लेकिन जो सामान्य मनुष्य होता है, उसे ऐसे बड़े-बड़े कार्यों के पीछे का गुप्त रहस्य और दूरदृष्टि की जानकारी और समझ, दोनों ही नहीं होती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अजीत डोभाल, देश के राष्ट्रीय रहस्यों को कभी भी उजागर नहीं करते हैं, इस का फायदा उठाते हुए विपक्ष के कुछ टुच्चे किस्म के नेता सरदार पटेल की इस रिकॉर्ड प्रतिमा के बारे में राजनीति करते हैं, मोदीजी की खिल्ली उड़ाते हैं. चूँकि विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है, अतः वे स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के बारे में भला-बुरा कह रहे हैं. इसलिए बेहद मजबूरी में मुझे स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के जो खास-खास रहस्य हैं, उनको उजागर करना पड़ रहा है. मैं आशा करता हूँ कि आप भी इन रहस्यों को गुप्त ही रखेंगे.
विदेशों में सरदार पटेल की प्रतिमा की सबसे पहली आलोचना की ब्रिटेन ने, ये कहा कि हमारे पैसों से यह प्रतिमा बनी है. भारत के लोगों को बहुत खराब लगा. लेकिन सामान्य जन अभी इसके पीछे का गूढ़ रहस्य जानते नहीं हैं. कभी आपने विचार किया, कि आखिर ब्रिटेन ने स्टेच्यू ऑफ यूनिटी की आलोचना क्यों की?? असल में ब्रिटेन अमेरिका का खास सहयोगी देश है. मोदीजी ने पटेल प्रतिमा के अंदर एक विशेष तंत्र का समावेश किया हुआ है. यह विशेष तकनीक चीन में निर्मित है, इसीलिए यह प्रतिमा आधी भारत में और आधी चीन में निर्मित हुई है. इस तकनीक से सरदार पटेल की प्रतिमा अरब सागर से लेकर उत्तर भारत की सभी सीमाओं की निगरानी कर सकता है. यदि पश्चिम दिशा से पाकिस्तान के विमान आएँगे, तो यह विशाल प्रतिमा स्वतः ही हलचल करेगी और विशाल हाथों से पकड़कर उन विमानों को गिरा देगी. यदि विमान बड़े हुए तो इस स्टेच्यू के हाथों से रॉकेट निकलेंगे. साथ ही पटेल प्रतिमा के सिर में स्थित जबरदस्त चुम्बकीय बल का उपयोग करके दूर से जा रहे विमानों को भी अपनी तरफ आकर्षित किया जा सकेगा.
केवल इतना ही नहीं, भारत और चीन के ऊपर मंडरा रहे अमेरिकन उपग्रहों को भी यह सरदार प्रतिमा निष्प्रभावी बना देगी. जिस समय अमेरिका का उपग्रह भारत-पाकिस्तान सीमा के ठीक ऊपर होगा, उस समय स्टेच्यू ऑफ यूनिटी से इलेक्ट्रौनिक संदेशों की ऐसी जबरदस्त बमबारी की जाएगी कि अमेरिकी उपग्रह अपना रास्ता भूल जाएगा, और पाकिस्तान की मदद नहीं कर पाएगा. जब से इस प्रतिमा का निर्माण हुआ है, तब से आज तक चार उपग्रह हिन्द महासागर में गिराए जा चुके हैं. इसीलिए ब्रिटेन ने इस प्रतिमा की आलोचना शुरू कर दी है. इसे कहते हैं अजीत डोभाल का मास्टर-स्ट्रोक!!!
