Intellectual Gang against Narendra Modi (Reference : Wharton Business School)

Written by गुरुवार, 18 अप्रैल 2013 12:43


नरेंद्र मोदी के खिलाफ “अंतर्राष्ट्रीय बुद्धिजीवी गैंग” (सन्दर्भ : व्हार्टन स्कूल प्रकरण)  


हाल ही में नरेंद्र मोदी को अमेरिका के व्हार्टन बिजनेस स्कूल में एक व्याख्यान देने हेतु आमंत्रित किया गया था. लेकिन अंतिम समय पर चंद मुठ्ठी भर लोगों के विरोध की वजह से नरेंद्र मोदी का व्याख्यान निरस्त कर दिया गया. हालांकि नरेंद्र मोदी मूर्खतापूर्ण अमरीकी वीसा नीति के कारण, सशरीर तो अमेरिका जाने वाले नहीं थे, लेकिन वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अपनी बात कहने वाले थे. विषय था “गुजरात का तीव्र आर्थिक विकास माडल”.

व्हार्टन बिजनेस स्कूल ने स्वयं अपने छात्रों और शिक्षकों की मांग पर नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया था. लेकिन पश्चिमी देशों में कार्यरत कुछ NGOs और कुछ “कोहर्रमवादी बुद्धिजीवी”, जिनकी सुई आज भी २००२ के गुजरात दंगों पर ही अटकी हुई है, उन्होंने नरेंद्र मोदी के प्रति अपनी घृणा को बरकरार रखते हुए अपने “जेहादी नेटवर्क” के जरिए व्हार्टन स्कूल पर ऐसा दबाव बनाया कि उन्होंने नरेंद्र मोदी का व्याख्यान रद्द कर दिया. जल्दी ही इस “तथाकथित बुद्धिजीवी” गैंग का खुलासा भी हो गया, और उनके चेहरे भी बेनकाब हो गए जिन्होंने विदेशी पैसों के बल पर नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक निरंतर मुहिम चला रखी है. आईए देखें कि ये दागदार चेहरे कौन-कौन से हैं, कुछ ही समय में आप जान जाएंगे कि इस “गैंग” के आपसी संपर्क-सम्बन्ध एवं इनके कुत्सित इरादे क्या हैं...


कैलीफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ इंटेग्रल स्टडीज़ (CIIS) की एक प्रोफ़ेसर अंगना चटर्जी ने नरेंद्र मोदी को अमेरिकी वीसा देने के खिलाफ मुहिम चलाने हेतु एक समूह की स्थापना की.  २०११ में अंगना चटर्जी और उसके पति को CIIS से बर्खास्त कर दिया गया, क्योंकि विवि प्रशासन को उनके खिलाफ चार ठोस सबूत मिल चुके थे, जिसमें विद्यार्थियों की गोपनीयता भंग करना, प्रशासन-विद्यार्थी और शिक्षकों के प्रति आपसी पेशेगत दुर्भावना एवं अनैतिकता, शिक्षण कार्य के लिए प्राप्त फण्ड के पैसों में बेईमानी व गबन तथा दिए गए असाइनमेंट और शिक्षण कार्य को समय पर पूरा न करते हुए अन्य कामों में ध्यान लगाना जैसे आरोप शामिल थे. पूरी जाँच के बाद दोनों को बर्खास्त कर दिया गया था. चूँकि अंगना चटर्जी और उसका पति गबन और काम के प्रति बेईमानी करते रंगे हाथों पकडे जा चुके थे, इसलिए इस बार २०१३ में नरेंद्र मोदी का विरोध करने में अंगना चटर्जी खुद सामने नहीं आई. मोदी के विरोध में व्हार्टन स्कूल को दिए गए ज्ञापन पर अंगना चटर्जी के हस्ताक्षर नहीं हैं. इस बार उसने अपनी “गैंग” के दूसरे सदस्यों को इस काम के लिए आगे किया और खुद परदे के पीछे से सूत्र संचालन करती रही.

