अभी हाल ही में रामजस कॉलेज में AISA के बौद्धिक आतंकवादियों द्वारा देश में फिर से अराजकता उत्पन्न करने का कुत्सित प्रयास किया गया| एक सेमिनार थी जिसमे देश द्रोह के आरोपियों को बोलना था. विषय था "कल्चर ऑफ़ प्रोटेस्ट- अ सेमिनार एक्सप्लोरिंग रेप्रजेंटेशन ऑफ़ डिसेंट".

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इन दिनों भारत में लेखकों, साहित्यकारों, कलाकारों द्वारा पुरस्कार-सम्मान लौटाए जाने का “मौसम” चल रहा है. विभिन्न चैनलों द्वारा हमें बताया जा रहा है कि भारत में पिछले साठ वर्ष में जो कभी नहीं हुआ, ऐसा कुछ “भयानक”, “भीषण” जैसा कुछ भारत में हो रहा है. पुरस्कार-सम्मान लौटाने वाले जो भी “तथाकथित” बुद्धिजीवी हैं, उनकी पृष्टभूमि कुरेदते ही पता चल जाता है कि ये सभी स्वयं को “प्रगतिशील” कहलाना पसंद करते हैं (वास्तव में हैं नहीं). फिर थोड़ा और कुरेदने से पता चलता है कि इनमें से अधिकाँश शुरू से भाजपा-संघ-मोदी विरोधी रहे हैं.

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