Santosh Hegde Mining Report, Yeddiyurappa, Karnataka, Janlokpal
Written by Super User रविवार, 07 अगस्त 2011 11:18
सधे कदमों से “जनलोकपाल” पद की ओर बढ़ते संतोष हेगड़े…
कर्नाटक की येदियुरप्पा सरकार की बिदाई और दक्षिण के पहले भाजपाई मुख्यमंत्री के इस्तीफ़े के बाद “सेकुलर गैंग” बेहद प्रफ़ुल्लित है। यह कोशिश वे नरेन्द्र मोदी के खिलाफ़ पिछले कई वर्षों से कर रहे थे, कभी तीस्ता जावेद के रूप में तो कभी संजीव भट्ट के रूप में, लेकिन वहाँ वे बार-बार मुँह की खाते रहे। परन्तु संतोष हेगड़े की लोकायुक्त रिपोर्ट के बहाने अन्ततः सेकुलरों को कर्नाटक में तात्कालिक जीत मिल ही गई…। पिछले कई महीनों से सेकुलर गैंग, यूपीए सरकार के राजा, कलमाडी, आदर्श, शीला दीक्षित, NTRO, जैसे महाघोटालों के मुकाबले बार-बार येदियुरप्पा-येदियुरप्पा-येदियुरप्पा का भजन करके, तराजू में दस किलो के बाँट को 100 ग्राम के बाँट के बराबर तौलने का प्रयास करती रही। अन्ततः उनके इस प्रयास पर हेगड़े साहब ने मुहर लगा ही दी…। (http://www.theindiadaily.com/karnataka-lokayukta-santosh-hegde-report-names-yeddyurappa/)(Justice Santosh Hegde Mining Report)
बहरहाल… आते हैं मुख्य विषय यानी संतोष हेगड़े साहब पर…। संतोष हेगड़े साहब ने अपने कार्यकाल में ईमानदारी से काम किया है यह बात उनके विरोधी भी मानते हैं, खासकर रिटायर होने के बाद और तथा अन्ना टीम से जुड़ने के बाद जिस तरह उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक “चमकदार छवि” बनाई है, उससे वे स्वाभाविक रूप से “भारत के पहले जनलोकपाल” (यदि बना तो) के दावेदार बन गये हैं।
खैर… येदियुरप्पा के खिलाफ़ हेगड़े साहब की “बहुप्रतीक्षित” रिपोर्ट कर्नाटक सरकार को पेश होने से आठ दिन पहले ही “लीक”(?) हो गई। टाइम्स नाऊ चैनल तथा दिल्ली के कुछ अखबारों में इस रिपोर्ट के “चुनिंदा” (यानी येदियुरप्पा वाले) अंश प्रकाशित हुए। ज़ाहिर है कि इस “तथाकथित लीक” के बाद चैनलों एवं अखबारों ने जो “ब्रेकिंग न्यूज़” चलाईं उसमें कैमरे का फ़ोकस एवं इंटरव्यू की बरसात का केन्द्र माननीय संतोष हेगड़े साहब ही रहे। हर चैनल और हरेक पत्रकार को हेगड़े साहब ने बताया कि वह रिपोर्ट उनके ऑफ़िस से लीक हुई है (किसी पत्रकार ने उनसे यह नहीं पूछा कि आखिर रिपोर्ट कैसे लीक हुई, इसका जिम्मेदार कौन है?)। सारे पत्रकार और “सेकुलर” चैनल हेगड़े साहब के मुँह से “तत्काल” यह सुनना और बुलवाना चाहते थे कि “उस लीक हुई रिपोर्ट में येदियुरप्पा ही दोषी हैं…”, इस मामले में हेगड़े साहब ने किसी को भी निराश नहीं किया। बुरका दत्त को NDTV पर दिये गये “एक्सक्लूसिव” इंटरव्यू(?) में संतोष हेगड़े ने वह “सभी कुछ” स्वीकार किया जो बुरका दत्त उनसे स्वीकार करवाना चाहती थी। यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि जिस समय हेगड़े साहब यह तमाम इंटरव्यू और बाइट्स दे रहे थे, उस समय तक उन्होंने अपनी आधिकारिक रिपोर्ट सरकार और राज्यपाल को सौंपी नहीं थी, इसके