भारत की जाति व्यवस्था और ‘छुआ-छूत’ बड़ी संख्या में सामाजिक विज्ञान शोधकर्ताओं, इतिहासकारों और यहां तक ​​कि आधुनिक समय में आम जनता के लिए गहरी रुचि का विषय रहा है। भारत में व्याप्त कास्ट की धारणाओं ने गैर-भारतीयों के दिमाग में ऐसी गहरी जड़ें जमा ली हैं कि मुझे अक्सर पश्चिमी लोगों के साथ अनौपचारिक बातचीत के दौरान पूछा जाता है कि क्या मैं अगड़ी जाति की हूँ?

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आज से दो वर्ष पूर्व शूद्र वर्ण विमर्श नामक शोध कार्य को मैंने हाथ में लिया था। हालांकि इसका काफी हिस्सा साल वर्ष 2005 में पीएचडी के दौरान ही तैयार कर लिया था। पीएचडी में भारतीय प्रबंध चिन्तन मेरा विषय था। भारत में प्राचीन काल से अत्यंत सुन्दर प्रबंध प्रणाली रही थी जिसमें मानव संसाधन और मानव संबंध सिद्धांत से जुड़े वर्तमान पाश्चात्य चिन्तन को उत्पादन की उत्कृष्टता के सन्दर्भ में कहीं ज्यादा गहराई से रेखांकित किया गया था। इस प्राचीन भारतीय प्रबंधन में शूद्र वर्ण को लेकर अनेक प्रश्न खड़े किए जाते हैं। जिनके उत्पादन और सेवाओं के द्वारा प्राचीन काल से भारत समृद्धि के शिखर पर पहुंचा तो उन शूद्रों के बारे में यह बातें कहां से आ गईं कि उन्हें पढऩे के अधिकार से वंचित रखा जाता था, उनके साथ भेदभाव होता था, उनका उच्च जातियों ने भयानक शोषण किया। ऐसे अनेक सवाल जो हर किसी शोध अध्येता के मन में उठ सकते हैं, मेरे मन में भी तब उठे।

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हिंदू समाज (Hindu Dharma) विश्व का सबसे संगठित समाज है हांलाकि आज भारत में तरह-तरह के ऐसे संगठन उत्पन्न हो गए हैं जो हिंदू समाज की मुख्य समस्या उसका असंगठित होना बताते हैं। इन संगठनों के इस विचार के पीछे स्वयं हिंदू समाज के विषय में उनका अज्ञान तो है ही, विश्व के विषय में भी गहरा अज्ञान है। पता नहीं कि वह संसार के किस समाज से हिंदू समाज की तुलना करके उसे असंगठित बताते हैं।

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सबसे पहले टेवेर्नियर (Tavernier) के बारे में... यह व्यक्ति एक फ्रांसीसी यात्री था, जिसने 1630 से 1668 के बीच ईरान और भारत की 6 बार यात्रा की थी, और वह भारत में एक लाख 20 हजार मील से अधिक घूमा.

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पश्चिमी विचारक मारिया विर्थ का यह लेख भारत के कई क्षेत्रों में पसंद और कई में नापसंद किया जाएगा, क्योंकि इसमें उन्होंने भारत की जाति-व्यवस्था को तोड़ने तथा ब्राह्मणों पर आए दिन होने वाले वैचारिक हमलों की पूरी पोल खोल दी है.

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यह निर्विवाद है कि भारत की अति प्राचीन सामाजिक व्यवस्था पूरी दुनिया की तुलना में अधिक विकसित तथा वैज्ञानिक थी। उस समय भारत वैज्ञानिक मामलों में भी दुनिया में उपर था, सामाजिक मामलों में तो था ही।

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