Dalit Christians in Tamilnadu

Written by मंगलवार, 16 दिसम्बर 2014 14:19
“दलित ईसाईयों” द्वारा वेटिकन दूतावास के सामने विरोध प्रदर्शन...


तमिलनाडु के कई तमिल कैथोलिक संगठनों ने चेन्नई में वेटिकन दूतावास के सामने “दलित ईसाईयों”(?) के साथ छुआछूत और भेदभाव के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया. एक पूर्व-दलित वकील फ्रेंकलिन सीज़र थॉमस ने यह विरोध मार्च आयोजित किया था, उन्होंने बताया कि सन 2011 में जब तिरुची के एक क्रिश्चियन विद्यालय से दलित किशोर माईकल राजा को अपमानजनक पद्धति से निकाल दिया गया था, तब से लेकर आज तक दक्षिण तमिलनाडु के रामनाथपुरम तथा शिवगंगा जिलों में उच्च वर्गीय कैथोलिक्स तथा दलित ईसाईयों के बीच कई संघर्ष हो चुके हैं, तथा कई दलितों को चर्च में घुसने से मना कर दिया गया है.





इस प्रदर्शन में शामिल भीड़ को देखते हुए चेन्नई पुलिस ने वेटिकन दूतावास के सामने सुरक्षा कड़ी कर दी थी. इसमें शामिल कुछ लोगों को ही अंदर जाने दिया गया, जिन्होंने वेटिकन के राजदूत को साल्वातोर पिनाशियो को अपना ज्ञापन सौंपा. इस अवसर पर प्रेस से वार्ता करते हुए एक संगठन के अध्यक्ष कुन्दथाई आरासन ने कहा कि उन्हें स्थानीय चर्चों एवं डायोसीज के निराशाजनक रवैये के कारण मजबूर होकर वेटिकन के समक्ष गुहार लगानी पड़ रही है. दलित ईसाईयों के साथ तमिलनाडु में बेहद खराब व्यवहार हो रहा है. अपने ज्ञापन में संगठनों ने सोलह बिंदुओं पर अपनी माँगें रखी हैं. दलितों के साथ चर्च में छुआछूत, बदसलूकी, दलितों को पादरी नहीं बनाए जाने तथा कब्रिस्तान में अलग से दफनाए जाने एवं अपमानजनक नामों से बुलाए जाने को लेकर कई गंभीर शिकायतें हैं, जिन पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. फ्रेंकलिन ने कहा कि जब तक हमारी माँगें पूरी नहीं होतीं, तब तक हमारा विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा. 

पुअर क्रिश्चियन लिबरेशन संघ का कहना है कि जो दलित कैथोलिक ईसाईयों के बहकावे में आकर हिन्दू धर्म छोड़कर ईसाई बने, उन्हें अब गहन निराशा हो रही है. उन्हें लगने लगा है कि उनके साथ धोखा हुआ है. उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी सन 2011 के अक्टूबर में लगभग 200 दलित पादरियों ने चेन्नई में प्रदर्शन किया था क्योंकि उस समय भी रामेश्वरम में झूठे आरोप लगाकर छः दलित ईसाई पादरियों को नौकरी और चर्च से निकाल दिया गया था. दलित पादरियों का आरोप है कि हमेशा विशेष अवसरों एवं खास प्रार्थनाओं के मौके पर उन्हें न तो कोई अधिकार दिए जाते हैं और ना ही उनके हाथों कोई धार्मिक प्रक्रियाएँ पूरी करवाई जाती हैं. प्रदर्शनकारियों में शामिल ननों ने कहा कि हिन्दू धर्म की जाति व्यवस्था से हताश होकर वे ईसाई बने थे, परन्तु यहाँ आकर भी उनके साथ वैसा ही बर्ताव हो रहा है.


