यदि बहुत पहले से शुरु किया जाये, अर्थात कम्प्यूटर पर हिन्दी को स्थापित करने की शुरुआत के तौर पर, तो सबसे पहले कुछ नाम तत्काल दिमाग में आते हैं जैसे बाराहा के श्री वासु और सुवि इन्फ़ॉर्मेशन सिस्टम (जो बाद में वेबदुनिया बन गया) के विनय छजलानी, जो लगभग सन 1992-93 से हिन्दी के विकास के लिये तत्पर हो गये थे (पहला वेबदुनिया हिन्दी पैड मैने सन 1996 में उपयोग कर लिया था, जब विन्डोज95 आया-आया ही था)। कालान्तर में “सुवि” के काम को माइक्रोसॉफ़्ट ने प्रशंसित किया और इसके साथ सहयोग करने की इच्छा जताई। हिन्दी के कई ऑनलाईन या इंटरनेट समाचार पत्रों हेतु सबसे पहले “सुवि” ने कई फ़ॉन्ट उपलब्ध करवाये। अगला नाम है iTrans के जनक अविनाश चोपड़े जी का, जिन्हें फ़ोनेटिक औजारों का पितामह कहा जा सकता है। इसके अलावा सराय.नैट से जुड़े काफी लोगों ने भी काम किया है जैसे राघवन जी तथा सुरेखा जी ने एक जावास्क्रिप्ट आधारित IME बनाया था, उस पर आधारित बहुत से औजार बाद में बने। आज जितने भी फोनेटिक औजार चल रहे हैं, वे सब iTrans स्कीम पर आधारित हैं।
मैथिली गुप्त जी ने “कृतिदेव” नामक अब तक का सबसे लोकप्रिय फ़ॉन्ट बनाया, जिसे माइक्रोसॉफ़्ट ने अपने तमाम विन्डोज में “बाय-डिफ़ॉल्ट” डाल रखा है। इसके अलावा मैथिली जी ने हिन्दी पैड और कई औजार भी बना-बना कर मुफ़्त में बाँटे। यूनिकोड आने के बावजूद आज भी टायपिंग, वर्ड प्रोसेसिंग और डीटीपी के लिये सबसे लोकप्रिय फ़ॉन्ट कृतिदेव ही है। यूनिकोड के आने से पहले इंटरनैट पर हिन्दी साइटें आम तौर पर दो फॉन्टों में होती थीं - कृतिदेव तथा शुषा। शुषा को भारतभाषा.कॉम नामक किसी ग्रुप ने बनाया तथा मुफ्त में जारी किया। ये शायद पहला ऐसा फॉन्ट था जो फोनेटिक से मिलता-जुलता था। अभिव्यक्ति पत्रिका पहले इसी फॉन्ट में होती थी। एक और नाम है आलोक कुमार , जिन्होंने इंटरनैट पर यूनिकोड हिन्दी के बारे में शायद सबसे पहले खास फिक्र करनी शुरु की, देवनागरी.नैट साइट बनाई, जिस पर हिन्दी UTF-8 का समर्थन आदि बारे सहायता दी। आज भले ही वो खास न लगे, पर पुराने टाइम में इस साइट ने बहुतों की मदद की। इसके अतिरिक्त लिप्यांतरण टूल गिरगिट भी आलोक जी ने बनाया। शून्य नामक टेक्नीकल साइट शुरु करने में भी इनका हाथ था। आलोक जी शायद सबसे पुराने तकनीकी अनुवादकों में से हैं, उन्होंने बहुत से ऑनलाइन तंत्रों का हिन्दी अनुवाद किया। ब्लॉग जगत के “स्टार” रवि रतलामी जी, लिनक्स के हिन्दीकरण में इनका अहम योगदान रहा है, कई तकनीकी और तन्त्रज्ञान सम्बन्धी अनुवाद भी इन्होंने किये हैं।
