Radha Kumar, Kashmir Interlocutors, Dilip Padgaonkar

Written by शुक्रवार, 12 अगस्त 2011 11:17
यह “सीनाजोरी” किसकी शह पर? – सन्दर्भ राधा कुमार (कश्मीर वार्ताकार)……

अभी कुछ दिनों पहले ही अमेरिका ने पाकिस्तान के एक ISI एजेण्ट गुलाम नबी फ़ई को बेनकाब किया था, जो कि पाकिस्तान से पैसा लेकर विश्व भर के अनेक केन्द्रों पर “कश्मीर की आज़ादी” विषय पर सेमिनार, कान्फ़्रेंस इत्यादि आयोजित करता था जिसमें भारत के “तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवी” बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे और अरुंधती रॉय जैसों के जाल में फ़ँसकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की किरकिरी करवाते रहते हैं… बदले में गुलाम नबी से मोटी रकम भी हासिल करते हैं। (यहाँ पढ़ें… Ghulam Nabi Fai, Indian Secular Intellectuals)

जैसा कि सभी को पता है भारत सरकार ने कश्मीर की समस्या के “सर्वमान्य”(?) हल निकालने हेतु चार “बुद्धिजीवी विशेषज्ञों”(?) की टीम बनाई है जिन्हें “कश्मीर के वार्ताकार” (Interlocuters) कहा जा रहा है। इस पैनल के अध्यक्ष हैं टाइम्स अखबार के पूर्व सम्पादक दिलीप पडगाँवकर। यह पैनल कश्मीर के विभिन्न गुटों से चर्चा करके कश्मीर समस्या के समाधान हेतु सरकार को फ़ार्मूला सुझाएगा। इसी पैनल की एक अन्य सदस्या हैं प्रोफ़ेसर राधा कुमार…। मोहतरमा Delhi Policy Group नामक एक “एलीट समूह” की ट्रस्टी हैं और इन्होंने JNU से Ph.D. की है (JNU का नाम आ गया तो अब ज़ाहिर है कि इन्हें बुद्धिजीवी मानना ही पड़ेगा)। कश्मीर के इन बुद्धिजीवी वार्ताकारों के मुखिया पडगांवकर साहब पहले ही गुलाम नबी फ़ई के सेमिनारों में भाग लेने की पुष्टि कर चुके हैं…

अब खबर आई है कि यह मोहतरमा, राधा कुमार भी ब्रुसेल्स में आयोजित ऐसे ही “भारत विरोधी” सेमिनार में भाग ले चुकी हैं। यूरोपियन संसद के सदस्य जेम्स एलीस और ब्रुसेल्स में “कश्मीर सेण्टर” चलाने वाले अब्दुल मजीद त्राम्बू द्वारा एक कॉन्फ़्रेंस आयोजित की गई थी जिसमें राधा कुमार ने भी भाषण दिया था। अब्दुल मजीद त्राम्बू ISI के मोहरे हैं और इनके संदेहास्पद आर्थिक लेनदेन पर अमेरिका एवं अन्य देशों की खुफ़िया एजेंसियाँ शक ज़ाहिर कर चुकी हैं। 

ताज़ा विवाद और उसमें की गई “सीनाजोरी” का मामला तब शुरु हुआ जब सूचना के अधिकार के तहत एक कार्यकर्ता ने जानकारी माँगी कि कश्मीर के वार्ताकारों की टीम का सदस्य बनने के बाद प्रोफ़ेसर राधा कुमार द्वारा की गईं विदेश यात्राओं का ब्यौरा दिया जाए, ऐसा ही ब्यौरा अन्य वार्ताकारों का भी माँगा गया। बाकी के सदस्यों ने अपनी-अपनी विदेश यात्राओं का ब्यौरा गृह मंत्रालय को सौंप दिया, जिसे सम्बन्धित सूचना माँगने वाले को दे दिया गया। परन्तु प्रोफ़ेसर राधा कुमार बिफ़र गईं और अड़ गईं कि वे अपनी विदेश यात्राओं के बारे में कोई जानकारी नहीं देंगी।

