भाव न मिल सके तथा कांग्रेस की टांग दोनों तरफ़ फ़ँसी रहे इस भावना से बिना किसी भूमिका के आंध्र के बंटवारे की घोषणा कर दी।
अब इसका नतीजा ये हो रहा है कि ऊपर से नीचे तक न सिर्फ़ कांग्रेस बल्कि आंध्र के लोगों की भावनाएं उफ़ान मार रही हैं, और आपस में झगड़े और दो-फ़ाड़ शुरु हो चुका है। चिरंजीवी पहले तेलंगाना के पक्ष में थे, विधानसभा चुनाव तक उनके समर्थक भी उनके साथ ही रहे, जैसे कांग्रेस ने यह तमाशा खेला, चिरंजीवी की फ़िल्मों का बॉयकॉट प्रारम्भ हो गया, आंध्र की तरफ़ अपना अधिक फ़ायदा देखकर मजबूरन उन्हें भी पलटी खाना पड़ी और जब पलटी खाई तो अब तेलंगाना में उनकी फ़िल्मों के पोस्टर फ़ाड़े-जलाये जाने लगे हैं, लोकसभा में सोनिया गाँधी के सामने ही आंध्र और तेलंगाना के सांसद एक-दूसरे को देख लेने की धमकियाँ दे रहे हैं, जो "कथित" अनुशासन था वह तार-तार हो चुका, तात्पर्य यह कि ऊपर से नीचे तक हर कोई अलग पाले में बँट गया है। पहले चन्द्रशेखर राव ने भावनाएं भड़काईं और फ़िर सोनिया और उनके सिपहसालारों ने अपनी मूर्खता की वजह से स्थिति और बिगाड़ दी। ऐसे मौके पर याद आता है जब, वाजपेयी जी के समय छत्तीसगढ़ सहित अन्य दोनों राज्यों का बंटवारा शान्ति के साथ हुआ था और मुझे तो लगता है कि बंटवारे के बावजूद जितना सौहार्द्र मप्र-छत्तीसगढ़ के लोगों के बीच है उतना किसी भी राज्य में नहीं होगा। हालांकि छत्तीसगढ़ के अलग होने से सबसे अधिक नुकसान मप्र का हुआ है लेकिन मप्र के लोगों के मन में छत्तीसगढ़ के लोगों और नेताओं के प्रति दुर्भावना अथवा बैर की भावना नहीं है, और इसी को सफ़ल राजनीति-कूटनीति कहते हैं जिसे सोनिया और कांग्रेस क्या जानें… कांग्रेस को तो भारत-पाकिस्तान, हिन्दू-मुस्लिम और तेलंगाना-आंध्र जैसे बंटवारे करवाने में विशेषज्ञता हासिल है।
बहरहाल इस “खेल”(?) में आंध्र के शक्तिशाली रेड्डियों ने पहली बार सोनिया गाँधी को उनकी असली औकात दिखा दी है। पहले भी जब तक वायएसआर सत्ता में रहे, सोनिया अथवा कांग्रेस उनके खिलाफ़ एक शब्द भी नहीं बोल पाते थे, वे भी भरपूर धर्मान्तरण करवा कर “मैडम” को खुश रखते थे, उनकी मृत्यु के बाद रेड्डियों ने पूरा जोर लगाया कि जगनमोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनवाया जाये, लेकिन सोनिया ने ऐसा नहीं किया और उसी समय रेड्डियों ने सोनिया को मजा चखाने का मन बना लिया था। रेड्डियों की शक्ति का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोकसभा में सर्वाधिक सम्पत्ति वाले सांसदों में पहले और दूसरे नम्बर पर आंध्र के ही सांसद हैं, तथा देश में सबसे अधिक प्रायवेट हेलीकॉप्टर रखने वाला इलाका बेल्लारी, जो कहने को तो कर्नाटक में है, लेकिन वहाँ भी रेड्डियों का ही साम्राज्य है।
पिछले 15 दिनों से आंध्र में हंगामा मचा हुआ है, वैमनस्य फ़ैलता जा रहा है, बनने वाले राज्य और न बनने देने के लिये संकल्पित राज्यों के लोग एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं, राजनीति हो रही है, फ़िल्म, संस्कृति, खेल धीरे-धीरे यह बंटवारा नीचे तक जा रहा है, आम जनता महंगाई के बोझ तले पिस रही है और आशंकित भाव से इन बाहुबलियों को देख रही है कि पता नहीं ये लोग राज्य का क्या करने वाले हैं…। उधर महारानी और उनका “भोंदू युवराज” अपने किले में आराम फ़रमा रहे हैं… क्योंकि देश में जब भी कुछ बुरा होता है तब उन दोनों का दोष कभी नहीं माना जाता… सिर्फ़ अच्छी बातों पर उनकी तारीफ़ की जाती है, ज़ाहिर है कि उनके पास चमचों-भाण्डों और मीडियाई गुलामों की एक पूरी फ़ौज मौजूद है…
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