63 पत्नियों के हत्यारे “मुगल” के बारे में जानिये – बीजापुर की “साठ-कब्र” Bijapur Saat Kabar Fanatic Mughal Emperors
Written by Super User शुक्रवार, 01 मई 2009 18:23
जलन, असुरक्षा और अविश्वास इन तत्वों से तो इस्लामी शासनकाल के पन्ने रंगे पड़े हैं, जहाँ भाई-भाई, और पिता-पुत्र में सत्ता के लिये खूनी रंजिशें की गईं, लेकिन क्या आपने सुना है कि कोई शासक अपनी 63 पत्नियों को सिर्फ़ इसलिये मार डाले कि कहीं उसके मरने के बाद वे दोबारा शादी न कर लें… है ना आश्चर्यजनक बात!!! लेकिन सच है…
यूँ तो कर्नाटक के बीजापुर में गोल गुम्बज और इब्राहीम रोज़ा जैसी कई ऐतिहासिक इमारतें और दर्शनीय स्थल हैं, लेकिन एक स्थान ऐसा भी है जहाँ पर्यटकों को ले जाकर इस्लामी आक्रांताओं के कई काले कारनामों में से एक के दर्शन करवाये जा सकते हैं। बीजापुर-अठानी रोड पर लगभग 5 किलोमीटर दूर एक उजाड़ स्थल पर पाँच एकड़ में फ़ैली यह ऐतिहासिक कत्लगाह है। “सात कबर” (साठ कब्र का अपभ्रंश) ऐसी ही एक जगह है। इस स्थान पर आदिलशाही सल्तनत के एक सेनापति अफ़ज़ल खान द्वारा अपनी 63 पत्नियों की हत्या के बाद बनाई गई कब्रें हैं। इस खण्डहर में काले पत्थर के चबूतरे पर 63 कब्रें बनाई गई हैं।

इतिहास कुछ इस प्रकार है कि एक तरफ़ औरंगज़ेब और दूसरी तरफ़ से शिवाजी द्वारा लगातार जारी हमलों से परेशान होकर आदिलशाही द्वितीय (जिसने बीजापुर पर कई वर्षों तक शासन किया) ने सेनापति अफ़ज़ल खान को आदेश दिया कि इनसे निपटा जाये और राज्य को बचाने के लिये पहले शिवाजी पर चढ़ाई की जाये। हालांकि अफ़ज़ल खान के पास एक बड़ी सेना थी, लेकिन फ़िर भी वह ज्योतिष और भविष्यवक्ताओं पर काफ़ी भरोसा करता था। शिवाजी से युद्ध पर जाने के पहले उसके ज्योतिषियों ने उसके जीवित वापस न लौटने की भविष्यवाणी की। उसी समय उसने तय कर लिया कि कहीं उसकी मौत के बाद उसकी पत्नियाँ दूसरी शादी न कर लें, इसलिये सभी 63 पत्नियों को मार डालने की योजना बनाई।
अफ़ज़ल खान अपनी सभी पत्नियों को एक साथ बीजापुर के बाहर एक सुनसान स्थल पर लेकर गया। जहाँ एक बड़ी बावड़ी स्थित थी, उसने एक-एक करके अपनी पत्नियों को उसमें धकेलना शुरु किया, इस भीषण दुष्कृत्य को देखकर उसकी दो पत्नियों ने भागने की कोशिश की लेकिन उसने सैनिकों को उन्हें मार गिराने का हुक्म दिया। सभी 63 पत्नियों की हत्या के बाद उसने वहीं पास में सबकी कब्र एक साथ बनवाई।

आज की तारीख में इतना समय गुज़र जाने के बाद भी जीर्ण-शीर्ण खण्डहर अवस्था में यह बावड़ी और कब्रें काफ़ी ठीक-ठाक हालत में हैं। यहाँ पहली दो लाइनों में 7-7 कब्रें, तीसरी लाइन में 5 कब्रें तथा आखिरी की चारों लाइनों में 11 कब्रें बनी हुई दिखाई देती हैं और वहीं एक बड़ी “आर्च” (मेहराब) भी बनाई गई है, ऐसा क्यों और किस गणित के आधार पर किया गया, ये तो अफ़ज़ल खान ही बता सकता है। वह बावड़ी भी इस कब्रगाह से कुछ दूर पर ही स्थित है। अफ़ज़ल खान ने खुद अपने लिये भी एक कब्र यहीं पहले से बनवाकर रखी थी। हालांकि उसके शव को यहाँ तक नहीं लाया जा सका और मौत के बाद प्रतापगढ़ के किले में ही उसे दफ़नाया गया था, लेकिन इससे यह भी साबित होता है कि वह अपनी मौत को लेकर बेहद आश्वस्त था, भला ऐसी मानसिकता में वह शिवाजी से युद्ध कैसे लड़ता? मराठा योद्धा शिवाजी के हाथों अफ़ज़ल खान का वध प्रतापगढ़ के किले में 1659 में हुआ।
