गंगा-जमुनी संस्कृति का टोकरा केवल हिंदुओं के माथे

Written by रविवार, 03 सितम्बर 2017 12:10

गंगा-जमुनी संस्कृति की दुहाई देते देते हुए कुछ लोगों के कंठ अवरुद्ध हो जाते हैं. अवरुद्ध होते कंठों से बहुत मुश्किल से आवाजें निकल पाती हैं. ये आवाजें बहुत ही सिलेक्टिव होती हैं. रोजों के समय न जाने कितने मंदिरों के द्वार नमाज के लिए खोल दिए जाते हैं, और उस समय गंगा जमुनी तहजीब जमकर हिलोरें ले रही होती है.

मगर लव जिहाद के दुश्चक्र में फंसी लड़कियों के दर्द की बात करते ही यह गंगा जमुनी तहजीब खतरे में पड़ जाती है. गंगा जमुनी तहजीब के पैरोकार हिन्दुओं की असहिष्णुता के विषय में लिखते समय कलम तोड़ देते हैं. मगर उनका कलम-तोड़ लेखन तब हांफने लगता है जब बात आती है केरल में रोज़ बढ़ते पादरियों के द्वारा बच्चों के यौन शोषण की. जब भी कोई पादरी यौन शोषण के आरोप में पकड़ा जाता है. सारी की सारी स्याही सूख जाती है, और जब कोई नन चर्च में यौन शोषण की सच्चाई सामने लाती है, तब यही गंगा-जमुनी तहजीब अचानक सूख कर छुआरा हो जाती है.

दरअसल तब इनका छुआरा होना लाजमी होता है, तब उनके आकाओं पर हमला होता है. आकाओं के पापों पर पर्दा डालने में ये लोग सबसे आगे रहते हैं. ईद की शुरुआत हुई मीडिया के द्वारा नायक बनाए गए गोरखपुर के खलनायक डॉ. कफील की गिरफ्तारी से. मुझे नहीं पता कि डॉ. कफील को मुस्लमान होने का विक्टिम कार्ड कभी खुद खेलने की जरूरत होगी, जब मीडिया में ही उसके इतने पैरोकार बैठे हैं. कफील को नायक भी केवल और केवल मुस्लिम होने की वजह से बचाया गया था. मगर यह सच है कि उसे फंसाया मुस्लिम होने की वजह से नहीं जा रहा है. ये उसके अपने कर्म हैं, जो ईद पर वह क़ानून के हाथ में आया है.

इसी तरह से गंगा जमुनी तहजीब के पैरोकार किसी भी मुस्लिम देश में या किसी भी ईसाई देश में हिन्दू धर्म को लेकर सहिष्णुता का राग खूब अलापते हैं. मगर जैसे ही कोई विपरीत खबर आती है, वैसे ही ये लोग इसका ज़िक्र भी करना मुनासिब नहीं समझते! ताज़ा मामला है स्पेन के कैडिज़ में कैथोलिक प्रीस्ट को केवल इसलिए इस्तीफा देना पड़ गया क्योंकि उन्होंने चर्च में एक गणेश चतुर्थी की शोभायात्रा का स्वागत कर लिया था. प्राप्त समाचार बताते हैं कि उस जगह के स्थानीय हिन्दू चर्च के द्वार पर कुछ फूल चढाना चाहते थे. वहां पर मौजूद पादरी वाईकर जनरल फादर जुअन जोज़ मैथ्यू कास्त्रो ने मूर्ति सहित पूरी शोभायात्रा को चर्च में आमंत्रित कर लिया. इस पूरी घटना का वीडियो भी मौजूद है. इस वीडियो में चर्च में प्रवेश करते समय और चर्च से बाहर जाते समय गणेश आरती भी है. इस अवसर पर एक कैथलिक परिवार गणेश जी के लिए ‘हेल मेरी’ भी गाते हुए देखी गयी.

Ganesh in Church

 

मगर गंगा जमुना तहजीब के पैरोकारों को यह जानकार बहुत ही दुःख होगा कि कैथोलिक चर्च, अपने पादरी की इस हरकत से बिलकुल भी खुश नहीं हुआ और असहिष्णुता का आलम इतना कि दूसरे धर्म के गणेश को अपने चर्च में इतनी इज्ज़त देने वाले फादर को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. बिशप ने इस घटना (यानी गणेशजी की मूर्ति को चर्च के अंदर लाने) पर दुःख जताते हुए कहा कि उन्हें इस घटना पर बहुत अफ़सोस है जिसने ईसाई धर्म को नुकसान पहुंचाया है. जबकि स्थानीय हिन्दुओं ने इस कदम की सराहना करते हुए कहा कि वे इस कदम से बहुत खुश हैं और इससे वे ईसाई समुदाय की और इज्ज़त करने लगे हैं.

https://youtu.be/GGMsFpHtpk8 

(इस वीडियो को देखकर "चर्च" भड़क गया और पादरी को इस्तीफ़ा देना पड़ा)

यह घटना जहां एक तरफ उस पादरी की दूसरे धर्म के प्रति सहिष्णुता को दिखाती है, तो वहीं उनका इस्तीफा कहीं न कहीं कैथोलिक समुदाय की कट्टरता को दिखलाती है. आखिर वह क्या भावना है जो मात्र मूर्ति के प्रवेश करने से ही आहत हो जाती है? क्या कोई धर्म इतना कमज़ोर है जो दूसरे धर्म की मूर्ति के प्रवेश करते ही विघटित हो जाए. केवल चर्च में बप्पा के आने से चर्च अपवित्र हो गया? क्या पादरी के इस कदम का स्वागत नहीं होना चाहिए था? या कहा जाए सहिष्णुता का पूरा का पूरा टोकरा केवल और केवल हिन्दुओं के जिम्मे ही है, जो मुम्बई के गणेश पंडाल में नमाज पढवाएं, जो अपने बच्चों को सांता क्लॉज बनवाएँ और जो अपने त्योहारों पर मुस्लिम बहुल बंगाल जैसे प्रदेश में मूर्तियों का विसर्जन अगले दिन करें!

तो भैये... बात ये है कि हिंदुओं के सिर पर बहुत बोझ है सहिष्णुता के टोकरे का, बाकी धर्मों के लोग भी मिलजुलकर इस बोझ को हल्का करें न! करके देखिये, अच्छा लगेगा... तो "हे कथित प्रगतिशील बुद्धिजीवी", बताओ न मस्जिद में हनुमान चालीसा कब करवा रहे हो?? 

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