ऐ ग्राफ़िक डिजाइनरों, सावधान… पता नहीं किस आकृति में अल्लाह दिखाई दे जाये… ... Graphic Designers Beware Allah Symbol

Written by मंगलवार, 02 मार्च 2010 13:57
कुछ माह पहले एप्पल कप्म्यूटर्स की नवनिर्मित इमारत को काले कपड़े से ढँक कर उसका निर्माण कार्य किया जा रहा था, चूंकि इमारत का आकार चौकोर था, इसलिये कुछ धर्मान्धों को उसमें “काबा” की शक्ल दिखाई दे गई और उन्होंने हंगामा खड़ा कर दिया था। यहाँ देखें… http://www.thepatri0t.net/2006/11/08/apples-mecca-non-sense/

आये दिन जब-तब समूचे विश्व भर में ऐसे मामले सामने आते रहते हैं जब फ़लाँ चित्र से, फ़लाँ कृत्य से, फ़लाँ डिजाइन से “मुसलमानों की भावनाएं आहत हुई हैं…” का राग सुनाई दे जाता है (क्या इनकी भावनायें इतनी कमजोर हैं कि किसी काल्पनिक बात से भी आहत हो जाती हैं?)। माना जा सकता है कि एकाध मामले में जानबूझकर शरारती तत्व इन्हें छेड़ने के लिये ऐसा करता हो, लेकिन सभी मामलों को धर्म, धार्मिक चिन्हों और भावनाओं तथा अस्मिता के साथ जोड़ देना भी ठीक नहीं है। एप्पल की बिल्डिंग (जिसे “काबा” का प्रतिरूप कहकर हंगामा किया था) तो हाल ही का उदाहरण है, लेकिन इसके पहले भी ऐसे कई मामले आ चुके हैं, जहाँ कल्पना के घोड़े दौड़ाकर किसी आकृति को इस्लाम के साथ जोड़ दिया गया हो… आईये देखें…



सन् 1997-98 की बात है, जब जूता बनाने वाली अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी “नाईकी” को बाज़ार से अपने 8 लाख जोड़ी जूते वापस लेने को मजबूर किया गया, क्योंकि जूते पर जो अंग्रेजी शब्द Air (हवा) लिखा हुआ था, उसकी डिजाइन अरबी लिपि के शब्द “अल्लाह” से मिलती-जुलती लगती थी, जबकि कई मुस्लिम विद्वानों ने भी देखा और माना कि यह आकृति “अल्लाह” तो कतई नहीं है बल्कि साफ़-साफ़ “AIR” है, लेकिन उन्मादियों को समझाये कौन? पाकिस्तान से डॉ अहमद जमाल चौधरी ने अपनी टिप्पणी में भी कहा कि “इस आकृति का अर्थ अल्लाह के रूप में निकालना नितांत मूर्खता है, हो सकता है कि पहली नज़र में यह अरबी लिपि का अल्लाह दिखता हो, लेकिन यह साफ़ Air लिखा है, जब अरबी लिपि को दाँये से बाँये पढ़ा जाता है तब यह अल्लाह कैसे हो सकता है? लेकिन जैसा कि होता आया है विद्वानों और उदारवादियों की आवाज़ अनसुनी कर दी गई, और नाईकी को जूते वापस लेने पड़े।

Nike Shoes

इसी प्रकार सितम्बर 2005 में एक और पढ़े-लिखे मुस्लिम राशिद अख्तर ने इंग्लैण्ड में “बर्गर किंग” नामक ब्राण्ड की आइसक्रीम के डिजाइन पर आपत्ति उठाई और कहा कि यह आकृति “अल्लाह” शब्द से मिलती है, मैं इस आइसक्रीम कोन के विज्ञापन बनाने वाले डिजाइनर को चैन से नहीं बैठने दूंगा…। जबकि उस कोन के विज्ञापन को आड़ा करके देखने पर ही अरबी लिपि के “अल्लाह” जैसा आभास होता है, लेकिन फ़िर भी हंगामा होना ही था, सो हुआ… और “धार्मिक भावनाओं का सम्मान”(?) करते हुए नाईकी कम्पनी की तरह बर्गर किंग ने लाखों की संख्या में अपने आइसक्रीम कोन और विज्ञापन बाज़ार से वापस लिये।

इसी प्रकार एक सज्जन(?) को कॉफ़ी के मशहूर ब्राण्ड “कोज़ी” (http://www.getcosi.com/) के एक कप पर कॉफ़ी से उठती भाप के लोगो को उलटा करके देखने पर भी “अल्लाह” दिखाई दे गया। आप भी देखिये…



विश्व इस्लामिक कॉन्फ़्रेंस 2006 की बैठक के दौरान एक पत्रकार ने “संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयुक्त” के लोगो में भी “अल्लाह” की आकृति देख ली (बताईये भला, ये भी कोई बात हुई, कहाँ तो मानवाधिकार का नाम और कहाँ ऐसा आपत्तिजनक लोगो?), कहने का मतलब ये है कि “अल्लाह” शब्द सर्वव्यापी है वह कहीं भी दिखाई दे सकता है, बस देखने वाली “नज़र-ए-खास” चाहिये।



