Performance of Sonia-Rahul in Indian Parliament

Written by गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011 19:21

“युवराज” की मर्जी के सामने संसद की क्या हैसियत…?

जैसा कि आप सभी ज्ञात है कि हम अपने सांसद चुनते हैं ताकि जब भी संसद सत्र चल रहा हो वे वहाँ नियमित उपस्थिति रखें, अपने क्षेत्र की समस्याओं को संसद में प्रश्नों के जरिये उठाएं, तथा उन्हें मिलने वाली सांसद निधि की राशि का उपयोग गरीबों के हित में सही ढंग से करें।

सूचना के अधिकार तहत प्राप्त एक जानकारी के अनुसार, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को “नियुक्त” करने वाली “सुप्रीम कमाण्डर”, तथा देश के भावी युवा(?) प्रधानमंत्री, इस मोर्चे पर बेहद फ़िसड्डी साबित हुए हैं। 15वीं लोकसभा की अब तक कुल 183 बैठकें हुई हैं, जिसमें सोनिया की उपस्थिति रही 77 दिन (42%), जबकि राहुल बाबा 80 दिन (43%) उपस्थित रहे (मेनका गाँधी की उपस्थिति 129 दिन एवं वरुण की उपस्थिति 118 दिन रही)। इस मामले में सोनिया जी को थोड़ी छूट दी जा सकती है, क्योंकि संसद के पूरे मानसून सत्र में वे अपनी “रहस्यमयी” बीमारी की वजह से नहीं आईं। 

इसी प्रकार संसद में प्रश्न पूछने के मामले में रिकॉर्ड के अनुसार वरुण गाँधी ने 15वीं संसद में अब तक कुल 89 प्रश्न पूछे हैं और मेनका गाँधी ने 137 प्रश्न पूछे हैं, जबकि दूसरी ओर संसद के लगातार तीन सत्रों में “मम्मी-बेटू” की जोड़ी ने एक भी सवाल नहीं पूछा (क्योंकि शायद उन्हें संसद में सवाल पूछने की जरुरत ही नहीं है, उनके गुलाम उन्हें उनके घर जाकर “रिपोर्ट” देते हैं)। जहाँ तक बहस में भाग लेने का सवाल है, मेनका गाँधी ने कुल 12 बार बहस में हिस्सा लिया और वरुण गाँधी ने 2 बार, वहीं सोनिया गाँधी ने किसी भी बहस में हिस्सा नहीं लिया, तथा “अमूल बेबी” ने सिर्फ़ एक बार (अण्णा हजारे के वाले मसले पर) चार पेज का “लिखा हुआ” भाषण पढ़ा।

सांसदों के कामों को आँकने में सांसद निधि एक महत्वपूर्ण घटक होता है। इस निधि को सांसद अपने क्षेत्र में स्वविवेक से सड़क, पुल अथवा अस्पताल की सुविधाओं पर खर्च कर सकते हैं। जून 2009 से अगस्त 2011 तक प्रत्येक सांसद को 9 करोड़ की सांसद निधि आवंटित की गई। इसमें से सोनिया गाँधी ने अब तक सिर्फ़ 1.94 करोड़ (21%) एवं राहुल बाबा ने 0.18 करोड़ (मात्र 3%) पैसे का ही उपयोग अपने क्षेत्र के विकास हेतु किया है। वहीं मेनका गाँधी ने इस राशि में से 2.25 करोड़ (25%) तथा वरुण ने अपने संसदीय क्षेत्र के लिए 3.17 करोड़ (36%) खर्च कर लिए हैं।

ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब सत्ताधारी गठबंधन की प्रमुख होने के बावजूद सोनिया-राहुल का व्यवहार संसद के प्रति इतना नकारात्मक और उपेक्षा वाला है तो फ़िर वे आए दिन अन्य राज्य सरकारों को नैतिकता का उपदेश कैसे दे सकते हैं? मनरेगा जैसी ना जाने कितनी योजनाएं हैं, रायबरेली-अमेठी की सड़कों की हालत खस्ता है, फ़िर भी पता नहीं क्यों राहुल बाबा ने यहाँ अपनी निधि का पैसा खर्च क्यों नहीं किया? जबकि मेनका-वरुण का “परफ़ॉर्मेंस” उनके अपने-अपने संसदीय क्षेत्रों में काफ़ी बेहतर है। परन्तु "महारानी" और "युवराज" की जब मर्जी होगी तब वे संसद में आएंगे और इच्छा हुई तो कभीकभार सवाल भी पूछेंगे, हम-आप उनसे इस सम्बन्ध में सवाल करने वाले कौन होते हैं…। जब उन्होंने आज तक सरकारी खर्च पर होने वाली विदेश यात्राओं का हिसाब ही नहीं दिया, तो संसद में उपस्थिति तो बहुत मामूली बात है…। "राजपरिवार" की मर्जी होगी तब जवाब देंगे… संसद की क्या हैसियत है उनके सामने?
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अब समझ में आया कि आखिर मनमोहन सिंह साहब सूचना के अधिकार कानून की बाँह क्यों मरोड़ना चाहते हैं। कुछ “सिरफ़िरे” लोग सोनिया-राहुल से सम्बन्धित इसी प्रकार की “ऊलजलूल” सूचनाएं माँग-माँगकर, सरकार का टाइम खराब करते हैं, सोनिया का ज़ायका खराब करते हैं और उनके गुलामों का हाजमा खराब करते हैं…
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