सुदर्शन जी प्रकरण में मीडिया की भूमिका और भाजपा नेतृत्व की कमजोरी… Sudershan-Sonia Gandhi RSS and Congress Conflict

Written by गुरुवार, 18 नवम्बर 2010 12:38
(भाग-1 से जारी…)

सुदर्शन प्रकरण ने फ़िर से इस बात को रेखांकित किया है कि या तो संघ का अपना खुद का टीवी चैनल और विभिन्न राज्यों में 8-10 अखबार होने चाहिये, या फ़िर वर्तमान उपलब्ध मीडियाई भेड़ियों को वक्त-वक्त पर "समयानुसार कभी हड्डी के टुकड़े और कभी लातों का प्रसाद" देते रहना चाहिये। संघ से जुड़े लोगों ने गत दिनों सुदर्शन मसले के मीडिया कवरेज को देखा ही होगा, एक भी चैनल या अखबार ने सोनिया के खिलाफ़ एक शब्द भी नहीं कहा, किसी अखबार ने सोनिया से सम्बन्धित किसी भी पुराने मामले को नहीं खोदा… जिस तरह मुकेश अम्बानी के खिलाफ़ कुछ भी नकारात्मक प्रकाशित/प्रसारित नहीं किया जाता, उसी प्रकार सोनिया-राहुल के खिलाफ़ भी नहीं, ऐसा लगता है कि आसमान से उतरे देवदूत टाइप के लोग हैं ये... लेकिन ऐसा है नहीं, दरअसल इन्होंने मीडिया और सांसदों (अब विपक्ष भी) को ऐसा साध रखा है कि बाकी सभी के बारे में कुछ भी कहा (बल्कि बका भी) जा सकता है लेकिन "पवित्र परिवार" के विरुद्ध नहीं। जब जयललिता और दयानिधि मारन जैसों के अपने मालिकाना टीवी चैनल हो सकते हैं, तो संघ या भाजपा के हिन्दुत्व का झण्डा बुलन्द करने वाला कोई चैनल क्यों नहीं बनाया जा सकता? भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने कभी सोचा है इस बारे में?



मीडिया के अन्तर्सम्बन्धों और उसके हिन्दुत्व विरोधी मानसिकता के सम्बन्ध में एक पोस्ट लिखी थी "मीडिया हिन्दुत्व विरोधी क्यों है… इन रिश्तों से जानिये",  इसी बात को आगे बढाते हुए एक अपुष्ट सूचना है (जिसकी पुष्टि मैं अपने पत्रकार मित्रों से चाहूंगा) - केरल की लोकप्रिय पत्रिका मलयाला मनोरमा के निदेशक थॉमस जैकब के पुत्र हैं अनूप जैकब, जिनकी पत्नी हैं मारिया सोहेल अब्बास। मारिया सोहेल अब्बास एक पाकिस्तानी नागरिक सोहेल अब्बास की पुत्री हैं, अब पूछिये कि सोहेल अब्बास कौन हैं? जी हाँ पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसी ISI के डिप्टी कमिश्नर, इनके परम मित्र हैं मिस्टर सलाहुद्दीन जो कि हाफ़िज़ सईद के आर्थिक मैनेजर हैं, तथा मारिया सोहेल अब्बास हाफ़िज़ सईद के दफ़्तर में काम कर चुकी हैं…। यदि यह सूचनाएं वाकई सच हैं तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि स्थिति कितनी गम्भीर है और हमारा मीडिया किस "द्रोहकाल" से गुज़र रहा है।

