जो काम रीढ़विहीन नेता नहीं कर पाये, IPL के फ़्रेंचाइज़ी ने कर दिखाया…... IPL-3, Pakistani Cricket Players, India-Pakistan Relations

Written by शुक्रवार, 22 जनवरी 2010 12:42
IPL नामक बाजीगरीनुमा भौण्डा तमाशा मुझे पहले एपीसोड से ही पसन्द नहीं था, इसके दूसरे एपीसोड के बाद, जबकि इसे अपने देश से बाहर आयोजित किया गया तब भी इसके प्रति कभी खास रुचि जागृत नहीं हुई। कितनी ही चीयरलीडर्स आई-गईं, लेकिन कभी भी शान्ति से बैठकर IPL के 4 ओवर देखने की भी इच्छा नहीं हुई।

इसीलिये जब IPL के तीसरे संस्करण की बोलियाँ लगाने सम्बन्धी खबर पढ़ी तब कोई उत्सुकता नहीं जागी, कोई भी धनपति किसी भी खिलाड़ी को खरीदे-बेचे मुझे क्या फ़र्क पड़ने वाला था, नीता अम्बानी, प्रीति जिण्टा से हारे या जीते मुझे अपनी नींद खराब क्यों करना चाहिये? वैसा ही सब कुछ आराम से चल रहा था, लेकिन खिलाड़ियों की नीलामी के अगले दिन जब यह सुखद खबर आई कि टी-20 विश्वकप के “मैन ऑफ़ द सीरिज” शाहिद अफ़रीदी समेत सभी पाकिस्तानी खिलाड़ियों को कोई खरीदार नहीं मिला, तब मुझे बड़ा ही सुकून मिला। मन में तत्काल विचार आया कि 26/11 के हमले के बाद हमारे बतोलेबाज और बयानवीर नेताओं ने जो काम नहीं किया था, उसे इन धनपतियों ने मजबूरी में ही सही, कर दिखाया है।

यह काम बहुत पहले हो जाना चाहिये था, लेकिन “देर आयद दुरुस्त आयद”, पाकिस्तान को उसकी “सही जगह” दिखाने की कम से कम एक रस्म निभा दी गई है, और यह काम “धंधेबाजी” में माहिर हमारे क्रिकेटरों, उन्हें पालने वाले धनकुबेरों ने भले ही मजबूरी में किया हो, इसका स्वागत किया ही जाना चाहिये। यह कदम, हमारे “सेकुलर मीडिया” द्वारा खामख्वाह पाकिस्तान से दोस्ती के नाम पर चलाये जा रहे नौटंकीनुमा हाईप और बाल ठाकरे द्वारा धमकी नहीं दिये जाने के बावजूद हो गया, इसलिये ये और भी महत्वपूर्ण है। अब पाकिस्तानी खिलाड़ियों, अभिनेताओं, बिजनेसमैनों के खैरख्वाह अपने कपड़े फ़ाड़-फ़ाड़कर भले ही रोते फ़िरें, लेकिन भारत की करोड़ों जनता के मनोभावों को इस काम से जो मुखरता मिली है, उसने कई दिलों पर मरहम लगाया है, वरना यही अफ़रीदी, जो गौतम गम्भीर को धकियाकर उसे मां-बहन की गाली सुनाकर भी बरी हो जाता था, और हम मन मसोसकर देखते रह जाते थे, अब उसका मुँह सड़े हुए कद्दू की तरह दिखाई दे रहा है। सड़क चलते किसी भी क्रिकेटप्रेमी से इस बारे में पूछिये, वह यही कहेगा कि अच्छा हुआ *&;$*^*$*# को इधर नहीं खेलने दे रहे।

पाकिस्तान में लोग उबाल खा रहे हैं, लेकिन कोई इस बात पर आत्ममंथन करने को तैयार नहीं है कि मुम्बई हमले के बाद उनकी सरकार ने क्या किया अथवा इन रोने-धोने वालों ने पाकिस्तानी सरकार पर इसके लिये क्या दबाव बनाया? इधर भारत में भी विधवा प्रलाप शुरु हो चुका है, जिसमें कुछ “सेकुलर” शामिल हैं जबकि कुछ (ज़मीनी हकीकत से कटे हुए) “बड़ा भाई-छोटा भाई” वाली गाँधीवादी विचारधारा के लोग हैं। जबकि IPL में पाकिस्तानी खिलाड़ियों के न खेलने से क्रिकेट का कोई नुकसान नहीं होने वाला है, किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता है उनके न होने से।

