पहला गीत है फ़िल्म “प्यार ही प्यार” का जो बनी थी सन्१९६८ में, फ़िल्माया गया था धर्मेन्द्र और वैजयंतीमाला पर, गीत लिखा है हसरत जयपुरी ने और संगीत है शंकर जयकिशन का और रफ़ी साहब के इस कालजयी गीत के बोल हैं “मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ, तेरे प्यार में ऐ कविता....”। गीत में धर्मेन्द्र अचानक चलती लिफ़्ट बीच में रोककर वैजयंतीमाला को छेड़ते हुए प्यार का इजहार करते हैं, और वैजयंतीमाला भी (जैसा कि हर हीरोईन करती है) इतराते हुए लिफ़्ट में ही मौजूद आईने में खुद को संवारती-निहारती हैं (इससे यह भी साबित होता है कि विकासशील भारत में १९६८ में बहुत बड़ी लिफ़्ट मौजूद थीं, जिसमें आईना और पंखा भी लगा हुआ था)। बहरहाल, पहले आप गीत के बोल देखिये कितने मधुर हैं और जनाब हसरत जयपुरी ने सोचा भी नहीं होगा कि कहानी में इसे ‘लिफ़्ट’ में फ़िल्माया जायेगा।
मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ
तेरे प्यार में ऐ कविता....
तुझे दिल के आईने में, मैंने बार-बार देखा
तेरी अँखड़ियों में देखा, तो छलकता प्यार देखा
तेरा तीर मैंने देखा, तो जिगर के पार देखा...
मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ....
तेरा रंग है सलोना, तेरे अंग में लचक है
तेरी बात में है जादू, तेरे बोल में खनक है
तेरी हर अदा मुहब्बत, तू जमीन की धनक है
मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ....
मेरा दिल लुभा रहा है, तेरा रूप सादा-सादा
ये झुकी-झुकी निगाहें, करें प्यार दिल में ज्यादा
मैं तुझी पे जान दूँगा, है यही मेरा इरादा...
मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ.....
लिफ़्ट में “फ़ँसा” दूसरा गीत जो तत्काल दिमाग में आता है वह है सन् १९८१ में आई फ़िल्म “एक दूजे के लिये” का, गाया है एसपी बालासुब्रह्मण्यम ने, लिखा है सदाबहार आनन्द बक्षी ने और धुन बनाई है लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने, गीत के बोल कोई कविता या गजल नहीं हैं, बल्कि फ़िल्मों के नामों को तरतीबवार जमाया गया है “मेरे जीवन साथी, प्यार किये जा....”। गीत फ़िल्माया गया है कमल हासन और रति अग्निहोत्री पर जो इन दोनों की पहली हिन्दी फ़िल्म थी। इस फ़िल्म में उत्तर-दक्षिण के द्वन्द्व को रोचक ढंग से दिखाया गया है।
मेरे जीवनसाथी, प्यार किये जा, जवानी दीवानी,
खूबसूरत, जिद्दी, पड़ोसन, सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्... सत्यम् शिवम् सुन्दरम्...
झूठा कहीं का..... हाँ हरे रामा हरे कृष्णा,
धत् चार सौ बीस, आवारा.... दिल ही तो है,
आशिक हूँ बहारों का, तेरे मेरे सपने, तेरे घर के सामने,
आमने सामने, शादी के बाद...
हमारे तुम्हारे, मुन्ना, गुड्डी, टिंकू, मिली
शिनशिनाकी बबलाबू, खेल-खेल में, शोर...
जॉनी मेरा नाम, चोरी मेरा काम, राम और श्याम
धत्त बंडलबाज.... लड़की, मिलन, गीत गाता चल...
बेशरम.... प्यार का मौसम... बेशरम
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्... सत्यम् शिवम् सुन्दरम्...
इश्क इश्क इश्क, नॉटी बॉय, इश्क इश्क इश्क,
ब्लफ़ मास्टर
ये रास्ते हैं प्यार के, चलते चलते, मेरे हमसफ़र, हमसफ़र
दिल तेरा दीवाना, दीवाना, मस्ताना, छलिया, अंजाना,
पगला कहीं का...
आशिक, बेगाना, लोफ़र, अनाड़ी, बढ़ती का नाम दाढ़ी...
चलती का नाम गाड़ी, जब प्यार किसी से होता है... सनम..
जब याद किसी की आती है, जाने मन, सच, बन्धन, कंगन, चन्दन, झूला,
चन्दन, झूला, बन्धन झूला, दिल दिया दर्द लिया, झनक-झनक पायल बाजे
छम छमा छम, गीत गाया पत्थरों ने, सरगम,
सत्यम् शिवम् सुन्दरम्... सत्यम् शिवम् सुन्दरम्...
मेरे जीवनसाथी, प्यार किये जा, जवानी दीवानी,
खूबसूरत, जिद्दी, पड़ोसन, सत्यम् शिवम् सुन्दरम्
शब्दों के सरलतम जादूगर आनन्द बक्षी जी ने इसमें लगभग ६७ फ़िल्मों का नाम का उपयोग किया है। एक फ़ौजी बक्षी जी गीतों को आसान शब्दों में लिखने के उस्ताद थे और लक्ष्मी-प्यारे के साथ उनकी जोड़ी लाजवाब रही, क्योंकि उनकी आपसी समझ और इन महान संगीतकारों की मेलोडी पर गहरी पकड़ थी। “अच्छा तो हम चलते हैं, फ़िर कब मिलोगे, जब तुम कहोगे, कल मिलें या परसों, परसों नहीं नरसों, अ... कहाँ, वहीं, जहाँ कोई आता जाता नहीं...” ऐसे शब्दों पर भी लक्ष्मी-प्यारे ने कर्णप्रिय धुन बनाकर गाने को सुपरहिट करवा दिया। दूसरी ओर बक्षी जी ने “चिंगारी कोई भड़के..” और “आदमी मुसाफ़िर है, आता है जाता है..” जैसे गूढ़ार्थ वाले गीत भी लिखे हैं। जब “बॉबी” फ़िल्म के लिये राजकपूर नें इस त्रिमूर्ति को पहली बार बुलवाया था, तब कार में आनन्द बक्षी ने पूछा कि आखिर “बॉबी” लड़के का नाम है या लड़की का? लक्ष्मी-प्यारे ने कहा हमें भी नहीं मालूम, फ़िर भी आप गाना तो बनाओ और दस मिनट में ही बक्षी जी ने गीत तैयार कर दिया और कहा कि यदि बॉबी लड़का हुआ तो कह देंगे, “तेरे नैनों के झूले में सजनी बॉबी झूल जाये” और यदि बॉबी लड़की हुई तो “सजनी” को बदल कर “सैंया” कर देंगे...।