Hindu Saints on Target - Conspiracy of Church and Secularists
Written by Super User शुक्रवार, 08 नवम्बर 2013 14:04
सिर्फ हिन्दू संत ही निशाने पर क्यों??...
प्राचीनकाल में राजघराने हुआ करते थे, ज़ाहिर है उन राजघरानों के कई काले
कारनामे भी हुआ करते थे. उन राजघरानों की परम्परा के अनुसार “एक परिवार” ही जनता पर अनंतकाल तक शासन किया करता था.
जब कभी इन राजघरानों अथवा उनके अत्याचारों के खिलाफ किसी ने आवाज़ उठाई या तो उसे
दीवार में चुनवा दिया जाता था, अथवा हाथी के पैरों तले रौंद दिया जाता था.... आज
चाहे ज़माना थोड़ा बदल क्यों न गया हो, लेकिन “राजघरानों” की मानसिकता अभी भी वही है, आधुनिक कालखंड में
बदलाव सिर्फ इतना आया है कि अब विरोधियों को जान से मारने की
आवश्यकता कम ही पड़ती है, उन से
निपटने और “निपटाने” के नए-नए तरीके ईजाद हो गए हैं.
सारी दुनिया
में यह बात मशहूर है कि “चर्च” संस्था (या जिसे हम “मिशनरी” कहें, एक ही बात है), अपने विरोधियों को खत्म करने के लिए
षडयंत्र और चालबाजियाँ करने में माहिर है. चर्च के “गुर्गे” (जो पूरी
दुनिया में फैले हुए हैं) अपने “लक्ष्य” के रास्ते में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को
येन-केन-प्रकारेण समाप्त करने में विश्वास रखते हैं. वेटिकन को अपना “धर्मांतरण मिशन” जारी रखने के लिए निर्बाध रास्ता चाहिए होता है,
साथ ही चर्च “दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है” वाले सिद्धांत पर काम करते हुए उस प्रत्येक संस्था
से गाहे-बगाहे हाथ मिलाता, सहयोग करता चलता है जो उसके उद्देश्यों की पूर्ति में
सहायक होते हैं, फिर चाहे वे नक्सली हों या बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ...
जैसा कि सभी जानते हैं, शंकराचार्य को हिन्दू धर्म में एक उच्च स्थान
प्राप्त होता है. शंकराचार्य की पदवी कोई साधारण पदवी नहीं होती, और हिंदुओं के मन
में उनके प्रति आदर-सम्मान से अधिक श्रद्धाभाव होता है. लेकिन जब शंकराचार्य जैसे
ज्ञानी और संत व्यक्ति को कोई सरकार सिर्फ आरोपों के आधार पर बिना किसी जाँच के,
आधी रात को आश्रम से उठाकर जेल में ठूँस दे तो आम हिन्दू को कैसा महसूस होगा?
तमिलनाडु में कांची कामकोटि के शंकराचार्य के साथ यही किया गया था. बगैर कोई मौका
या सफाई दिए ही शंकराचार्य जैसी हस्ती को एक मामूली जेबकतरे की तरह उठाकर जेल में
बंद कर दिया जाता है...
“कट” टू सीन २ –
उड़ीसा के घने जंगलों में मिशनरी की संदिग्ध और धर्मांतरण की गतिविधियों के खिलाफ
जोरदार अभियान चलाने वाले तथा आदिवासियों को चर्च के चंगुल में जाने से बचाने में
प्रमुख भूमिका निभाने वाले स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या हो जाती है.
हालाँकि हत्या होने से पहले स्वामी जी लगातार कई बार उनको मिली हुई धमकियों के
बारे में प्रशासन को बताते हैं, लेकिन सरकार कोई ध्यान नहीं देती... कुछ नकाबपोश
आधी रात को आते हैं और एक ८२ वर्षीय वयोवृद्ध संन्यासी को गोली मारकर चलते बनते
हैं...
“कट” टू सीन ३ –
कर्नाटक में सनातन धर्म की अलख जगाए रखने तथा चर्च/मिशनरी के बढ़ते क़दमों को थामने
में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ओजस्वी युवा संत नित्यानंद सरस्वती को एक
अभिनेत्री के साथ अंतरंग दृश्यों का वीडियो “लीक” किया जाता है.
