Janlokpal, Team Anna, Conspiracy in Anti-Graft Movement

Written by मंगलवार, 16 अगस्त 2011 17:46
जनलोकपाल आंदोलन, टीम अण्णा, और धूल-गुबार के पीछे छिपे सवाल (एक त्वरित माइक्रो-पोस्ट)…… 

“आज़ादी के दूसरे आंदोलन” कहे जाने वाले आंदोलन में स्थितियाँ बड़ी गड्ड-मड्ड हो चली है… अण्णा के कट्टर समर्थक यह मानने लगे हैं कि जो व्यक्ति अण्णा के साथ नहीं है वह भ्रष्टाचार के खिलाफ़ नहीं है, यानी यदि आपने अण्णा के विरोध में कुछ कहा तो आपको कांग्रेस के समर्थन में मान लिया जाएगा…। 

उधर संघ की धुर विरोधी शबनम हाशमी ने अण्णा की हँसी उड़ाते हुए कहा है कि "अण्णा एक बिगड़ैल बच्चे की तरह जिद कर रहे हैं कि मुझे तत्काल चॉकलेट चाहिए, जबकि चॉकलेट लाकर देने की एक निर्धारित प्रक्रिया है… अण्णा के आंदोलन को RSS के लोग आगे बढ़ा रहे हैं…" (कमाल है!!!)। 

जबकि कुछ दिन पहले ही अण्णा सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि उनका संघ से कोई सम्बन्ध नहीं है, संघ और भगवा ताकतों से उन्हें जोड़ना उनका "अपमान"(?) है। जब कल मैंने अण्णा को घेरे हुए स्वार्थी तत्वों के खिलाफ़ लिखा तो किसी ने भी प्रतिक्रिया में यह बताने की ज़हमत नहीं उठाई, कि आखिर NGOs को लोकपाल के दायरे में लाने में क्या बुराई है? (जो कि मेरी पोस्ट का मूल मुद्दा था) बस, लगे मेरी आलोचना करने…। 

आज टीवी पर सुबह से बड़े भूषण और छोटे भूषण वकील पिता-पुत्र छाए हुए हैं, ये साहब वही दलाल हैं जो पहले कारपोरेट अथवा भूमाफ़िया के खिलाफ़ जनहित याचिका लगाते हैं, फ़िर कोर्ट के बाहर जमीन का एक टुकड़ा लेकर "समझौता"(?) करवा देते हैं। परन्तु जैसा कि मैंने कहा, अभी "अण्णा गोली" का नशा ऐसा हावी है कि कोई कुछ समझना ही नहीं चाहता। जरा दो-चार दिन में यह धूल-गुबार बैठ जाए, फ़िर इस आंदोलन के पीछे छिपे असली चेहरे सामने आने लगेंगे… यदि इस आंदोलन का फ़ायदा उठाने के लिए, भाजपा इसे पीछे से हवा दे भी रही है तो विपक्ष होने के नाते यह उसका काम ही है, परन्तु ऐसा लगता है कि इस हो-हल्ले की आड़ लेकर राहुल बाबा की ताजपोशी कर दी जाएगी, एक शानदार "इमेज" के साथ। (सोचिए क्या जोरदार सीन होगा यदि राहुल गाँधी स्वयं अपने हाथों से अण्णा हजारे को जूस पिलाएं… चहुँओर जयजयकार)

जो बात मैं काफ़ी समय से कहता आ रहा हूँ कि इस आंदोलन की “परिणति” क्या होगी… उसका समय अब धीरे-धीरे नज़दीक आ रहा है… चन्द विकल्प देखिये जैसे कि-

1) यदि अण्णा को गिरफ़्तार ही रखा जाए… या कुछ दिन बाद छोड़ा जाए, तो फ़िर आगे क्या? फ़िर से आंदोलन या कांग्रेस से बातचीत? कुछ भी स्पष्ट नहीं…

2) एक रास्ता यह भी है कि सरकार अण्णा की सारी माँगें मान ले और जैसा बिल अण्णा चाहते हैं वैसा का वैसा संसद में पेश कर दे (लेकिन क्या ऐसा कोई बिल संसद से पास हो पाएगा?

3) मनमोहन इस्तीफ़ा दे दें, उनकी जगह कोई और प्रधानमंत्री बन जाए (हालांकि कारपोरेट लॉबी आसानी से ऐसा होने नहीं देगी, और हो भी जाए तब भी कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा)।

4) सरकार इस्तीफ़ा देकर आपातकाल लगा दे, (लेकिन सोनिया अमेरिका में बैठी हैं तो इतना बड़ा निर्णय लेना आसान नहीं होगा)।

5) मध्यावधि चुनाव हों, तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो (भाजपा यही चाहेगी), लेकिन भाजपा सत्ता में लौट भी आए तो न तो जनलोकपाल बिल और न ही भ्रष्टाचार पर कोई फ़र्क पड़ने वाला है?

