स्वामी विवेकानन्द ने हिन्दू की पहचान ही बताई थी: ‘सत्य का निष्कपट पुजारी’। यह महज सौ साल पहले की बात है। विवेकानन्द मात्र सैद्धांतिक नहीं, वरन व्यावहारिक स्थिति भी बता रहे थे। जिसके वे स्वयं प्रमाण थे। उन्होंने सारी दुनिया को किसी कपट या लफ्फाजी से नहीं, बल्कि शुद्ध सत्य से जीता था। तब क्या हो गया कि यहाँ हिन्दुओं में दिनों-दिन मिथ्याचार का सहारा लेने की आदत बढ़ती जा रही है?

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भारत में बाबा साहब आंबेडकर के नाम पर कई राजनैतिक और सामाजिक “दुकानों” ने अपने-अपने अर्थों के अनुसार “स्टॉल” लगाए हैं, तथा बाबासाहब के आदर्शों, उनके कथनों एवं उनके तथ्यों को तोड़मरोड़ कर उनकी दुकानदारी के अनुसार जनता के सामने पेश किया है.

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इस्लाम में तमाम तरह की ऊँच-नीच और जाति प्रथा होने के बावजूद अपना घर सुधारने की बजाय, उन्हें हिन्दू दलितों की “नकली चिंता” अधिक सताती है. विभिन्न फोरमों एवं सोशल मीडिया में असली-नकली नामों तथा वामपंथी बुद्धिजीवियों के फेंके हुए बौद्धिक टुकड़ों के सहारे ये मुस्लिम बुद्धिजीवी हिंदुओं में दरार बढ़ाने की लगातार कोशिश करते रहते हैं. जबकि इनके खुद के संस्थानों में इन्होंने दलितों के लिए दरवाजे बन्द कर रखे हैं.

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