तत्काल भारत का सेकुलर मीडिया उछल-उछलकर नित्यानंद सरस्वती के खिलाफ एक सुनियोजित
अभियान चलाने लगता है. TRP का भूखा, और
सत्ता प्रतिष्ठानों द्वारा फेंकी हुई हड्डी चबाने में माहिर यह मीडिया अपना “काम”(???) बखूबी
अंजाम देता है. नित्यानंद सरस्वती को जमकर बदनाम किया जाता है...
“कट” टू सीन ४ –
दिल्ली का रामलीला मैदान, सैकड़ों स्त्री-पुरुष-वृद्ध-बच्चे आधी रात को थक-हारकर
सोए हुए हैं. अचानक दिल्ली पुलिस उन पर लाठियाँ और आँसू गैस के साथ टूट पड़ती है.
बाबा रामदेव को गिरफ्तार कर लिया जाता है. उनके विश्वस्त सहयोगी बालकृष्ण के खिलाफ
ढेर सारे मामले दर्ज कर लिए जाते हैं. यहाँ भी मीडिया अपनी “दल्लात्मक” भूमिका बखूबी निभाता है. यह मीडिया खुद ही
केस चलाता है, और स्वयं ही ही फैसला भी
सुना देता है. बालकृष्ण और बाबा रामदेव के खिलाफ एक भी ठोस मामला सामने नहीं आने,
किसी भी थाने में मजबूत केस तक न होने और न्यायालय में कहीं भी न टिकने के बावजूद
बाबा रामदेव को “ठग”, “चोर”, “मिलावटी”, “भगोड़ा” इत्यादि से विभूषित किया जाता है.
आसाराम का मामला हो चाहे साध्वी प्रज्ञा का मामला हो...ऐसे और भी कई मामले
हैं, लेकिन एक “पैटर्न” दिखाने के लिए सिर्फ उपरोक्त चारों मामले ही
पर्याप्त हैं... आईये देखते हैं कि आखिर यह पैटर्न क्या है???
जैसा कि मैंने पहले बताया, सनातन धर्म में दक्षिण स्थित कांची कामकोटि का
पीठ सबसे महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा है. कांची के शंकराचार्य हिन्दू धर्म के
प्रचार-प्रसार एवं अध्ययन-पठन हेतु कई केन्द्र चलाते हैं. तमिलनाडु में “ब्राह्मण विरोधी” या कहें कि द्रविड़ राजनीति की जड़ें बहुत
गहरी हैं. इसी प्रकार दक्षिण में चर्च की गतिविधियाँ भी बेहद तेजी से बढ़ी हैं और
लगातार अपने पैर पसार रही हैं. चाहे करूणानिधि द्वारा भगवान राम के अस्तित्त्व को
नकारना हो अथवा अन्य तमिल पार्टियों द्वारा रामसेतु को तोड़ने में भारी दिलचस्पी
दिखाना हो, सभी हिन्दू विरोधी मामलों में द्रविड़ पार्टियाँ खासी सक्रिय रहती हैं.
ऐसे में कांची पीठ के सबसे सम्मानित शंकराचार्य को हत्या के मामले में फँसाना, (और
न सिर्फ फँसाना, बल्कि ऐसी “व्यवस्था” करना कि उन्हें कम से कम एक रात तो जेल में
काटनी ही पड़े) चर्च के लिए बहुत लाभकारी, लेकिन सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए
बड़ा झटका ही था. उपरोक्त सभी घटनाओं का मकसद यह था कि किसी भी तरह से हिंदुओं की
धार्मिक भावनाएँ आहत हों, उनका अपमान हो, उनमें न्यूनता का अहसास करवाया जाए, ताकि
धर्मांतरण के आड़े आने वाले (या भविष्य में आ सकने वाले) लोगों को सबक मिले.
