बराक हुसैन ओबामा भी "इंडियन स्टाइल सेकुलरवाद" की राह पर??…… Obama India Tour American Secularism
Written by Super User बुधवार, 11 अगस्त 2010 13:43
जैसा सभी जानते हैं कि भारत की तथाकथित "सेकुलर" सरकारें पिछले 60 साल से लगातार "छद्म-सेकुलरवाद" की राह पर चलती आई हैं, जहाँ सेकुलरिज़्म का मतलब किसी अंग्रेजी की डिक्शनरी से नहीं, बल्कि मुस्लिम वोटों को अपनी तरफ़ खींचने की बेशर्मी का दूसरा नाम रहा है। जॉर्ज बुश भले ही पूरी इस्लामिक दुनिया में खलनायक की छवि रखते हों, लेकिन उनके उत्तराधिकारी बराक "हुसैन" ओबामा धीरे-धीरे भारत की तमाम राजनैतिक पार्टियों वाले "सेकुलर पाखण्ड" को अपनाते जा रहे हैं, तर्क दिया जा रहा है कि हमें "मुस्लिमों का दिल जीतना…" है। भारत से तुलना इसलिये कर रहा हूं, क्योंकि ठीक यहाँ की तरह, वहाँ भी "भाण्डनुमा मीडिया" बराक हुसैन की हाँ में हाँ मिलाते हुए "सेकुलरिज़्म" का फ़टा हुआ झण्डा लहराने से बाज नहीं आ रहा।
ताज़ा मामला यह है कि इन दिनों अमेरिका में जोरदार बहस चल रही है कि 9/11 के हमले में ध्वस्त हो चुकी "ट्विन टावर" की खाली जगह (जिसे वे ग्राउण्ड जीरो कहते हैं) पर एक विशालकाय 13 मंजिला मस्जिद बनाई जाये अथवा नहीं? स्पष्ट रुप से इस मुद्दे पर दो धड़े आपस में बँट चुके हैं, जिसमें एक तरफ़ आम जनता है, जो कि उस खाली जगह पर मस्जिद बनाने के पक्ष में बिलकुल भी नहीं है, जबकि दूसरी तरफ़ सत्ता-तन्त्र के चमचे अखबार, कुछ "पोलिटिकली करेक्ट" सेकुलर नेता और कुछ "सेकुलरिज़्म" का ढोंग ओढ़े हुए छद्म बुद्धिजीवी इत्यादि हैं, यानी कि बिलकुल भारत की तरह का मामला है, जहाँ बहुसंख्यक की भावना का कोई खयाल नहीं है।
जिस जगह पर और जिस इमारत के गिरने पर 3000 से अधिक लोगों की जान गई, जिस मलबे के ढेर में कई मासूम जानों ने अपना दम तोड़ा, कई-कई दिनों तक अमेरिकी समाज के लोगों ने इस जगह पर आकर अपने परिजनों को भीगी पलकों से याद किया, आज उस ग्राउण्ड जीरो पर मस्जिद का निर्माण करने का प्रस्ताव बेहद अजीबोगरीब और उन मृतात्माओं तथा उनके परिजनों पर भीषण किस्म का मानसिक अत्याचार ही है, लेकिन बराक हुसैन ओबामा और पोलिटिकली करेक्ट मीडिया को कौन समझाये? ग्राउण्ड जीरो पर मस्जिद बनाने का बेहूदा प्रस्ताव कौन लाया यह तो अभी पता नहीं चला है लेकिन भारतीय नेताओं के सिर पर बैठा हुआ "सेकुलरिज़्म का भूत" अब ओबामा के सिर भी सवार हो गया लगता है। जब से ओबामा ने कार्यभार संभाला है तब से सिलसिलेवार कई घटनाएं हुई हैं जो उनके "इंडियन स्टाइल सेकुलरिज़्म" से पीड़ित होने का आभास कराती हैं।
