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सोमवार, 25 जुलाई 2011 17:38

Ghulam Nabi Fai, ISI Agent, Indian Intellectuals in Seminars

“सेकुलर बुद्धिजीवी गैंग” का नकाब उतरा – सन्दर्भ : गुलाम नबी फ़ई.... 

हाल ही में अमेरिका ने दो ISI एजेंटों गुलाम नबी फाई और उसके एक साथी को गिरफ्तार किया। ये दोनों पाकिस्तान से रूपये लेकर पूरे विश्व में कश्मीर मामले पर पाकिस्तान के लिए लॉबिंग और सेमिनार आयोजित करते थे। इसमें होने वाले तमाम खर्चों का आदान प्रदान हवाला के जरिये होता था। इन सेमिनारों में बोलने वाले वक्ताओ और सेलिब्रिटीज को खूब पैसे दिए जाते थे। ये एजेंट उनको भारी धनराशि देकर कश्मीर पर पाकिस्तान का पक्ष मजबूत करते थे।

अमेरिका ने उनसे पूछताछ के बाद उनके भारतीय दलालों के नाम भारत सरकार को बताए हैं। इन भारतीय "दलालों" के नाम सुनकर भारत सरकार के हाथ पांव फ़ूल गए हैं, ना तो भारत सरकार में इतनी हिम्मत है कि इन देशद्रोहियों को गिरफ्तार करे और ना ही इतनी हिम्मत है कि इन दलालों पर रोक लगाये। जो हिम्मत(?) कांग्रेस ने रामलीला मैदान में दिखाई थी, वही हिम्मत इन दलालो को गिरफ्तार करने में नहीं दिखाई जा सकती, क्योंकि ये लोग बेहद “प्रभावशाली”(?) हैं।


(चित्र में - गुलाम नबी फ़ई, अमेरिका में भारतीय दूतावास के सामने KAC के बैनर तले कश्मीर की आजादी की माँग करते हुए) 

पहले जरा आप उन तथाकथित "बुद्धिजीवियों", "सफेदपोशो" एवं "परजीवियों" के नाम जान लीजिए जो "ISI" से पैसे लेकर भारत में कश्मीर, मानवाधिकार, नक्सलवाद इत्यादि पर सेमिनारों में भाषणबाजी किया करते थे…. ये लोग पैसे के आगे इतने अंधे थे कि इन्होंने कभी यह जाँचने की कोशिश भी नहीं की, कि इन सेमिनारों को आयोजित करने वाले, इनके हवाई जहाजों के टिकट और होटलों के खर्चे उठाने वाले लोग "कौन हैं, इनके क्या मंसूबे हैं…", इन लोगों को कश्मीर पर पाकिस्तान का पक्ष लेने में भी जरा भी संकोच नहीं होता था। हो सकता है कि इन "महानुभावों" में से एक-दो, को यह पता न हो कि इन सेमिनारों में ISI का पैसा लगा है और गुलाम नबी फ़ई एक पाकिस्तानी एजेण्ट है। लेकिन ये इतने विद्वान तो हैं ना कि इन्हें यह निश्चित ही पता होगा कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है? तब भी ऐसे देशद्रोही "प्रायोजित" सेमिनारों में ये लोग लगातार कश्मीर के "पत्थर-फ़ेंकुओं" के प्रति सहानुभूति जताते रहते, कश्मीर के आतंकवाद को "भटके हुए नौजवानों" की करतूत बताते एवं बस्तर व झारखण्ड के जंगलों में एके-47 खरीदने लायक औकात रखने वाले, एवं अवैध खनन एवं ठेकेदारों से "रंगदारी" वसूलने वाले नक्सलियों को "गरीब", "सताया हुआ", "शोषित आदिवासी" बताते रहे और यह सब रुदालियाँ वे अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर गाते थे।

१- लेखक और संपादक कुलदीप नैयर :- (पाकिस्तान को लेकर हमेशा नॉस्टैल्जिक मूड में रहने वाले "महान" पत्रकार)। इन साहब को 1947 से ही लगता रहा है कि पाकिस्तान भारत का छोटा "शैतान" भाई है, जो कभी न कभी "बड़े भाई" से सुलह कर लेगा और प्यार-मोहब्बत से रहेगा…