दूसरी घटना के बारे में भी तथ्य यह हैं कि - नक्सली कमाण्डर पांडा ने एक
उड़िया टीवी चैनल को दी गई भेंटवार्ता में दावा किया कि स्वामी लक्ष्मणानन्द को
उन्होंने ही मारा है। पांडा का कहना था कि चूंकि लक्ष्मणानन्द सामाजिक अशांति(???) फ़ैला रहे थे, इसलिये उन्हें
खत्म करना आवश्यक था। जिस प्रकार त्रिपुरा में NFLT नाम का उग्रवादी
संगठन बैप्टिस्ट चर्च से खुलेआम पैसा और हथियार पाता है, उसी प्रकार अब यह साफ़ हो
गया है कि उड़ीसा और देश के दूरदराज में स्थित अन्य आदिवासी इलाकों में नक्सलियों
और चर्च के बीच एक मजबूत गठबंधन बन गया है, वरना क्या कारण
है कि इन इलाकों में काम करने वाली मिशनरी संस्थाओं को तो नक्सली कोई नुकसान नहीं
पहुँचाते, लेकिन गरीब और मजबूर आदिवासियों को नक्सली
अपना निशाना बनाते रहते हैं? थोड़ा कुरेदने पर
पांडा ने स्वीकार किया कि नक्सलियों के उड़ीसा स्थित कैडर में ईसाई युवकों की
संख्या ज्यादा है, उन्होंने माना कि उनके संगठन में ईसाई लोग
बहुमत में हैं, उड़ीसा के रायगड़ा, गजपति, और कंधमाल में
काम कर रहे लगभग सभी नक्सली ईसाई हैं।
अब स्वामी नित्यानंद वाले मामले पर आते हैं – दक्षिण के एक चैनल ने सबसे
पहले इस “स्टोरी”(??) को दिखाया था. नित्यानंद को जमकर बदनाम
किया गया, तरह-तरह के आरोप लगाए गए, अभिनेत्री रंजीता को भी इसमें लपेटा गया. “मीडिया ट्रायल” कर-करके इस मामले में हिन्दू धर्म, भगवा वस्त्रों
इत्यादि को भी जमकर कोसा गया. जैसे-जैसे मामला आगे बढ़ा पता चला कि पुलिस और चैनलों को
नित्यानंद की सीडी देकर आरोप लगाने वाला व्यक्ति “कुरुप्पन लेनिन” एक धर्म-परिवर्तित ईसाई है और यह व्यक्ति पहले
एक फ़िल्म स्टूडियो में काम कर चुका है तथा "वीडियो मॉर्फ़िंग" में
एक्सपर्ट है। जब अमेरिकी लैबोरेट्री में उस वीडियो की
जाँच हुई तो यह सिद्ध हुआ कि वह वीडियो नकली था, गढा गया था. प्रणव “जेम्स” रॉय के चैनल NDTV ने सबसे पहले नित्यानन्द स्वामी के साथ
नरेन्द्र मोदी की तस्वीरें दिखाईं और चिल्ला-चिल्लाकर नरेन्द्र मोदी को इस मामले
में लपेटने की कोशिश की (गुजरात के दो-दो चुनावों में बुरी तरह से जूते खाने के
बाद NDTV और उसके चमचों के पास अब यही एक रास्ता रह
गया है मोदी को पछाड़ने के लिये)। लेकिन जैसे ही अगले दिन से “ट्विटर” पर स्वामी
नित्यानन्द की तस्वीरें गाँधी परिवार के चहेते एसएम कृष्णा और एपीजे अब्दुल कलाम
के साथ भी दिखाई दीं, तुरन्त NDTV का मोदी विरोधी सुर धीमा पड़ गया. यहाँ तक कि नित्यानन्द
के स्टिंग ऑपरेशन मामले को सही ठहराने के लिये NDTV ने नारायणदत्त
तिवारी वाले मामले का सहारा भी लिया तथा दोनों को एक ही पलड़े पर रखने की कोशिश की।
जबकि वस्तुतः एनडी तिवारी एक संवैधानिक पद पर थे, उन्होंने राजभवन
और अपने पद का दुरुपयोग किया और तो और होली के दिन भी वह लड़कियों से घिरे नृत्य कर
रहे थे। जबकि नित्यानन्द तथाकथित रूप से जो भी कर रहे थे अपने आश्रम के बेडरूम में
कर रहे थे, बगैर किसी प्रलोभन या दबाव के, इसलिये इन दोनों मामलों की तुलना तो हो ही नहीं
सकती। परन्तु जब दो-दो “C” अर्थात चर्च और
चैनल आपस में मिले हुए हों तो किसी को बदनाम करना इनके बाँए हाथ का खेल है.