व्हार्टन स्कूल वाले ज्ञापन पर जिन तीन प्रमुख “बुद्धिजीवियों”(??) के हस्ताक्षर हैं, वे हैं... अनिया लूम्बा, तोर्जो घोष एवं अंजली अरोंदेकर, जिनके साथ मिलकर अंगना चटर्जी ने २०१२ में एक पुस्तक प्रकाशित की थी. जब २०१० में आर्थिक अनियमितताओं के चलते अंगना चटर्जी के पति को भारत सरकार ने देशनिकाला दिया था, तब भी इसके विरोध में दिए गए ज्ञापन पर प्रमुख हस्ताक्षर अनिया लूम्बा के ही हैं. अंगना के पति के समर्थन व नरेंद्र मोदी के विरोध में २०१० और २०१३ में दिए गए ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाले भी यही लोग हैं, जैसे अंजली अरोंदेकर, पिया चटर्जी, सुनयना मायरा, सिमोना साहनी और सबीना साहनी इत्यादि.

हाल ही में किसी व्यक्ति ने अंगना चटर्जी और गुलाम नबी फाई के आपसी रिश्तों को उजागर करने वाले विकीपीडिया पेज पर बदलाव करके उसमें से अंगना चटर्जी का नाम निकाल दिया है. (जैसा कि सभी जानते हैं, विकीपीडिया एक मुक्त स्रोत है, इसलिए कोई भी व्यक्ति उसमें मनचाहे बदलाव कर सकता है). ज्ञातव्य है कि गुलाम नबी फाई, पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी ISI का जासूस है, जो पाकिस्तान से पैसा लेकर कश्मीर के बारे में दुष्प्रचार करने हेतु बड़े-बड़े पाँच सितारा सेमीनार आयोजित करवाता था. जुलाई २०११ में गुलाम नबी फाई को अमेरिकी जाँच एजेंसी एफबीआई ने पाकिस्तान की ISI से मिले हुए ३५ लाख डालर छुपाने के जुर्म में दोषी पाया और षड्यंत्र रचने व टैक्स चोरी के इलज़ाम में जिसे हाल ही में अमेरिका ने जेल में डाल दिया है. दो मिनट के गूगल सर्च से कोई भी जान सकता है कि किस प्रकार फाई और अंगना चटर्जी भारत के अलगाववादी तत्वों को गाहे-बगाहे मदद करते रहे हैं. यही अंगना चटर्जी, नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के विरोध की मुख्य सूत्रधार रही है.


(लाल गोल घेरे में - गौतम नवलखा) 

नरेन्द्र मोदी के खिलाफ हस्ताक्षर करने वाले अधिकाँश बुद्धिजीवियों का सम्बन्ध भारत के माओवादी समूहों अथवा पाकिस्तानी अलगाववादियों के साथ रहा है. उदाहरण के लिए डेविड बर्सामिया नाम के एक शख्स को सितम्बर २०११ में भारत में अवैध रूप से रहने का दोषी पाए जाने पर भारत से निकाल बाहर करने का आदेश दिया गया. डेविड को भारत में संदिग्ध गतिविधियों में भी लिप्त पाया गया था. लेकिन उसके देशनिकाले के खिलाफ ज्ञापन देने वालों में भी इसी गैंग के अंगना चटर्जी, आनिया लूम्बा और सुवीर कौल इत्यादि लोग शामिल थे. नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा और देशविरोधी डेविड बर्सामिया के देशनिकाले संबंधी पत्रों, दोनों पर हस्ताक्षर करने वालों में तेरह नाम एक जैसे हैं. ऊपर जो तीन नाम दिए हैं, उनके अलावा नरेंद्र मोदी का विरोध करने वालों के नाम और उनके कर्म भी जान लीजिए... दो हस्ताक्षरकर्ता हैं – दाऊद अली और कैथलीन हाल – इन दोनों बुद्धिजीवियों ने मार्च २०११ में यूएस पेन में एक सेमीनार आयोजित किया था, जिसका विषय था “माओवाद एवं भारत में वामपंथ की स्थिति”. इस कांफ्रेंस में प्रसन्नजीत बैनर्जी और गौतम नवलखा जैसे कई वक्ताओं को आमंत्रित किया गया था, जो खुलेआम नक्सलवाद को समर्थन देते हैं. 