कुल मिलाकर बात यह है कि अण्णा का आंदोलन बगैर किसी राजनैतिक समर्थन के "एक बिना पतवार वाली नाव" के समान है… लोकतन्त्र और समाज में कोई बड़ा बदलाव तभी आ सकता है, जब या तो स्वयं अण्णा (या रामदेव बाबा) अपना स्वतंत्र राजनैतिक दल बनाएं और चुनाव लड़ें (यह काम इतना आसान और जल्दी होने वाला नहीं है, इसमें समय लगेगा), या फ़िर ये दोनों एक होकर किसी स्थापित राजनैतिक दल का आधार लेकर "परिवर्तन" करें… परन्तु चूंकि अण्णा हजारे और उनकी “टीम”(?) को संघ-भाजपा-हिन्दुत्व इत्यादि से "एलर्जी" है, तो गैर-भाजपा विपक्ष वाले अण्णा का साथ दें (यह भी मुश्किल लगता है, क्योंकि लालू-जयललिता जैसे नेता अण्णा को नेता क्यों मानेंगे?) देखा आपने… कैसी उलझी हुई स्थिति है।

किसी राजनैतिक ठोस आधार और समर्पित कार्यकर्ताओं के बिना कुछ भी बदलने वाला नहीं है, यह आंदोलन कहीं दिशाहीन, नैराश्यपूर्ण और अराजकता की ओर न चला जाए… खासकर तब तक, जब तक कि इस आंदोलन के पीछे "छिपे असली मास्टरमाइण्ड" खुलकर सामने नहीं आते…। 

फ़िर भी फ़िलहाल कुछेक पक्ष अपनी स्थिति साफ़-साफ़ बना चुके हैं, जैसे कि -

1) अण्णा के अंध-समर्थक (जो भूषण जोड़ी और अग्निवेश जैसों तक के खिलाफ़ भी कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं)

2) अण्णा के समर्थक, लेकिन “दिल से” कांग्रेसी (ये लोग चाहते हैं कि अण्णा को श्रेय तो मिले, लेकिन इस आंदोलन का फ़ायदा संघ-भाजपा परिवार को न मिलने पाए, सधी हुई भाषा में आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन साथ-साथ संघ परिवार को भी निशाना बनाते हुए)

3) अण्णा के विरोधी, लेकिन भ्रष्टाचार के भी विरोधी (जो यह समझ-बूझ रहे हैं कि इस आंदोलन के पीछे कोई न कोई चालबाजी अवश्य है, जो जल्दी ही सामने आएगी)…

अग्निवेश की विभिन्न स्थानों पर उपस्थितियों और उसके बयानों पर भी गौर से निगाह रखनी होगी (उसे फ़िलहाल गिरफ़्तार नहीं किया गया है), साथ ही जिस प्रकार अण्णा हजारे को बड़े ही प्यार-मोहब्बत से गिरफ़्तार किया गया एवं पुलिस वाले बाद में भी समर्थकों की भीड़ से भी नर्मी से पेश आए (जबकि बाबा रामदेव समर्थकों पर आधी रात को पुलिसिया कहर बरपाया गया था), उसने रामदेव समर्थकों के मन में आशंकाएं पैदा कर दी हैं। सोनिया गाँधी का ऐसे महत्वपूर्ण मौके पर देश से बाहर रहना, सभी घटनाक्रमों और बयानों से राहुल गाँधी का दूरी बनाए रखना महज संयोग नहीं है… क्योंकि सोनिया को अण्णा के आंदोलन की तारीख के बारे में एक माह पहले से ही पता था और राहुल गाँधी के साथ जो चार खास "दरबारियों" की टीम बनाई गई थी वह भी चैनलों और अखबारों से गायब है, आंदोलन की सारी तपिश मनमोहन सिंह, चिदम्बरम और कपिल सिब्बल जैसे बाकी के गवैये झेल रहे हैं।

अब एक और काल्पनिक दृश्य के बारे में सोचें (जो कभी भी हकीकत में बदल सकता है) कि अचानक सोनिया गाँधी अमेरिका से वापस आती हैं, त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति तो हैं ही… भारत आते ही सोनिया गाँधी (या राहुल गाँधी) तिहाड़ पहुँचते हैं… अण्णा को जूस पिलाते हैं… सारे भाण्ड चैनलों को "इशारा" मिल चुका होगा कि युवराज की ताज़पोशी की घड़ी आ गई है… तड़ से मनमोहन सिंह का इस्तीफ़ा होता है और यूपीए के पाप का घड़ा अपने सिर पर लिए मनमोहन को घर भेज दिया जाएगा, युवराज गद्दीनशीन होंगे… त्याग-बलिदान के साथ-साथ सोनिया जी "लोकतन्त्र का विनम्र रखवाला" भी बन जाएंगी। (बड़ी भयानक कल्पना है, है ना!!!) 


खैर…… अभी तो पहला ही दिन है, आगे-आगे देखते हैं क्या होता है। कहने का मतलब ये कि इस आंदोलन में कई पक्ष अपनी-अपनी गोटियाँ फ़िट करने की जुगाड़ मे हैं, कुछ खुल्लमखुल्ला सामने हैं जबकि सूक्ष्म चालबाजियों के कर्ताधर्ता धूल का गुबार बैठने के बाद दिखाई देंगे… आम जनता सोच रही है कि “रामराज्य” बस आने ही वाला है। जबकि मैं इस धूल-गुबार के बैठने और माहौल के स्थिर होने का इन्तज़ार कर रहा हूँ ताकि चेहरे साफ़ दिखाई दें…
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I am a Cyber Cafe owner by occupation and residing at Ujjain (MP) INDIA. I am a English to Hindi and Marathi to Hindi translator also. I have translated Dr. Rajiv Malhotra (US) book named "Being Different" as "विभिन्नता" in Hindi with many websites of Hindi and Marathi and Few articles. 

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