बावजूद वे उस “लीक रिपोर्ट” की हर बात पर अपनी “मुहर” लगाते रहे… उच्चतम न्यायालय के एक रिटायर्ड जज से ऐसी उम्मीद नहीं की जाती, यह साफ़-साफ़ “नैतिक मानदण्डों” का उल्लंघन था। जबकि उम्मीद यह की जाती है कि जब उनकी ही टीम के किसी व्यक्ति ने रिपोर्ट लीक की थी तो उन्हें आगे आकर माफ़ी माँगनी चाहिए थी, लेकिन उलटा वे तो आठ दिन तक “लीक रिपोर्ट” को बाले-बाले ही आधिकारिक बनाने में लगे रहे। हेगड़े साहब फ़रमाते हैं कि उनके टेलीफ़ोन टैपिंग की वजह से यह रिपोर्ट लीक हुई… तो क्या टेलीफ़ोन टैपिंग भी "राज्य सरकार" के अधिकार-क्षेत्र में आती है? और इस बात की जाँच की आवश्यकता क्यों महसूस नहीं हुई कि संतोष हेगड़े और यूवी सिंह के बीच होने वाली बातचीत को कौन टैप कर रहा था? (http://www.dnaindia.com/bangalore/report_blame-illegal-mining-report-leak-on-phone-tapping-santosh-hegde_1568146)(Santosh Hegde Report Leaked) इस लेख का असल मुद्दा येदियुरप्पा का कथित भ्रष्टाचार या इस्तीफ़ा नहीं है, बल्कि लोकपाल, रिटायर्ड न्यायाधीश की भूमिका और भावी जनलोकपाल की सामाजिक-नैतिक भूमिका के बारे में है। जिस तरह संतोष हेगड़े साहब विभिन्न चैनलों पर दनादन-दनादन कर्नाटक सरकार के खिलाफ़ गोल दागे जा रहे थे (वह भी रिपोर्ट पेश करने से पहले ही) उससे कई नैतिक सवाल उठ खड़े होते हैं। हेगड़े साहब यहीं नहीं रुके, अपनी रिपोर्ट पेश होने से पहले ही बयान पर बयान दागे चले गए, “मेरे फ़ोन टेप किये जा रहे हैं” (यह पहले क्यों नहीं सूझा?), “मुझे कर्नाटक की सरकार पर भरोसा नहीं है कि वह रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई करेगी…इस पर अमल हेतु मैं सुप्रीम कोर्ट जाउँगा…” (रिपोर्ट पेश करने से पहले ही?)… ये सब क्या है? हेगड़े साहब आधिकारिक रूप से अपनी रिपोर्ट पेश करते, उसके बाद वह मीडिया में आती, उसके बाद ये सब बयान दे मारते… इतनी भी क्या जल्दी थी? क्या किसी ने जस्टिस शुंगलू को CWG की रिपोर्ट पेश करने से पहले मीडिया में बयानबाजी करते सुना? तो हेगड़े साहब को इतना मीडिया प्रेम क्यों है?
और कुछ नहीं तो दिल्ली के लोकायुक्त सरीन साहब का उदाहरण ही सामने रखते? शीला दीक्षित के खिलाफ़ रिपोर्ट पेश करने से पहले और बाद में क्या किसी चैनल पर मनमोहन सरीन के इंटरव्यू दिखाए गये? हालांकि इसमें “भाण्ड मीडिया” का भी प्रमुख रोल है, क्योंकि जिस तरह येदियुरप्पा के खिलाफ़ लोकपाल की रिपोर्ट को लेकर “उत्साह”(?) दिखाया गया, वैसा उत्साह शीला दीक्षित के खिलाफ़ लगातार लोकपाल, सुप्रीम कोर्ट, CAG की रिपोर्टें आने पर नहीं दिखाया जा रहा… (स्वाभाविक सी बात है कि मीडिया, अपने मालिकों के खिलाफ़ कैसे भौंकेगा? उसे इस बात में अधिक रस था कि हेगड़े साहब येदियुरप्पा के खिलाफ़ क्या बोलते हैं, ताकि उसे “ब्रेकिंग न्यूज़” बनाया जाए)। हेगड़े साहब की शह पर हंसराज भारद्वाज का मुँह भी चौड़ा हो गया, लगे हाथों उन्होंने भी बयान झाड़ दिया, “लोकायुक्त की रिपोर्ट आने पर मैं उचित कार्रवाई करूंगा…” (अरे भाई, पहले आपके समक्ष रिपोर्ट पेश तो होने दो… और वैसे भी उस रिपोर्ट को पहले विधानसभा में रखा जाएगा… राज्यपाल की इसमें कोई भूमिका है ही नहीं, लेकिन खामख्वाह भारद्वाज साहब अपने राजभवन में मीडिया के सामने उचकते रहे)।
