दाभोलकर मर्डर केस : CBI का शक, धन की हेराफेरी पर

Written by मंगलवार, 18 अप्रैल 2017 14:03

भारत की गरीब और अशिक्षित जनता को शिक्षित करने का ठेका अधिकांशतः प्रगतिशील बुद्धिजीवियों ने ले रखा है. समाज से (यानी केवल हिन्दू समाज से) “अंधविश्वास” को मिटाने के नाम पर ऐसे ही एक “प्रगतिशील बुद्धिजीवी” नरेंद्र दाभोलकर साहब ने 1989 में महाराष्ट्र में एक संस्था बनाई थी “अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति” (ANS).

इस समिति के पिछले बीस वर्षों का रिकॉर्ड देखा जाए तो इन्होंने अपना 99.9% कार्य हिंदुओं में फैले अंधविश्वासों को दूर करने में किया. दिक्कत यह है कि जिसे ये बुद्धिजीवी लोग अन्धविश्वास कहते रहे हैं, वह ग्रामीण भारत की सनातन संस्कृति में “दृढ़ विश्वास” के रूप में प्रचलित है. दाभोलकर साहब ने हिन्दू धर्म से जुड़े संस्कारों, रीतिरिवाजो और परम्पराओं को ही अपना निशाना बनाया.

20 अगस्त 2013 को नरेंद्र दाभोलकर की अज्ञात नकाबपोशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. उस समय सोनिया अम्मा की UPA सरकार केन्द्र में तथा, शरद पवार साहब की सत्ता महाराष्ट्र में थी. स्वाभाविक है कि हिन्दू धर्म के खिलाफ कार्य करने वाले किसी कुख्यात आदमी की हत्या होने पर सोनिया-पवार दोनों ही सरकारों ने अपने दल-बल के साथ हिंदुओं पर आरोप मढे, कई हिंदूवादी संस्थाओं और समितियों पर दाभोलकर की ह्त्या को लेकर छापेमारी की गई. हिंदुओं को बदनाम करने के लिए ऊटपटांग बयानबाजी की गई, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. दाभोलकर के हत्यारे आज तक पकड़ में नहीं आए... अलबत्ता हिन्दू जनजागरण समिति यानी गोवा की सनातन संस्था को बदनाम करने में काँग्रेस-NCP को सफलता हासिल हो गई. मीडिया में ऐसा प्रपंच रचा गया कि दाभोलकर की हत्या सिर्फ हिन्दू संगठनों का ही काम हो सकता है. जबकि वास्तविकता कुछ और ही है. सनातन संस्था के वकील पहले दिन से ही कह रहे थे कि दाभोलकर की हत्या के पीछे “आर्थिक कारण” हैं, ना कि राजनैतिक या धार्मिक. यह बात अब CBI की जाँच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, उससे सिद्ध होती नजर आ रही है. आईये संक्षेप में दाभोलकर साहब के NGO वाले धंधे और गोरखधंधे को समझने का प्रयास करते हैं....

देश भर में चल रही 25,000 स्वयंसेवी संस्थाओं (यानी NGO) में से एक NGO दाभोलकर साहब का भी था, यानी “अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति”, जिसका गठन ट्रस्ट क़ानून के तहत हुआ था. इस ट्रस्ट के खिलाफ 2008 से ही आर्थिक अनियमितताओं की शिकायतें मिलने लगी थीं. परन्तु उस समय तो दाभोलकर पर सोनिया और शरद पवार का वरदहस्त था, कौन क्या उखाड़ लेता? हाल ही में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने सीबीआई से आग्रह किया है कि वह जल्दी से जल्दी इस मामले की गहन जाँच करे ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके. इस सम्बन्ध ने सतारा जिले के पब्लिक ट्रस्ट रजिस्ट्रार ने सीबीआई को कुछ दस्तावेज सौंपे हैं, जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि दाभोलकर की हत्या के पीछे “पैसों के लेनदेन” का खेल है.

१) दाभोलकर के अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति नामक ट्रस्ट की आय 2004 तक कोई खास नहीं थी, लेकिन 2004 से लेकर 2010 तक इस ट्रस्ट की आय में जबरदस्त और संदिग्ध तरीके से बढ़ोतरी हुई. इस ट्रस्ट द्वारा कुछ निवेश भी किए गए, जिनका साफ़-सुथरा रिकॉर्ड नहीं रखा गया, और ना ही चैरिटी कमिश्नर को इस ट्रस्ट की सभी गतिविधियों की रिपोर्ट नियमित रूप से सौंपी गई. स्वाभाविक रूप से यह मुम्बई पब्लिक ट्रस्ट क़ानून 1950 की कई धाराओं का उल्लंघन था, लेकिन जब सैंया भए कोतवाल तो अब डर काहे का, की तर्ज पर दाभोलकर से पूछताछ करने की किसी की हिम्मत नहीं थी.

