खदानों में हाथ डालिये, मधु कोड़ा और रेड्डियों जैसे खरबपति बनिये… Mining Mafia, Jharkhand, Madhu Koda, Congress
Written by Super User शुक्रवार, 27 नवम्बर 2009 13:52
जब झारखण्ड में काले चश्मे वाले राज्यपाल सिब्ते रजी के जरिये काला खेल करवाकर "धर्मनिरपेक्षता" के नाम पर तथा "भाजपा को अछूत बनाकर" सत्ता से दूर रखने का खेल खेला गया था, उसमें "भ्रष्टाचार की माँ" कांग्रेस-राजद और बाकी के लगुए-भगुए किसी धर्मनिरपेक्ष सिद्धान्त के नाम पर एकत्रित नहीं हुए थे… निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री बनाने पर राजी वे इसलिये नहीं हुए थे कि भाजपा के खिलाफ़ उन्हें लड़ाई लड़ना थी… बल्कि सारे के सारे ठग भारत माँ के सीने में छेद करके खदानों के जरिये होने वाली अरबों-खरबों की कमाई में हिस्सा बटोरने के लिये "गैंग" बनाये हुए थे। जैसे-जैसे मधु कोड़ा की लूट के किस्से उजागर हो रहे हैं, देश का मेहनतकश और निम्न-मध्यमवर्गीय व्यक्ति कुछ अचम्भे से, कुछ निराशा-हताशा से, कुछ गुस्से से और कुछ मजबूरी से इन लुटेरों को मन मसोसकर देख रहा है।
एक समय में मामूली से कंस्ट्रक्शन वर्कर और खदानकर्मी से मुख्यमंत्री बनने और भारतभूमि की अरबों की सम्पत्ति हड़प करने वाले की हरकतों के बारे में लालू और कांग्रेस को पता ही नहीं चला होगा, ऐसा कोई मूर्ख ही सोच सकता है। जबकि जो लोग कोड़ा और कांग्रेस को जानते हैं उन्हें पता था कि ऐसा कोई महाघोटाला कभी न कभी सामने आयेगा।
झारखण्ड से कोयले का अवैध खनन सालाना करीब 8000 करोड़ रुपयों का है, जिसमें लगभग 500 माफ़िया गुट अलग-अलग स्तरों पर जुड़े हुए हैं। कोयला खदानों के अधिकारी और स्थानीय गुण्डे इस रैकेट का एक मामूली पुर्जा मात्र हैं। मनचाहे इलाके में ट्रांसफ़र करवाने के लिये अधिकारियों द्वारा छुटभैये नेताओं से लेकर मुख्यमंत्री तक करोड़ों रुपये की रिश्वत अथवा "अरबों रुपये कमाकर देने की शपथ" का प्रावधान है। इस माफ़िया गैंग की कार्यप्रणाली एकदम सीधी और स्पष्ट है, ऐसी खदानों की पहचान की जाती है जो "बन्द" या समाप्त घोषित की जा चुकी हैं (अथवा मिलीभगत से "बन्द" घोषित करवा दी गई हैं), फ़िर उन्हीं खदानों में से फ़िर से लोहा और अयस्क निकालकर बेच दिया जाता है, और ऐसा दिनदहाड़े किया जाता है, क्योंकि ऊपर से नीचे तक सबका हिस्सा बाँटा जा चुका होता है। बताया जाता है कि सारे खेल में "सेल" (स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड) के उच्चाधिकारी, खान मंत्रालय और झारखण्ड सरकार मिले हुए होते हैं। खदानों से निकली हुई लाल मिट्टी और अयस्क को कच्चे लोहे में परिवर्तित करने वाले हजारों "क्रशर्स" झारखण्ड में यत्र-तत्र देखे जा सकते हैं जिनमें से 95% के मालिक नेता ही हैं, जो फ़र्जी नामों से छोटे-मोटे खदान ठेकेदार आदि बने हुए हैं। इस प्रकार की छोटी-छोटी फ़ैक्टरियाँ ही करोड़ों कमा लेती हैं, जिसे अंग्रेजी में "टिप ऑफ़ आईसबर्ग" कहा जाता है (हिन्दी में इसे "भ्रष्टाचार के महासागर की ऊपरी लहरें" कहा जा सकता है)