5-M (अर्थात मार्क्स, मुल्ला, मिशनरी, मैकाले और मार्केट) के
हाथों बिके हुए भारतीय मीडिया ने स्वामी नित्यानन्द की सीडी सामने आते ही तड़ से उन्हें
अपराधी घोषित कर दिया है, ठीक उसी तरह जिस
तरह कभी संजय जोशी और संघ को किया था (हालांकि बाद में उनकी सीडी भी फ़र्जी पाई गई), या जिस तरह से कांची के
वयोवृद्ध शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती को तमिलनाडु की सरकार ने गिरफ़्तार करके
सरेआम बेइज्जत किया था। अर्थात जब भी कोई हिन्दू “आईकॉन” किसी भी
सच्चे-झूठे मामले में फ़ँसे तो मीडिया उन्हें “अपराधी” घोषित करने में
देर नहीं करता… और इस समय किसी
मानवाधिकारवादी के आगे-पीछे कहीं से भी “कानून अपना काम
करेगा…” वाला सुर नहीं निकलता। यही हाल मीडिया का भी
है, जब हिन्दू संतों को बदनाम करना होगा, खुद की टीआरपी बढानी होगी उस समय तो
चीख-चीखकर उनके एंकर टीवी का पर्दा फाड़ देंगे, लेकिन जब वही संत अदालतों द्वारा
बेदाग़ बरी कर दिए जाते हैं उस समय यही अखबार और चैनल अपने मुँह में दही जमाकर बैठ
जाते हैं. माफीनामा भी पेश करते हैं तो चुपके-चुपके अथवा अखबार के आख़िरी पन्ने पर
किसी कोने में.... नित्यानंद की सेक्स सीडी फर्जी पाए जाने पर कोर्ट ने मीडिया को
जमकर लताड़ लगाई थी, उनसे माफीनामा भी दिलवाया गया, परन्तु ये “भेडिये” इतनी आसानी से सुधरने वाले नहीं हैं,
क्योंकि इनके सिर पर “चर्च” और सरकार (शायद एक ही बात है) का हाथ है.
अब आते हैं बाबा रामदेव के
मामले पर – जिस दिन तक बाबा रामदेव सिर्फ योग सिखाते थे, उस दिन तक तो बाबा रामदेव
एकदम पवित्र थे, बाबा के आश्रम में सभी पार्टियों के नेता आते रहे, रामदेव बाबा से
योग सीखने-सिखाने का दौर चलता रहा. दो साल पहले जैसे ही बाबा रामदेव ने इस देश के
सबसे पवित्र परिवार (अर्थात गाँधी परिवार) और काँग्रेस पर उँगली उठाना शुरू किया
उसी दिन से “सत्ता
के गलियारे”
में बैठे हुए अजगर अचानक जागृत हो गए. काले धन को वापस लाने की माँग इन अजगरों को
इतनी नागवार गुज़री कि इन्होंने बाबा रामदेव के पीछे देश की सभी एजेंसियाँ लगा
डालीं. बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ तो बाबा रामदेव से पहले ही खार खाए बैठी
थीं, क्योंकि बाबा रामदेव की वजह से कोक-पेप्सी सहित अन्य कई नकली पदार्थों की
बिक्री भी प्रभावित हुई तथा उनकी “गढी हुई छवि” भी खराब हुई. सत्ता के अजगर और निहित स्वार्थों से भरी
खून चूसक कंपनियों ने बाबा रामदेव के खिलाफ शिकंजा कसना आरम्भ कर दिया जो आज
दिनांक तक जारी है.
