Gujrat Electricity Companies Performance and Jyotiraditya Scindia
Written by Super User शनिवार, 23 मार्च 2013 13:55गुजरात की तरक्की और नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता से इतनी जलन और घबराहट??
भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय ने, गुजरात
की बिजली कंपनियों की उत्तम कार्यकुशलता तथा शानदार वितरण प्रणाली को मिलने वाले
पुरस्कार के भव्य समारोह को ऐन मौके पर रद्द कर दिया, कि कहीं इस पुरस्कार के
राष्ट्रीय प्रसारण और प्रचार की वजह से नरेंद्र मोदी को राजनैतिक लाभ न मिल जाए.
असल में मामला यह है कि, समूचे भारत में
बिजली चोरी रोकने और उसके अधिकतम वितरण को सुनिश्चित और पुरस्कृत करने के लिए भारत
सरकार के ऊर्जा मंत्रालय ने गत वर्ष दो सुविख्यात रेटिंग एजेंसियों ICRA और CARE को यह काम
सौंपा था कि वे भारत की विभिन्न सरकारी विद्युत वितरण कंपनियों के कामकाज, विद्युत
की हानि और चोरी के बारे में विस्तार से एक रिपोर्ट बनाकर पेश करें, और उसी के
अनुसार उन बिजली बोर्डों या कंपनियों को रेटिंग प्रदान करें.
इस कवायद में भारत के बीस विभिन्न राज्यों
की 39 बिजली
कंपनियों को शामिल किया गया, तथा इनके कामकाज और नुक्सान के बारे में व्यापक सर्वे
किया गया. इस के नतीजों के अनुसार “दक्षिण गुजरात वीज
कम्पनी लिमिटेड (DGVCL)” को सर्वाधिक अंक 89% तथा “A+” की रेटिंग
प्राप्त हुई. इसी प्रकार “पश्चिम बंगाल स्टेट इलेक्ट्रिसिट कम्पनी” तथा “महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी
डिस्ट्रीब्यूशन कम्पनी” को 70% अंक और “A” ग्रेड मिला.
घटिया प्रदर्शन तथा बिजली चोरी के मामलों में कमी न ला सकने के लिए 11 अन्य कंपनियों
को “B+” की रेटिंग
मिली, जबकि 8 राज्यों की बिजली कंपनियों को और भी नीचे “C” और “C+” तक की ग्रेड
मिली. सूची में सबसे निचले स्थान पर रहने वाली बिजली कंपनियों में उत्तरप्रदेश और
बिहार की कम्पनियाँ रहीं.
इस प्रदर्शन सूची और रेटिंग में अव्वल
स्थान पर रहने वाली कंपनियों के प्रबंध निदेशकों को ऊर्जा मंत्रालय की तरफ से
मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया सम्मानित करने वाले थे, परन्तु जैसे ही उन्हें पता
चला कि इस सूची में “टॉप टेन” कंपनियों में
से नौ गुजरात से और एकमात्र महाराष्ट्र की हैं, तो सम्मान देने का यह कार्यक्रम
ताबड़तोड़ रद्द कर दिया गया. सूची में निचले चार स्थानों पर उत्तरप्रदेश और बिहार
की बिजली कम्पनियाँ हैं.
मंत्रालय के इस कार्यक्रम में गुजरात की
तीन कंपनियों द्वारा “पावर पाइंट
प्रेजेंटेशन” द्वारा यह समझाया जाना था कि उन्होंने बिजली
चोरी पर अंकुश कैसे लगाया, बिजली वितरण में होने वाले नुक्सान को कैसे रोका...
इत्यादि. उल्लेखनीय है कि बिजली कंपनियों का जो घाटा २००९-१० में 63,500 करोड़ था, वह
२०११-१२ में बढ़कर 80,000 करोड़ रूपए तक पहुँच गया है. इसीलिए ऊर्जा
मंत्रालय ने ICRA को २० कंपनियों तथा CARE संस्था को १९ कंपनियों का पूर्ण
लेखा-जोखा, जमीनी हकीकत, आर्थिक स्थिति इत्यादि के बारे में रिपोर्ट देने को कहा
था.
गुजरात और मोदी की सफलता से केन्द्र सरकार
इतनी आतंकित है कि इस रिपोर्ट के बारे में की गई प्रेस कांफ्रेंस में सिंधिया ने
दस सर्वाधिक मजबूत और सफल कंपनियों का नाम तक लेना जरूरी नहीं समझा, क्योंकि
शुरुआती दस में से नौ बिजली कम्पनियाँ तो गुजरात या भाजपा शासित राज्यों की ही
हैं, जबकि सिर्फ एक महाराष्ट्र की है. नरेंद्र मोदी लगातार केन्द्र पर तथ्यों और
आंकड़ों के साथ यह आरोप लगाते रहे हैं कि कोयला और प्राकृतिक गैस के आवंटन के मामले
में केन्द्र हमेशा गुजरात के साथ सौतेला व्यवहार करता आ रहा है. इसके बावजूद बिजली
चोरी रोकने, बकाया बिलों की वसूली एवं उत्तम वितरण में गुजरात की बिजली कम्पनियाँ
अव्वल आ रही हैं तो जलन इतनी बढ़ गई कि सम्मान समारोह ही रद्द कर दिया.