यह तो सभी को याद होगा कि जब ओबामा पहली बार मिस्त्र के दौरे पर गये थे, तब उन्होंने भाषण का सबसे पहला शब्द "अस्सलामवलैकुम" कहा था और जोरदार तालियाँ बटोरी थीं, उसके बाद से लगातार कम से कम नौ मौकों पर सार्वजनिक रुप से ओबामा ने "I am a Moslem...American Moslem" कहा है, जिस पर कई अमेरिकियों और ईसाईयों की भृकुटि तन गई थी। चलो यहाँ तक तो ठीक है, "अस्सलामवलैकुम" वगैरह कहना या वे किस धर्म को मानते हैं यह घोषित करना, यह कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन सऊदी अरब और जापान के दौरे के समय जिस तरीके से ओबामा ने सऊदी के शाह और जापान के राजकुमार से हाथ मिलाते समय अपनी कमर का 90 डिग्री का कोण बनाया उससे वे हास्यास्पद और कमजोर अमेरिकी राष्ट्रपति नज़र आये थे…(यहाँ देखें...)।
बहरहाल, बात हो रही है बराक हुसैन ओबामा के मुस्लिम प्रेम और उनके सेकुलर(?) होने के झुकाव की…। आगामी नवम्बर में ओबामा का भारत दौरा प्रस्तावित है, जहाँ एक तरफ़ भारत की "सेकुलर" सरकार उनकी इस यात्रा की तैयारी में लगी है, वहीं दूसरी तरफ़ अमेरिकी सरकार भी इस दौरे का उपयोग अपनी "सेकुलर" (बल्कि पोलिटिकली करेक्ट) होने की छवि को मजबूत करने के लिये करेगी। विगत 6 माह के भीतर अमेरिका के सर्वोच्च अधिकारियों की टीम में से एक, श्री राशिद हुसैन ने मुम्बई की माहिम दरगाह का दो बार दौरा किया है, इस वजह से अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि बराक हुसैन माहिम की दरगाह पर फ़ूल चढ़ाने जायेंगे। दरगाह के ट्रस्टी सुहैल खाण्डवानी ने कहा कि ओबामा भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति जानने के लिये उत्सुक हैं। ध्यान दीजिये… पहले भी अमेरिका का एक दस्ता USCIRF के नाम से उड़ीसा में ईसाईयों की स्थिति जानने के लिये असंवैधानिक तौर पर आया था, और अब ओबामा भी अल्पसंख्यकों (यानी मुस्लिमों) की भारत में स्थिति जानने आ रहे हैं… भारत की सरकार पहले भी USCIRF के सामने लाचार दिखी थी, और अब भी यही होगा। ये हाल तब हैं, जबकि अमेरिका को अपने कबाड़ा हो चुके परमाणु रिएक्टर भारत को बेचने हैं, और मनमोहन सरकार नवम्बर से पहले ओबामा को खुश करने के लिये विधेयक पारित करके रहेगी।
खैर… अमेरिकी अधिकारी रशद हुसैन ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का भी दो बार दौरा किया है और हो सकता है कि भारत सरकार भी उन्हें वहाँ ले जाने को उत्सुक हो, क्योंकि "मुस्लिमों का दिल जीतना है…"(?)। हालांकि माहिम दरगाह के ट्रस्ट ने कहा है कि ओबामा की सुरक्षा से सम्बन्धित खोजी कुत्तों द्वारा जाँच, दरगाह के अन्दर नहीं की जायेगी। रशद हुसैन के पूर्वज बिहार से ही हैं और वे इस्लामिक मामलों के जानकार माने जाते हैं इसीलिये ओबामा ने भारत की यात्रा में उन्हें अपने साथ रखने का फ़ैसला किया है। रशद हुसैन जल्दी ही अलीगढ़, मुम्बई, हैदराबाद और पटना का दौरा करेंगे, तथा मुस्लिम बुद्धिजीवियों और सरकारी अधिकारियों से मुस्लिमों का दिल जीतने के अभियान के तहत, चर्चा करेंगे…। रशद हुसैन के साथ कुरान के कुछ जानकार भी आ रहे हैं, जो विभिन्न मंत्रणा करने के साथ, बराक हुसैन ओबामा को कुछ "टिप्स"(?) भी देंगे।