http://ibnlive.in.com/news/exclusive-how-exjharkhand-cm-madhu-koda-profited-from-mines/105088-3.html?utm_source=IBNdaily_MCDB_121109&utm_medium=mailer
वैसे तो यह लूट सालों से जारी है, जब कांग्रेस सत्ता में थी तब भी, और जब 15 साल लालू सत्ता में थे तब भी। झारखण्ड के बिहार से अलग होने का सबसे अधिक दुख लालू को यों ही नहीं हुआ था, असल में एक मोटी मुर्गी हाथ से निकल जाने का वह दुख था, ठीक उस प्रकार जैसे मध्यप्रदेश के नेताओं को छत्तीसगढ़ के निकल जाने का दुख हुआ, क्योंकि छत्तीसगढ़ "लूटने" के काम भी आता था और ईमानदार और सख्त अफ़सरों को सजा के बतौर बस्तर/अम्बिकापुर ट्रांसफ़र करने के काम भी आता था। कहने का मतलब ये कि मधु कोड़ा तो हमारी नज़रों में सिर्फ़ इसलिये आये कि उन्होंने कम से कम समय में अधिक से अधिक कमाने का मौका नहीं गंवाया।
आंध्रप्रदेश के "राष्ट्रसन्त" वायएस राजशेखर रेड्डी, अनधिकृत रूप से देश के सबसे अधिक पैसे वाले नेता माने जाते हैं (शरद पवार के समकक्ष)। उन्हीं के नक्शेकदम पर चल रहे हैं उनके बिजनेस पार्टनर कर्नाटक के खनन माफ़िया रेड्डी बन्धु। एक छोटा सा उदाहरण देता हूं… मध्यप्रदेश में एक सड़क ठेकेदार पर खनन विभाग ने 32 लाख रुपये की वसूली का जुर्माना निकाला, ठेकेदार ने सड़क निर्माण करते-करते सड़क के दोनों ओर नाली खुदाई करके उसमें से निकलने वाली मुरम चुपके से अंटी कर ली, जबकि कुछ का उपयोग वहीं सड़क बनाने में कर दिया… अब सोचा जा सकता है कि सिर्फ़ 8 किलोमीटर की सड़क के ठेके में सड़क के दोनों तरफ़ खुदाई करके ही ठेकेदार लाखों की मुरम निकालकर सरकार को चूना लगा सकता है, तो सुदूर जंगलों में धरती से 100-200 फ़ुट नीचे क्या-क्या और कितना खोदा जा रहा होगा और बाले-बाले ही बेचा जा रहा होगा (ठेकेदार पर 32 लाख का जुर्माना भी "ऑफ़िशियल" तौर पर हुआ, हकीकत में उस ठेकेदार ने पता नहीं कितना माल ज़मीन से खोदा होगा, ऊपर कितना पहुँचाया होगा और जुर्माना होने के बाद सरकारी अफ़सरों के घर कितना पहुँचाया होगा, इसका हिसाब आप कभी नहीं लगा सकते)।
असल में आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि खनन के काम में कितनी अनाप-शनाप कमाई है। मधु कोड़ा का भ्रष्टाचार का आँकड़ा, इन तीनों रेड्डियों (एक दिवंगत और दो बाकी) तथा उनके बेटे जगनमोहन के मुकाबले कुछ भी नहीं है। एक मोटे अनुमान के अनुसार चारों रेड्डियों ने इस देश के राजस्व को लगभग 75,000 करोड़ रुपये से अधिक का चूना लगाया है। पिछले दिनों कर्नाटक में जो खेल खेला गया उसके पीछे भी आंध्रप्रदेश के रेड्डी का ही हाथ है, जिसने येद्दियुरप्पा को भी रुलाकर रख दिया। उनका असली खेल यह था कि किसी तरह येदियुरप्पा न मानें और भाजपा में टूट हो जाये फ़िर कांग्रेस के अन्दरूनी-बाहरी समर्थन से सरकार बना ली जाये, ताकि आंध्र-कर्नाटक की सीमा पर स्थित बेल्लारी की खदानों पर सारे रेड्डियों का एकछत्र साम्राज्य स्थापित हो जाये। बेशर्म लालच की इन्तेहा देखिये कि रेड्डियों ने आंध्र-कर्नाटक की सीमा पर स्थित जंगलों में भी बेतहाशा अवैध खनन किया है और अब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फ़टकार लगाई है। आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री रोसैया को इसका फ़ायदा हुआ है और अब वह सीबीआई और जाँच की धमकी की तलवार के बल पर जगनमोहन रेड्डी को दबोचे हुए हैं।
