हिन्दुत्व का नुकसान करते और शिवसेना को पसीना लाते हुए - राज ठाकरे Raj Thakre, Shivsena, Maharashtra Elections

Written by मंगलवार, 13 अक्टूबर 2009 13:37
राज ठाकरे को महाराष्ट्र की राजनीति का एक "नया धूमकेतु" कहना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन एक बात तो तय है कि बाल ठाकरे की जवानी के दिनों को यदि हूबहू कोई दर्शाता है तो वह भतीजा राज ही है, बेटा उद्धव नहीं। जिन लोगों ने बाल ठाकरे को एक समय मुम्बई पर एकछत्र राज्य करते देखा है, उनके आग उगलते भाषण सुने हैं, उनका खास "मैनरिज़्म", अंदाज़ और डायलॉग देखे हैं, वे लोग पहली ही नज़र में राज ठाकरे से प्रभावित हो सकते हैं। वैसी ही दुबली-पतली कद काठी, चश्मे का अन्दाज़ भी लगभग वैसा ही, बोलने और भीड़ को आकर्षित करने के लिये लगने वाले मैनरिज़्म भी हूबहू वही… बदला है तो सिर्फ़ पहनावा… बाल ठाकरे भगवे कपड़े अधिक पहनते थे, जबकि राज ठाकरे अधिकतर काली पैंट-सफ़ेद शर्ट या सफ़ेद कुर्ते पाजामे में होते हैं…


महाराष्ट्र के चुनावों में राज ठाकरे चुनावी मंचों से जैसा और जो गरज रहे हैं उसकी एक बानगी देखिये -

1) क्या आपने देश के गृहमंत्री पी चिदम्बरम को देखा है, वह अधिकतर भारतीय वेशभूषा अर्थात परम्परागत लुंगी और मुण्डू पहने दिखाई देते हैं, वे जब भी बोलते हैं या तो अंग्रेजी बोलते हैं या तमिल बोलते हैं… ऐसा क्यों?

2) रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपना सारा काम बंगाली में लिखा लेकिन उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला…

3) जब मुम्बई में कुछ टैक्सियाँ फ़ोड़ी जाती हैं तब देश में ऐसा हल्ला मचता है मानो देश जलने लगा हो, जबकि असम में इससे दस गुना होने पर भी कोई खबर नहीं बनती…

4) सत्यजीत रे की अधिकतर फ़िल्में बंगाली में हैं, फ़िर भी उन्हें ऑस्कर मिला…

फ़िर वे बरसते हैं… "तो फ़िर ऐ मराठियों, तुम्हें मराठी बोलने-लिखने में क्या परेशानी है? ऐसा क्यों होता है कि कोई भी बाहरी आदमी, जिसे मराठी नहीं आती तुम्हारा महापौर, विधायक, सांसद, मंत्री बन सकता है, क्या तुम लोगों को शर्म नहीं आती? रजनीकान्त भी तमिल नहीं है, इसलिये उसे वहाँ की राजनीति में कूदने के बारे में दस बार सोचना पड़ता है… फ़िर सारा ठीकरा मराठियों के माथे पर ही क्यों? मराठी अस्मिता के बारे में बात करके क्या मैं गुनाह करता हूं?" यह सुनकर युवाओं की भीड़ उत्तेजित हो जाती है…

महाराष्ट्र से बाहर रहने वालों तथा मेरे और आप जैसे लोगों को यह भाषणबाजी भले ही बकवास और भड़काऊ लगे, लेकिन राज ठाकरे वहाँ के बेरोजगार युवकों पर अपना असर छोड़ने में कामयाब हो जाते हैं। राज ठाकरे अपने भाषणों में महाराष्ट्र के लिये कोई योजना पेश नहीं करते, न ही विकास अथवा ग्रामीण उत्थान की बात बताते हैं… वे अपने भाषणों में सोनिया गाँधी की नकल उतारते हैं, विलासराव देशमुख और अशोक चव्हाण की खिल्ली उड़ाते हैं, मराठियों को केन्द्र और राज्य में उचित सम्मान न दिलाने के कारण महाराष्ट्र के पुराने नेताओं को लताड़ते हैं, भीड़ नारे लगाती है, तालियाँ पीटती है… सिर्फ़ एक बात ध्यान देने वाली है कि राज ठाकरे शिवसेना, उद्धव और कई अन्य वरिष्ठ नेताओं की आलोचना करते हैं, उनकी हँसी उड़ाते हैं, लेकिन बाल ठाकरे के विरुद्ध आज तक उन्होंने हमेशा सम्मान की भाषा में बात की है, भले ही बाल ठाकरे ने उन्हें "मराठियों का जिन्ना" कहा हो।