२) ट्रस्ट के दस्तावेजों के अनुसार इन्होंने गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय की सहमति और अनुमति से FCRA (अर्थात विदेशों से धन प्राप्त करने) का लाईसेंस भी ले रखा था. इस आठ वर्ष के कार्यकाल में दाभोलकर के ट्रस्ट को करोड़ों रूपए का चंदा विदेशों से प्राप्त हुआ. लेकिन क़ानून के अनुसार उस पैसों को कहाँ और कैसे खर्च किया गया, इसका कोई हिसाब-किताब नहीं रखा गया. हाल ही में जब मोदी सरकार ने NGOs पर नकेल कसने की शुरुआत की तब पता चला कि दाभोलकर के ट्रस्ट ने पिछले कई वर्षों से FCRA का कोई रिकॉर्ड पेश ही नहीं किया है.

३) 2006 में महाराष्ट्र फाउन्डेशन ऑफ इण्डिया की USA शाखा ने दाभोलकर को दस लाख रूपए का ईनाम दिया था (पता नहीं किसलिए?). यह कहा गया कि यह पूरी राशि दाभोलकर ने अपने ट्रस्ट को दान में दे दी है, लेकिन जब सारे रिकॉर्ड सीबीआई ने जाँच किए तब पता चला कि इन दस लाख रुपयों का कोई हिसाब-किताब ट्रस्ट के रजिस्टर या बैलेंस शीत में नहीं है. फिर ये दस लाख रूपए गए कहाँ??

४) ऐसा नियम है कि प्रतिवर्ष ट्रस्ट का ऑडिट किसी निरपेक्ष संस्था से करवाया जाना चाहिए, लेकिन 2005-2010 के छः वर्षों में विदेशों से बड़ी मात्रा में धन मिलने के बावजूद कोई ऑडिट नहीं करवाया गया. जब मोदी सरकार ने लगातार पत्र-व्यवहार किया तब जाकर इस ट्रस्ट ने आधा-अधूरा रिकॉर्ड पेश किया. इन सभी अनियमितताओं को देखते हुए अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति का FCRA लाईसेंस मोदी सरकार ने 01.11.2016 के बाद से नवीनीकृत नहीं किया. 1990 से अभी तक लगातार अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के प्रमुख ट्रस्टी रहे हैं, प्रतापराव पवार जो कि रिश्ते में शरद पवार के भाई लगते हैं. इसीलिए 2004-2014 के सोनिया-पवार शासनकाल में इस ट्रस्ट पर न कोई कार्यवाही हुई, न कोई जवाबतलब हुआ... बल्कि यह ट्रस्ट विदेशों से पैसा लेकर और भी फला-फूला.

अब यह निश्चित हो चला है कि दाभोलकर की हत्या के तार इन्हीं आर्थिक कड़ियों से कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं. लेकिन इसके अलावा इसमें एक और एंगल है “नक्सलवाद” का. महाराष्ट्र CID की जाँच के अनुसार नरेंद्र दाभोलकर की संस्था के कई सदस्य नक्सलवादियों के जीवंत संपर्क में थे. राज्य के पुलिस महानिदेशकों की बैठक में यह तथ्य उभरकर सामने आया था कि महाराष्ट्र में 62 संगठन ऐसे हैं जो संदिग्ध हैं तथा जिनका अंतरसंबंध नक्सलियों के साथ है, इन 62 में से एक नाम अंधश्रध्दा निर्मूलन समिति का भी था. सात मई 2007 को नागपुर की दीक्षाभूमि पर अफरातफरी मचाने और आतंक फैलाने के जुर्म में जिस नक्सली को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, उसका नाम है नरेश बनसोडे जो कि गोंदिया की अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति का अध्यक्ष है. इसके पास से दो रिवाल्वर तथा कई मोबाईल जब्त किए गए. तत्काल अगस्त 2007 में दाभोलकर साहब बनसोडे की गिरफ्तारी के खिलाफ हाईकोर्ट तक चले गए. हालाँकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने बनसोडे को “सबूतों के अभाव में” संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया, परन्तु दाभोलकर के ट्रस्ट की ऐसे व्यक्तियों से नजदीकी सीबीआई की निगाह में शक पैदा करने के लिए काफी थी, अतः इस कोण से भी जाँच की जा रही है.

यदि सीबीआई इन दोनों पहलुओं खासकर आर्थिक लेनदेन को दृष्टिगत रखते हुए अपनी जाँच करे तो दाभोलकर की हत्या का रहस्य सुलझाया जा सकता है, क्योंकि सोनिया माता के राज में NGOs का चोखा धंधा लाखों-करोड़ों रुपयों की आवाजाही का माध्यम बन चुका था... और ऐसा कहते हैं कि जहाँ हराम के धन का अत्यधिक आवागमन बढ़ जाता है वहाँ अपराध घटित होते ही हैं. चार वर्षों की जाँच के बावजूद दाभोलकर की हत्या में सीबीआई को इसमें कोई “हिंदूवादी एंगल” नहीं मिल... तो क्यों न इसके “आर्थिक एंगल” को भी ठीक से टटोला जाए. क्या दाभोलकर के ट्रस्ट ने विदेशी धन की हेराफेरी की थी? या इस संदिग्ध ट्रस्ट की नक्सलियों के साथ कोई अनबन हो गई थी

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