Maldives : A New Headache to India??

Written by सोमवार, 01 अप्रैल 2013 13:27


क्या अब मालदीव, भारत का नया “सिरदर्द” बनने जा रहा है??


हाल ही में भारत सरकार ने तमिलनाडु की दोनों क्षेत्रीय पार्टियों के दबाव में आकर LTTE के मुद्दे पर श्रीलंका से खामख्वाह बुराई मोल ले ली. श्रीलंका पहले ही अपने बंदरगाह हम्बनटोटा को चीन की मदद से विकसित करके चीन की मदद कर रहा था, लेकिन संयुक्त राष्ट्र में भारत के इस रुख के बाद तो श्रीलंका पूरी तरह से चीन के पाले में चला जाएगा.  

यूपीए-२ के शासनकाल में वैसे ही भारत की विदेश नीति और विदेशी मोर्चों पर लगातार भारी फजीहत हो रही है तथा नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार सहित विभिन्न पड़ोसी देशों से हमारे रिश्ते लगातार खराब होते जा रहे हैं. ऐसे माहौल में एक और बुरी खबर सामने आ रही है. अमेरिका के पोर्टलैंड ओरेगान से अमेरिकी FBI ने रियाज़ कादिर खान नामक एक अमरीकी निवासी को गिरफ्तार किया है, जिसका हाथ लाहौर में हुए बम विस्फोटों में पाया गया है.


इस बम विस्फोट में ३० लोग मारे गए थे और ३०० से अधिक घायल हुए थे. एफबीआई ने अपनी जाँच में पाया कि रियाज़ कादिर ने बम विस्फोट के एक अन्य आरोपी जलील खान को यह सलाह दी थी कि वह मालदीव के रास्ते बिना किसी जाँच के सीधे पाकिस्तान जा सकता है, और जलील ने वैसा ही किया भी. रियाज़ कादिर ने ही जलील खान से कहा था, कि वह पहले मालदीव में एक पर्यटक के रूप में जाए और इसके बाद अपनी दोनों पत्नियों को वहाँ ले जाए.  

एफबीआई ने भारत सरकार को सूचित किया है कि मालदीव बड़ी तेजी से इस्लामिक जेहादियों का केन्द्र और यात्रा स्थानक बनता जा रहा है. यह खबर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ाने के लिए काफी है.  हालांकि भारत सरकार की एजेंसियों ने काफी पहले ही मालदीव सरकार को सचेत कर दिया था कि उनका देश भी धीरे-धीरे नेपाल के रास्ते जा रहा है, जहाँ से बिना किसी विशेष जाँच-पड़ताल के जेहादी तत्व श्रीलंका, पाकिस्तान और भारत में प्रवेश कर जाते हैं. इसके अलावा मालदीव में दूर-दूर तक फैले हुए कम से कम ११०० छोटे द्वीप ऐसे हैं जो पूरी तरह से निर्जन हैं, और इन द्वीपों की निगरानी या सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है.

यही निर्जन द्वीप भारत-पाकिस्तान और अमेरिका का सिरदर्द बने हुए हैं, क्योंकि जेहादी तत्व यहाँ पर बड़ी आसानी से हथियार, गोला-बारूद और नगद पैसा छिपकर रख सकते हैं, बल्कि कुछ मामलों में ऐसा पाया भी गया है. एक तरह से इस्लामिक आतंकवादियों के लिए यह निर्जन द्वीप “लांचपैड” के रूप में काम कर रहे हैं. हालांकि मालदीव सरकार इन आतंकवादियों की मददगार नहीं है, परन्तु वास्तव में मालदीव के पास इतने संसाधन ही नहीं हैं कि वह इन निर्जन द्वीपों की सतत निगरानी कर सके. यहाँ तक कि भारत ने भी स्वीकार किया कि यदि भारत की वायुसेना भी इनकी निगरानी करे तब भी २४ घंटे / सातों दिन इन की निगरानी करना संभव ही नहीं है.


मालदीव की दूसरी समस्या यह है कि इसकी पूरी अर्थव्यवस्था पर्यटन पर ही टिकी हुई है. इसलिए इसने पर्यटन तथा “सी-फ़ूड” के आयात-निर्यात के नियमों में कई प्रकार की ढील दी हुई है. इसकी आड़ में जेहादी तत्व अपने विशाल नेटवर्क का फायदा उठाते हुए फर्जी कंपनियों के जरिए अपने धन का प्रवाह मालदीव में बना रहे हैं. इस धन को विभिन्न संस्थाओं और माध्यमों के जरिए पहले श्रीलंका, केरल और तमिलनाडु में आसानी से पहुँचाने की व्यवस्था भी अब जड़ें पकड़ चुकी है.

मालदीव की राजधानी माले में २००६ में हुए बम विस्फोट के प्रमुख आरोपी इब्राहीम खान ने खुलासा किया था कि उसे भारत में केरल के नज़दीक एक मजबूत बेस बनाने का निर्देश दिया गया था, जिसे उसने मालदीव में सफल प्रयोग करके सिद्ध भी किया, इसके लिए उसे खाड़ी देशों और पाकिस्तान से धन प्राप्त हुआ था. लश्कर और अल-कायदा ने मालदीव में एक फर्जी संगठन खड़ा कर रखा है जिसका नाम है जमात-ए-मुसलमीन. चूँकि पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मालदीव में नब्बे दिनों तक कोई वीसा नहीं लेना पड़ता, इस नियम का फायदा उठाकर ढेर सारे जेहादी तत्व वहाँ बड़े आराम से आवाजाही करते रहते हैं.

सुरक्षा अधिकारी स्वीकार करते हैं कि हमें अमेरिका की एजेंसियों से मिलने वाली सूचनाओं का बहुत लाभ होता है, अतः हमें उनके साथ सक्रिय सहयोग स्थापित करना ही चाहिए. अब अमेरिका के भी कान खड़े हो चुके हैं और वह भी मालदीव पर निगाह रखने की फिराक में है. इसलिए इस क्षेत्र और विशेषकर मालदीव के समुद्री इलाके में भारत को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी ही होगी ताकि सुरक्षा और प्रभावशाली गुप्तचर सेवा का लाभ, केरल और तमिलनाडु में पनप रहे जेहादी तत्वों पर नकेल कसने में उठाया जा सके, वर्ना आने वाले समय में जैसे जमीन के रास्ते नेपाल और बांग्लादेश हमारे लिए बड़ी समस्या बन चुके हैं, वैसे ही मालदीव भी बन जाएगा.
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