इस सबके मायने क्या हैं? राज की सभाओं में उमड़ने वाली भीड़ को देखकर सबसे अधिक परेशानी सेना-भाजपा गठबन्धन को हो रही है, क्योंकि राज ठाकरे को जो भी वोट मिलेंगे इन्हीं के वोटों से मिलेंगे, अर्थात राज ठाकरे, कांग्रेस का रास्ता आसान बना रहे हैं। सवाल उठता है कि राज की सभाओं में उन्हें सुनने के लिये उमड़ने वाली भीड़ क्या वोटों में तब्दील हो पायेगी? क्योंकि हाल के आंध्रप्रदेश के चुनाव में हमने देखा कि वहाँ के सुपरस्टार चिरंजीवी को सुनने-देखने के लिये लाखों की भीड़ जुटती थी, लेकिन उन्हें वोट नहीं मिले और चुनिंदा सीटें ही मिलीं। संयोग देखिये कि चिरंजीवी और राज ठाकरे दोनों को चुनाव चिन्ह "रेल का इंजन" ही मिला है। अगर लोकसभा चुनावों के आँकड़े देखें, तो साफ़ ज़ाहिर होता है कि राज ठाकरे, शिवसेना को नुकसान पहुँचाने में सफ़ल हो रहे हैं, इसीलिये बुढ़ापे में प्रचार से दूर रहने का इरादा जताने के बावजूद बालासाहेब अपने पुत्रमोह के कारण अब "सामना" में लिख भी रहे हैं, सीडी के जरिये भाषण भी दे रहे हैं।

जैसे-जैसे वक्त बीत रहा है, तथा राज ठाकरे आक्रामक होते जा रहे हैं, उससे अब कांग्रेस की भी परेशानी बढ़ती जा रही है, कांग्रेस को लगने लगा है कि हमारा ही खड़ा किया हुआ "बिजूका", कहीं हमारा ही नुकसान न कर दे। इस आशंका की एक वजह, राज ठाकरे द्वारा प्रचार के अन्तिम दिनों में सोनिया पर अधिकाधिक हमला बोलना है। राज ठाकरे के लिये भी यह चुनाव उसके "राजनैतिक कैरियर" का सबसे बड़ा दांव है, और वह यह बात जानते भी हैं, इसीलिये वे और भी उग्र हो रहे हैं। राज ठाकरे मजाकिया अंदाज में कहते हैं कि "…आंध्रप्रदेश में कांग्रेसी मुख्यमंत्री के चले जाने से लोग आत्महत्याएं कर रहे हैं, जबकि महाराष्ट्र में लोग कांग्रेसी मुख्यमंत्री बना हुआ है इसलिये आत्महत्याएं कर रहे हैं…"। अपनी हर सभा के अन्त में वे एक कागज़ दिखाते हैं जिसमें राज्य के नासिक, मुम्बई, जलगाँव, ठाणे आदि जिलों में महाराष्ट्र सरकार के अधिकृत आंकड़ों के अनुसार बिहार, उत्तरप्रदेश और बांग्लादेश से आये हुए बाहरी लोगों की संख्या दिखाई गई है, और वे जाते-जाते युवाओं को भड़का जाते हैं कि "ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन तुम्हारी भाषा, संस्कृति, अस्मिता खतरे में पड़ जायेगी…"।

13 अक्टूबर को महाराष्ट्र में मतदान होगा, सभी का भाग्य मशीनों में बन्द हो जायेगा, लेकिन यदि परिणामों की सम्भावनाओं पर एक नज़र डालें तो इस प्रकार के दृश्य उभरते हैं -

1) कांग्रेस-NCP को मिलाकर पूर्ण बहुमत मिल जाता है, और वे राज ठाकरे को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल बाहर फ़ेंकते हैं। ("यूज़ एण्ड थ्रो" की कांग्रेसी संस्कृति, वर्तमान माहौल और वोटों के बंटवारे को देखते हुए फ़िलहाल यह सम्भावना सबसे मजबूत लगती है)।

2) राज ठाकरे की पार्टी अप्रत्याशित प्रदर्शन कर जाती है और उसे 25-30 सीटें मिल जाती हैं, तब वे किंगमेकर की भूमिका में भी आ सकते हैं, यह बाकी की चारों पार्टियों को मिलने वाली सीटों से निश्चित होगा।

3) सेना-भाजपा को मिलाकर पूर्ण बहुमत आ जाता है और राज ठाकरे, हार मानकर बाल ठाकरे के शरणागत हो जाते हैं।

4) सेना-भाजपा को बहुमत से थोड़ा कम मिलता है और राज ठाकरे का समर्थन लेना पड़े, तो क्या बाल ठाकरे, राज को मनाएंगे? यदि ऐसा होता है तब बाल ठाकरे के जीवनकाल की संध्या में यह उनके जीवन की पहली बड़ी हार होगी, वह भी अपने भतीजे के हाथों।

5) कुछ "जंगली" सम्भावनाएं (अंग्रेजी शब्द Wild Possibilities को यदि शब्दानुरूप देखें) ये भी हैं - भाजपा और NCP मिलकर सरकार बना लें, कांग्रेस और शिवसेना देखती रह जायें, अथवा शिवसेना-पवार का चुनाव बाद गठबंधन हो जाये और भाजपा टापती रह जाये… राजनीति में कुछ भी सम्भव है…