२- स्वामी(?) अग्निवेश :- (महंगे होटलों में ठहरते हैं, हवाई जहाज में सफ़र करते हैं, कश्मीर नीति पर हमेशा भारत-विरोधी सुर अलापते हैं, नक्सलवादियों और सरकार के बीच हमेशा "दलाल" की भूमिका में दिखते हैं)

३- दिलीप पडगांवकर :- (कश्मीर समस्या के हल हेतु मनमोहन सिंह द्वारा नियुक्त विशेष समिति के अध्यक्ष)। यह साहब अपने बयान में फ़रमाते हैं कि मुझे पता नहीं था कि गुलाम नबी फ़ाई ISI का मोहरा है…। अब इन पर लानत भेजने के अलावा और क्या किया जाए? टाइम्स ऑफ़ इण्डिया जैसे "प्रतिष्ठित"(???) अखबार के सम्पादक को यह नहीं पता तो किसे पता होगा? वह भी उस स्थिति में जबकि टाइम्स अखबार में ISI, कश्मीरी आतंकवादियों और KAC (कश्मीर अमेरिकन सेण्टर) के "संदिग्ध रिश्तों" के बारे में हजारों पेज सामग्री छप चुकी है… क्या पडगाँवकर साहब अपना ही अखबार नहीं पढ़ते?

४-मीरवाइज उमर फारूक - ये तो घोषित रूप से भारत विरोधी हैं, इसलिए ये तो ऐसे सेमिनारों में रहेंगे ही, हालांकि इन्हें भारतीय पासपोर्ट पर यात्रा करने में शर्म नहीं आती।

५-राजेंद्र सच्चर :- ये सज्जन ही "सच्चर कमिटी" के चीफ है, जिन्होंने एक तरह से ये पूरा देश मुसलमानों को देने की सिफ़ारिश की है, अब पता चला कि गुलाम फ़ई के ऐसे सेमिनारों और कान्फ़्रेंसों में जा-जाकर ही इनकी यह "हालत" हुई।

६ - पत्रकार एवं "सामाजिक"(?) कार्यकर्ता गौतम नवलखा - "सो-कॉल्ड" सेकुलरिज़्म के एक और झण्डाबरदार, जिन्हें भारत का सत्ता-तंत्र और केन्द्रीय शासन पसन्द नहीं है, ये साहब अक्सर अरुंधती रॉय के साथ विभिन्न सेमिनारों में दुनिया को बताते फ़िरते हैं कि कैसे दिल्ली की सरकार कश्मीर, नागालैण्ड, मणिपुर इत्यादि जगहों पर "अत्याचार"(?) कर रही है। ये साहब चाहते हैं कि पूरा भारत माओवादियों के कब्जे में आ जाए तो "स्वर्ग" बन जाए…। कश्मीर पर कोई सेमिनार गुलाम नबी फ़ई आयोजित करें, भारत को गरियाएं और दुनिया के सामने "रोना-धोना" करें तो वहाँ नवलखा-अरुंधती की उपस्थिति अनिवार्य हो जाती है।

7- यासीन मालिक :- ISI का सेमिनार हो, पाकिस्तान का गुणगान हो, कश्मीर की बात हो और उसमें यासीन मलिक न जाए, ऐसा कैसे हो सकता है? ये साहब तो भारत सरकार की "मेहरबानी" से ठेठ दिल्ली में, फ़ाइव स्टार होटलों में पत्रकार वार्ता करके, सरकार की नाक के नीचे आकर गरिया जाते हैं और भारत सरकार सिर्फ़ हें-हें-हें-हें करके रह जाती है।