अब आते हैं नक्सलियों पर, नक्सली विचारधारा और उसके समर्थक हमेशा से यह आरोप लगाते आये हैं कि आदिवासी इलाकों से लौह अयस्क और खनिज पदार्थों की लूट चल रही है, सरकारों द्वारा इन अति-पिछड़े इलाकों का शोषण किया जाता है और खदानों से निकलने वाले बहुमूल्य खनिजों का पूरा मुआवज़ा इन इलाकों को नहीं मिलता आदि-आदि। लेकिन तथाकथित विचारधारा के नाम पर लड़ने वाले इसे रोकने के लिये कुछ नहीं करते, क्योंकि खुद नक्सली भी इन्हीं ठेकेदारों और कम्पनियों से पैसा वसूलते हैं। यहीं आकर इनकी पोल खुल जाती है, क्योंकि कभी यह सुनने में नहीं आता कि नक्सलियों ने किसी भ्रष्ट ठेकेदार अथवा खदान अफ़सर की हत्याएं की हों, अथवा कम्पनियों के दफ़्तरों में आग लगाई हो…। मतलब ये कि खदानों और खनिज पदार्थों की लूट को रोकने का उनका कोई इरादा नहीं है, वे तो चाहते हैं कि उसमें से एक हिस्सा उन्हें मिलता रहे, ताकि उनके हथियार खरीदी और ऐश जारी रहे और यह सब हो रहा है आदिवासियों के भले के नाम पर। नक्सली खुद चाहते हैं कि इन इलाकों से खनन तो होता रहे, लेकिन उनकी मर्जी से… है ना दोगलापन!!! यदि नक्सलियों को वाकई जंगलों, खनिजों और पर्यावरण से प्रेम होता तो उनकी हत्या वाली "हिट लिस्ट" में मधु कोड़ा और राजशेखर रेड्डी तथा बड़ी कम्पनियों के अधिकारी और ठेकेदार होते, न कि पुलिस वाले और गरीब निरपराध आदिवासी।
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विषयान्तर :- ऐसे भ्रष्ट संस्कारों और संस्कृति की जन्मदात्री है कांग्रेस…। इसके जवाब में यह तर्क देना कि भाजपा-बसपा-सपा-शिवसेना-कमीनिस्ट सभी तो भ्रष्ट हैं, नितान्त बोदा और बेकार है, क्योंकि ये भी उसी संस्कृति की पैदाइश हैं। असली सवाल उठता है कि ऐसी "खाओ और खाने दो" की संस्कृति का विकास किसने किया और इसे रोकने के प्रयास सबसे पहले किसे करना चाहिये थे और नहीं किया…। फ़िर भी लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं कांग्रेस से घृणा क्यों करता हूं? (इस विषय पर जल्दी ही एक पोस्ट आयेगी…)
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एक समय में मामूली से कंस्ट्रक्शन वर्कर और खदानकर्मी से मुख्यमंत्री बनने और भारतभूमि की अरबों की सम्पत्ति हड़प करने वाले की हरकतों के बारे में लालू और कांग्रेस को पता ही नहीं चला होगा, ऐसा कोई मूर्ख ही सोच सकता है। जबकि जो लोग कोड़ा और कांग्रेस को जानते हैं उन्हें पता था कि ऐसा कोई महाघोटाला कभी न कभी सामने आयेगा।
झारखण्ड से कोयले का अवैध खनन सालाना करीब 8000 करोड़ रुपयों का है, जिसमें लगभग 500 माफ़िया गुट अलग-अलग स्तरों पर जुड़े हुए हैं। कोयला खदानों के अधिकारी और स्थानीय गुण्डे इस रैकेट का एक मामूली पुर्जा मात्र हैं। मनचाहे इलाके में ट्रांसफ़र करवाने के लिये अधिकारियों द्वारा छुटभैये नेताओं से लेकर मुख्यमंत्री तक करोड़ों रुपये की रिश्वत अथवा "अरबों रुपये कमाकर देने की शपथ" का प्रावधान है। इस माफ़िया