हिन्दी ब्लॉगिंग, सचिन तेंडुलकर से प्रेरणा और उनके टिप्स… … Hindi Blogging and Sachin Tendulkar
Written by Super User शुक्रवार, 26 फरवरी 2010 12:14
किसी भी खेल में 20 वर्ष गुज़ारना और लगातार अच्छा प्रदर्शन करना किसी भी खिलाड़ी के लिये एक स्वप्न के समान ही है। हाल ही में मेरे (और पूरे विश्व के) सबसे प्रिय सचिन तेण्डुलकर ने अपने क्रिकेटीय जीवन के 20 साल पूरे किये। रिकॉर्ड्स की बात करना तो बेकार ही है, क्योंकि उनके कुछ रिकॉर्ड तो शायद अब कभी नहीं टूटने वाले… कल ग्वालियर में उन्होंने वन-डे में 200 रन बनाकर एक और शिखर छू लिया…। कोई सम्मान या कोई पुरस्कार अब सचिन के सामने बौना है, भारत रत्न को छोड़कर।
अब आप सोचेंगे कि सचिन का हिन्दी ब्लॉगिंग और ब्लॉग से क्या लेना-देना? असल में सचिन तेंडुलकर ने समय-समय पर जो टिप्स अपने साथी खिलाड़ियों को दिये हैं और अपने पूरे खेल जीवन में जैसा “कर्म”, “चरित्र” और “नम्रता” दिखाई, वह मुझ सहित सभी ब्लॉगरों के लिये एक प्रेरणास्रोत है…
ब्लॉगिंग और ब्लॉग के प्रति समर्पण, लगन रखना और मेहनत करना बेहद जरूरी है, खासकर “विचारधारा” आधारित ब्लॉग लिखते समय। तेंडुलकर ने अपने कैरियर की शुरुआत से जिस तरह क्रिकेट के प्रति अपना जुनून बरकरार रखा है, वैसा ही जुनून ब्लॉगिंग करते समय लगातार बनाये रखें…
जिस तरह तेंडुलकर ने अज़हरुद्दीन से लेकर महेन्द्रसिंह धोनी तक की कप्तानी में अपना नैसर्गिक खेल दिखाया, किसी कप्तान से कभी उनकी खटपट नहीं हुई, वे खुद भी कप्तान रहे लेकिन विवादों और मनमुटाव से हमेशा दूर रहे और अपने प्रदर्शन में गिरावट नहीं आने दी। हिन्दी ब्लॉगिंग जगत में भी प्रत्येक ब्लॉगर को गुटबाजी, व्यक्ति निंदा और आत्मप्रशंसा से दूर रहना चाहिये और चुपचाप अपना प्रदर्शन करते रहना चाहिये।
तेंडुलकर ने युवराज सिंह को यह महत्वपूर्ण सलाह दी है कि “लोगों को खुश करने के लिये मत खेलो, बल्कि अपने लक्ष्य पर निगाह रखो… लोग अपने आप खुश हो जायेंगे”। यह फ़ण्डा भी ब्लॉगर पर पूरी तरह लागू होता है। एक सीधा सा नियम है कि “आप सभी को हर समय खुश नहीं कर सकते…” इसलिये ब्लॉग लिखते समय अपने विचारों पर दृढ रहो, अपने विचार मजबूती से पेश करो, कोई जरूरी नहीं कि सभी लोग तुमसे सहमत हों, इसलिये सबको खुश करने के चक्कर में न पड़ो, अपना लिखो, मौलिक लिखो, बेधड़क लिखो… यदि किसी को पसन्द नहीं आता तो यह उसकी समस्या है, लेकिन तुम अपना लक्ष्य मत भूलो और उसे दिमाग में रखकर ही लिखो…
20 साल लगातार खेलने के बाद भी तेंडुलकर की रनों की भूख कम नहीं हुई है, इसी तरह ब्लॉगरों को अपनी जानकारी की भूख, लिखने की तड़प को बरकरार रखना चाहिये… अपनी ऊर्जा को भी बनाये रखें… जब लगे कि थक गये हैं बीच में कुछ दिन विश्राम लें और फ़िर ऊर्जा एकत्रित करके दोबारा लिखना शुरु करें, तभी लम्बे समय टिक पायेंगे।