तात्पर्य यह है कि ऊपर उल्लिखित "महानुभावों" के अलावा भी ऐसे कई "चेहरे" हैं जो सरेआम भारत सरकार की विदेश नीतियों के खिलाफ़ बोलते रहते हैं। परन्तु अब जबकि अमेरिका ने इस राज़ का पर्दाफ़ाश कर दिया है तथा गिरफ़्तार करके बताया कि गुलाम नबी फ़ाई को पाकिस्तान से प्रतिवर्ष लगभग पाँच  से सात लाख डॉलर प्राप्त होते थे जिसका एक बड़ा हिस्सा अमेरिकी सांसदों को खरीदने, कश्मीर पर पाकिस्तानी "राग" अलापने और "विद्वानों"(?) की आवभगत में खर्च किया जाता था। भारत के ये तथाकथित बुद्धिजीवी और “थिंक टैंक” कहे जाने वाले महानुभाव यूरोप-अमेरिका घूमने, फ़ाइव स्टार होटलों के मजे लेने और गुलाम नबी फ़ई की आवभगत के ऐसे “आदी” हो चुके थे कि देश के इन लगभग सभी “बड़े नामों” को कश्मीर पर बोलना जरूरी लगने लगा था। इन सभी महानुभावों को "अमन की आशा" का हिस्सा बनने में मजा आता है, गाँधी की तर्ज पर शान्ति के ये पैरोकार चाहते हैं कि, "एक शहर में बम विस्फ़ोट होने पर हमें दूसरा शहर आगे कर देना चाहिए…।

ऊपर तो चन्द नाम ही गिनाए गये हैं, जबकि गुलाम नबी फ़ई के सेमिनारों, कान्फ़्रेंसों और गोष्ठियों में जाने वालों की लिस्ट दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है, कश्मीर में मानवाधिकार के उल्लंघन(?) और भारत-पाकिस्तान के बीच “शान्ति” की खोज करने वालों में हरीश खरे (प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार), रीता मनचन्दा, वेद भसीन (कश्मीर टाइम्स के प्रमुख), हरिन्दर बवेजा (हेडलाइन्स टुडे), प्रफ़ुल्ल बिदवई (वरिष्ठ पत्रकार), अंगना चटर्जी, कमल मित्रा के अलावा संदीप पाण्डेय, अखिला रमन… जैसे एक से बढ़कर एक “बुद्धिजीवी” शामिल हैं। चिंता की बात यह है कि इन्हीं में से अधिकतर बुद्धिजीवी UPA-2 की नीतियों, विदेश नीतियों, कश्मीर निर्णयों को प्रभावित करते हैं। इन्हीं में से अधिकांश बुद्धिजीवी, हमें सेकुलरिज़्म और साम्प्रदायिकता का मतलब समझाते नज़र आते हैं, इन्हीं बुद्धिजीवियों के लगुए-भगुए अक्सर हिन्दुत्व और नरेन्द्र मोदी को गरियाते मिल जाएंगे, लेकिन पिछले 10 साल में कश्मीर को “विवादित क्षेत्र” के रूप में प्रचारित करने में, भारतीय सेना के बलिदानों को नज़रअंदाज़ करके अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बार-बार सेना के “कथित दमन” को हाइलाईट करने में यह गैंग सदा आगे रही है। ये वही “गैंग” है जिसे कश्मीर के विस्थापित पंडितों से ज्यादा फ़िलीस्तीन के मुसलमानों की चिन्ता रहती है…

इनके अलावा जेएनयू एवं कश्मीर विश्वविद्यालय के कई प्रोफ़ेसर भी गुलाम नबी फ़ई द्वारा आयोजित मजमों में शामिल हो चुके हैं। अमेरिकी सरकार एवं FBI का कहना है कि गुलाम नबी के ISI सम्बन्धों पर पिछले 3 साल से निगाह रखी जा रही थी, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अमेरिकी सरकार ने भारत सरकार से यह सूचना शेयर की थी? मान लें कि भारत सरकार को यह सूचना थी कि फ़ई पाकिस्तानी एजेण्ट है तो फ़िर सरकार ने “शासकीय सेवकों” यानी जेएनयू और अन्य विवि के प्रोफ़ेसरों को ऐसे सेमिनारों में विदेश जाने की अनुमति कैसे और क्यों दी? बुरका हसीब दत्त, वीर संघवी तथा हेंहेंहेंहेंहेंहें उर्फ़ प्रभु चावला जैसे लोग तो पहले ही नीरा राडिया केस में बेनकाब हो चुके हैं, अब गुलाम नबी फ़ई मामले में भारत के दूसरे “जैश-ए-सेकुलर पत्रकार” भी बेनकाब हो रहे हैं।