वामपंथियों और कांग्रेसियों ने हमारे इतिहास में मुगल बादशाहों के अच्छे-अच्छे, नर्म-नर्म, मुलायम-मुलायम किस्से-कहानी ही भर रखे हैं, जिनके द्वारा उन्हें सतत महान, सदभावनापूर्ण और दयालु(?) बताया है, लेकिन इस प्रकार 63 पत्नियों की हत्या वाली बातें जानबूझकर छुपाकर रखी गई हैं। आज बीजापुर में इस स्थान तक पहुँचने के लिये ऊबड़-खाबड़ सड़कों से होकर जाना पड़ता है और वहाँ अधिकतर लोगों को इसके बारे में विस्तार से कुछ पता नहीं है (साठ कब्र का नाम भी अपभ्रंश होते-होते “सात-कबर” हो गया), जो भी हो लेकिन है तो यह एक ऐतिहासिक स्थल ही, सरकार को इस तरफ़ ध्यान देना चाहिये और इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहिये। लोगों को मुगलकाल के राजाओं द्वारा की गई क्रूरता को भी पता होना चाहिये। आजकल टूरिज़्म के क्षेत्र में “डार्क टूरिज़्म” (Dark Tourism) का नया फ़ैशन चल पड़ा है, जिसमें विभिन्न देशों के पर्यटक ऐसे भयानक पर्यटन(?) स्थल को देखने की इच्छा रखते हैं। इंडोनेशिया में बाली का वह समुद्र तट बहुत लोकप्रिय हो रहा है जहाँ आतंकवादियों ने बम विस्फ़ोट करके सैकड़ों मासूमों को मारा था, इसी प्रकार तमिलनाडु में सुदूर स्थित गाँव जिन्हें सुनामी ने लील लिया था वहाँ भी पर्यटक जा रहे हैं, तथा हाल ही में मुम्बई के हमले के बाद नरीमन हाउस को देखने भारी संख्या में दर्शक पहुँच रहे हैं, उस इमारत में रहने वाले लोगों ने गोलियों के निशान वैसे ही रखे हुए हैं और जहाँ-जहाँ आतंकवादी मारे गये थे वहाँ लाल घेरा बना रखा है, पर्यटकों को दिखाने के लिये। “मौत को तमाशा” बनाने के बारे में सुनने में भले ही अजीब लगता हो, लेकिन यह हो रहा है।
ऐसे में यदि खोजबीन करके भारत के खूनी इतिहास में से मुगल बादशाहों द्वारा किये गये अत्याचारों को भी बाकायदा पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाये तो क्या बुराई है? कम से कम अगली पीढ़ी को उनके कारनामों के बारे में तो पता चलेगा, वरना “मैकाले-मार्क्स” के प्रभाव में वे तो यही सोचते रहेंगे कि अकबर एक दयालु बादशाह था (भले ही उसने सैकड़ों हिन्दुओं का कत्ल किया हो), शाहजहाँ अपनी बेगम से बहुत प्यार करता था (मुमताज़ ने 14 बच्चे पैदा किये और उसकी मौत भी एक डिलेवरी के दौरान ही हुई, ऐसा भयानक प्यार? शाहजहाँ खुद एक बच्चा पैदा करता तब पता चलता), या औरंगज़ेब ने जज़िया खत्म किया और वह टोपियाँ सिलकर खुद का खर्च निकालता था (भले ही उसने हजारों मन्दिर तुड़वाये हों, बेटी ज़ेबुन्निसा शायर और पेंटर थी इसलिये उससे नफ़रत करता था, भाई दाराशिकोह हिन्दू धर्म की ओर झुकाव रखने लगा तो उसे मरवा दिया… इतना महान मुगल शासक?)…