गैंग की कार्यप्रणाली एकदम सीधी और स्पष्ट है, ऐसी खदानों की पहचान की जाती है जो "बन्द" या समाप्त घोषित की जा चुकी हैं (अथवा मिलीभगत से "बन्द" घोषित करवा दी गई हैं), फ़िर उन्हीं खदानों में से फ़िर से लोहा और अयस्क निकालकर बेच दिया जाता है, और ऐसा दिनदहाड़े किया जाता है, क्योंकि ऊपर से नीचे तक सबका हिस्सा बाँटा जा चुका होता है। बताया जाता है कि सारे खेल में "सेल" (स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड) के उच्चाधिकारी, खान मंत्रालय और झारखण्ड सरकार मिले हुए होते हैं। खदानों से निकली हुई लाल मिट्टी और अयस्क को कच्चे लोहे में परिवर्तित करने वाले हजारों "क्रशर्स" झारखण्ड में यत्र-तत्र देखे जा सकते हैं जिनमें से 95% के मालिक नेता ही हैं, जो फ़र्जी नामों से छोटे-मोटे खदान ठेकेदार आदि बने हुए हैं। इस प्रकार की छोटी-छोटी फ़ैक्टरियाँ ही करोड़ों कमा लेती हैं, जिसे अंग्रेजी में "टिप ऑफ़ आईसबर्ग" कहा जाता है (हिन्दी में इसे "भ्रष्टाचार के महासागर की ऊपरी लहरें" कहा जा सकता है)
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वैसे तो यह लूट सालों से जारी है, जब कांग्रेस सत्ता में थी तब भी, और जब 15 साल लालू सत्ता में थे तब भी। झारखण्ड के बिहार से अलग होने का सबसे अधिक दुख लालू को यों ही नहीं हुआ था, असल में एक मोटी मुर्गी हाथ से निकल जाने का वह दुख था, ठीक उस प्रकार जैसे मध्यप्रदेश के नेताओं को छत्तीसगढ़ के निकल जाने का दुख हुआ, क्योंकि छत्तीसगढ़ "लूटने" के काम भी आता था और ईमानदार और सख्त अफ़सरों को सजा के बतौर बस्तर/अम्बिकापुर ट्रांसफ़र करने के काम भी आता था। कहने का मतलब ये कि मधु कोड़ा तो हमारी नज़रों में सिर्फ़ इसलिये आये कि उन्होंने कम से कम समय में अधिक से अधिक कमाने का मौका नहीं गंवाया।
आंध्रप्रदेश के "राष्ट्रसन्त" वायएस राजशेखर रेड्डी, अनधिकृत रूप से देश के सबसे अधिक पैसे वाले नेता माने जाते हैं (शरद पवार के समकक्ष)। उन्हीं के नक्शेकदम पर चल रहे हैं उनके बिजनेस पार्टनर कर्नाटक के खनन माफ़िया रेड्डी बन्धु। एक छोटा सा उदाहरण देता हूं… मध्यप्रदेश में एक सड़क ठेकेदार पर खनन विभाग ने 32 लाख रुपये की वसूली का जुर्माना निकाला, ठेकेदार ने सड़क निर्माण करते-करते सड़क के दोनों ओर नाली खुदाई करके उसमें से निकलने वाली मुरम चुपके से अंटी कर ली, जबकि कुछ का उपयोग वहीं सड़क बनाने में कर दिया… अब सोचा जा सकता है कि सिर्फ़ 8 किलोमीटर की सड़क के ठेके में सड़क के दोनों तरफ़ खुदाई करके ही ठेकेदार लाखों की मुरम निकालकर सरकार को चूना लगा सकता है, तो सुदूर जंगलों में धरती से 100-200 फ़ुट नीचे क्या-क्या और कितना खोदा जा रहा होगा और बाले-बाले ही बेचा जा रहा होगा (ठेकेदार पर 32 लाख का जुर्माना भी "ऑफ़िशियल" तौर पर हुआ, हकीकत में उस ठेकेदार ने पता नहीं कितना माल ज़मीन से खोदा होगा, ऊपर कितना पहुँचाया होगा और जुर्माना होने के बाद सरकारी अफ़सरों के घर कितना पहुँचाया होगा, इसका हिसाब आप कभी नहीं लगा सकते)।