धर्मांतरण करवाने वाले “चर्च” और मीडिया की सांठगांठ इतनी मजबूत है कि - जैसे ही मीडिया में आया कि मालेगाँव धमाके में पाई गई मोटरसाईकिल भगवाधारी हिन्दू साध्वी प्रज्ञा की थी (जो काफ़ी पहले उन्होंने बेच दी थी), कि तड़ से “हिन्दू आतंकवाद” नामक शब्द गढ़कर हिन्दुओं पर हमले शुरु…। भले ही जेल में टुंडा, मदनी और रियाज़ भटकल ऐश कर रहे हों, लेकिन साध्वी प्रज्ञा को अण्डे खिलाने की कोशिश या गन्दी-गन्दी गालियाँ देना हो… महिला आयोग, सारे के सारे फर्जी नारीवादी संगठन सब कहीं दुबक कर बैठ जाते हैं, क्योंकि मीडिया ने तो पहले ही उन्हें अपराधी घोषित कर दिया है। इस नापाक गठबंधन की पोल इस बात से भी खुल जाती है कि आज तक भारत के कितने अखबारों और चैनलों ने वेटिकन और अन्य पश्चिमी देशों में चर्च की आड़ में चल रहे देह शोषण के मामलों को उजागर किया है? चलिये वेटिकन को छोड़िये, जैसा कि ऊपर आँकड़े दिए गए हैं, केरल में ही हत्या-बलात्कार-अपहरण के सैकड़ों मामले सामने आ चुके हैं यह कितने लोगों को पता है… और पश्चिम में चर्च तो इतनी तरक्की कर चुका है, कि उधर सिर्फ़ महिलाओं के ही साथ यौन शोषण नहीं होता बल्कि पुरुषों के साथ भी “गे-सेक्स” के मामले सामने आ रहे हैं… इस लिंक पर द गार्जियन की खबर पढ़िये…
http://www.guardian.co.uk/world/2010/mar/04/vatican-gay-sex-scandal
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक भारत में मिशनरी संस्थाओं का सबसे अधिक ज़मीन पर कब्जा
है, लेकिन आसाराम की जमीन को लेकर “कोहर्रम” मचाने वाले मीडिया ने कभी हल्ला मचाया? माओवादियों और नक्सलवादियों के कैम्पों में महिला
कैडर के साथ यौन शोषण और कण्डोम मिलने की खबरें कितने चैनल दिखाते हैं? लेकिन चूंकि हिन्दू धर्मगुरु के आश्रम में हादसा
हुआ है तो मीडिया ऐसे सवालों को सुविधानुसार भुला देता है, और कोशिश की जाती है कि येन-केन-प्रकारेण नरेन्द्र
मोदी या संघ या भाजपा का नाम इसमें जोड़ दिया जाये, अथवा कहीं कुछ नहीं मिले
तो हिन्दू संस्कृति-परम्पराओं को ही गरिया दिया जाये।
सूचना के अधिकार से प्राप्त जानकारी के अनुसार केरल में 63 पादरियों पर मर्डर, बलात्कार, अवैध वसूली और हथियार रखने के मामले विभिन्न पुलिस
थानों में दर्ज हैं। केरल पुलिस द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार पिछले सात वर्षों
में दो पादरियों को हत्या के जुर्म में सजा मिल चुकी है, जबकि दस अन्य को “हत्या के प्रयास” की धाराओं में चार्जशीट किया गया है। कम्युनिस्टों का
नक्सली कैडर और चर्च दोनों मिलकर एक
घातक “कॉम्बिनेशन” बनाते हैं। हालाँकि इसके लिये काफ़ी हद तक हमारे
आस्तीन में पल रहे “नकली सेकुलर” भी जिम्मेदार हैं। इस
देश में जो भी व्यक्ति “चर्च”, “चर्च के गुर्गों” अथवा “पवित्र परिवार” के खिलाफ कोई भी अभियान अथवा आंदोलन चलाएगा उसका यही
हश्र होगा. स्वाभाविक है कि देश की दुर्दशा को देखते हुए हिन्दू संत अब धीरे-धीरे
मुखर होने लगे हैं, इसलिए इन पर गाज गिरने लगी है. हिन्दू संतों के खिलाफ लगातार जारी इस
दुष्प्रचार और दोगलेपन को समय-समय पर प्रकाशित और प्रचारित किया ही जाना चाहिये, हमें जनता को बताना होगा कि ये लोग किस तरह से पक्षपाती
हैं, पक्के हिन्दू-विरोधी हैं। आए दिन “सिर्फ और सिर्फ” हिन्दू संतों के खिलाफ किये जाने वाले
षडयंत्र और विभिन्न मामलों में उन्हें बदनाम करके फँसाने व उनसे बदले की
कार्रवाईयाँ एक बड़े “खेल” की ओर इशारा करती हैं...
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