मैं स्वयं भी अपनी ब्लॉगिंग में तेंडुलकर “सर” से ऐसे ही कुछ टिप्स लेता हूं।
1) कोशिश रहती है कि विचारधारा के प्रति पूरे समर्पण, लगन और मेहनत से लिखूं।
2) बगैर किसी गुटबाजी में शामिल हुए अपने विचार के प्रति दृढ रहने की कोशिश करता हूं,
3) अपना कप्तान एक ही है “विचारधारा”, उसका प्रदर्शन जारी रहना चाहिये, कोई कितने भी गुट (कप्तान) बना ले, जब तक कप्तान "विचारधारा" है तब तक मैं उसके साथ हूं… चाहे वह उम्र और अनुभव में मुझसे कितना भी छोटा हो… कोई इसे भी गुटबाजी समझता हो तो समझा करे…
4) किसी को खुश करने के लिये नहीं लिखता, सभी को खुश करना लगभग असम्भव है, इसलिये लोगों की फ़िक्र किये बिना “सर” की तरह अपना नैसर्गिक खेल खेलता हूं…
5) मेरी ब्लॉगिंग यात्रा उम्र के 42वें वर्ष से शुरु हुई है, हालांकि अभी तो मुझे भी ब्लॉगिंग में सिर्फ़ 3 साल ही हुए हैं, “रनों” की भूख तो अभी है ही। तेंडुलकर की तरह बीस साल गुज़ारने में अभी लम्बा समय है, जब 62 वर्ष का होऊंगा तब हिसाब लगाऊंगा कि 20 साल की ब्लॉगिंग के बाद भी क्या मुझमें ऊर्जा बची है?
6) तेंडुलकर से नम्रता भी सीखने की कोशिश करता हूं… कोशिश रहती है कि प्राप्त टिप्पणियों पर उत्तेजित न होऊं, प्रतिकूल विचारधारा वाला लेख दिखाई देने पर शान्ति से पढ़कर यदि आवश्यक हो तो ही टिप्पणी करूं, जहाँ तक हो सके दूसरे ब्लॉगरों के नाम के आगे “जी” लगाने की कोशिश करूं, टिप्पणी अथवा लेख का जवाबी लेख तैयार करते समय भी भाषा मर्यादित और संयमित रहे, तेंडुलकर की तरह। ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी कितना भी उकसायें, “सर” उनका जवाब अपने बल्ले से ही देते हैं, उसी तरह विपरीत विचारधारा वाले लोग चाहे कितना भी उकसायें, अपना जवाब अपने ब्लॉग पर लेख में अपने तरीके से देने की कोशिश कर रहा हूं…
कुल मिलाकर तात्पर्य यह है कि अभी तो हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में मेरे सीखने के दिन हैं, मुझे समीर लाल जी से सीखना है कि कैसे सबके प्रिय बने रहें… मुझे शिवकुमार जी से सीखना है कि व्यंग्य कैसे लिखा जाता है… मुझे रवि रतलामी जी से सीखना है कि निर्लिप्त और निर्विवाद रहकर चुपचाप अपना काम कैसे किया जाता है… मुझे बेंगानी बन्धुओं से सीखना है कि ब्लॉग और बिजनेस दोनों को एक साथ सफ़ल कैसे किया जाये… सीखने की कोई उम्र नहीं होती… आज भले ही मैं 45 वर्ष का हूं, लेकिन हिन्दी ब्लॉगिंग में तो अभी ठीक से खड़ा होना ही सीखा है, रास्ता बहुत लम्बा है, भगवान की कृपा रही तो अपने लक्ष्य तक अवश्य पहुँचेंगे, और ऐसे में “तेण्डुलकर सर” के ये टिप्स मेरे और आपके सदा काम आयेंगे…।
सभी मित्रों, पाठकों, स्नेहियों, शुभचिन्तकों को रंगों के त्यौहार होली की हार्दिक शुभकामनाएं… देश का माहौल और परिस्थिति कैसी भी हो, चटख रंगों की तरह अपना उल्लास बनाये रखें… लिखते रहें, पढ़ते रहें, सीखते रहें… छद्म-सेकुलरिज़्म का अन्त होना ही है, और भारत को एक दिन “असली” शक्ति बनना ही है…