हिन्दी के एक और सेवक हैं हरिराम जी, सीडैक तथा अन्य राजकीय विभागों के साथ कई प्रोजैक्टों मे शामिल रहे हैं। इसके अतिरिक्त ये हिन्दी कम्प्यूटिंग के कोर स्तर की जानकारी रखते हैं तथा इसको कोर स्तर पर यानि की जड़ से ही सरल बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। चिठ्ठाजगत में एक और जाना-पहचाना नाम है देबाशीष जी का, शायद ये सबसे पुराने हिन्दी चिट्ठाकारों में से एक हैं। इन्होंने हिन्दी का पहला लोकप्रिय एग्रीगेटर ‘चिट्ठाविश्व’ बनाया। इंडीब्लॉगीज की शुरुआत करके भारतीय भाषी चिट्ठों को नई पहचान दी। बांग्ला के भी ये आधारस्तंभ ब्लॉगर हैं, और भी बहुत से हिन्दी संबंधी नए प्रयोग इन्होंने किए ज्यादातर साइटों आदि के रुप में। जब ये हिन्दी चिट्ठाकारी से जुडे़ तो इन्हें लगा कि हिन्दी संबंधी सहायता लिखित रुप में सही तरीके से उपलब्ध नहीं है, तो इन्होंने अपने चिट्ठे पर लिखना शुरु किया। जीतेन्द्र चौधरी (“नारद” के कर्ताधर्ता), मिर्ची सेठ आदि अक्षरग्राम के लोगों की मदद और रुचि से “सर्वज्ञ” चालू हुआ। आज सर्वज्ञ काफी बेहतर स्थिति में है, इन लोगों ने जब से सर्वज्ञ पर नवीनतम जानकारी सहित सभी जरुरी लेख डाले, तो हिन्दी प्रयोक्ताओं की सँख्या में जबरदस्त उछाल आया।
शुरुआत में हिन्दी चिट्ठाकारों का मुख्य काम हिन्दी का प्रचार तथा विभिन्न फ्रंटएंड के औजार बनाने में रहा, क्योंकि लगभग सभी चिठ्ठाकार तकनीकी लोग ही थे। एक और सज्जन हैं रमण कौल, इन्होंने छाहरी के औजार को संशोधित कर विभिन्न ऑनलाइन कीबोर्ड बनाए, रमण कौल जी का एक मुख्य प्रयास रहा इनस्क्रिप्ट तथा रेमिंगटन के लिए ऑनलाइन कीबोर्ड उपलब्ध कराना। फोनेटिक के तो बहुत से ऑनलाइन कीबोर्ड पहले से थे पर इन दोनों के नहीं थे। रमण जी ने इनको उपलब्ध करवा को लोगों को बहुत आसानी कर दी। ईस्वामी जी ने “हग” टूल बनाया जो पुराने समय में जब कि कीबोर्ड ड्राइवर इंजन (बरहा आदि) ज्यादा प्रचलित नहीं थे तब काफी काम आता था। ईस्वामी के हग को कोड से भी बहुत लोगों ने प्रेरणा ली। “परिचर्चा” पर “हग” लगा है, एक दो फायरफॉक्स एक्सटेंशनों में है, हिमांशु सिंह की हिन्दी-तूलिका सेवा में है। हग आधारित एक वर्डप्रैस प्लगइन बन चुका है। जिसे वर्डप्रैस ब्लॉग पर टिप्पणी के लिए लगा सकते हैं।
हिमांशु सिंह ने इण्डिक आईएमई को हैक करके नया टूल बनाया जो कि विंडोज 2000 तथा एक्स पी में इण्डिक लैंग्वेज सपोर्ट स्वतः इंस्टाल कर देता है साथ ही इण्डिक आईएमई भी इंस्टाल करता है, इससे एक कम जानकारी वाला (मेरे जैसा) कम्प्यूटर उपयोगकर्ता भी आसानी से संगणक में हिन्दी इन्स्टाल कर लेता है, साथ ही उन्होंने हिन्दी-तूलिका नामक ऑनलाइन औजार भी हग के कोड के आधार पर बनाया