Padmanabha Swami Temple Kerala Wealth

Written by सोमवार, 04 जुलाई 2011 11:37
पद्मनाभ स्वामी मन्दिर के खजाने पर वामपंथी-सेकुलर गठजोड़ की काली नीयत का साया…   

केरल के विश्वप्रसिद्ध स्वामी पद्मनाभ मन्दिर के तहखानों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत खोला गया, और जैसी कि खबरें छन-छनकर आ रही हैं (या जानबूझकर लीक करवाई जा रही हैं) उनके अनुसार यह खजाना लगभग 60 से 70 हजार करोड़ तक भी हो सकता है (हालांकि यह आँकड़ा अविश्वसनीय और बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया प्रतीत होता है), परन्तु मन्दिर (http://en.wikipedia.org/wiki/Padmanabhaswamy_Temple)(Padmanabha Swamy Temple) के तहखानों से मिली वस्तुओं की लिस्ट में भगवान विष्णु की एक भारी-भरकम सोने की मूर्ति, ठोस सोने के जवाहरात मढ़े हुए नारियल, कई फ़ुट लम्बी सोने की मोटी रस्सियाँ, कई किलो सोने के बने हुए चावल के दाने, सिक्के, गिन्नियाँ, मुकुट एवं हीरे मिलने का सिलसिला जारी है (http://www.daijiworld.com/news/news_disp.asp?n_id=106959&n_tit=Kerala+Temple+Treasure%3A+Value+of+Wealth+Rises+to+1%2C00%2C000+Crore)(Wealth of Padmanabh Temple)
उल्लेखनीय है कि भगवान पद्मनाभ का यह मन्दिर बहुत प्राचीन काल से करोड़ों विष्णु भक्तों की आस्था का केन्द्र रहा है। त्रावणकोर के महाराजा मार्तण्ड वर्मन का राजवंश भगवान पद्मनाभ स्वामी का बहुत बड़ा भक्त रहा है, इस राजवंश ने अपनी सारी सम्पत्ति तथा भक्तों द्वारा भेंट की गई बहुमूल्य सामग्रियों को मन्दिर के नीचे 6 तहखानों में छिपा रखा था। इस मन्दिर का सारा प्रबन्धन एवं खर्च एक ट्रस्ट करता है, जिसका गठन त्रावणकोर राजवंश (http://en.wikipedia.org/wiki/Travancore_Royal_Family)(Travancore Royal Family) द्वारा ही किया गया है। (त्रावणकोर राजवंश ने सन 1750 में ही पूरे घराने को "पद्मनाभ दास" यानी भगवान पद्मनाभ के दास घोषित कर दिया था, इस घराने की रानियाँ "पद्मनाभ सेविनी" कहलाती हैं) कांग्रेस-सेकुलरों तथा वामपंथी सरकारों द्वारा जिस तरह से पिछले 10-15 सालों में लगातार हिन्दू आस्थाओं की खिल्ली उड़ाना, हिन्दू मन्दिरों की धन-सम्पत्ति हड़पने की कोशिशें करना, हिन्दू सन्तों एवं धर्माचार्यों को अपमानित एवं तिरस्कारित करने का जो अभियान चलाया जा रहा है, वह “किसके इशारे” पर हो रहा है यह न तो बताने की जरुरत है और न ही हिन्दू इतने बेवकूफ़ हैं जो यह समझ न सकें। कांची के शंकराचार्य जी को ऐन दीपावली की रात (http://intellibriefs.blogspot.com/2004/12/geopolitical-conspiracy-behind.html)(Kanchi Shankaracharya Arrest) को गिरफ़्तार किये जाने से लेकर, स्वामी लक्षमणानन्द सरस्वती की हत्या, नित्यानन्द को सैक्स स्कैण्डल में फ़ाँसना (http://zeenews.india.com/news/karnataka/court-summons-3-in-nithyananda-sex-scandal_710831.html)(Nityananda Sex Scandal fraud), असीमानन्द को बम विस्फ़ोट में घसीटना, साध्वी प्रज्ञा को हिन्दू आतंकवादी दर्शाना (Sadhvi Pragya Arrest) तथा बाबा रामदेव, आसाराम बापू, और सत्य साईं बाबा को “ठग”, “लुटेरा” इत्यादि प्रचारित करवाना जैसी फ़ेहरिस्त लगातार जारी है, इसी कड़ी में ताजा मामला है स्वामी पद्मनाभ मन्दिर का।
एक याचिकाकर्ता टीपी सुन्दरराजन (पता नहीं यह असली नाम है या कोई छिपा हुआ धर्म-परिवर्तित) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके स्वामी पद्मनाभ मन्दिर ट्रस्ट की समस्त गतिविधियों तथा आर्थिक लेनदेन को “पारदर्शी”(?) बनाने हेतु मामला दायर किया था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार दो जज श्री एमएन कृष्णन तथा सीएस राजन, केरल के मुख्य सचिव के जयकुमार, मन्दिर के मुख्य प्रशासक हरिकुमार, आर्कियोलोजी विभाग के एक अधिकारी तथा त्रावणकोर राजवंश के दो प्रमुख सदस्यों की उपस्थिति में तहखानों को खोलने तथा निकलने वाली वस्तुओं की सूची एवं मूल्यांकन का काम शुरु किया गया। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश था कि जब तक सूची पूरी करके न्यायालय में पेश न कर दी जाए, तब तक किसी अखबार या पत्रिका में इस खजाने का कोई विवरण प्रकाशित न किया जाए, परन्तु सबसे पहले एक सेकुलर पत्रिका(?) मलयाला मनोरमा ने इस आदेश की धज्जियाँ उड़ाईं और भगवान विष्णु की मूर्ति की तस्वीरें तथा सामान की सूची एवं उसके मूल्यांकन सम्बन्धी खबरें प्रकाशित कीं। चटखारे ले-लेकर बताया गया कि मन्दिर के पास कितने करोड़ की सम्पत्ति है, इसका कैसे “सदुपयोग”(?) किया जाए… इत्यादि। हालांकि न तो याचिकाकर्ता ने और न ही मलयाला मनोरमा ने आज तक कभी भी चर्च की सम्पत्ति, उसे मिलने वाले भारी-भरकम विदेशी अनुदानों (http://dialogueindia.in/magazine/Article/tamil-tigers-tatha-father-gesper-avam-2g-spectram-ghotala)(Donations received by Church in India), चर्च परिसरों में संचालित की जा रही व्यावसायिक गतिविधियों से होने वाली आय तथा विभिन्न मस्जिदों एवं मदरसों को मिलने वाले ज़कात एवं खैरात के हिसाब-किताब एवं ‘पारदर्शिता’ पर कभी भी माँग नहीं की। ज़ाहिर है कि ऐसी पारदर्शिता सम्बन्धी “सेकुलर मेहरबानियाँ” सिर्फ़ हिन्दुओं के खाते में ही आती हैं। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि- 1) सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त इस समिति में उपस्थित किसी “भेदिये” के अलावा मन्दिर का कौन सा कर्मचारी इन “हिन्दू विरोधी” ताकतों से मिला हुआ है? 2) क्या सुप्रीम कोर्ट मलयाला मनोरमा (Malayala Manorama) के खिलाफ़ “अदालत की अवमानना” का मुकदमा दर्ज करेगा? 3) इस विशाल खजाने की गिनती और सूचीबद्धता की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई है? 4) मलयाला मनोरमा जैसी “चर्च पोषित” पत्रिकाएं मन्दिर और तहखानों के नक्शे बना-बनाकर प्रकाशित कर रहे हैं, ऐसे में सुरक्षा सम्बन्धी गम्भीर सवालों को क्यों नज़रअन्दाज़ किया जा रहा है, क्योंकि खजाने की गिनती और मन्दिर में हजारों दर्शनार्थियों के नित्य दर्शन एक साथ ही चल रहे हैं, धन-सम्पत्ति की मात्रा और मन्दिर में आने वाले चढ़ावे की राशि को देखते हुए, क्या किसी आतंकवादी अथवा माफ़िया संगठन के सदस्य दर्शनार्थी बनकर इस स्थान की “रेकी” नहीं कर सकते? तब इन “सेकुलर-वामपंथी” पत्रकारों एवं अखबारों को यह प्रकाशित करने का क्या हक है?

यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है कि त्रावणकोर राजवंश के सभी सदस्यों को इस खजाने के बारे में पीढ़ियों से जानकारी थी, परन्तु भारत के वर्तमान राजनैतिक राजवंशों की तरह, क्या मार्तण्ड वर्मा राजवंश ने इस सम्पत्ति को स्विस बैंक में जमा किया? नहीं। चाहते तो आराम से ऐसा कर सकते थे, लेकिन उन्होंने सारी सम्पत्ति भगवान पद्मनाभ मन्दिर को दान देकर, उसका कुछ हिस्सा भक्तों की सुविधा एवं सहूलियत तथा मन्दिर के विभिन्न धार्मिक संस्कारों एवं विकास के लिये उपयोग किया। इतने बड़े खजाने की जानकारी और कब्जा होने के बावजूद त्रावणकोर राजवंश द्वारा अपनी नीयत खराब न करना और क्या साबित करता है? ज़ाहिर है कि मार्तण्ड वर्मा राजवंश ने इस सम्पत्ति को पहले मुगलों की नीच दृष्टि से बचाकर रखा, फ़िर अंग्रेजों को भी इसकी भनक नहीं लगने दी… परन्तु लगता है वर्तमान “सेकुलर-वामपंथी गठजोड़ की लूट” से शायद इसे बचा पाना सम्भव नहीं होगा। आप खुद ही सोचिये कि यदि आप अपनी श्रद्धानुसार कोई बहुमूल्य वस्तु अपने भगवान को अर्पित करते हैं, तो वह मन्दिर की सम्पत्ति होना चाहिए, परन्तु ऐसा है नहीं…। मन्दिरों-मठों की विशाल सम्पत्ति पर सेकुलरिज़्म और वामपंथी-मिशनरी की “काली नीयत” का साया पड़ चुका है, ये लोग सत्य साँई ट्रस्ट (http://www.srisathyasai.org.in/)(Satya Sai Trust) पर भी नज़रें गड़ाये हुए हैं और मौका पाते ही निश्चित रूप से उसे “सरकारी ट्रस्ट” बनाकर उसमें घुसपैठ करेंगे। यह काम पहले भी मुम्बई के सिद्धिविनायक ट्रस्ट में कांग्रेसियों एवं शरद पवार की टीम ने कर दिखाया है।

