नव-पपाराजियों की धुलाई पर स्यापा क्यों ?

Written by रविवार, 22 अप्रैल 2007 11:18

कल ही खबर पढी कि ऐश-अभि की शादी का कवरेज करने गये पत्रकारों और सुरक्षाकर्मियों के बीच झडप हुई, कुछ दिन पहले स्टार न्यूज के दफ़्तर पर भी हमला हुआ, जिसे प्रेस पर हमला बताकर कई भाईयों ने निन्दा की...तो भाईयों सबसे पहले तो यह खयाल दिल से निकाल दें कि ये लोग पत्रकार हैं, ये लोग हैं भारत में पनप रही "नव-पपाराजियों" की भीड़, जिसका पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं है..इन लोगों के लिये भारत और भारत की समस्याएं मतलब है...

अमिताभ की मन्दिर परिक्रमा, ऐश-अभिषेक की शादी, क्रिकेट और सचिन तेंडुलकर, या कोई फ़ैशन शो, या कोई बेमतलब का प्यार-अपहरण-हत्या का केस, जिसे घंटों, दिनों, महीनों चबाये रह सकते हैं किसी तथाकथित टीआरपी के नाम पर..इन्हें ना तो यह पता है कि नक्सलियों का आतंक कहाँ तक और कैसे पहुँच गया है, न इन्हें इस बात से कोई मतलब है कि गेहूँ की बम्पर फ़सल के बावजूद उसके दाम बढ रहे हैं, ना ही ये जानते हैं कि वायदा बाजार में सट्टेबाजी के कारण दालें आम आदमी की पहुँच से बाहर होती जा रही हैं, भ्रष्टाचार और अनैतिकता से सडा हुआ समाज इन्हें नहीं दिखता...किसानों की आत्महत्याएं इन्हें नहीं झकझोरतीं...और भी बहुत कुछ नहीं दिखता और ना ही सुनाई देता है..इन्हें तो बस कैमरे और माईक लेकर भारत की जनता को बेवकूफ़ बनाने में मजा आता है...काहे के पत्रकार..ये तो भूखे भेडिये बन गये हैं...एंजेलीना जोली के सुरक्षाकर्मियों ने जो एक "पपारजी" के साथ किया उसमें कुछ भी गलत नहीं था और जो अब भारत में यहाँ-वहाँ-जहाँ-तहाँ..मत पूछो कहाँ-कहाँ, जैसी इन तथाकथित पत्रकारों की पिटाई हो रही है उसमें स्यापा करने की कोई जरूरत नहीं है, इनसे कोई सहानुभूति जताने की भी जरूरत नहीं है । जो वर्ग आम जनता से कट चुका है उसके लिये क्या रोना-धोना ? बल्कि मैं तो एक कदम आगे जाकर इन लोगों की "कम्बल-कुटाई" के पक्ष में हूँ...(कम्बल कुटाई का मतलब होता है, पहले उस पर कम्बल डाल दो और फ़िर जमकर धुलाई करो..ताकि भविष्य में वह पहचान भी ना सके कि किसने धुलाई की थी...वरना फ़िर से शिकारी कुत्ते की तरह ये उसके पीछे पड जायेंगे)। लेकिन ये सुधरने वाली जमात नहीं है.. अभिषेक-ऐश की शादी से निपटेंगे तो विश्वकप फ़ायनल आ जायेगा, फ़िर उससे निपटते ही उत्तरप्रदेश के चुनावों के परिणाम आ जायेंगे... फ़िर कोई राखी सावन्त आ जायेगी, फ़िर कोई छिछोरा रिचर्ड गेर चूमा-चाटी में लग जायेगा.. मतलब इन पत्रकारों के पास काम (?) की कोई कमी नहीं रहने वाली... तो इन्हें कूटे खाने दो.. अपन तो अपना काम करें..

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