मीडिया द्वारा भाजपा के साथ “पक्षपात” की खबरें अब पुरानी पड़ चुकी हैं और सब जान रहे हैं कि असल में मीडिया “किसके हाथों” में खेलता है, इसका सबसे बड़ा सबूत यही है कि शीला दीक्षित के खिलाफ़ रिपोर्ट पेश करने वाले मनमोहन सरीन का कोई इंटरव्यू प्रकाशित नहीं हुआ, स्वयं शीला दीक्षित से बुरका दत्त या किसी अन्य "स्वयंभू" ने कोई सवाल-जवाब नहीं किये… जबकि येदियुरप्पा और उनके खासुलखास धनंजय कुमार की “कन्नड़ मिश्रित अंग्रेजी बोलचाल” की अपरोक्ष रूप से खिल्ली जरूर उड़ाई गई। मीडिया के “कथित बड़े पत्रकारों” में से किसी की भी, पी चिदम्बरम से इंटरव्यू में यह पूछने की हिम्मत किसी की नहीं हुई कि आखिर क्यों चेन्नै हाईकोर्ट ने उनके चुनाव को चुनौती नहीं देने सम्बन्धी उनकी याचिका खारिज कर दी? ऐसा क्यों होता है कि डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी बार-बार चिदम्बरम और सोनिया गाँधी पर हमला करते हैं, लेकिन उन पर “मानहानि” का मुकदमा दायर नहीं किया जाता? मीडिया कभी भी ऐसे तीखे और सीधे सवाल “कांग्रेसी सत्ताधारियों” से नहीं करता। यही एक मुख्य कारण है कि नरेन्द्र मोदी और बाल ठाकरे जैसे लोग मीडिया के भाण्डों को अपने दरवाजे घुसने नहीं देते…।
अब पुनः वापस आते हैं संतोष हेगड़े – येदियुरप्पा प्रकरण पर। येदियुरप्पा ने सत्ता में आते ही संतोष हेगड़े को नियुक्त किया, हेगड़े साहब को जाँच हेतु जो प्रमुख बिन्दु सौंपे गये थे उनमें कर्नाटक में खनन की लीज़ बाँटने के लाइसेंसों की संख्या, लाइसेंस कब-कब और किन-किन मुख्यमंत्रियों ने कितनी बार जारी किये… यह भी शामिल था। मीडिया को हेगड़े साहब की रिपोर्ट के चुनिंदा अंश पेश करने की बजाय यह भी बताना चाहिए कि हेगड़े साहब ने लाइसेंस आवंटन पर कोई ठोस जाँच क्यों नहीं की? येद्दियुरप्पा ने साफ़ कहा है कि उनके कार्यकाल में बहुत ही कम संख्या में लाइसेंस दिये गये। ऐसा कौन सा मुख्यमंत्री होगा जिसे यह पता हो कि वह भ्रष्टाचार कर रहा है फ़िर भी उसी मामले की जाँच वह लोकपाल को सौंपे? जब बीच में एक बार हेगड़े साहब ने सरकारी मशीनरी के रवैये से खिन्न होकर इस्तीफ़ा दे दिया था तब लालकृष्ण आडवाणी ने उन्हें पद पर बने रहने को राजी किया था, क्यों? क्या इसलिये कि आडवाणी चाहते थे कि हेगड़े अपना कार्यकाल पूरा करें, येदियुरप्पा को दोषी(?) साबित करें और कर्नाटक में भाजपा की इज्जत गँवा दी जाए? किस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष ऐसा चाहेगा? परन्तु शुचिता और नैतिकता बनाये रखने और विपक्ष को चुप रखने के लिए हेगड़े साहब को बनाए रखा गया… जबकि येदियुरप्पा और आडवाणी यदि चाहते, तो हेगड़े साहब को नहीं मनाते…पद छोड़कर जाने देते। कौन सा पहाड़ टूट पड़ता?