अब पाकिस्तानी खिलाड़ियों के “Humiliation” और अपमान की बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं, लेकिन यही लोग उस समय दुबककर बैठ जाते हैं जब शारजाह में संजय मांजरेकर को अंधेरे में खेलने पर मजबूर किया जाता है, तब इन्हें मांजरेकर की आँखों के आँसू नहीं दिखाई देते? अकीब जावेद जैसा थर्ड क्लास गेंदबाज जब शारजाह में 5-5 भारतीय खिलाड़ियों को LBW आउट ले लेता है तब किसी का मुँह नहीं खुलता, जब अन्तिम गेन्द पर छक्का मारकर जितवाने वाले जावेद मियांदाद को दाऊद इब्राहीम सोने की तलवार भेंट करते हैं तब सारे सेकुलर देशभक्त घर में घुस जाते हैं? ऐसा क्यों भाई, क्या खेलभावना के नाम पर जूते खाते रहने का ठेका सिर्फ़ भारतीय खिलाड़ियों ने ही ले रखा है? जो लोग “खेलों में राजनीति का दखल नहीं होना चाहिये…” टाइप की आदर्शवादी बातें करते हैं, वे इमरान खान और जिया-उल-हक के पुराने बयान भूल जाते हैं।

भले ही IPL-3 में फ़्रेंचाइज़ी ने यह निर्णय मजबूरी में लिया हो, धंधे में रिस्क न लेने की प्रवृत्ति से लिया हो, अथवा एक विशेष विज्ञापन “प्रोपेगैण्डा” के तहत किया गया हो, लेकिन जो काम भारत के रीढ़विहीन नेताओं को बहुत पहले कर देना चाहिये था, वह जाने-अनजाने इसके जरिये हो गया है। टाइम्स और जंग अखबार द्वारा शुरु की गई “अमन की आशा” नौटंकी"  की भी इस एक कदम से ही हवा निकल गई है।

होंगे पाकिस्तानी खिलाड़ी टी-20 के विश्व चैम्पियन, हमें क्या? जब IPL एक “तमाशा” है, तब इसमें पाकिस्तान के 2-4 खिलाड़ी नहीं खेलें तो कोई तूफ़ान नहीं टूटने वाला भारतीय क्रिकेट पर, लेकिन कम से कम एक “संदेश” तो गया पाकिस्तान में। जो लोग इस थ्योरी पर विश्वास करते हैं कि “स्थिर, शान्त और विकसित पाकिस्तान भारत के लिये अच्छा दोस्त साबित होगा”, वे लोग तरस खाने लायक हैं। 1948 से अब तक 60 साल में जितने घाव इस गन्दे देश ने भारत के सीने पर दिये हैं इसके लिये उनके पेट पर जहाँ-जहाँ और जितनी लातें जमाई जा सकती हों, निरन्तर जमाना चाहिये। जिस मुल्क के बाशिंदे कोरिया से आई चायपत्ती की चाय पीते हों, चार सौ रुपए किलो अदरक खरीदते हों, पांच हजार में जिन्हें साइकिल की सवारी नसीब होती हो, सोलह रुपए की अखबार व पिच्चासी रुपए में पत्रिका खरीदते हों, सोचना “उन्हें” चाहिए कि भारत से दोस्ती का कितना फायदा हो सकता है, बार-बार हम ही क्यों सोचें?
==========

नोट – ऑस्ट्रेलिया के साथ ऐसा कोई “सबक सिखाने वाला” कदम कब उठाया जाता है यह देखना अभी बाकी है… या हो सकता है कि “यूरेनियम” के लालच में फ़िलहाल भारतीयों को पिटने ही दिया जाये उधर… क्योंकि हमारे लिये “धंधा” अधिक महत्वपूर्ण है, राष्ट्रीय स्वाभिमान से…

IPL-3 Auction, India Pakistan Cricket Boards, Pakistani Players and IPL, Shahid Afridi, Attack on Indians in Australia, Aman ki Asha, Indo-Pak Friendship, आईपीएल 3 नीलामी, आईपीएल और पाकिस्तानी खिलाड़ी, बीसीसीआई और पीसीबी, शाहिद अफ़रीदी, भारतीयों पर ऑस्ट्रेलिया में हमले, भारत-पाक दोस्ती और व्यापार, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
Read 2482 times Last modified on शुक्रवार, 30 दिसम्बर 2016 14:16
Super User

 

I am a Blogger, Freelancer and Content writer since 2006. I have been working as journalist from 1992 to 2004 with various Hindi Newspapers. After 2006, I became blogger and freelancer. I have published over 700 articles on this blog and about 300 articles in various magazines, published at Delhi and Mumbai. 


I am a Cyber Cafe owner by occupation and residing at Ujjain (MP) INDIA. I am a English to Hindi and Marathi to Hindi translator also. I have translated Dr. Rajiv Malhotra (US) book named "Being Different" as "विभिन्नता" in Hindi with many websites of Hindi and Marathi and Few articles. 

www.google.com