HRCE क़ानून द्वारा न केवल हिन्दू मंदिरों, चैरिटेबल संस्थाओं, आश्रमों बल्कि हिन्दूओं द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों पर भी सरकारों का मजबूत शिकंजा है. RTE नामक बिल जो सोनिया गांधी के कार्यकाल में लाया गया था, उसका उद्देश्य अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं को प्रश्रय देने और हिन्दुओं द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों को बंद करने का षड्यंत्र है, (RTE नामक दूसरे काले क़ानून पर एक पूरी लेखमाला अलग से बनेगी). फिलहाल हम फोकस करते हैं अंग्रेजों द्वारा बनाए गए और फिर काले अंग्रेजों द्वारा उसमें संशोधन करके निरंतर बनाए रखे हुए उस क़ानून (Hindu Temple Endowment Act) पर जो कि “केवल और केवल” हिन्दू मंदिरों को लूटने का साधन बना हुआ है. “स्वराज्य” नामक पत्रिका कोई मामूली पत्रिका नहीं है, इसमें बाकायदा रिसर्च आधारित लेख आते रहते हैं. इसी पत्रिका में एक तुलनात्मक चार्ट पेश किया गया है, उसका अनुवाद आपके सामने पेश कर रहा हूँ...
तुलनात्मक चार्ट इस प्रकार है...
प्रश्न मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च
१) क्या पूजास्थल सरकार द्वारा नियंत्रित है? हाँ नहीं नहीं नहीं
२) क्या वर्तमान पूजास्थलों के अलावा और भी पूजास्थल
सरकार द्वारा अधिगृहित किए जा सकते हैं? हाँ नहीं नहीं नहीं
३) क्या इन पूजास्थलों का आर्थिक प्रबंधन सरकार के हाथ में है? हाँ नहीं नहीं नहीं
४) क्या सरकार इन पूजास्थलों के प्रशासनिक प्रबंधन के साथ की जाने वाली
पूजा पद्धति में भी हस्तक्षेप कर सकती है? हाँ नहीं नहीं नहीं
५) क्या सरकार इन पूजास्थलों की संपत्ति को अधिग्रहण अथवा बेच सकती है? हाँ नहीं नहीं नहीं
६) क्या इन पूजास्थलों पर आयकर देय है? हाँ नहीं नहीं नहीं
७) क्या इस पूजास्थल से प्राप्त आय को सरकार अपनी मनमर्जी से
कहीं भी खर्च कर सकती है?? हाँ नहीं नहीं नहीं
८) क्या पूजास्थल पर आने वाले भक्त/अनुयायी मंदिर के प्रबंधन अथवा
अर्थव्यवस्था के बारे में अपनी राय रख सकते हैं? नहीं हाँ हाँ हाँ
९) इन पूजास्थलों द्वारा चलाई जा रही समाजसेवा एवं शिक्षण संस्थाओं में
सरकार हस्तक्षेप कर सकती है? हाँ नहीं नहीं नहीं
१०) इन पूजास्थलों द्वारा चलाई जा रही सामाजिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं में
शिक्षकों, स्टाफ एवं छात्रों में कोई भेदभाव किया जा सकता है?? नहीं हाँ हाँ हाँ
इस सारणी में दसवाँ बिंदु सीधे तौर पर HRCE Act से सम्बन्धित नहीं है, परन्तु यह RTE क़ानून से सम्बन्धित है, जिसके अनुसार हिन्दू मंदिरों अथवा आश्रमों द्वारा संचालित स्कूलों में शिक्षा, स्टाफ एवं छात्रों के लिए जो नियम बनाए जाएँगे, वह सरकार की नीति के अनुसार बनाए जाएँगे, जबकि अन्य पंथों की संस्थाओं के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं है, इसलिए मदरसे अथवा कान्वेंट स्कूल अपनी मर्जी का स्टाफ, अपनी मर्जी के शिक्षक, अपनी मर्जी के नियम-क़ानून और अपनी मर्जी के छात्रों की भर्ती कर सकते हैं. अतः उपरोक्त सारणी से स्पष्ट है कि इस काले क़ानून का उपयोग केवल हिन्दुओं के मंदिरों की संपत्ति लूटने, उन पर नकेल कसे रखने के लिए ही किया जाता है. इसलिए HRCE क़ानून में तत्काल ऐसे बदलाव होने आवश्यक हैं, जिससे यह काला क़ानून भेदभावरहित बने. या तो मंदिरों को इससे मुक्त किया जाए, अथवा अन्य सभी पंथों के पूजास्थलों पर भी सरकार का नियंत्रण स्थापित हो.