तात्पर्य यह कि आप जो भी पैसा मन्दिरों में यह सोचकर दान करते हैं कि इससे गरीबों का भला होगा या मन्दिर का विकास होगा… तो आप बहुत ही भोले और मूर्ख हैं। जो पैसा या अमूल्य वस्तुएं आप मन्दिर को दान देंगे, वह किसी सेकुलर या वामपंथी की जेब में पहुँचेगी… अथवा इस पैसों का उपयोग हज के लिए सब्सिडी देने, नई मस्जिदों के निर्माण में सरकारी सहयोग देने, ईसाईयों को बेथलेहम की यात्रा में सब्सिडी देने में ही खर्च होने वाला है। रही मन्दिरों में सुविधाओं की बात, तो सबरीमाला का हादसा अभी सबके दिमाग में ताज़ा है… केरल में हमेशा से सेकुलर-वामपंथी गठजोड़ ही सत्ता में रहा है, जो पिछले 60 साल में इन पहाड़ियों पर पक्की सीढ़ियाँ और पीने के पानी की व्यवस्था तक नहीं कर पाया है, जबकि अय्यप्पा स्वामी के इस मन्दिर से देवस्वम बोर्ड को प्रतिवर्ष करोड़ों की आय होती है। लगभग यही स्थिति तिरुपति स्थित तिरुमाला के मन्दिर ट्रस्ट की है, जहाँ सुविधाएं तो हैं परन्तु ट्रस्ट में अधिकतर स्वर्गीय(?) “सेमुअल” राजशेखर रेड्डी के चमचे भरे पड़े हैं जो धन का मनमाना “सदुपयोग”(?) करते हैं।

देश की आजादी के समय पूरे देश में चर्चों के संचालन-संधारण की जिम्मेदारी पूरी तरह से विदेशी आकाओं के हाथ मे थी, जबकि यहाँ उनके “भारतीय नौकर” चर्चों का सारा हिसाब-किताब देखते थे। 60 साल बाद भी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है और सभी प्रमुख बिशपों का नामांकन सीधे वेटिकन से होता है तथा चर्च व मिशनरी की अधिकांश सम्पत्ति पर नियन्त्रण विदेश से एवं विदेशी बिशपों द्वारा ही होता है। ज़ाहिर है कि चर्च की अकूत सम्पत्ति एवं कौड़ियों के मोल मिली हुई खरबों रुपये की जमीन पर जो व्यावसायिक गतिविधियाँ संचालित होती हैं, उसकी जाँच अथवा बिशपों के घरों में बने तहखानों की तलाशी जैसा “दुष्कृत्य”(?), सेकुलरिज़्म के नाम पर कभी नहीं किया जाएगा।