पावर फाइनेंस कार्पोरेशन द्वारा आयोजित
किए जाने वाले इस कार्यक्रम को रद्द किए जाने की सूचना भी एकदम अंतिम समय पर दी
गई, जब गुजरात की तीन बिजली कंपनियों के प्रबंध निदेशक, सर्वश्री एन श्रीवास्तव,
एचएस पटेल और एसबी ख्यालिया इस सम्मान को लेने दिल्ली भी पहुँच चुके थे. ऊर्जा
मंत्रालय ने उन्हें सूचित किया था कि उनका सम्मान किया जाएगा, परन्तु उलटे पाँव
लौटाकर उनका अपमान ही कर दिया, क्योंकि मंत्री जी नहीं चाहते थे कि मीडिया में यह
बात जोर-शोर से प्रसारित और प्रचारित हो कि नरेंद्र मोदी के गुजरात में बिजली
कम्पनियाँ उत्तम कार्यकुशलता दिखा रही हैं, जबकि खोखले विकास के दावे करने और
दिल्ली में विशेष राज्य के नाम पर “भीख का कटोरा” लिए खड़े नीतीश और अखिलेश यादव के राज्य बेहद घटिया बिजली कुप्रबंधन और
चोरी के शिकार हैं.
अब जबकि नरेंद्र मोदी ने मीडिया में
खुलेआम केन्द्र सरकार की धज्जियाँ उडानी शुरू कर दी हैं, श्रीराम कॉलेज तथा इंडिया
टुडे कान्क्लेव में दिए गए भाषणों से देश के निम्न-मध्यम वर्ग के बीच उनकी छवि और
कार्यकुशलता के चर्चे जोर पकड़ने लगे हैं, तो अगले एक साल में मोदी की छवि बिगाड़ने
के लिए (अथवा नहीं बनने देने हेतु) ऐसे कई कुत्सित प्रयास किए जाएंगे. गुजरात की
जनता तो जानती है कि वहाँ बिजली-पानी और सड़क की स्थिति कितनी शानदार है, परन्तु यह
बात भारत के अन्य राज्यों तक न पहुंचे इस हेतु न सिर्फ जोरदार प्रयास किए जाएंगे,
बल्कि मोदी द्वारा विकास को चुनावी मुद्दा बनाने की बजाय, काँग्रेस और सेकुलरों की
सुई २००२ के दंगों पर ही अटकी रहेगी.
विशेष नोट :- जो भी काँग्रेस के साथ जब तक
रहता है, तब तक उसके सारे गुनाह माफ होते हैं वह महान भी कहलाता है. लेकिन जैसे ही
कोई काँग्रेस से मतभिन्नता रखता है या काँग्रेस को कोई गंभीर चुनौती पेश करता है
तो काँग्रेस तत्काल उसके साथ “खुन्नस” का व्यवहार पाल लेती है. DMK समर्थन वापसी का
मामला तो एकदम ताज़ा है, मैं यहाँ एक पुराना उदाहरण देना चाहूँगा :- एक समय पर
अमिताभ बच्चन, गाँधी परिवार के खासुलखास हुआ करते थे, राजीव गाँधी के बाल-सखा और
काँग्रेस के सक्रिय सदस्य. इलाहाबाद से चुनाव लड़ा, जीता भी... बोफोर्स कांड में
राजीव गाँधी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मीडिया से लड़े... लेकिन राजीव की मौत के
बाद जैसे ही अमिताभ बच्चन और गाँधी परिवार के रिश्ते तल्ख़ हुए, तत्काल सोनिया
गाँधी की खुन्नस खुलकर सामने आ गई... अमिताभ बच्चन की माँ अर्थात तेजी बच्चन के अन्तिम संस्कार में गाँधी
परिवार का
एक भी सदस्य मौजूद नहीं था, जबकि
भैरोंसिंह शेखावत अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद इसमें शामिल हुए। तेजी बच्चन के स्व.इन्दिरा
गाँधी से व्यक्तिगत सम्बन्ध रहे और उन्होंने हमेशा राजीव गाँधी को अपने पुत्र के
समान माना और स्नेह दिया। अब तक तो यही देखने में आया है कि अमिताभ के खिलाफ़ आयकर
विभाग को सतत काम पर लगाया गया, जया बच्चन
की राज्यसभा सदस्यता “दोहरे लाभ
पद” वाले मामले में कुर्बान करनी पड़ी,
जबकि सोनिया गाँधी को इससे छूट देने के लिए जमीन-आसमान एक किए गए थे.
संक्षेप में
तात्पर्य यह है कि नरेंद्र मोदी से काँग्रेस की खुन्नस इतनी अधिक है कि अब गुजरात
में अच्छा काम करने वाली कंपनियों को सम्मानित करने में भी इन्हें झिझक महसूस होने
लगी है.
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