यदि देश में काम कर रहे विभिन्न संदिग्ध NGOs के साथ-साथ “स्वघोषित एवं बड़े-बड़े नामों” से सुसज्जित NGOs जैसे AID, FOIL, FOSA, IMUSA की गम्भीरता से जाँच की जाए तो भारत के ये “लश्कर-ए-बुद्धिजीवी” भी नंगे हो जाएंगे…। ये बात और है कि पद्मश्री, पद्मभूषण आदि पुरस्कारों की लाइन में यही चेहरे आगे-आगे दिखेंगे।

इसी मुद्दे पर लिखी हुई एक पुरानी पोस्ट भी अवश्य पढ़ें… http://blog.sureshchiplunkar.com/2008/08/secular-intellectuals-terrorism-nation.html
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विशेष नोट :- मुझे बार-बार गोविन्द निहलानी की फ़िल्म “द्रोहकाल” की याद आ रही है, जिन सज्जन ने नहीं देखी हो, वे अवश्य देखें।
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सोमवार, 18 जुलाई 2011 20:23

Dayanidhi Maran, 2G Scam, Manmohan Singh, Personal Telephone Exchange

दयानिधि मारन का “निजी टेलीफ़ोन एक्सचेंज” और मनमोहन का धृत “राष्ट्रवाद…” 

भारत में मंत्रियों, अफ़सरों एवं उनके रिश्तेदारों द्वारा सरकारी संसाधनों का स्वयं के लिये उपयोग एवं दुरुपयोग एक आम बीमारी बन चुकी है। सरकारी दफ़्तर में काम करने वाले बाबू द्वारा बच्चों के लिए कागज घर ले जाना हो या नागर-विमानन मंत्री द्वारा इंडियन एयरलाइंस के विमानों को अपने बाप की जागीर समझना हो, यह बीमारी नीचे से ऊपर तक फ़ैली हुई है। मनमोहन सिंह ने अपने कार्यकाल के पहले पाँच साल “ईमानदार बाबू” की अपनी छवि गढ़ी, जिसके अनुसार चाहे जितने मंत्री भ्रष्ट हो जाएं, लेकिन मनमोहन सिंह (http://en.wikipedia.org/wiki/Manmohan_Singh) तो “ईमानदार” हैं… लेकिन यूपीए-2 के दूसरे कार्यकाल के दो साल के भीतर ही अब मनमोहन सिंह कभी बेहद मजबूर, तो कभी बेहद शातिर, तो कभी बेहद बहरे, कभी जानबूझकर अनजान बनने वाले, तो कभी परले दर्जे के भोले नज़र आये हैं। कलमाडी (http://en.wikipedia.org/wiki/Suresh_Kalmadi) से लेकर कनिमोझी (http://en.wikipedia.org/wiki/M._K._Kanimozhi) तक जैसे-जैसे UPA की सड़ांध बाहर आती जा रही है, मनमोहन सिंह की “तथाकथित ईमानदारी” अब अविश्वसनीय और असहनीय होती जा रही है…

ताजा मामला सामने आया है हाल ही में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल से बिदा किए गये दयानिधि मारन (http://en.wikipedia.org/wiki/Dayanidhi_Maran) का। द्रविड मुनेत्र कषघम (DMK) के “पिण्डारी दल” के एक सदस्य दयानिधि मारन ने अपने घर और कम्पनी के दफ़्तर के बीच 323 लाइनों का एक निजी एक्सचेंज ही खोल रखा था। खा गये न झटका??? जी हाँ, ए. राजा से पहले दयानिधि मारन ही “दूध देने वाली गाय समान” टेलीकॉम मंत्रालय में मंत्री थे। यह सभी लाइनें उन्होंने (http://www.bsnl.co.in/) के अधिकारियों को डपटकर और BSNL के महाप्रबन्धक के नाम से उनकी बाँह मरोड़कर अपने घर और सन टीवी के दफ़्तर में लगवाईं। टेलीकॉम मंत्रालय के मंत्री होने के नाते उन्होंने अपने “अधिकारों”(?) का जमकर दुरुपयोग किया, और मेरा भारत इतना महान है कि चेन्नै में मारन के घर से साढ़े तीन किलोमीटर दूर स्थित सन टीवी के मुख्यालय तक ऑप्टिकल फ़ाइबर के उच्च क्षमता वाली अण्डरग्राउण्ड लाइनें बिछाई गईं, सभी 323 टेलीफ़ोन नम्बर चीफ़ जनरल मैनेजर BSNL के नाम से लिए गये। हैरान हो गए ना??? लेकिन इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है, भारत में जो मंत्री और जो अफ़सर जिस मंत्रालय या विभाग में जाता है वहाँ वह “जोंक” की तरह उस विभाग और आम जनता का खून चूसने के “पावन कार्य” मे तत्काल लग जाता है।



अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर 323 टेलीफ़ोन लाइनों का मारन ने क्या किया? मारन के चेन्नई स्थित बोट क्लब वाले मकान से जो लाइनें बिछाई गईं, वे सभी ISDN लाइनें थीं। जैसा कि सभी जानते हैं ISDN लाइनें भारी-भरकम डाटा ट्रांसफ़र एवं तीव्रगति के इंटरनेट एवं टीवी सिग्नलों के संचालन में महत्वपूर्ण होती हैं। मारन ने शातिराना अन्दाज़ में शुरु के 23 टेलीफ़ोन नम्बर 24372211 और 24372301 के बीच में से लगवाए, परन्तु शायद बाद में यह सोचकर, कि “मेरा कोई क्या उखाड़ लेगा?” मारन ने अगले 300 टेलीफ़ोन नम्बर 24371500 से 24371799 तक एक ही नाम अर्थात चीफ़ जनरल मैनेजर BSNL के नाम से लगवा डाले, चूंकि सभी नम्बरों के शुरुआती चार अंक समान ही थे, तो मारन के घर और सन टीवी के दफ़्तर के बीच एक निजी टेलीफ़ोन एक्सचेंज आरम्भ हो गया। इसमें फ़ायदा यह था कि BSNL को चूना लगाकर मनचाहा और असीमित डाटा डाउनलोड-अपलोड किया गया एवं सन टीवी के सभी व्यावसायिक एवं आर्थिक कारोबार की सभी संचार व्यवस्था मुफ़्त हासिल की गई। दूसरा फ़ायदा यह था, कि इस निजी एक्सचेंज के कारण टेलीफ़ोन टैपिंग होने का भी कोई खतरा दयानिधि मारन को नहीं रह गया था।

जनवरी 2007 से दयानिधि मारन ने BSNL को “दुहना” शुरु किया और सन टीवी के कई कार्यक्रम विदेशों में ISDN लाइन के जरिये मुफ़्त में पहुँचाए। सीबीआई की जाँच में यह बात सामने आई है कि मारन ने अपना यह निजी टेलीफ़ोन एक्सचेंज कुछ इस तरह से डिजाइन और प्रोग्राम किया था कि BSNL महाप्रबन्धक और उच्च स्तरीय इंजीनियरों के अलावा किसी को भी इस बारे में भनक तक नहीं थी, क्योंकि इस एक्सचेंज के निर्माण, टेलीफ़ोन लाइनों को बिछाने, इनका कनेक्शन मुख्य एक्सचेंज में “विशेष राउटरों” के जरिये जोड़ने सम्बन्धी जो भी काम किए गये, इसमें “काम खत्म होते ही” उस कर्मचारी का तबादला चेन्नई से बहुत दूर अलग-अलग जगहों पर कर दिया जाता था। यदि कलानिधि मारन का सन टीवी यही सारी “सेवाएं” BSNL या एयरटेल से पैसा देकर लेता तो उसे करोड़ों रुपए का शुल्क चुकाना पड़ता और हर महीने का तगड़ा बिल आता, सो अलग…। लेकिन “ईमानदार बाबू” के धृतराष्ट्रवादी शासन में हर मंत्री सिर्फ़ चूसने-लूटने-खाने में ही लगा हुआ है तो दयानिधि मारन कैसे पीछे रहते?