उधर अमेरिका में 9/11 के ग्राउण्ड जीरो पर मस्जिद बनाने के प्रस्ताव पर भारी गर्मागर्मी शुरु हो चुकी है। कई परम्परावादी और कट्टर ईसाई इस प्रस्ताव को मुस्लिम आक्रांताओं के बढ़ते कदम के रुप में प्रचारित कर रही है। एक ईरानी मूल की मुस्लिम लड़की ने भी ओबामा को पत्र लिखकर मार्मिक अपील की है और कहा है कि उसकी अम्मी की पाक रुह इस स्थान पर आराम फ़रमा रही है और वह एक मुस्लिम होते हुए भी अमेरिकी नागरिक होने के नाते इस जगह पर मस्जिद बनाये जाने का पुरज़ोर विरोध करती है। इस लड़की ने मस्जिद को कहीं और बनाये जाने की अपील की है और कहा है कि उस खाली जगह पर कोई यादगार स्मारक बनाया जाना चाहिये जहाँ देश-विदेश से पर्यटक आयें और इस्लामिक आतंकवाद का खौफ़नाक रुप महसूस करें।
बराक हुसैन ओबामा फ़िलहाल इस पर विचार करना नहीं चाहते और वह मुस्लिमों का दिल जीतने की मुहिम लगे हुए हैं। सवाल उठता है, कि क्या ऐसा करने से वाकई मुस्लिमों का दिल जीता जा सकता है? हो सकता है कि चन्द नेकदिल और ईमानपसन्द मुस्लिमों इस कदम से खुश भी हो जायें, लेकिन कट्टरपंथी मुस्लिमों का दिल ऐसे टोटकों से जीतना असम्भव है। बल्कि 9/11 के "ग्राउण्ड जीरो" पर मस्जिद बन जाने को वे अपनी "जीत" के रुप में प्रचारित करेंगे। महमूद गजनवी द्वारा सोमनाथ के मन्दिरों से लूटे गये जवाहरात और मूर्तियों को काबुल की मस्जिदों की सीढ़ियों पर लगाया गया था… हिन्दुओं के दिल में पैबस्त लगभग वैसा ही मंज़र, ग्राउण्ड जीरो पर मस्जिद बनाने को लेकर अमेरिकी ईसाईयों के दिल में रहेगा, इसीलिये इसका जोरदार विरोध भी हो रहा है, लेकिन ओबामा के कानों पर जूं नहीं रेंग रही।
मुस्लिम विश्वविद्यालयों में जाना, मज़ारों पर चादरें और फ़ूल चढ़ाना, जालीदार टोपी पहनकर उलेमाओं के साथ तस्वीर खिंचवाना, रमज़ान के महीने में मुस्लिम मोहल्लों में जाकर हें-हें-हें-हें करते हुए दाँत निपोरते इफ़्तार पार्टियाँ देना इत्यादि भारतीय नेताओं के ढोंग-ढकोसले हैं, समझ नहीं आता कि बराक हुसैन ओबामा इन चक्करों में कैसे पड़ गये, ऐसी "सेकुलर" गुलाटियाँ खाने से मुस्लिमों का दिल कैसे जीता जा सकता है? नतीजतन सिर्फ़ एक साल के भीतर ही ओबामा की लोकप्रियता में जबरदस्त गिरावट आई है, और अमेरिकी लोग जैसा "मजबूत" और दूरदृष्टा राष्ट्रपति चाहते हैं, ओबामा अब तक उस पर खरे नहीं उतरे हैं।
अफ़गानिस्तान में जॉर्ज बुश ने अपने ऑपरेशन का नाम दिया था, "ऑपरेशन इनफ़िनिट जस्टिस" (अर्थात ऑपरेशन "अनन्त न्याय") लेकिन ओबामा ने उसे बदलकर "ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ़्रीडम" (अर्थात ऑपरेशन "स्थायी स्वतंत्रता") कर दिया, क्योंकि मुस्लिमों के एक समूह को आपत्ति थी कि "इन्फ़िनिट जस्टिस" (अनन्त न्याय) सिर्फ़ अल्लाह ही दे सकता है…। किसी को "झुकने" के लिये कहा जाये और वह लेट जाये, ऐसी फ़ितरत तो भारत की सरकारों में होती है, अमेरिकियों में नहीं। स्वाभाविक तौर पर मस्जिद बनाने की इस मुहिम से कट्टरपंथी ईसाई और परम्परागत अमेरिकी समाज आहत और नाराज़ है, बराक हुसैन ओबामा दोनों समुदायों को एक साथ साधकर नहीं रख सकते।