अमेरिका द्वारा गुलाम मोहम्मद फाई को रंगे हाथों पकडे जाने और उसके ISI लिंक साबित होने के बावजूद, गौतम नवलखा यह बयान दे चुके हैं कि “फाई साहब बहुत भले व्यक्ति हैं और उनकी “एक गलती”(?) को  बढाचढा कर पेश किया गया है... नवलखा आगे कहते हैं कि मुझे फाई साहब के साथ काम करने में गर्व महसूस होता है तथा उनके द्वारा आयोजित सेमिनारों (अर्थात भारत की कश्मीर नीति के विरोध) में भाग लेना बड़ा ही खुशनुमा अनुभव है...”. (गौतम नवलखा वही हैं, जिन्होंने हर्ष मंदर और अरुंधती रॉय के साथ, अफज़ल गूरू को माफी दिलवाने के लिए अभियान पर भी हस्ताक्षर किए थे). स्वाभाविक है कि नक्सलवाद समर्थक और ISI समर्थकों का आपस में तगड़ा अंतर्संबंध है. उल्लेखनीय है कि “ग्लोबल टेरर डाटाबेस” के अनुसार CPI-माओ भारत का सबसे बड़ा आतंकवादी समूह है, जिसने भारत के गरीबी से ग्रस्त प्रदेशों में अब तक हजारों हत्याएं करवाई हैं. (http://blogs.cfr.org/zenko/2012/11/19/the-latest-in-tracking-global-terrorism-data/)

दाऊद अली, यूपेन्न के साउथ एशिया स्टडीज़ विभाग का अध्यक्ष है, दक्षिण एशिया संबंधी इस विभाग में पढाने वाले अन्य बुद्धिजीवी हैं – आनिया लूम्बा, तोर्जो घोष, सुवीर कौल और कैथलीन हाल. मजे की बात यह है कि माओवाद और नक्सलवाद का समर्थन करने वाले यही बुद्धिजीवी(??) इजराइल के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र को दिए गए ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वालों में भी शामिल हैं, क्योंकि फाई “साहब”(?) ने उन्हें ऐसा करने को कहा था. ये बात अलग है कि यह “तथाकथित संवेदनशील” बुद्धिजीवी पाकिस्तान में ईसाईयों पर होने वाले हमलों पर चुप्पी साध लेते हैं, पाकिस्तान में अहमदिया और शियाओं के हत्याकांड इन्हें दिखाई नहीं देते, पाकिस्तान में हिन्दू आबादी १९५१ में २२% से घटकर २०११ में सिर्फ २% रह गई, लेकिन इन बुद्धिजीवियों ने इस बारे में एक शब्द भी नहीं कहा है... स्वाभाविक है कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ याचिका दायर करना हो, अथवा गबन के आरोपी अंगना चटर्जी के पति या संदिग्ध गतिविधियों वाले डेविड बर्सामिया के समर्थन में ज्ञापन देना हो, यह “बुद्धिजीवी गैंग”, गुलाम फाई (यानी ISI) के निर्देशों का पालन करती है, यह गैंग पाकिस्तान के इस्लामिक समूहों अथवा दंतेवाडा में ७६ सीआरपीएफ जवानों की हत्या के खिलाफ कोई ज्ञापन क्यों देगी??