तात्पर्य यह कि इस “दयालु मुगल शासक” वाले वामपंथी “मिथक” को तोड़ना बहुत ज़रूरी है। बच्चों को उनके व्यक्तित्व के उचित विकास के लिये सही इतिहास बताना ही चाहिये… वरना उन्हें 63 पत्नियों के हत्यारे के बारे में कैसे पता चलेगा…
(सूचना का मूल स्रोत यहाँ देखें)
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नोट : क्या आप जानते हैं, कि भारत में एक मुगल हमलावर (जो समूचे भारत को दारुल-इस्लाम बनाने का सपना देखता था) की दरगाह पर मेला लगता है, जहाँ हिन्दू-मुस्लिम “दुआएं”(???) माँगने जाते हैं… उसके बारे में भी शीघ्र ही लेख पेश किया जायेगा…
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यूँ तो कर्नाटक के बीजापुर में गोल गुम्बज और इब्राहीम रोज़ा जैसी कई ऐतिहासिक इमारतें और दर्शनीय स्थल हैं, लेकिन एक स्थान ऐसा भी है जहाँ पर्यटकों को ले जाकर इस्लामी आक्रांताओं के कई काले कारनामों में से एक के दर्शन करवाये जा सकते हैं। बीजापुर-अठानी रोड पर लगभग 5 किलोमीटर दूर एक उजाड़ स्थल पर पाँच एकड़ में फ़ैली यह ऐतिहासिक कत्लगाह है। “सात कबर” (साठ कब्र का अपभ्रंश) ऐसी ही एक जगह है। इस स्थान पर आदिलशाही सल्तनत के एक सेनापति अफ़ज़ल खान द्वारा अपनी 63 पत्नियों की हत्या के बाद बनाई गई कब्रें हैं। इस खण्डहर में काले पत्थर के चबूतरे पर 63 कब्रें बनाई गई हैं।

इतिहास कुछ इस प्रकार है कि एक तरफ़ औरंगज़ेब और दूसरी तरफ़ से शिवाजी द्वारा लगातार जारी हमलों से परेशान होकर आदिलशाही द्वितीय (जिसने बीजापुर पर कई वर्षों तक शासन किया) ने सेनापति अफ़ज़ल खान को आदेश दिया कि इनसे निपटा जाये और राज्य को बचाने के लिये पहले शिवाजी पर चढ़ाई की जाये। हालांकि अफ़ज़ल खान के पास एक बड़ी सेना थी, लेकिन फ़िर भी वह ज्योतिष और भविष्यवक्ताओं पर काफ़ी भरोसा करता था। शिवाजी से युद्ध पर जाने के पहले उसके ज्योतिषियों ने उसके जीवित वापस न लौटने की भविष्यवाणी की। उसी समय उसने तय कर लिया कि कहीं उसकी मौत के बाद उसकी पत्नियाँ दूसरी शादी न कर लें, इसलिये सभी 63 पत्नियों को मार डालने की योजना बनाई।
अफ़ज़ल खान अपनी सभी पत्नियों को एक साथ बीजापुर के बाहर एक सुनसान स्थल पर लेकर गया। जहाँ एक बड़ी बावड़ी स्थित थी, उसने एक-एक करके अपनी पत्नियों को उसमें धकेलना शुरु किया, इस भीषण दुष्कृत्य को देखकर उसकी दो पत्नियों ने भागने की कोशिश की लेकिन उसने सैनिकों को उन्हें मार गिराने का हुक्म दिया। सभी 63 पत्नियों की हत्या के बाद उसने वहीं पास में सबकी कब्र एक साथ बनवाई।