इस सम्बन्ध में सुझाव यह है कि इस तमाम सम्पत्ति का एक ट्रस्ट बनाया जाए जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान न्यायाधीश करें एवं इसके ब्याज से प्राप्त आय के समस्त खर्चों पर एक समिति निगरानी रखे जिसमें CVC भी शामिल हो। फ़िलहाल इस फ़ण्ड के कुछ हिस्से से भारत की पूरी सीमा पर मजबूत इलेक्ट्रानिक बाड़  लगाई जाए, 50 ड्रोन विमान खरीदे जाएं, 400 स्पीड बोट्स खरीदी जाएं जो सभी प्रमु्ख समुद्र तटों और बन्दरगाहों पर तैनात हों, सीमा पर तैनात होने वाले प्रत्येक सैनिक को 50,000 रुपये का बोनस दिया जाए, पुलिस विभाग के सभी एनकाउंटर ATS दलों के सदस्यों को 25,000 रुपये दिए जाएं, देश के सभी शहरी पुलिस थानों को 4-4 और ग्रामीन थानों को 2-2 तेज और आधुनिक जीपें दी जाएं, तथा एके-47 के समकक्ष रायफ़ल बनाने वाली भारतीय तकनीक विकसित कर बड़ा कारखाना लगाया जाए। इतना करने के बाद भी बहुत सा पैसा बचेगा जिसे सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कें बनाने, वॉच टावर लगाने, प्रमुख नदियों में नहरों का जाल बिछाने, नक्सल प्रभावित इलाकों में बिजली-सड़क पहुँचाने जैसे कामों में लगाया जाए, शर्त सिर्फ़ एक ही है कि इन खर्चों पर नियन्त्रण किसी स्वतन्त्र समिति का हो, वरना सेकुलर-वामपंथी गठजोड़ इसका उपयोग "कहीं और" कर लेंगे…

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चलते-चलते एक विषयान्तर नोट :- मैकाले की संतानें अक्सर भारत को “पिछड़ा” और “अज्ञानी” बताते नहीं थकतीं, परन्तु सैकड़ों साल पहले बने पद्मनाभ मन्दिर के सुव्यवस्थित तहखाने, इनमें हवा के आवागमन और पानी की व्यवस्था तथा बहुमूल्य धातुओं को खराब होने से बचाये रखने की तकनीक, ऐसे मजबूत लॉकरों की संरचना, जिन्हें खोलने में आज के आधुनिक विशेषज्ञों को 6-6 घण्टे लग गये… क्या यह सब हमारे पुरखों को कोई अंग्रेज सिखाकर गया था? पता नहीं किस इंजीनियरिंग की दुहाई देते हैं आजकल के “सो-कॉल्ड” आधुनिक (यानी भारतीय संस्कृति विरोधी) लोग। क्या ये लोग कभी बता पाएंगे कि राजस्थान में बड़े और भारी पत्थरों से बने हुए आमेर के किले को बनाने में कौन सी पश्चिमी इंजीनियरिंग का इस्तेमाल हुआ? वे महाकाय पत्थर इतनी ऊँची पहाड़ी पर कैसे पहुँचे? चूने की जुड़ाई होने के बावजूद इतने सालों से कैसे टिके हुए हैं? ज़ाहिर है कि उनके पास कोई जवाब नहीं है…। लेकिन हाँ, अंग्रेजी किताबें पढ़कर… हिन्दुओं, हिन्दू संस्कृति, भगवा रंग, मन्दिरों-मठों की परम्पराओं इत्यादि को गरियाने जितनी अक्ल अवश्य आ गई है।
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Super User

 

I am a Blogger, Freelancer and Content writer since 2006. I have been working as journalist from 1992 to 2004 with various Hindi Newspapers. After 2006, I became blogger and freelancer. I have published over 700 articles on this blog and about 300 articles in various magazines, published at Delhi and Mumbai. 


I am a Cyber Cafe owner by occupation and residing at Ujjain (MP) INDIA. I am a English to Hindi and Marathi to Hindi translator also. I have translated Dr. Rajiv Malhotra (US) book named "Being Different" as "विभिन्नता" in Hindi with many websites of Hindi and Marathi and Few articles. 

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