अब अगला लेख मंगलवार को (होली का खुमार उतरने के बाद), तब तक तेण्डुलकर सर की जय हो… होली है भई होली है…
अब आप सोचेंगे कि सचिन का हिन्दी ब्लॉगिंग और ब्लॉग से क्या लेना-देना? असल में सचिन तेंडुलकर ने समय-समय पर जो टिप्स अपने साथी खिलाड़ियों को दिये हैं और अपने पूरे खेल जीवन में जैसा “कर्म”, “चरित्र” और “नम्रता” दिखाई, वह मुझ सहित सभी ब्लॉगरों के लिये एक प्रेरणास्रोत है…
1) खेल के प्रति समर्पण, लगन और मेहनत –
ब्लॉगिंग और ब्लॉग के प्रति समर्पण, लगन रखना और मेहनत करना बेहद जरूरी है, खासकर “विचारधारा” आधारित ब्लॉग लिखते समय। तेंडुलकर ने अपने कैरियर की शुरुआत से जिस तरह क्रिकेट के प्रति अपना जुनून बरकरार रखा है, वैसा ही जुनून ब्लॉगिंग करते समय लगातार बनाये रखें…
2) कप्तान कोई भी रहे, प्रदर्शन एक जैसा होना चाहिये –
जिस तरह तेंडुलकर ने अज़हरुद्दीन से लेकर महेन्द्रसिंह धोनी तक की कप्तानी में अपना नैसर्गिक खेल दिखाया, किसी कप्तान से कभी उनकी खटपट नहीं हुई, वे खुद भी कप्तान रहे लेकिन विवादों और मनमुटाव से हमेशा दूर रहे और अपने प्रदर्शन में गिरावट नहीं आने दी। हिन्दी ब्लॉगिंग जगत में भी प्रत्येक ब्लॉगर को गुटबाजी, व्यक्ति निंदा और आत्मप्रशंसा से दूर रहना चाहिये और चुपचाप अपना प्रदर्शन करते रहना चाहिये।
3) लोगों को खुश करने के लिये मत खेलो, लक्ष्य के प्रति समर्पित रहो –
तेंडुलकर ने युवराज सिंह को यह महत्वपूर्ण सलाह दी है कि “लोगों को खुश करने के लिये मत खेलो, बल्कि अपने लक्ष्य पर निगाह रखो… लोग अपने आप खुश हो जायेंगे”। यह फ़ण्डा भी ब्लॉगर पर पूरी तरह लागू होता है। एक सीधा सा नियम है कि “आप सभी को हर समय खुश नहीं कर सकते…” इसलिये ब्लॉग लिखते समय अपने विचारों पर दृढ रहो, अपने विचार मजबूती से पेश करो, कोई जरूरी नहीं कि सभी लोग तुमसे सहमत हों, इसलिये सबको खुश करने के चक्कर में न पड़ो, अपना लिखो, मौलिक लिखो, बेधड़क लिखो… यदि किसी को पसन्द नहीं आता तो यह उसकी समस्या है, लेकिन तुम अपना लक्ष्य मत भूलो और उसे दिमाग में रखकर ही लिखो…
4) रनों की भूख कम न हो और ऊर्जा बरकरार रहे –
20 साल लगातार खेलने के बाद भी तेंडुलकर की रनों की भूख कम नहीं हुई है, इसी तरह ब्लॉगरों को अपनी जानकारी की भूख, लिखने की तड़प को बरकरार रखना चाहिये… अपनी ऊर्जा को भी बनाये रखें… जब लगे कि थक गये हैं बीच में कुछ दिन विश्राम लें और फ़िर ऊर्जा एकत्रित करके दोबारा लिखना शुरु करें, तभी लम्बे समय टिक पायेंगे।
मैं स्वयं भी अपनी ब्लॉगिंग में तेंडुलकर “सर” से ऐसे ही कुछ टिप्स लेता हूं।
1) कोशिश रहती है कि विचारधारा के प्रति पूरे समर्पण, लगन और मेहनत से लिखूं।
2) बगैर किसी गुटबाजी में शामिल हुए अपने विचार के प्रति दृढ रहने की कोशिश करता हूं,