उल्लेखनीय है कि कश्मीर के इन “अदभुत” वार्ताकारों को केन्द्र सरकार की तरफ़ से पिछले 11 माह से प्रतिमाह डेढ़ लाख रुपये + अन्य सभी सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं (ज़ाहिर है कि हमारे खून-पसीने के टैक्स की कमाई में से)। सूचना के अधिकार कानून के अन्तर्गत, सरकार से किसी भी प्रकार का भत्ता अथवा सुविधाएं प्राप्त करने वाला व्यक्ति इस कानून के तहत सूचनाएं देने को बाध्य है (बशर्ते वह राष्ट्रीय सुरक्षा, अंतरिक्ष और सेना से सम्बन्धित न हो)। गृह मंत्रालय ने भी राधा कुमार जी से अनुरोध किया कि वे अपनी विदेश यात्राओं का ब्यौरा पेश करें, परन्तु राधा कुमार का जवाब है कि “वे विदेश में किसी भी सेमिनार में अपनी उपस्थिति के बारे में नहीं बताएंगी…” उन्होंने आगे कहा कि – “मैं इस मुद्दे पर किसी से कोई बात नहीं करने वाली, मेरा सीधा संवाद सिर्फ़ गृहमंत्री और मंत्रालय के उच्चाधिकारियों से होता है, जो कि पूर्णतः गोपनीय है… मैं सिर्फ़ उन्हीं के प्रति जवाबदेह हूँ, एवं इस पर सवाल करने का किसी को हक नहीं है…”।

अपने इस अड़ियल रुख और सीनाजोरी को आगे बढ़ाते हुए (यानी लगभग अहसान जताते हुए) उन्होंने घोषणा कर दी है कि “भविष्य में वे सरकार से किसी भी कार्य हेतु एक पैसा भी नहीं लेंगी…”। कश्मीर के एक अन्य वार्ताकार एमएम अंसारी ने आरटीआई जानकारी हेतु अपने सभी कागजात समय पर मंत्रालय को सौंप दिये। ब्रुसेल्स सेमिनार विवाद के बहाने श्री अंसारी ने दोनों महानुभावों पर निशाना साधते हुए कहा कि “यदि मैं राधा कुमार की जगह होता तो इस्तीफ़ा दे देता…”। इस बीच गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि प्रोफ़ेसर राधा कुमार ने इस्तीफ़ा नहीं दिया है और ऐसा करने पर वह स्वीकार भी नहीं किया जाएगा। मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि वार्ताकारों ने कश्मीर के सभी गुटों से चर्चा के दौर पूरे कर लिये हैं एवं वे अपनी अन्तिम रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। अब आप स्वयं ही समझ सकते हैं कि गुलाम नबी फ़ई से पैसा लेकर विदेशों में कश्मीर की आज़ादी पर भाषण देते घूमने वाले इन वार्ताकारों की “रिपोर्ट” में क्या कहा जाएगा, और कैसे-कैसे सुझाव दिए जाएंगे।

फ़िलहाल सबसे चिंताजनक बात यह है कि सूचना के अधिकार को सरेआम अंगूठा दिखाने वाली राधा कुमार किसकी शह पर सीनाजोरी कर रही हैं? अभी कुछ दिनों पहले ही यह खबर आई थी कि “पवित्र परिवार”(?) भी नियम-कानूनों को धता बताते हुए अपनी विदेश यात्राओं का ब्यौरा लोकसभा सचिवालय को नहीं देता…(यहाँ पढ़ें… Sonia Gandhi's Foreign Trips) अब सरकार से डेढ़ से दो लाख रुपया डकारने के बावजूद, गुलाम नबी फ़ई के सेमिनारों में जाकर डॉलर बटोरने वाले “सो कॉल्ड बुद्धिजीवी” भी नियम-कानून को नहीं मानेंगे तो कैसे काम चलेगा?
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