केरल में दलित युवक की हत्या :- अब दलित चिन्तक मौन
कुछ वर्ष पहले का एक मामला शायद पाठकों को याद हो. आगरा में विश्व हिन्दू परिषद् के नेता अरुण माहौर की दिनदहाड़े बीच बाज़ार में “कसाईयों” ने हत्या कर दी थी, क्योंकि अरुण माहौर लगातार गौहत्या के खिलाफ अभियान चलाए हुए थे.
वैज्ञानिकता और तर्कवाद? - डॉ.सुभाष मुखर्जी याद हैं कॉमरेड?
पिछले कुछ समय से कई “हिन्दू” बाबा, प्रवचनकार, संत इत्यादि विभिन्न आरोपों में पकड़े जा रहे हैं या जेल जा रहे हैं. जब भी ऐसा कोई मौका आता है, तब वामपंथियों की पौ-बारह हो जाती है. ऐसे बाबाओं को लेकर अर्थात प्रकारांतर से हिन्दू धर्म को लेकर “वामी मज़हब” वाले लोग (जी हाँ!!! वामपंथ भी एक मज़हब है, इस्लाम से भी खतरनाक) हिंदुओं को कोसने लगते हैं कि “हिंदुओं के धर्म में वैज्ञानिकता नहीं है”...
कथित प्रगतिशील सहिष्णुता का असली चेहरा...
‘सत्ता’ का असली अर्थ मुझे तब समझ में आया जब दिल्ली में मुझे 1994 में “संस्कृति सम्मान” पुरस्कार मिला .वहां स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) में मैं दो दिनों तक रुका था.वैसे भी सूचना और संस्कृति मंत्रालयों से मेरा जुडाव तो था ही ,परन्तु इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) वो जगह है जहाँ 'सत्ता' सोने की चमकती थालियों में परोसी जाती है.
JNU छाप सहिष्णुता, स्वतंत्रता और लोकतंत्र का ढोंग
इन दिनों भारत में लेखकों, साहित्यकारों, कलाकारों द्वारा पुरस्कार-सम्मान लौटाए जाने का “मौसम” चल रहा है. विभिन्न चैनलों द्वारा हमें बताया जा रहा है कि भारत में पिछले साठ वर्ष में जो कभी नहीं हुआ, ऐसा कुछ “भयानक”, “भीषण” जैसा कुछ भारत में हो रहा है. पुरस्कार-सम्मान लौटाने वाले जो भी “तथाकथित” बुद्धिजीवी हैं, उनकी पृष्टभूमि कुरेदते ही पता चल जाता है कि ये सभी स्वयं को “प्रगतिशील” कहलाना पसंद करते हैं (वास्तव में हैं नहीं). फिर थोड़ा और कुरेदने से पता चलता है कि इनमें से अधिकाँश शुरू से भाजपा-संघ-मोदी विरोधी रहे हैं.