3) अपना कप्तान एक ही है “विचारधारा”, उसका प्रदर्शन जारी रहना चाहिये, कोई कितने भी गुट (कप्तान) बना ले, जब तक कप्तान "विचारधारा" है तब तक मैं उसके साथ हूं… चाहे वह उम्र और अनुभव में मुझसे कितना भी छोटा हो… कोई इसे भी गुटबाजी समझता हो तो समझा करे…
4) किसी को खुश करने के लिये नहीं लिखता, सभी को खुश करना लगभग असम्भव है, इसलिये लोगों की फ़िक्र किये बिना “सर” की तरह अपना नैसर्गिक खेल खेलता हूं…
5) मेरी ब्लॉगिंग यात्रा उम्र के 42वें वर्ष से शुरु हुई है, हालांकि अभी तो मुझे भी ब्लॉगिंग में सिर्फ़ 3 साल ही हुए हैं, “रनों” की भूख तो अभी है ही। तेंडुलकर की तरह बीस साल गुज़ारने में अभी लम्बा समय है, जब 62 वर्ष का होऊंगा तब हिसाब लगाऊंगा कि 20 साल की ब्लॉगिंग के बाद भी क्या मुझमें ऊर्जा बची है?
6) तेंडुलकर से नम्रता भी सीखने की कोशिश करता हूं… कोशिश रहती है कि प्राप्त टिप्पणियों पर उत्तेजित न होऊं, प्रतिकूल विचारधारा वाला लेख दिखाई देने पर शान्ति से पढ़कर यदि आवश्यक हो तो ही टिप्पणी करूं, जहाँ तक हो सके दूसरे ब्लॉगरों के नाम के आगे “जी” लगाने की कोशिश करूं, टिप्पणी अथवा लेख का जवाबी लेख तैयार करते समय भी भाषा मर्यादित और संयमित रहे, तेंडुलकर की तरह। ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी कितना भी उकसायें, “सर” उनका जवाब अपने बल्ले से ही देते हैं, उसी तरह विपरीत विचारधारा वाले लोग चाहे कितना भी उकसायें, अपना जवाब अपने ब्लॉग पर लेख में अपने तरीके से देने की कोशिश कर रहा हूं…
कुल मिलाकर तात्पर्य यह है कि अभी तो हिन्दी ब्लॉगिंग की दुनिया में मेरे सीखने के दिन हैं, मुझे समीर लाल जी से सीखना है कि कैसे सबके प्रिय बने रहें… मुझे शिवकुमार जी से सीखना है कि व्यंग्य कैसे लिखा जाता है… मुझे रवि रतलामी जी से सीखना है कि निर्लिप्त और निर्विवाद रहकर चुपचाप अपना काम कैसे किया जाता है… मुझे बेंगानी बन्धुओं से सीखना है कि ब्लॉग और बिजनेस दोनों को एक साथ सफ़ल कैसे किया जाये… सीखने की कोई उम्र नहीं होती… आज भले ही मैं 45 वर्ष का हूं, लेकिन हिन्दी ब्लॉगिंग में तो अभी ठीक से खड़ा होना ही सीखा है, रास्ता बहुत लम्बा है, भगवान की कृपा रही तो अपने लक्ष्य तक अवश्य पहुँचेंगे, और ऐसे में “तेण्डुलकर सर” के ये टिप्स मेरे और आपके सदा काम आयेंगे…।
सभी मित्रों, पाठकों, स्नेहियों, शुभचिन्तकों को रंगों के त्यौहार होली की हार्दिक शुभकामनाएं… देश का माहौल और परिस्थिति कैसी भी हो, चटख रंगों की तरह अपना उल्लास बनाये रखें… लिखते रहें, पढ़ते रहें, सीखते रहें… छद्म-सेकुलरिज़्म का अन्त होना ही है, और भारत को एक दिन “असली” शक्ति बनना ही है…
अब अगला लेख मंगलवार को (होली का खुमार उतरने के बाद), तब तक तेण्डुलकर सर की जय हो… होली है भई होली है…
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