इसी नाराजी और गुस्से का परिणाम है, डव वर्ल्ड आउटरीच सेंटर के वरिष्ठ पादरी डॉक्टर टेरी जोंस द्वारा आगामी 9/11 के दिन आव्हान किया गया "कुरान जलाओ दिवस" (Burn a Koran Day)। टेरी जोंस के इस अभियान (यहाँ देखें…) को ईसाई और अन्य पश्चिमी समाज में जोरदार समर्थन मिल रहा है, और जैसा कि हटिंगटन और बुश ने "जेहाद" और "क्रूसेड" की अवधारणा को हवा दी, उसी के छोटे स्वरूप में कुछ अनहोनी होने की सम्भावना भी जताई जा रही है। डॉक्टर टेरी जोंस का कहना है कि वे अपने तरीके से 9/11 की मृतात्माओं को श्रद्धांजलि देने का प्रयास कर रहे हैं। डॉ जोंस ने कहा है कि चूंकि ओसामा बिन लादेन ने इस्लाम का नाम लेकर ट्विन टावर ढहाये हैं, इसलिये यह उचित है। मामला गर्मा गया है, इस्लामी समूहों द्वारा यूरोप के देशों में इस मुहिम के खिलाफ़ प्रदर्शन शुरु हो चुके हैं, भारत में भी इसके खिलाफ़ उग्र प्रदर्शन हो रहे हैं। यदि बराक हुसैन ओबामा वाकई इस्लामिक कट्टरपंथियों से निपटना चाहते हैं तो उन्हें बहुसंख्यक उदारवादी मुस्लिमों को बढ़ावा देना चाहिये, उदारवादी मुस्लिम निश्चित रूप से संख्या में बहुत ज्यादा हैं, लेकिन चूंकि उन्हें सरकारों का नैतिक समर्थन नहीं मिलता इसलिये कट्टरपंथियों द्वारा वे पीछे धकेल दिये जाते हैं। ज़रा कल्पना कीजिये कि यदि तीन-चौथाई बहुमत से जीते हुए राजीव गाँधी, शाहबानो मामले में आरिफ़ मोहम्मद खान के समर्थन में डटकर खड़े हो जाते तो न सिर्फ़ मुस्लिम महिलाओं के दिल में उनके प्रति छवि मजबूत होती, बल्कि कट्टरपंथियों के हौसले भी पस्त हो जाते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बराक हुसैन ओबामा को भी विश्व के उदारवादी मुस्लिम नेताओं को साथ लेकर अलगाववादी तत्वों पर नकेल कसनी होगी, लेकिन वे उल्टी दिशा में ही जा रहे हैं…
कुल मिलाकर सार यह है कि बराक हुसैन ओबामा "इंडियन स्टाइल" के सेकुलरिज़्म को बढ़ावा देकर नफ़रत के बीज बो रहे हैं, बहुसंख्यक अमेरिकियों की भावनाओं को ठेस पहुँचाकर वे दोनों समुदायों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा दे रहे हैं…
(क्या कहा??? इस बात पर आपको भारत की महान पार्टी कांग्रेस की याद आ गई…? स्वाभाविक है…। लेकिन अमेरिका, भारत नहीं है तथा अमेरिकी ईसाई, हिन्दुओं जैसे सहनशील नहीं हैं… छद्म सेकुलरिज़्म और वोट बैंक की राजनीति का दंश अब केरल में वामपंथी भी झेल रहे हैं… इसलिये देखते जाईये कि ओबामा की ये कोशिशें क्या रंग लाती हैं और इस मामले में आगे क्या-क्या होता है…)।
==============
जाते-जाते एक हथौड़ा :- यदि कोई आपसे कहे कि 26/11 को यादगार बनाने और पाकिस्तान का दिल जीतने के लिये मुम्बई के ताज होटल की छत पर एक मस्जिद बना दी जाये, तो आपको जैसा महसूस होगा… ठीक वैसा ही इस समय अमेरिकियों को लग रहा है…