जो भी होगा वह तो नतीजों के बाद ही सामने आयेगा, लेकिन आज की स्थिति में तो राज ठाकरे सभी के लिये सिरदर्द बने हुए हैं, सेना-भाजपा के लिये प्रत्यक्ष रूप से, कांग्रेस-NCP के लिये अप्रत्यक्ष रूप से जबकि देश और हिन्दुत्व का भला सोचने वालों के लिये एक "घरतोड़क" के रूप में… क्योंकि आखिर नुकसान तो हिन्दुत्व और हिन्दू वोटों के एकत्रीकरण का हो रहा है…

इस स्थिति के लिये कुछ हद तक बाल ठाकरे का पुत्रमोह ही कारणीभूत लगता है, जो लोग राज ठाकरे और उद्धव को बचपन से जानते हैं, उन्हें पता है कि राज ठाकरे, उद्धव से राजनीति, वक्तृत्व कला, मैनरिज़्म, और युवाओं को अपील करने के मामले में हमेशा आगे रहे हैं, फ़िर भी उन्होंने शिवसेना की कमान उद्धव के हाथों में दी। ज़रा सोचिये कि यदि आज राज ठाकरे पर बाल ठाकरे का वरदहस्त होता और शिवसेना का नेतृत्व उनके हाथों में होता, तो राज के सामने महाराष्ट्र में राहुल गाँधी कहीं नहीं लगते, शिवसेना को एक युवा नेतृत्व मिल जाता, न मराठी-अमराठी का मुद्दा पैदा होता, न ही कोई बवाल होता। एक तरह से देखा जाये तो राज ठाकरे की "एनर्जी" का दुरुपयोग हो रहा है, भाषा और प्रान्त के नाम पर, जबकि उसे पता होना चाहिये कि वह हिन्दुत्व का नुकसान और कांग्रेस का फ़ायदा करवा रहा है। बुढ़ापे में हर व्यक्ति को अपने बेटों का कैरियर संवरते देखने की तीव्र इच्छा होती है और बाल ठाकरे वही चाहत अब दोनों पार्टियों को ले डूबेगी।

इस झमेले में एक "एंगल" बिके हुए मीडिया का भी है। मीडिया में आजकल ठाकरे परिवार के बड़े चर्चे हैं। हो भी क्यों ना, चुनाव कवरेज के समय मीडिया को ऐसा तैयार मिर्च-मसाला भला कब मिलेगा। यदि आप महाराष्ट्र की समस्याओं और प्रदेश की हालत का जायज़ा लेने के लिये मीडिया द्वारा किया जा रहे चुनाव कवरेज की रिपोर्ट देखना चाहते हैं तो आपको कुछ नहीं मिलने वाला, क्योंकि मीडिया के लिये महंगाई, किसानों की आत्महत्या, मुम्बई हमले के आरोपियों पर कार्रवाई, मुम्बई को शंघाई बनाने के सपने, गढ़चिरौली की नक्सल समस्या आदि कोई मुद्दा है ही नहीं, मीडिया के सामने एकमात्र और मुख्य मुद्दा है "ठाकरे परिवार" में चल रही जंग। चूंकि भाजपा और शिवसेना कोई भी साम्प्रदायिक मुद्दा नहीं उठा रहे और सिर्फ़ महाराष्ट्र के विकास की बात कर रहे हैं तो बेचारे "सेकुलरों" को उन्हें कोसने का कोई मौका भी नहीं मिल रहा।

एक विशेष रणनीति के तहत, कांग्रेस द्वारा हमेशा की तरह मैनेज किये हुए चापलूस मीडिया ने राज ठाकरे को जबरदस्त कवरेज देकर हीरो बनाया हुआ है, ठाकरे परिवार, उनके झगड़े-विवाद, राज-उद्धव-बाल ठाकरे के बारे में ऑफ़िस में बैठे-बैठे तैयार की गई रिपोर्टें सतत 24 घंटे आपको विभिन्न चैनलों पर दिखाई देंगी। कांग्रेस के दोनों हाथों में लड्डू हैं, और लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के पूरे आसार नज़र आ रहे हैं (जो कि महाराष्ट्र का भीषण दुर्भाग्य ही होगा, ठीक वैसे ही जैसे केन्द्र में कांग्रेस का लगातार दूसरा कार्यकाल शुरु से ही जनता की रातों की नींद हराम किये हुए है)।

देखना है कि कांग्रेस द्वारा शतरंज पर खड़ा किया हुआ यह राज ठाकरे नामक मोहरा "हाथी" की तरह सीधा चलता है या "घोड़े" की तरह ढाई घर… या फ़िर "पैदल" की तरह बिना कुछ किये गायब हो जायेगा, बस कुछ दिन का इंतज़ार और…। तब तक हिन्दुत्ववादी वोटों के बिखराव का सदाबहार और सनातन "मातम" जारी रखिये…, और यदि कांग्रेसी हैं तो खुशियाँ मनाईये…

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