पार्टी के आग्रह को मानते हुए सोनिया जी ने अगले छह माह तक कांग्रेस की कार्यवाहक अध्यक्ष बने रहना स्वीकार कर लिया है | अब प्रश्न यह है कि छह माह में कांग्रेस क्या कोई नया अध्यक्ष ढूँढ पाएगी ? कांग्रेस पार्टी का इतिहास बताता है कि वहाँ पिछले सौ वर्षों से गाँधी-नेहरू परिवार के सदस्य या उनके प्रतिनिधि स्थाई अध्यक्ष के रूप में स्वीकार किये जाते रहे हैं | यद्यपि परिवार की सहमति के बिना भी कुछ प्रभावशाली लोग अध्यक्ष बने, किन्तु वे अधिक समय तक टिक नहीं पाए | पार्टी संगठन के भीतर भी परिवार का अपना संगठन है जो सभी को नियंत्रित करता है | गाँधी परिवार पर मुखर होने वाले के लिए पार्टी में बाहर जाने का मार्ग खोल दिया जाता है |

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विश्लेषक हैरान हैं कि आखिर पिछले दो वर्षों में ऐसा क्या हुआ है कि भाजपा उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी अपना आधार बनाने में सफल हो रही है. असम एक शुरुआत थी, लेकिन देखते ही देखते अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में भी भाजपा ने पैर पसार लिए हैं. आखिर भाजपा के हाथ में ऐसा कौन सा जादू लग गया है?

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सत्ता की भनक सूँघने में कांग्रेसियों से ज्यादा माहिर कोई नहीं होता, इसलिए आज यदि कई कांग्रेसियों को लग रहा है कि राहुल गाँधी उन्हें सत्ता दिलवाने में नाकाम हो रहे हैं तो षड्यंत्र और गहराएँगे. काँग्रेस पार्टी और खासकर राहुल गाँधी को सबसे पहले “अपने घर” पर ध्यान देना चाहिए. एकाध बार तो ठीक है, परन्तु हमेशा खामख्वाह दाढ़ी बढ़ाकर प्रेस कांफ्रेंस में एंग्री यंगमैन की भूमिका उनके लिए घातक सिद्ध हो रही है. 

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