Reference : http://www.mid-day.com/news/2010/aug/040810-mahim-dargah-barack-obama-special-envoy-rashad-hussain.htm
Barak Hussain Obama, Obama Muslim Appeasement, Obama's India Tour, Obama's Indonesia Tour, Rashad Hussain Aligarh Muslim University Tour, Mahim Dargah and Obama, US President and Moslems, Church and Islam, Christianity and Islam Confrontation, Burn a Kuran Day, 9/11 Ground Zero and Mosque, बराक हुसैन ओबामा, अमेरिका का मुस्लिम प्रेम, ओबामा की भारत यात्रा, ओबामा माहिम दरगाह और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, 9/11 ग्राउंड जीरो और मस्जिद, ईसाईयत और इस्लाम संघर्ष, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
ताज़ा मामला यह है कि इन दिनों अमेरिका में जोरदार बहस चल रही है कि 9/11 के हमले में ध्वस्त हो चुकी "ट्विन टावर" की खाली जगह (जिसे वे ग्राउण्ड जीरो कहते हैं) पर एक विशालकाय 13 मंजिला मस्जिद बनाई जाये अथवा नहीं? स्पष्ट रुप से इस मुद्दे पर दो धड़े आपस में बँट चुके हैं, जिसमें एक तरफ़ आम जनता है, जो कि उस खाली जगह पर मस्जिद बनाने के पक्ष में बिलकुल भी नहीं है, जबकि दूसरी तरफ़ सत्ता-तन्त्र के चमचे अखबार, कुछ "पोलिटिकली करेक्ट" सेकुलर नेता और कुछ "सेकुलरिज़्म" का ढोंग ओढ़े हुए छद्म बुद्धिजीवी इत्यादि हैं, यानी कि बिलकुल भारत की तरह का मामला है, जहाँ बहुसंख्यक की भावना का कोई खयाल नहीं है।
जिस जगह पर और जिस इमारत के गिरने पर 3000 से अधिक लोगों की जान गई, जिस मलबे के ढेर में कई मासूम जानों ने अपना दम तोड़ा, कई-कई दिनों तक अमेरिकी समाज के लोगों ने इस जगह पर आकर अपने परिजनों को भीगी पलकों से याद किया, आज उस ग्राउण्ड जीरो पर मस्जिद का निर्माण करने का प्रस्ताव बेहद अजीबोगरीब और उन मृतात्माओं तथा उनके परिजनों पर भीषण किस्म का मानसिक अत्याचार ही है, लेकिन बराक हुसैन ओबामा और पोलिटिकली करेक्ट मीडिया को कौन समझाये? ग्राउण्ड जीरो पर मस्जिद बनाने का बेहूदा प्रस्ताव कौन लाया यह तो अभी पता नहीं चला है लेकिन भारतीय नेताओं के सिर पर बैठा हुआ "सेकुलरिज़्म का भूत" अब ओबामा के सिर भी सवार हो गया लगता है। जब से ओबामा ने कार्यभार संभाला है तब से सिलसिलेवार कई घटनाएं हुई हैं जो उनके "इंडियन स्टाइल सेकुलरिज़्म" से पीड़ित होने का आभास कराती हैं।
यह तो सभी को याद होगा कि जब ओबामा पहली बार मिस्त्र के दौरे पर गये थे, तब उन्होंने भाषण का सबसे पहला शब्द "अस्सलामवलैकुम" कहा था और जोरदार तालियाँ बटोरी थीं, उसके बाद से लगातार कम से कम नौ मौकों पर सार्वजनिक रुप से ओबामा ने "I am a Moslem...American Moslem" कहा है, जिस पर कई अमेरिकियों और ईसाईयों की भृकुटि तन गई थी। चलो यहाँ तक तो ठीक है, "अस्सलामवलैकुम" वगैरह कहना या वे किस धर्म को मानते हैं यह घोषित करना, यह कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन सऊदी अरब और जापान के दौरे के समय जिस तरीके से ओबामा ने सऊदी के शाह और जापान के राजकुमार से हाथ मिलाते समय अपनी कमर का 90 डिग्री का कोण बनाया उससे वे हास्यास्पद और कमजोर अमेरिकी राष्ट्रपति नज़र आये थे…(यहाँ देखें...)।