लेकिन मित्रों, यह तो अभी मैंने आपको इसकी आधी महिमा ही बताई है. देशवासियों को इस विराट प्रतिमा की पूरी सच्चाई और इसके रहस्य पता चलने ही चाहिए, वर्ना देश का नाकारा विपक्ष स्टेच्यू ऑफ यूनिटी को लेकर जनता को गलत-सलत जानकारियाँ देकर गुमराह करता रहेगा. अभी तक आपने पढ़ा कि सरदार पटेल की या प्रतिमा किसी भी दुश्मन देश के विमान को सीमा पार नहीं करने देती है. तो फिर आपके मन में यह सवाल अवश्य उठेगा कि फिर भारत के विमानों का क्या होगा?? यदि सरदार प्रतिमा ऐसे ही विमानों को गिराती रही तो हम सर्जिकल स्ट्राईक कैसे करेंगे?? इस सवाल का जवाब “राफेल डील” में छिपा है.
मोदी विरोधियों ने राफेल विमान खरीदी समझौते को लेकर जैसा छातीकूट अभियान चलाया है, वह नितांत अशोभनीय है. लेकिन चूँकि उन्हें मोदीजी की रणनीति पता नहीं है और सामान्य ज्ञान कम है इसलिए वे ऐसा कर रहे हैं. राफेल विमानों में ऐसी तकनीक फिट की गई है जिससे वह अक्षांश और देशांश रेखाओं को पढ़ सकता है. ठीक यही तकनीक सरदार पटेल प्रतिमा में भी है. एक निश्चित अक्षांश और देशांश रेखा से बाहर जाने वाली कोई भी वस्तु को स्टेच्यू ऑफ यूनिटी रोक देगी. परन्तु राफेल विमानों में एक विशिष्ट सन्देश उत्पन्न करने वाली तकनीक रखी गई है. यह तकनीक बहुत ही महंगी है. इसके लिए CDMA तकनीक लगती है. अनिल अंबानी ने कुछ वर्षों पूर्व रिलायंस नामक जो फोन भारतीय बाज़ार में लाया था, उसमें यह महंगी वाली तकनीक लगी थी. केवल रिलायंस के पास ही यह शानदार तकनीक है, इसीलिए अनिल अंबानी ने भीषण त्याग करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा की खातिर अपने टावरों का उपयोग Dassault एविएशन कम्पनी को देने का फैसला किया. अंबानी की इस जबरदस्त CDMA तकनीक के कारण ही राफेल विमान में भी संदेशों के आदान-प्रदान की तकनीक सफल हुई है.
तो रहस्य यह है कि स्टेचू ऑफ यूनिटी के अंदर ही CDMA तकनीक का एक टावर स्थापित किया है. यदि एकाध विमान से GPRS अथवा 3G/4G सन्देश आए तो सरदार पटेल की प्रतिमा को तुरंत शक हो जाता है और वह विमान मार गिरा दिए जाएँगे. लेकिन यदि CDMA तकनीक से सन्देश आया तो स्टेच्यू एक सेकण्ड में समझ जाएगी कि ये तो राफेल है, अपना ही विमान है... और इस प्रकार वह सीमा पार कर पाएगा. इस प्रकार अंबानी की तकनीक, राफेल की तकनीक और स्टेच्यू ऑफ यूनिटी की बुद्धिमत्ता इसके संयोग से भारत की सुरक्षा अब अभेद्य है.
अब आपके मन में अंतिम सवाल ये उठेगा कि आखिर सरदार पटेल की प्रतिमा ही क्यों?? गांधीजी अथवा बुद्ध की इतनी ऊँची प्रतिमा क्यों नहीं?? इसका जवाब भी मोदीजी की जबरदस्त आकलन क्षमता और डोभाल जी की शानदार कूटनीति में छिपा है. असल में यदि गांधीजी अथवा बुद्ध की प्रतिमा बनाई जाती तो, देश की जनता उन्हें देखते तो आती और पर्यटन से राजस्व भी मिलता, परन्तु ये दोनों महानुभाव अहिंसावादी हैं. तो फिर गांधीजी अथवा बुद्ध की प्रतिमा विमानों को कैसे मार गिराती? फिर चीन से आई तकनीक, अंबानी की तकनीक, राफेल की तकनीक... सब बेकार हो जाता. इसीलिए मोदीजी के सामने केवल और केवल सरदार पटेल और नेताजी सुभाषचंद्र बोस, यही दो नाम थे. अब चूँकि प्रतिमा का निर्माण गुजरात में होना था, इसलिए सरदार पटेल को चुना गया, ना कि अहिंसा वाले गाँधी को.