(सभी स्नैप शॉट PMO को पेश की गई सीबीआई रिपोर्ट के अंश हैं - साभार श्री एस गुरुमूर्ति) 

सीबीआई की प्राथमिक जाँच में एक मोटे अनुमान के अनुसार सिर्फ़ एक टेलीफ़ोन क्रमांक 24371515 से मार्च 2007 (एक महीने में) 48,72,027 कॉल्स (सभी प्रकार का डाटा जोड़ने पर) किए गये। अब आप अनुमान लगाईये कि जब एक टेलीफ़ोन नम्बर से एक महीने में 49 लाख कॉल्स किए गए तो 323 लाइनों से कितने कॉल्स किये गये होंगे? यह सिलसिला जनवरी 2007 से अप्रैल 2007 तक ही चला (क्योंकि 13 मई को मारन ने दूरसंचार मंत्रालय से इस्तीफ़ा दिया)। परन्तु सीबीआई ने जो हिसाब लगाया है उसके अनुसार इस दौरान BSNL को लगभग 630 करोड़ टेलीफ़ोन कॉल्स का चूना लग चुका था, यदि 70 पैसे प्रति कॉल यूनिट भी मानें तो सन टीवी को 440 करोड़ रुपए का टेलीफ़ोन बिल नहीं चुकाना पड़ा, क्योंकि दयानिधि मारन की “दया” दिल्ली से चेन्नै की तरफ़ उमड़-उमड़कर बह रही थी। सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा है कि इस “निजी एक्सचेंज” की कुछ लाइनें मारन के अखबार “दिनाकरण” को भी दी गईं, जिसके द्वारा अखबार की रिपोर्टें लाने-भेजने का काम किया जाता था। (दयानिधि मारन जून 2004 से मई 2007 तक दूरसंचार मंत्री रहा, हालांकि जब उसे केन्द्रीय मंत्रिमण्डल से धक्का देकर निकाला गया तब वह कपड़ा मंत्री था, जहाँ पता नहीं उसने देश के कितने कपड़े उतारे होंगे…)

आप सोच रहे होंगे कि आखिर सीबीआई ने यह मामला अपने हाथ में लिया कैसे? असल में दयानिधि मारन से एक गलती हो गई कि उसने अपने ही “अन्नदाता” के परिवार में फ़ूट डालने की हिमाकत कर डाली, हुआ यूँ कि अपने अखबार “दिनाकरण” (http://www.dinakaran.com/) में दयानिधि मारन ने एक सर्वे आयोजित किया कि करुणानिधि के दो बेटों अझागिरि और स्टालिन में कौन अधिक लोकप्रिय है?… बस इसी से नाराज होकर दयानिधि के बाप के मामू यानी करुणानिधि नाराज हो गये और अगले ही दिन उन्हें मंत्रिमण्डल से बाहर का रास्ता दिखाया गया, मारन की जगह ली ए. राजा ने, जो पहले से ही दयानिधि मारन से खार खाए बैठा था… सो उसने “मामू” की आज्ञा से “नीली पगड़ी वाले” से कहकर मारन के खिलाफ़ सीबीआई की जाँच तत्काल शुरु करवा दी…। इस तरह दयानिधि मारन नाम का “ऊँट”, अचानक करुणानिधि नामक पहाड़ के नीचे आ गया…।

अब हम आते हैं अपने “ईमानदार”, “सक्रिय और कार्यशील” इत्यादि सम्बोधनों से नवाज़े गए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी के “धृतराष्ट्रवाद” पर…। हाल ही में मुम्बई बम विस्फ़ोटों के बाद सोनिया गाँधी के साथ वहाँ दौरे पर गए इन महाशय ने “आतंकवादियों के खिलाफ़ त्वरित कार्रवाई” करने का बयान दिया… (ये और बात है कि इनकी त्वरित कार्रवाई, इतनी त्वरित है कि अभी तक अफ़ज़ल गुरू की मृत्युदण्ड की फ़ाइल गृह मंत्रालय से होकर सिर्फ़ 2 किमी दूर, राष्ट्रपति भवन तक ही नहीं पहुँची है)। यह तो आतंकवाद और अण्डरवर्ल्ड से सम्बन्धित अफ़ज़ल गुरु या दाऊद इब्राहीम से लेकर अबू सलेम या क्वात्रोची और एण्डरसन की सदाबहार कांग्रेसी कहानी है… लेकिन मनमोहन सिंह की यह खूबी है कि वे “आर्थिक आतंकवादियों” को भी भागने, सबूत मिटाने इत्यादि का पूरा मौका देते हैं, जैसे कि कलमाडी और राजा के मामले में हुआ। (ये और बात है कि डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी याचिकाएं लगाकर और सुप्रीम कोर्ट लताड़कर, इनकी बाँह मरोड़कर इनसे काम करवा लेते हैं)।