असल में आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि खनन के काम में कितनी अनाप-शनाप कमाई है। मधु कोड़ा का भ्रष्टाचार का आँकड़ा, इन तीनों रेड्डियों (एक दिवंगत और दो बाकी) तथा उनके बेटे जगनमोहन के मुकाबले कुछ भी नहीं है। एक मोटे अनुमान के अनुसार चारों रेड्डियों ने इस देश के राजस्व को लगभग 75,000 करोड़ रुपये से अधिक का चूना लगाया है। पिछले दिनों कर्नाटक में जो खेल खेला गया उसके पीछे भी आंध्रप्रदेश के रेड्डी का ही हाथ है, जिसने येद्दियुरप्पा को भी रुलाकर रख दिया। उनका असली खेल यह था कि किसी तरह येदियुरप्पा न मानें और भाजपा में टूट हो जाये फ़िर कांग्रेस के अन्दरूनी-बाहरी समर्थन से सरकार बना ली जाये, ताकि आंध्र-कर्नाटक की सीमा पर स्थित बेल्लारी की खदानों पर सारे रेड्डियों का एकछत्र साम्राज्य स्थापित हो जाये। बेशर्म लालच की इन्तेहा देखिये कि रेड्डियों ने आंध्र-कर्नाटक की सीमा पर स्थित जंगलों में भी बेतहाशा अवैध खनन किया है और अब सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें फ़टकार लगाई है। आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री रोसैया को इसका फ़ायदा हुआ है और अब वह सीबीआई और जाँच की धमकी की तलवार के बल पर जगनमोहन रेड्डी को दबोचे हुए हैं।
अब आते हैं नक्सलियों पर, नक्सली विचारधारा और उसके समर्थक हमेशा से यह आरोप लगाते आये हैं कि आदिवासी इलाकों से लौह अयस्क और खनिज पदार्थों की लूट चल रही है, सरकारों द्वारा इन अति-पिछड़े इलाकों का शोषण किया जाता है और खदानों से निकलने वाले बहुमूल्य खनिजों का पूरा मुआवज़ा इन इलाकों को नहीं मिलता आदि-आदि। लेकिन तथाकथित विचारधारा के नाम पर लड़ने वाले इसे रोकने के लिये कुछ नहीं करते, क्योंकि खुद नक्सली भी इन्हीं ठेकेदारों और कम्पनियों से पैसा वसूलते हैं। यहीं आकर इनकी पोल खुल जाती है, क्योंकि कभी यह सुनने में नहीं आता कि नक्सलियों ने किसी भ्रष्ट ठेकेदार अथवा खदान अफ़सर की हत्याएं की हों, अथवा कम्पनियों के दफ़्तरों में आग लगाई हो…। मतलब ये कि खदानों और खनिज पदार्थों की लूट को रोकने का उनका कोई इरादा नहीं है, वे तो चाहते हैं कि उसमें से एक हिस्सा उन्हें मिलता रहे, ताकि उनके हथियार खरीदी और ऐश जारी रहे और यह सब हो रहा है आदिवासियों के भले के नाम पर। नक्सली खुद चाहते हैं कि इन इलाकों से खनन तो होता रहे, लेकिन उनकी मर्जी से… है ना दोगलापन!!! यदि नक्सलियों को वाकई जंगलों, खनिजों और पर्यावरण से प्रेम होता तो उनकी हत्या वाली "हिट लिस्ट" में मधु कोड़ा और राजशेखर रेड्डी तथा बड़ी कम्पनियों के अधिकारी और ठेकेदार होते, न कि पुलिस वाले और गरीब निरपराध आदिवासी।
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Madhu Koda, Naksal Problem, Naxalites in Jharkhand, Mining Mafia, Irregularities in Mining, Rajshekhar Reddy, Congress, Jharkhand Assembly Elections, मधु कोड़ा, नक्सली समस्या, नक्सलवाद, खनन माफ़िया, खदानों में अनियमितताएं, राजशेखर रेड्डी, खनन माफ़िया, झारखण्ड चुनाव, कांग्रेस, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
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