सामान्यतः “कोकाकोला” कम्पनी को अमेरिकी पूंजीवाद का प्रवर्तक माना जाता है और वामपंथियों से इसकी दुश्मनी काफ़ी पुरानी है, लेकिन कोकाकोला कम्पनी के विश्वप्रसिद्ध लोगो में भी “धार्मिक भावनाएं भड़कने का सामान” ढूंढ लिया गया, कहा गया कि कोकाकोला के ब्राण्ड लोगो को आईने में उलटा करके देखने पर जो अरबी शब्द बनता है वह है “ना तो मोहम्मद है, न ही मक्का है” (कल्पना की बेहतरीन उड़ान)… आईये देखें कि कैसे…



पहले चित्र में कोकाकोला का मूल लोगो है, दूसरे चित्र में उसे आईने में उल्टा करके देखा गया और फ़िर उससे मिलते-जुलते अरबी लिपि के शब्द दिखाकर मुसलमानों से अपील की गई है कि वे पूरे विश्व में कोकाकोला के उत्पादों का बहिष्कार करें (गनीमत है कि कोकाकोला से उसका लोगो बदलने को नहीं कहा…)। यह एक शोध का विषय हो सकता है कि विश्व के कितने मुसलमानों ने कोकाकोला पीना छोड़ दिया, लेकिन आकृतियों में कुछ खास बात ढूंढने वाली निगाह के क्या कहने…। 


कहने का तात्पर्य यह है, कि ऐ ग्राफ़िक डिजाइनरों, संभल जाओ, पता नहीं किस आकृति में, किस चीज़ पर छपे, किस लोगो में… “अल्लाह” की छवि दिखाई दे जाये। कोई भी डिज़ाइन बनाने के बाद उसे आड़ा-तिरछा-उलटा-पुलटा करके, आईने के सामने रखकर, पानी में डालकर, आग में तपाकर, सभी दूर से चेक कर लेना कि कहीं गलती से भी “अल्लाह” (या कोई और इस्लामिक धार्मिक चिन्ह) न दिखाई दे जाये… वरना तगड़ी व्यावसायिक चोट हो जायेगी।

(समाजशास्त्रियों के लिये एक और शोध का विषय दे रहा हूं - भारत में रहने वाले कितने मुसलमानों को अरबी लिपि का ज्ञान है…… चलिये शुद्ध अरबी लिपि छोड़िये, शुद्ध उर्दू लिपि का ज्ञान कितने प्रतिशत मुसलमानों को है… इस पर शोध किया जाये)।

अब थोड़ा हटकर एक पैराग्राफ़ –

हाल ही में मकबूल फ़िदा हुसैन के भारत न लौटने और कतर की नागरिकता ग्रहण किये जाने पर भी काफ़ी बड़ा “वामपंथी-सेकुलर छातीकूट अभियान” चलाया गया, जबकि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के पक्षधर, कला और कलाकार की भावनाओं का सम्मान करने, व्यक्तिगत आज़ादी के पहरुआ आदि होने का ढोंग करने वालों ने डेनमार्क के कार्टूनिस्ट के पक्ष में खड़े होने से इनकार कर दिया, तसलीमा नसरीन को भारत में पीटा गया तब भी मुँह नहीं खोला, सलमान रुशदी की पुस्तक तथा फ़िल्म “द विंसी कोड” पर प्रतिबन्ध लगा दिये जाने पर भी रजाई ओढ़कर सोये रहे… सारे पाखण्डी।

खैर अब ज़रा इन चित्रों को देखिये, इन चित्रों में से किसी आकृति को आड़ा-तिरछा-उलटा-पुलटा-आईना करके देखने की जरूरत नहीं है… सब कुछ साफ़ है…



यदि किसी को पता हो तो बतायें, कि इन्हें बनाने वाले कलाकार(?), पेण्टर को कितनी बार पीटा गया? ऐसे भद्दे और धार्मिक भड़काऊ उत्पाद बनाने वाली कितनी कम्पनियों में आग लगाई गई? विदेशों में कितने लोगों ने इसका बहिष्कार किया, ईसाई अथवा मुस्लिम समाज के कितने "धर्मनिरपेक्ष" प्रतिनिधियों ने इनके खिलाफ़ आवाज़ उठाई?

लेकिन फ़िर भी, नाथूराम गोडसे की पुस्तक और नाटक पर प्रतिबन्ध अवश्य होना चाहिये, तथा हिन्दू देवताओं की नंगी तस्वीरें बनाई जा सकती हैं उन तस्वीरों को बनाने वाले कलाकार को "भारत रत्न" दिलवाने के लिये लॉबिंग की जा सकती है… हिन्दू भगवानों को चप्पल, अंडरवियर आदि पर भी चित्रित किया जा सकता है, भगवान शिव को कुत्ते के रूप में दर्शाया जा सकता है… क्योंकि हिन्दू तो  *#@#*!!*  हैं (क्या खुद अपने मुँह से कहूं… आप तो जानते ही हैं कि हिन्दू "क्या" और "कैसे" हैं… और यह नतीजा है पिछले 60 साल से लगातार लगाये जा रहे सेकुलरिज़्म और गाँधीवाद के इंजेक्शनों का…………)।


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I am a Blogger, Freelancer and Content writer since 2006. I have been working as journalist from 1992 to 2004 with various Hindi Newspapers. After 2006, I became blogger and freelancer. I have published over 700 articles on this blog and about 300 articles in various magazines, published at Delhi and Mumbai. 


I am a Cyber Cafe owner by occupation and residing at Ujjain (MP) INDIA. I am a English to Hindi and Marathi to Hindi translator also. I have translated Dr. Rajiv Malhotra (US) book named "Being Different" as "विभिन्नता" in Hindi with many websites of Hindi and Marathi and Few articles. 

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