भाजपा नेताओं को यह भी सोचना चाहिये कि पिछले 10 साल में सोनिया ने इक्का-दुक्का "चहेते" पत्रकारों को मुश्किल से 2-3 इंटरव्यू दिये होंगे (स्वाभाविक है कि इसका कारण उनके बहुत "सीमित ज्ञान की कलई खुलने का खतरा" है), (राहुल बाबा का ज्ञान कितना है यह नीचे दिये गये वीडियो में देख सकते हैं…) राहुल बाबा भी प्रेस कांफ़्रेंस में उतना ही बोलते हैं जितना पढ़ाया जाता है (यानी इन दोनों की निगाह में मीडिया की औकात दो कौड़ी की भी नहीं है) फ़िर भी मीडिया इनके पक्ष में कसीदे क्यों काढ़ता रहता है… सोचा है कभी? लेकिन भाजपाईयों को आपस में लड़ने से फ़ुरसत मिले तब ना… और "हिन्दू" तो खैर कुम्भकर्ण हैं ही… उन्हें तो यह पता ही नहीं है कि इस्लामिक जेहादी और चर्च कैसे इनके पिछवाड़े में डण्डा कर रहे हैं, कहाँ तो एक समय पेशवा के सेनापतियों ने अफ़गानिस्तान के अटक तक अपना ध्वज लहराया था और अब हालत ये हो गई है कि कश्मीर, असम, उत्तर-पूर्व में नागालैण्ड, मिजोरम में आये दिन हिन्दू पिटते रहते हैं… केरल और पश्चिम बंगाल भी उसी राह पर हैं… लेकिन जब हिन्दुओं को घटनाएं और तथ्य देकर जगाने का प्रयास करो तो ये जागने से न सिर्फ़ इंकार कर देते हैं, बल्कि "सेकुलरिज़्म" का खोखला नारा लगाकर अपने हिन्दू भाईयों को ही गरियाते रहते हैं। पाखण्ड की इन्तेहा तो यह है कि एक घटिया से न्यूज़ चैनल पर किसी भीड़ द्वारा तोड़फ़ोड़ करना अथवा शिवसेना द्वारा शाहरुख खान का विरोध करना हो तो, सारे सियार एक स्वर में हुँआ-हुँआ करके "फ़ासिस्ट-फ़ासिस्ट-फ़ासिस्ट" का गला फ़ाड़ने लगते हैं, अब वे बतायें कि संघ कार्यालयों पर कांग्रेसियों के हमले फ़ासिस्टवाद नहीं तो और क्या है?



रही-सही कसर गैर-भाजपाई विपक्ष पूरी कर देता है। गैर-भाजपाई विपक्ष यानी प्रमुखतः वामपंथी और क्षेत्रीय दल… इन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि कांग्रेस क्या कर रही है, क्यों एक ही परिवार के आसपास सत्ता घूमती रहती है, महाराष्ट्र का भ्रष्ट मुख्यमंत्री संवैधानिक रुप से अपना इस्तीफ़ा लेकर प्रधानमंत्री के पास न जाते हुए सोनिया के पास क्यों जाता है? करोड़ों (अब तो बहुत छोटा शब्द हो गया है) अरबों के घोटाले हो रहे हैं… लेकिन इस निकम्मे और सीमित जनाधार वाले गैर-भाजपाई विपक्ष का मुख्य काम है किस तरह भाजपा को रोका जाये, किस तरह हिन्दुत्व को गाली दी जाये, किस तरह नरेन्द्र मोदी के प्रति अपने "फ़्रस्ट्रेशन" को सार्वजनिक किया जाये। इस गैर-भाजपाई विपक्ष को एक भोंदू युवराज, प्रधानमंत्री के रुप में स्वीकार है लेकिन भाजपा का कोई व्यक्ति नहीं। इसी से इनकी प्राथमिकताएं पता चल जाती हैं। कलमाडी, चव्हाण और अब राजा, अरबों के घोटाले हुए… लेकिन कभी भी, किसी में भी सोनिया-राहुल का नाम नहीं आया, क्या इतने "भयानक" ईमानदार हैं दोनों? जब सभी प्रमुख फ़ाइलें और निर्णय सोनिया-राहुल की निगाह और स्वीकृति के बिना आगे बढ़ नहीं सकतीं तो कोई मूर्ख ही ऐसा सोच सकता है कि इन घोटालों में से "एक बड़ा हिस्सा" इनके खाते में न गया हो… लेकिन "मदर इंडिया" और "पप्पू" तरफ़ किसी ने उंगली उठाई तो वह देशद्रोही कहलायेगा।