बहरहाल, बात हो रही है बराक हुसैन ओबामा के मुस्लिम प्रेम और उनके सेकुलर(?) होने के झुकाव की…। आगामी नवम्बर में ओबामा का भारत दौरा प्रस्तावित है, जहाँ एक तरफ़ भारत की "सेकुलर" सरकार उनकी इस यात्रा की तैयारी में लगी है, वहीं दूसरी तरफ़ अमेरिकी सरकार भी इस दौरे का उपयोग अपनी "सेकुलर" (बल्कि पोलिटिकली करेक्ट) होने की छवि को मजबूत करने के लिये करेगी। विगत 6 माह के भीतर अमेरिका के सर्वोच्च अधिकारियों की टीम में से एक, श्री राशिद हुसैन ने मुम्बई की माहिम दरगाह का दो बार दौरा किया है, इस वजह से अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि बराक हुसैन माहिम की दरगाह पर फ़ूल चढ़ाने जायेंगे। दरगाह के ट्रस्टी सुहैल खाण्डवानी ने कहा कि ओबामा भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति जानने के लिये उत्सुक हैं। ध्यान दीजिये… पहले भी अमेरिका का एक दस्ता USCIRF के नाम से उड़ीसा में ईसाईयों की स्थिति जानने के लिये असंवैधानिक तौर पर आया था, और अब ओबामा भी अल्पसंख्यकों (यानी मुस्लिमों) की भारत में स्थिति जानने आ रहे हैं… भारत की सरकार पहले भी USCIRF के सामने लाचार दिखी थी, और अब भी यही होगा। ये हाल तब हैं, जबकि अमेरिका को अपने कबाड़ा हो चुके परमाणु रिएक्टर भारत को बेचने हैं, और मनमोहन सरकार नवम्बर से पहले ओबामा को खुश करने के लिये विधेयक पारित करके रहेगी।
खैर… अमेरिकी अधिकारी रशद हुसैन ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का भी दो बार दौरा किया है और हो सकता है कि भारत सरकार भी उन्हें वहाँ ले जाने को उत्सुक हो, क्योंकि "मुस्लिमों का दिल जीतना है…"(?)। हालांकि माहिम दरगाह के ट्रस्ट ने कहा है कि ओबामा की सुरक्षा से सम्बन्धित खोजी कुत्तों द्वारा जाँच, दरगाह के अन्दर नहीं की जायेगी। रशद हुसैन के पूर्वज बिहार से ही हैं और वे इस्लामिक मामलों के जानकार माने जाते हैं इसीलिये ओबामा ने भारत की यात्रा में उन्हें अपने साथ रखने का फ़ैसला किया है। रशद हुसैन जल्दी ही अलीगढ़, मुम्बई, हैदराबाद और पटना का दौरा करेंगे, तथा मुस्लिम बुद्धिजीवियों और सरकारी अधिकारियों से मुस्लिमों का दिल जीतने के अभियान के तहत, चर्चा करेंगे…। रशद हुसैन के साथ कुरान के कुछ जानकार भी आ रहे हैं, जो विभिन्न मंत्रणा करने के साथ, बराक हुसैन ओबामा को कुछ "टिप्स"(?) भी देंगे।