है। रजनीश मंगला जी ने भी फॉन्टों संबंधी कई काम के टूल बनाए हैं। “अक्षरग्राम” ने एक विशाल नैटवर्क तैयार किया, इसने भले ही खुद कोई विशेष हिन्दी कंप्यूटिंग में अंदरुनी काम नहीं किया लेकिन जन-जन तक हिन्दी को पहुँचाने में अक्षरग्राम का महती योगदान रहा। मितुल पटेल जी हिन्दी विकिपीडिया के संपादक हैं, इन्होंने हिन्दी विकीपीडिया पर जानकारी बढ़ाने में काफी योगदान दिया। एक साहब हैं अनुनाद सिंह जी, इन्होंने इंटरनैट पर हिन्दी संबंधी विभिन्न जगहों पर मौजूद ढेरों लिंक्स को संग्रहित किया। फ़ोनेटिक का एक और औजार है "गमभन" जो मराठी ब्लॉग लिखने वालों में अधिक प्रचलित है, उसके जनक हैं ओंकार जोशी, विनय जैन जी गूगल की कुछ सेवाओं सहित कई तंत्रों के हिन्दी अनुवाद से जुड़े रहे हैं।
सबसे अन्त में नाम लूँगा श्रीश शर्मा जी (ई-पंडित) का, कम्प्यूटर की तकनीकी, ब्लॉगिंग सम्बन्धी अथवा अन्य कोई भी जानकारी हो, सरलतम भाषा में समझाने वाले शिक्षक हैं ये। सभी की मदद के लिये सदैव तत्पर और विनम्र श्रीश जी ने हिन्दी कंप्यूटिंग के प्रति लोगों की मानसिकता को समझा तथा उसी हिसाब से पर्याप्त मात्रा में आम बोलचाल वाली हिन्दी में जानकारी उपलब्ध करवाई, अपने चिट्ठे पर तथा सर्वज्ञ पर। अक्षरग्राम के विभिन्न प्रोजैक्टों में इनका सक्रिय सहयोग रहता है। श्रीश जी का मकसद है कि हिन्दी कंप्यूटिंग संबंधी जानकारी से “सर्वज्ञ” को लबालब भर देना ताकि वो इंटरनैट पर हिन्दी उपयोगकर्ताओं के मार्गदर्शन हेतु “एकल खिड़की प्रणाली” बन जाए। यह विस्तृत लेख भी उनसे हुई लम्बी चर्चा के फ़लस्वरूप ही आकार ले पाया है।
इसके अलावा भारत सरकार के अंतर्गत राजभाषा विभाग, सीडैक तथा ildc जैसे विभागों द्वारा यूनिकोड में देवनागरी के मानकीकरण तथा इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड के विकास आदि महत्वपूर्ण कार्य किए गए हैं। बहुत से लोग ऐसे भी हैं जिन्हें हम नहीं जानते, उनमें सीडैक के बहुत से प्रोग्रामर आदि सहित विभिन्न स्वतंत्र प्रोग्रामर भी हैं, यह भी हो सकता है कि कई लोगों के नाम इसमें छूट गये हों, लेकिन ऐसा सिर्फ़ मेरे अज्ञान की वजह से हुआ होगा। तात्पर्य यह कि ऐसे कई नामी, बेनामी, सेवक हैं जिन्होंने हिन्दी कम्प्यूटिंग और यूनिकोड की नींव रखी, परदे के पीछे रहकर काम किया। आज जो हिन्दी के पाँच-छः सौ ब्लॉगर, की-बोर्ड पर ताल ठोंक रहे हैं यह सब इन्हीं लोगों की अथक मेहनत का नतीजा है। यह कारवाँ आगे, आगे और आगे ही बढ़ता चले, इसमें सैकड़ों, हजारों, लाखों लोग दिन-ब-दिन जुड़ते जायें, तो बिना किसी के आगे हाथ फ़ैलाये हिन्दी विश्व की रानी बन कर रहेगी। आमीन...