दयानिधि मारन के खिलाफ़ कार्रवाई की माँग करते हुए सीबीआई ने जाँच की अपनी पूरी रिपोर्ट मनमोहन सिंह को सितम्बर 2007 में सौंप दी थी। लेकिन पिछले 44 महीने से हमारे “ईमानदार बाबू” उस फ़ाइल पर कुण्डली मारे बैठे रहे। इस बीच 2009 के चुनाव में “मामू” करुणानिधि ने अपने बेटों और मारन बन्धुओं के बीच सुलह करवा दी, दयानिधि-कलानिधि ने नानाजी से माफ़ी माँग ली और 2009 के चुनाव में इन्होंने जयललिता को पछाड़कर लोकसभा की 18 सीटों पर कब्जा किया। दयानिधि मारन ने फ़िर से टेलीकॉम मंत्रालय पाने की जुगाड़ लगाई, लेकिन इस बार रतन टाटा ने “व्यक्तिगत” रुचि लेकर मारन की जगह राजा को टेलीकॉम मंत्री बनवाया, सो मजबूरन दयानिधि को कपड़ा मंत्रालय पर संतोष करना पड़ा (यह तथ्य नीरा राडिया और बुरका हसीब दत्त की फ़ोन टैपिंग में उजागर हो चुका है)। जब “परिवार” में ही आपस में सुलह हो गई और DMK के सांसदों की “ईमानदार बाबू” को सख्त आवश्यकता थी, इसलिए CBI की रिपोर्ट और दयानिधि के खिलाफ़ एक्शन लेने की माँग ठण्डे बस्ते में चली गई। नवम्बर 2010 में कपिल सिब्बल के टेलीकॉम मंत्रालय संभालने के बाद भी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया।

“ईमानदार बाबू” ने बाबा रामदेव के आंदोलन को कुचलने के बाद कहा था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ़ “गम्भीरता” से और “त्वरित कार्रवाई” करेंगे… सो इनकी “त्वरित कार्रवाई” का आलम यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लिया तब कहीं जाकर 44 माह बाद, सत्ता की मलाई और मंत्रालय को पूरी तरह निचोड़ने के बाद दयानिधि मारन की विदाई की गई। इसमें एक आश्चर्यजनक पहलू यह है कि अपनी “ईमानदार बाबू” वाली छवि बनाए रखने को चिन्तित एवं “भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कड़े कदम उठाने” जैसी खोखली घोषणाएं करने वाले मनमोहन सिंह सितम्बर 2007 से अब तक न जाने कितनी बार “केन्द्रीय कैबिनेट” की बैठक में दयानिधि मारन के पड़ोस में बैठे होंगे… क्या उस समय नीली पगड़ी वाले साहब को जरा भी ग्लानि, संकोच या शर्म नहीं आई होगी? आएगी भी कैसे… क्योंकि असल में तो देश का सुप्रीम कोर्ट ही सारे प्रमुख फ़ैसले कर रहा है, माननीय न्यायाधीशों को ही बताना पड़ रहा है कि किसके खिलाफ़ केस शुरु करो, किसे जेल भेजो, किसे पकड़ो, क्या करो, क्या ना करो…। मनमोहन सिंह को तो सिर्फ़ आज्ञा का पालन करना है… सुप्रीम कोर्ट न होता तो राजा-कलमाडी-नीरा राडिया-मारन-कनिमोझि आदि सभी अब तक हमारी छाती पर मूंग दल रहे होते…
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सोमवार, 11 जुलाई 2011 18:31