दलित ईसाई विचारक एवं जेस्यूट वकील फादर येसुमारियन कहते हैं कि यह कैथोलिक चर्च के दोहरे मापदण्ड एवं चरित्र दर्शाता है. हम यह मानकर ईसाई बने थे कि यहाँ “जाति की दीवार” नहीं होगी, परन्तु हमारे तो कब्रिस्तान भी अलग बना दिए गए हैं. मानवता, शान्ति और पवित्रता का नारा देने वाले वेटिकन ने भी जातियों एवं उच्चवर्गीय कैथोलिकों को ध्यान में रखकर अलग-अलग कब्रिस्तान बनाए हैं, यह बेहद निराशाजनक है. देश के संविधान ने जातिप्रथा एवं छुआछूत को भले ही गैरकानूनी कहा है, परन्तु कैथोलिक चर्च एवं ईसाई समाज में इस क़ानून का कोई असर नहीं है. धर्म-परिवर्तित ईसाईयों से कोई भी उच्चवर्गीय कैथोलिक विवाह करना पसंद नहीं करता है. चेन्नई के अखबारों में छपने वाले विज्ञापनों को देखकर सहज ही अंदाजा हो जाता है, जिनमें कैथोलिक युवाओं वाले कालम में साफ़-साफ़ लिखा होता है कि “सिर्फ कैथोलिक ईसाई ही विवाह प्रस्ताव भेजें”.

कुछ तथाकथित प्रगतिशील एवं बुद्धि बेचकर खाने वाले वामपंथी बुद्धिजीवी अक्सर हिन्दू धर्म को कोसते समय “ईसाई पंथ” का उदाहरण देते हैं, लेकिन वास्तविकता तो यही है कि चर्च में भी दलितों के साथ वैसा ही भेदभाव जारी है, लेकिन दलित ईसाईयों और दलित पादरियों की आवाज़ मीडिया द्वारा अनसुनी कर दी जाती है, क्योंकि प्रमुख मीडिया संस्थानों पर आज भी वामपंथी और हिन्दू विरोधी ही काबिज हैं. यदि चर्च में होने वाले बलात्कारों एवं दलितों के साथ होने वाले छुआछूत की ख़बरें मुख्यधारा में आएँगी तो उनकी ही खिल्ली उड़ेगी, इसलिए ऐसी ख़बरें वे दबा देते हैं और किसी शंकराचार्य के बयान को चार-छह दिनों तक तोडमरोड कर पेश करते हैं.

चेन्नई में एक सर्वे के दौरान जब एक NGO ने इन दलित ईसाईयों से पूछा, कि उन्होंने अभी तक अपना नाम हिन्दू पद्धति एवं जाति का ही क्यों रखा हुआ है? उसका जवाब था कि, इससे “दोहरा फायदा” मिलता है... चर्च की तरफ से मिलने वाली राशि, नौकरी, बच्चों की पढ़ाई में छूट के अलावा हिन्दू नामधारी व दलित होने के कारण जाति प्रमाण-पत्र के सहारे दूसरी शासकीय योजनाओं एवं नौकरियों में भी फायदा मिल जाता है. दलितों को मिलने वाले फायदे में से एक बड़ा हिस्सा ये परिवर्तित ईसाई कब्ज़ा कर लेते हैं, परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि कथित दलित नेताओं को यह बात पता है, परन्तु उनकी चुप्पी रहस्यमयी है. 
Read 1928 times Last modified on शुक्रवार, 30 दिसम्बर 2016 14:16
Super User

 

I am a Blogger, Freelancer and Content writer since 2006. I have been working as journalist from 1992 to 2004 with various Hindi Newspapers. After 2006, I became blogger and freelancer. I have published over 700 articles on this blog and about 300 articles in various magazines, published at Delhi and Mumbai. 


I am a Cyber Cafe owner by occupation and residing at Ujjain (MP) INDIA. I am a English to Hindi and Marathi to Hindi translator also. I have translated Dr. Rajiv Malhotra (US) book named "Being Different" as "विभिन्नता" in Hindi with many websites of Hindi and Marathi and Few articles. 

www.google.com