उधर अमेरिका में 9/11 के ग्राउण्ड जीरो पर मस्जिद बनाने के प्रस्ताव पर भारी गर्मागर्मी शुरु हो चुकी है। कई परम्परावादी और कट्टर ईसाई इस प्रस्ताव को मुस्लिम आक्रांताओं के बढ़ते कदम के रुप में प्रचारित कर रही है। एक ईरानी मूल की मुस्लिम लड़की ने भी ओबामा को पत्र लिखकर मार्मिक अपील की है और कहा है कि उसकी अम्मी की पाक रुह इस स्थान पर आराम फ़रमा रही है और वह एक मुस्लिम होते हुए भी अमेरिकी नागरिक होने के नाते इस जगह पर मस्जिद बनाये जाने का पुरज़ोर विरोध करती है। इस लड़की ने मस्जिद को कहीं और बनाये जाने की अपील की है और कहा है कि उस खाली जगह पर कोई यादगार स्मारक बनाया जाना चाहिये जहाँ देश-विदेश से पर्यटक आयें और इस्लामिक आतंकवाद का खौफ़नाक रुप महसूस करें।
बराक हुसैन ओबामा फ़िलहाल इस पर विचार करना नहीं चाहते और वह मुस्लिमों का दिल जीतने की मुहिम लगे हुए हैं। सवाल उठता है, कि क्या ऐसा करने से वाकई मुस्लिमों का दिल जीता जा सकता है? हो सकता है कि चन्द नेकदिल और ईमानपसन्द मुस्लिमों इस कदम से खुश भी हो जायें, लेकिन कट्टरपंथी मुस्लिमों का दिल ऐसे टोटकों से जीतना असम्भव है। बल्कि 9/11 के "ग्राउण्ड जीरो" पर मस्जिद बन जाने को वे अपनी "जीत" के रुप में प्रचारित करेंगे। महमूद गजनवी द्वारा सोमनाथ के मन्दिरों से लूटे गये जवाहरात और मूर्तियों को काबुल की मस्जिदों की सीढ़ियों पर लगाया गया था… हिन्दुओं के दिल में पैबस्त लगभग वैसा ही मंज़र, ग्राउण्ड जीरो पर मस्जिद बनाने को लेकर अमेरिकी ईसाईयों के दिल में रहेगा, इसीलिये इसका जोरदार विरोध भी हो रहा है, लेकिन ओबामा के कानों पर जूं नहीं रेंग रही।
मुस्लिम विश्वविद्यालयों में जाना, मज़ारों पर चादरें और फ़ूल चढ़ाना, जालीदार टोपी पहनकर उलेमाओं के साथ तस्वीर खिंचवाना, रमज़ान के महीने में मुस्लिम मोहल्लों में जाकर हें-हें-हें-हें करते हुए दाँत निपोरते इफ़्तार पार्टियाँ देना इत्यादि भारतीय नेताओं के ढोंग-ढकोसले हैं, समझ नहीं आता कि बराक हुसैन ओबामा इन चक्करों में कैसे पड़ गये, ऐसी "सेकुलर" गुलाटियाँ खाने से मुस्लिमों का दिल कैसे जीता जा सकता है? नतीजतन सिर्फ़ एक साल के भीतर ही ओबामा की लोकप्रियता में जबरदस्त गिरावट आई है, और अमेरिकी लोग जैसा "मजबूत" और दूरदृष्टा राष्ट्रपति चाहते हैं, ओबामा अब तक उस पर खरे नहीं उतरे हैं।
अफ़गानिस्तान में जॉर्ज बुश ने अपने ऑपरेशन का नाम दिया था, "ऑपरेशन इनफ़िनिट जस्टिस" (अर्थात ऑपरेशन "अनन्त न्याय") लेकिन ओबामा ने उसे बदलकर "ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ़्रीडम" (अर्थात ऑपरेशन "स्थायी स्वतंत्रता") कर दिया, क्योंकि मुस्लिमों के एक समूह को आपत्ति थी कि "इन्फ़िनिट जस्टिस" (अनन्त न्याय) सिर्फ़ अल्लाह ही दे सकता है…। किसी को "झुकने" के लिये कहा जाये और वह लेट जाये, ऐसी फ़ितरत तो भारत की सरकारों में होती है, अमेरिकियों में नहीं। स्वाभाविक तौर पर मस्जिद बनाने की इस मुहिम से कट्टरपंथी ईसाई और परम्परागत अमेरिकी समाज आहत और नाराज़ है, बराक हुसैन ओबामा दोनों समुदायों को एक साथ साधकर नहीं रख सकते।