यह तो हुई पश्चिमी और उत्तरी सीमा की. लेकिन पूर्वोत्तर एवं दक्षिण दिशा में भारत की सुरक्षा को लेकर आपके मन में सवाल अवश्य आया होगा. जी हाँ!!! सही समझे आप, इसके लिए कोलकाता में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की इतनी ही ऊँची प्रतिमा लगाई जाएगी. नेताजी की इस 182 मीटर ऊँची प्रतिमा से न केवल बांग्लादेश से आने वाले अवैध घुसपैठियों पर निगाह रखी जा सकेगी, बल्कि ठेठ तिब्बत में चीन क्या कर रहा है, यह भी दिखाई देगा. लेकिन इस बार ऊँची प्रतिमा का काम अमेरिकी सरकार को दिया जाएगा. इसके पीछे की कूटनीति यह है कि पटेल की प्रतिमा चीन ने बनाई और नेताजी की प्रतिमा अमेरिका बनाएगा तो दोनों की तकनीक भारत को मिलेगी ही, साथ ही ये दोनों महाशक्तियां आपस में एक दूसरे से खुन्नस भी रखने लगेंगी और भारत को लुभाने का प्रयास करती रहेंगी. इस प्रकार मोदीजी एक तीर से दो निशाने साधते हुए दोनों महाशक्तियों को आपस में भिड़ा देंगे और फिर विश्व में भारत अकेली महाशक्ति बचेगा. जब तक अमेरिका और चीन, मोदीजी की इस कूटनीति को समझ पाएँगे, तब तक RSS के स्वयंसेवक पाकिस्तान-अफगानिस्तान-तिब्बत और ताईवान पर हमला करके उस पर कब्ज़ा जमा चुके होंगे. राफेल विमानों के कारण फ्रांस अमेरिका का साथ नहीं देगा... ब्रिटेन की नज़र भी भारतीय बाजारों पर है, इसलिए वह भी अमेरिका का साथ नहीं देगा... रूस के पुतिन ने पहले ही मोदीजी को आश्वासन दिया हुआ है कि वे भारत को महाशक्ति बनाएँगे. कहने का तात्पर्य ये है कि केवल दो ऊँची-ऊँची प्रतिमाओं के निर्माण से ही भारत विश्व की एकमात्र महाशक्ति बन जाएगा.... और ज़ाहिर है कि यह सब मोदीजी की कूटनीति के कारण हो रहा है.
इतनी दूरदृष्टि वाला कोई भी नेता वैश्विक स्तर पर किसी भी देश में जन्म नहीं ले सका है... ऐसा महान नेता केवल और केवल भारत के पास है. परमेश्वर ने मोदीजी के रूप में इस अवतारी कार्य के कारण ही इस धरा पर जन्म लिया है. चूँकि मोदीजी स्वयं दिल्ली में स्थापित हैं, इसलिए वहाँ पर ऊँची प्रतिमा बनाने की आवश्यकता नहीं है. जैसे ही इस देश में मोदीजी का अवतारी कार्य समाप्त होगा, उसके पश्चात माउंट एवरेस्ट पर उनकी इतनी ऊँची प्रतिमा लगाई जाएगी कि चंद्रमा भी घबराकर अपनी कक्षा बदल लेगा... तो यह है सरदार पटेल प्रतिमा का गुप्त रहस्य, जो आज हमारे माध्यम से पहली बार दुनिया के सामने लाया जा रहा है. अस्तु...
(हिन्दी अनुवाद :- सुरेश चिपलूनकर)