गुलाम नबी फ़ई के पाँच सितारा होटलों में आयोजित होने वाले सेमिनार, कान्फ़्रेंस और गोष्ठियों में जाने वालों की लिस्ट देखिए, कैसे-कैसे लोग भरे पड़े हैं, और इन्हीं में से अधिकतर बुद्धिजीवी UPA-2 की नीतियों, विदेश नीतियों, कश्मीर निर्णयों को प्रभावित करते हैं - हरीश खरे (प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार), रीता मनचन्दा, वेद भसीन (कश्मीर टाइम्स के प्रमुख), हरिन्दर बवेजा (हेडलाइन्स टुडे), प्रफ़ुल्ल बिदवई (वरिष्ठ पत्रकार), अंगना चटर्जी (इनका ज़िक्र ऊपर किया जा चुका है), कमल मित्रा के अलावा संदीप पाण्डेय, अखिला रमन… जैसे एक से बढ़कर एक “बुद्धिजीवी” शामिल हैं। इन्हीं में से अधिकांश बुद्धिजीवी, हमें सेकुलरिज़्म और साम्प्रदायिकता का मतलब समझाते नज़र आते हैं, इन्हीं बुद्धिजीवियों के लगुए-भगुए अक्सर हिन्दुत्व और नरेन्द्र मोदी को गरियाते मिल जाएंगे, और पिछले 10 साल में कश्मीर को “विवादित क्षेत्र” के रूप में प्रचारित करने,  तथा भारतीय सेना के बलिदानों को नज़रअंदाज़ करके अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बार-बार सेना के “कथित दमन” को हाइलाईट करने में यह गैंग सदा आगे रही है। ये वही “गैंग” है जिसे कश्मीर के विस्थापित पंडितों से ज्यादा फ़िलीस्तीन के मुसलमानों की चिन्ता रहती है…  इनके अलावा जेएनयू एवं कश्मीर विश्वविद्यालय के कई प्रोफ़ेसर भी गुलाम नबी फ़ई द्वारा आयोजित “मजमों” में शामिल हो चुके हैं।

इन सारे बुद्धिजीवियों(??) के आपसी लिंक और नेटवर्क बहुत गहरे हैं... सभी के आपस में कोई न कोई व्यावसायिक अथवा स्वार्थी सम्बन्ध जरूर हैं.. यानी "तुम मुझे कांफ्रेंस में बुलवाओ, मैं तुम्हारी पुस्तक में एक लेख लिख दूँगा, फिर हम किसी ज्ञापन पर हस्ताक्षर करके किसी NGO से पैसा ले लेंगे और आपस में बाँट लेंगे... तुम मेरी किताब प्रकाशित करवा देना, मैं तुम्हारे पक्ष में माहौल बनाने में मदद करूँगा..." इस प्रकार की साँठगाँठ से इस बुद्धिजीवी गैंग का काम, नाम और दाम चलता है. 
 
बात साफ़ है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में तीन-तीन बार जनता द्वारा चुने गए एक मुख्यमंत्री के खिलाफ, निहित स्वार्थी बुद्धिजीवी गैंग द्वारा लगातार एक “नकारात्मक प्रोपेगैंडा” चलाकर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को सफलतापूर्वक बेवकूफ बना दिया गया है.  विश्व के दो विशाल लोकतंत्र, अमेरिका और भारत, दोनों को ही मुठ्ठी भर पाखण्डियों एवं कट्टरवादियों ने अपनी अकादमिक घुसपैठ के चलते मूर्ख बना दिया है. हालांकि इस तरह का राजनैतिक नकारात्मक प्रचार दुनिया के लगभग प्रत्येक देश में चलता है.

२००८ में एक राजनैतिक बहस के दौरान ओबामा ने कहा था कि, “यदि आप अपने समर्थक नहीं जोड़ सकते, तो कुछ ऐसा करो कि विपक्षी के समर्थक उसे छोड़कर भाग खड़े हों...” कुछ ऐसा ही नरेंद्र मोदी के साथ किया जा रहा है. दुर्भाग्य से मोदी के खिलाफ यह नकारात्मक प्रचार लंबा खिंच गया है, और चूँकि भारत में “सेकुलरिज्म” नाम का एक “एड्स” फैला हुआ है, इसलिए सामान्य बुद्धिजीवी इस बात पर विचार करने के लिए भी तैयार नहीं है कि पिछले १० वर्षों में गुजरात में एक भी बड़ा दंगा नहीं हुआ... २०११ में सृजित होने वाले नए रोजगारों में गुजरात का हिस्सा ७२% रहा....

वामपंथियों, सेकुलरों और कथित “बुद्धिजीवियों”(?) की इस गैंग द्वारा नरेंद्र मोदी के खिलाफ सतत नकारात्मक प्रचार १० साल से जारी है, जबकि सीबीआई, सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश में काम कर रहे विशेष जाँच दल और तमाम आयोगों के बावजूद नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक FIR तक नहीं है. अब यह तो आपको विचार करना है कि इन बुद्धिजीवियों पर भरोसा किया जाए अथवा गुजरात के जमीनी वास्तविक विकास पर...

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