इसी नाराजी और गुस्से का परिणाम है, डव वर्ल्ड आउटरीच सेंटर के वरिष्ठ पादरी डॉक्टर टेरी जोंस द्वारा आगामी 9/11 के दिन आव्हान किया गया "कुरान जलाओ दिवस" (Burn a Koran Day)। टेरी जोंस के इस अभियान (यहाँ देखें…) को ईसाई और अन्य पश्चिमी समाज में जोरदार समर्थन मिल रहा है, और जैसा कि हटिंगटन और बुश ने "जेहाद" और "क्रूसेड" की अवधारणा को हवा दी, उसी के छोटे स्वरूप में कुछ अनहोनी होने की सम्भावना भी जताई जा रही है। डॉक्टर टेरी जोंस का कहना है कि वे अपने तरीके से 9/11 की मृतात्माओं को श्रद्धांजलि देने का प्रयास कर रहे हैं। डॉ जोंस ने कहा है कि चूंकि ओसामा बिन लादेन ने इस्लाम का नाम लेकर ट्विन टावर ढहाये हैं, इसलिये यह उचित है। मामला गर्मा गया है, इस्लामी समूहों द्वारा यूरोप के देशों में इस मुहिम के खिलाफ़ प्रदर्शन शुरु हो चुके हैं, भारत में भी इसके खिलाफ़ उग्र प्रदर्शन हो रहे हैं। यदि बराक हुसैन ओबामा वाकई इस्लामिक कट्टरपंथियों से निपटना चाहते हैं तो उन्हें बहुसंख्यक उदारवादी मुस्लिमों को बढ़ावा देना चाहिये, उदारवादी मुस्लिम निश्चित रूप से संख्या में बहुत ज्यादा हैं, लेकिन चूंकि उन्हें सरकारों का नैतिक समर्थन नहीं मिलता इसलिये कट्टरपंथियों द्वारा वे पीछे धकेल दिये जाते हैं। ज़रा कल्पना कीजिये कि यदि तीन-चौथाई बहुमत से जीते हुए राजीव गाँधी, शाहबानो मामले में आरिफ़ मोहम्मद खान के समर्थन में डटकर खड़े हो जाते तो न सिर्फ़ मुस्लिम महिलाओं के दिल में उनके प्रति छवि मजबूत होती, बल्कि कट्टरपंथियों के हौसले भी पस्त हो जाते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बराक हुसैन ओबामा को भी विश्व के उदारवादी मुस्लिम नेताओं को साथ लेकर अलगाववादी तत्वों पर नकेल कसनी होगी, लेकिन वे उल्टी दिशा में ही जा रहे हैं…
कुल मिलाकर सार यह है कि बराक हुसैन ओबामा "इंडियन स्टाइल" के सेकुलरिज़्म को बढ़ावा देकर नफ़रत के बीज बो रहे हैं, बहुसंख्यक अमेरिकियों की भावनाओं को ठेस पहुँचाकर वे दोनों समुदायों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा दे रहे हैं…
(क्या कहा??? इस बात पर आपको भारत की महान पार्टी कांग्रेस की याद आ गई…? स्वाभाविक है…। लेकिन अमेरिका, भारत नहीं है तथा अमेरिकी ईसाई, हिन्दुओं जैसे सहनशील नहीं हैं… छद्म सेकुलरिज़्म और वोट बैंक की राजनीति का दंश अब केरल में वामपंथी भी झेल रहे हैं… इसलिये देखते जाईये कि ओबामा की ये कोशिशें क्या रंग लाती हैं और इस मामले में आगे क्या-क्या होता है…)।
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जाते-जाते एक हथौड़ा :- यदि कोई आपसे कहे कि 26/11 को यादगार बनाने और पाकिस्तान का दिल जीतने के लिये मुम्बई के ताज होटल की छत पर एक मस्जिद बना दी जाये, तो आपको जैसा महसूस होगा… ठीक वैसा ही इस समय अमेरिकियों को लग रहा है…
Reference : http://www.mid-day.com/news/2010/aug/040810-mahim-dargah-barack-obama-special-envoy-rashad-hussain.htm
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