कुछ और बातें हैं जो आये दिन सुनने-पढ़ने में आती हैं, परन्तु उनके बारे में सबूत या पुष्टि करना मुश्किल है, इनमें से कुछ अफ़वाहें भी हैं… लेकिन यह तो भाजपा का काम ही है कि ऐसी खबरों पर अपना खुफ़िया तन्त्र सक्रिय और विकसित करे ताकि कांग्रेस को घेरा जा सके, लेकिन भाजपा वाले ऐसा करते नहीं हैं, पता नहीं क्या बात है?

उदाहरण के तौर पर - जब कांग्रेसियों ने हजारों भारतीयों के हत्यारे वॉरेन एण्डरसन को छोड़ा, उसी के 6 माह बाद राजीव गाँधी की अमेरिका यात्रा के दौरान, आदिल शहरयार नामक व्यक्ति को अमेरिका में छोड़ा गया जो कि वहाँ हथियार तस्करी और फ़्राड के आरोपों में जेल में बन्द था। आदिल शहरयार कौन? जी हाँ… मोहम्मद यूनुस के सपूत। अब यह न पूछियेगा कि मोहम्मद यूनुस कौन हैं… मोहम्मद यूनुस वही एकमात्र शख्स हैं जो संजय गाँधी की अंत्येष्टि में फ़ूट-फ़ूटकर रो रहे थे, क्यों, मुझे तो पता नहीं? भाजपा के नेताओं को तो पता होगा, आज तक उन्होंने कुछ किया इस बारे में? क्या एण्डरसन की रिहाई के बदले में आदिल को छोड़ना एक गुप्त अदला-बदली सौदा था? और राजीव गाँधी को आदिल से क्या विशेष प्रेम था? क्योंकि जिस तरह से एण्डरसन के सामने मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वागत में बिछे जा रहे थे, उससे तो यह खेल दिल्ली की सत्ता द्वारा ही खेला गया प्रतीत होता है।

इसी प्रकार संजय गाँधी एवं माधवराव सिंधिया दोनों की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु भी रहस्य की परतों में दबी हुई है, आये दिन इस सम्बन्ध में अफ़वाहें उड़ती रहती हैं कि सिंधिया के साथ उस फ़्लाइट में, मणिशंकर अय्यर और शीला दीक्षित भी जाने वाले थे, लेकिन अन्तिम क्षणों में अचानक दोनों किसी काम के कारण साथ नहीं गये। माधवराव सिंधिया की सोनिया से दोस्ती लन्दन से ही थी, जो कि राजीव की शादी के बाद भी कायम रही… लेकिन राजेश पायलट के साथ-साथ कुमारमंगलम, राजशेखर रेड्डी और जीएमसी बालयोगी… सभी युवा, ऊर्जावान और कांग्रेस में "उच्च पद के दावेदार" नेताओं की दुर्घटना में मौत हुई… कैसा गजब का संयोग है, भले ही यह अफ़वाहें ही हों, लेकिन कभी भाजपाईयों ने इस दिशा में कुछ खोजबीन करने की कोशिश की? या कभी इस ओर उंगली उठाई भाजपाईयों ने?