देश की सरकारी खनिज कम्पनी NMDC (नेशनल मिनरल डेवलपमेण्ट कार्पोरेशन) ने हेगड़े साहब की रिपोर्ट के उस अंश को सिरे से खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने NMDC और माफ़िया की सांठगांठ के बारे में लिखा है। हेगड़े साहब ने लिखा है कि 2006 से 2010 के बीच NMDC ने “उच्च क्वालिटी” के लौह अयस्क को “हल्की क्वालिटी” का बताकर कम भावों में बेचा गया… क्या मीडिया ने इस बात को उछाला? केन्द्र के खनिज मंत्रालय से इस बारे में जवाब-तलब क्यों नहीं हुआ कि आखिर हेगड़े साहब द्वारा “NMDC- माफ़िया गठबन्धन” के बारे में जो कहा गया है उस पर विश्वास क्यों न किया जाए? एक तरफ़ तो येदियुरप्पा को तत्काल दोषी मानकर हटाने का अभियान, और दूसरी तरफ़ कुमारस्वामी से लेकर कांग्रेसी सांसद और NMDC के अधिकारियों-मंत्री की खबरें गायब? ये कैसा “मीडियाई इंसाफ़” है? हेगड़े साहब ने भी “रिपोर्ट पेश करने के पूर्व ही” दिये गये विभिन्न इंटरव्यू में इनका प्रमुखता से उल्लेख नहीं किया, सिर्फ़ येदियुरप्पा और कर्नाटक सरकार की विश्वसनीयता पर बयान दागते रहे। आशा है कि मीडिया, एचडी कुमारस्वामी तथा NMDC- माफ़िया गठबंधन के बारे में भी हेगड़े साहब से विस्तार में इंटरव्यू करेगा…। हेगड़े साहब जैसे कर्मठ और ईमानदार व्यक्ति से यह उम्मीद की जाती है कि अगली बार किसी अन्य मामले की रिपोर्ट पेश करने से पहले ही बुरका दत्त जैसों को इंटरव्यू न दें…, अपने मातहतों की जाँच करें कि रिपोर्ट लीक कैसे हुई और यदि इंटरव्यू दें भी, तो “चुनिंदा अंशों” पर ही मुहर न लगाएं…
फ़िलहाल इस्तीफ़ा देने के बाद येदियुरप्पा ने नये लोकायुक्त एवं कर्नाटक हाइकोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर, “उनका पक्ष” भी सुनने एवं रिकॉर्ड करने का आग्रह किया है… देखते हैं कि आगे क्या होता है। परन्तु इतना तो तय है कि दक्षिण की पहली भाजपा सरकार के सबसे लोकप्रिय नेता येदियुरप्पा की “बलि” लेकर, संतोष हेगड़े “राष्ट्रीय हीरो” के रूप में प्रतिस्थापित हो गये हैं, ज़ाहिर है कि अन्ना के प्रयासों से जब कभी (टूटा-फ़ूटा ही सही) “जनलोकपाल” नाम की कोई संस्था अस्तित्व में आएगी, तब उसके प्रमुख के रूप में संतोष हेगड़े ने दौड़ में स्वयं को सबसे आगे कर लिया है… क्योंकि जो भी व्यक्ति “भाजपा” को पटखनी देता है, उसे स्वयमेव ही “सम्मानित” मान लिया जाता है तथा “सेकुलरों” द्वारा पुरस्कृत भी किया जाता है…। अब भले ही संतोष हेगड़े साहब कहें कि “मैं दलगत राजनीति से ऊपर हूँ और अपना काम ईमानदारी से करता हूँ…” परन्तु “सेकुलर कम्बल” अब उनसे चिपक कर रहेगा और पीछा नहीं छोड़ेगा।
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चलते-चलते :- सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि संतोष हेगड़े साहब के नजदीकी लोगों द्वारा मेंगलोर के पास NITTE एजूकेशनल ट्रस्ट संचालित किया जाता है, मैं जानना चाहता हूँ कि इस ट्रस्ट द्वारा छात्रों से “कैपिटेशन फ़ीस” के रूप में कितना पैसा लिया जाता है। इस ट्रस्ट की आय-व्यय का हिसाब-किताब जानने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए… क्योंकि यह देश के “सबसे ईमानदार” न्यायिक हस्ती से जुड़ा मामला है…
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