आज की तारीख में इतना समय गुज़र जाने के बाद भी जीर्ण-शीर्ण खण्डहर अवस्था में यह बावड़ी और कब्रें काफ़ी ठीक-ठाक हालत में हैं। यहाँ पहली दो लाइनों में 7-7 कब्रें, तीसरी लाइन में 5 कब्रें तथा आखिरी की चारों लाइनों में 11 कब्रें बनी हुई दिखाई देती हैं और वहीं एक बड़ी “आर्च” (मेहराब) भी बनाई गई है, ऐसा क्यों और किस गणित के आधार पर किया गया, ये तो अफ़ज़ल खान ही बता सकता है। वह बावड़ी भी इस कब्रगाह से कुछ दूर पर ही स्थित है। अफ़ज़ल खान ने खुद अपने लिये भी एक कब्र यहीं पहले से बनवाकर रखी थी। हालांकि उसके शव को यहाँ तक नहीं लाया जा सका और मौत के बाद प्रतापगढ़ के किले में ही उसे दफ़नाया गया था, लेकिन इससे यह भी साबित होता है कि वह अपनी मौत को लेकर बेहद आश्वस्त था, भला ऐसी मानसिकता में वह शिवाजी से युद्ध कैसे लड़ता? मराठा योद्धा शिवाजी के हाथों अफ़ज़ल खान का वध प्रतापगढ़ के किले में 1659 में हुआ।
वामपंथियों और कांग्रेसियों ने हमारे इतिहास में मुगल बादशाहों के अच्छे-अच्छे, नर्म-नर्म, मुलायम-मुलायम किस्से-कहानी ही भर रखे हैं, जिनके द्वारा उन्हें सतत महान, सदभावनापूर्ण और दयालु(?) बताया है, लेकिन इस प्रकार 63 पत्नियों की हत्या वाली बातें जानबूझकर छुपाकर रखी गई हैं। आज बीजापुर में इस स्थान तक पहुँचने के लिये ऊबड़-खाबड़ सड़कों से होकर जाना पड़ता है और वहाँ अधिकतर लोगों को इसके बारे में विस्तार से कुछ पता नहीं है (साठ कब्र का नाम भी अपभ्रंश होते-होते “सात-कबर” हो गया), जो भी हो लेकिन है तो यह एक ऐतिहासिक स्थल ही, सरकार को इस तरफ़ ध्यान देना चाहिये और इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहिये। लोगों को मुगलकाल के राजाओं द्वारा की गई क्रूरता को भी पता होना चाहिये। आजकल टूरिज़्म के क्षेत्र में “डार्क टूरिज़्म” (Dark Tourism) का नया फ़ैशन चल पड़ा है, जिसमें विभिन्न देशों के पर्यटक ऐसे भयानक पर्यटन(?) स्थल को देखने की इच्छा रखते हैं। इंडोनेशिया में बाली का वह समुद्र तट बहुत लोकप्रिय हो रहा है जहाँ आतंकवादियों ने बम विस्फ़ोट करके सैकड़ों मासूमों को मारा था, इसी प्रकार तमिलनाडु में सुदूर स्थित गाँव जिन्हें सुनामी ने लील लिया था वहाँ भी पर्यटक जा रहे हैं, तथा हाल ही में मुम्बई के हमले के बाद नरीमन हाउस को देखने भारी संख्या में दर्शक पहुँच रहे हैं, उस इमारत में रहने वाले लोगों ने गोलियों के निशान वैसे ही रखे हुए हैं और जहाँ-जहाँ आतंकवादी मारे गये थे वहाँ लाल घेरा बना रखा है, पर्यटकों को दिखाने के लिये। “मौत को तमाशा” बनाने के बारे में सुनने में भले ही अजीब लगता हो, लेकिन यह हो रहा है।
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तात्पर्य यह कि इस “दयालु मुगल शासक” वाले वामपंथी “मिथक” को तोड़ना बहुत ज़रूरी है। बच्चों को उनके व्यक्तित्व के उचित विकास के लिये सही इतिहास बताना ही चाहिये… वरना उन्हें 63 पत्नियों के हत्यारे के बारे में कैसे पता चलेगा…
(सूचना का मूल स्रोत यहाँ देखें)
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नोट : क्या आप जानते हैं, कि भारत में एक मुगल हमलावर (जो समूचे भारत को दारुल-इस्लाम बनाने का सपना देखता था) की दरगाह पर मेला लगता है, जहाँ हिन्दू-मुस्लिम “दुआएं”(???) माँगने जाते हैं… उसके बारे में भी शीघ्र ही लेख पेश किया जायेगा…
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