एक बात और है जो कि अफ़वाह नहीं है, बल्कि दस्तावेजों में है, कि जिस वक्त सोनिया गाँधी (1974 में) इटली की नागरिक थीं, वह भारत की सरकारी कम्पनी ओरियंटल इंश्योरेंस की बीमा एजेण्ट भी थीं और प्रधानमंत्री कार्यालय में काम कर रहे अधिकारियों के बीमे दबाव देकर करवाती थीं, साथ ही वह इन्दिरा गाँधी के सरकारी आवास को अपने कार्यालय के पते के तौर पर दर्शाती थी, यह साफ़-साफ़ "फ़ेरा कानून" के उल्लंघन का मामला है (यानी एक तो विदेशी नागरिक, फ़िर भी भारतीय सरकारी कम्पनी में कार्यरत और ऊपर से प्रधानमंत्री निवास को अपना कार्यालय बताना… है किसी में इतना दम?) भाजपा वालों ने कभी इस मुद्दे को क्यों अखबारों में नहीं उठाया?

तात्पर्य यह है कि कांग्रेसी तो अपना "काम"(?) बखूबी कर रहे हैं, टीवी पर सिखों का हत्यारा जगदीश टाइटलर संघ को गरिया रहा था… हज़ारों मौतों से सने एंडरसन को देश से बाहर भगाने वाले लोग सुदर्शन के पुतले जला रहे थे… अरुंधती के देशद्रोही बयानों पर लेक्चर झाड़ने वाले लोग सुदर्शन को देशद्रोही बता रहे थे (मानो सोनिया ही देश हो)… IPL, गेहूं, कॉमनवेल्थ, आदर्श, 2G स्पेक्ट्रम जैसे महाघोटाले करने वाले भ्रष्ट और नीच लोग, RSS को देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहे थे… तात्पर्य कि अपने "पैगम्बर" (उर्फ़ सोनिया माता) के कथित अपमान के मामले में कांग्रेसी अपना "असली चमचा रंग" दिखा रहे थे, परन्तु सबसे बड़ा सवाल यही है कि भाजपा के बड़े नेता क्या कर रहे थे? इतने राज्यों में सरकारें, लाखों कार्यकर्ताओं के होते हुए भी तत्काल "माफ़ी की मुद्रा" में क्यों आ गये? कहाँ गई वो रामजन्मभूमि आंदोलन वाली धार? क्या सत्ता की मलाई ने भाजपा नेताओं को भोथरा कर दिया है? लगता तो ऐसा ही है…

गोविन्दाचार्य जैसे वरिष्ठ सहित कई लोगों ने सुदर्शन जी को गलत ठहराया है, मेरे पिछले लेख में भी काफ़ी असहमतियाँ दर्शाई गईं, नैतिकता और सिद्धान्तों की दुहाईयाँ भी सुनी-पढ़ीं… परन्तु अभी भी मेरा व्यक्तिगत मत यही है कि सुदर्शन जी सही थे। खैर… मेरी औकात न होते हुए भी, अन्त में भाजपा नेताओं को सिर्फ़ एक क्षुद्र सी सलाह देना चाहूंगा कि, कांग्रेस के साथ किसी भी किस्म की रियायत नहीं बरतनी चाहिये, किसी किस्म के मधुर सम्बन्ध नहीं एवं सतत "शठे-शाठ्यम समाचरेत" की नीति का पालन हो…।

जैसा कि ऊपर मीडिया के अन्तर्सम्बन्धों के बारे में लिखा है… सच यही है कि भारत देश संक्रमण काल से गुज़र रहा है, "वोट आधारित सेकुलरिज़्म" की वजह से कई राज्यों में परिस्थितियाँ गम्भीर हो चुकी हैं, कई संदिग्ध कारणों की वजह से मीडिया हिन्दुत्व विरोधी हो चुका है… जबकि देश की 40% से अधिक जनसंख्या युवा हैं जिनमें "सच" जानने की भूख है… अब इन्हें कैसे "हैण्डल" करना है यह सोचना वरिष्ठों का काम है… हम तो सोये हुए हिन्दुओं को अपने लेखों के "अंकुश" से कोंच-कोंचकर जगाने का कार्य जब तक सम्भव होगा करते रहेंगे… बाकी आगे जैसी सबकी मर्जी…। (समाप्त)


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