Hindu Temples in India, Swami Padmanabh Temple and Supreme Court of India

हिन्दू मन्दिरों को “सेकुलर लूट” से बचाने हेतु सुप्रीम कोर्ट को कुछ सुझाव…

यदि आप सोचते हैं कि मन्दिरों में दान किया हुआ, भगवान को अर्पित किया हुआ पैसा, सनातन धर्म की बेहतरी के लिए, हिन्दू धर्म के उत्थान के लिए काम आ रहा है तो आप निश्चित ही बड़े भोले हैं। मन्दिरों की सम्पत्ति एवं चढ़ावे का क्या और कैसा उपयोग किया जाता है पहले इसका एक उदाहरण देख लीजिये, फ़िर आगे बढ़ेंगे-

कर्नाटक सरकार के मन्दिर एवं पर्यटन विभाग (राजस्व) द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार 1997 से 2002 तक पाँच साल में कर्नाटक सरकार को राज्य में स्थित मन्दिरों से “सिर्फ़ चढ़ावे में” 391 करोड़ की रकम प्राप्त हुई, जिसे निम्न मदों में खर्च किया गया-

1) मन्दिर खर्च एवं रखरखाव – 84 करोड़ (यानी 21.4%)
2) मदरसा उत्थान एवं हज – 180 करोड़ (यानी 46%)
3) चर्च भूमि को अनुदान – 44 करोड़ (यानी 11.2%)
4) अन्य - 83 करोड़ (यानी 21.2%)
कुल 391 करोड़

जैसा कि इस हिसाब-किताब में दर्शाया गया है उसको देखते हुए “सेकुलरों” की नीयत बिलकुल साफ़ हो जाती है कि मन्दिर की आय से प्राप्त धन का (46+11) 57% हिस्सा हज एवं चर्च को अनुदान दिया जाता है (ताकि वे हमारे ही पैसों से जेहाद, धार्मिक सफ़ाए एवं धर्मान्तरण कर सकें)। जबकि मन्दिर खर्च के नाम पर जो 21% खर्च हो रहा है, वह ट्रस्ट में कुंडली जमाए बैठे नेताओं व अधिकारियों की लग्जरी कारों, मन्दिर दफ़्तरों में AC लगवाने तथा उनके रिश्तेदारों की खातिरदारी के भेंट चढ़ाया जाता है। उल्लेखनीय है कि यह आँकड़े सिर्फ़ एक राज्य (कर्नाटक) के हैं, जहाँ 1997 से 2002 तक कांग्रेस सरकार ही थी…

अब सोचिए कि 60-65 साल के शासन के दौरान कितने राज्यों में कांग्रेस-वामपंथ की सरकारें रहीं, वहाँ कितने प्रसिद्ध मन्दिर हैं, कितने देवस्थान बोर्ड एवं ट्रस्ट हैं तथा उन बोर्डों एवं ट्रस्टों में कितने कांग्रेसियों, गैर-हिन्दुओं, “सो कॉल्ड” नास्तिकों की घुसपैठ हुई होगी और उन्होंने हिन्दुओं के धन व मन्दिर की कितनी लूट मचाई होगी। लेकिन चूंकि हिन्दू आबादी का एक हिस्सा इन बातों से अनभिज्ञ है…, एक हिस्सा मूर्ख है…, एक हिस्सा “हमें क्या लेना-देना यार, हम तो श्रद्धा से मन्दिर में चढ़ावा देते हैं और फ़िर पलटकर नहीं देखते, कि उन पैसों का क्या हो रहा है…” किस्म के आलसी हैं, जबकि “हिन्दू सेकुलरों” का एक बड़ा हिस्सा तो है ही, जिसे आप विभीषण, जयचन्द, मीर जाफ़र चाहे जिस नाम से पुकार लीजिए। यानी गोरी-गजनवी-क्लाइव तो चले गए, लेकिन अपनी “मानस संतानें” यहीं छोड़े गए, कि बेटा लूटो… हिन्दू मन्दिर होते ही हैं लूटने के लिए…। पद्मनाभ मन्दिर (http://en.wikipedia.org/wiki/Padmanabhaswamy_Temple) की सम्पत्ति की गणना, देखरेख एवं कब्जा चूंकि सुप्रीम कोर्ट के अधीन एवं उसके निर्देशों के मुताबिक चल रहा है इसलिए अभी सब लोग साँस रोके देख रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने इस खजाने की रक्षा एवं इसके उपयोग के बारे में सुझाव माँगे हैं। सेकुलरों एवं वामपंथियों के बेहूदा सुझाव एवं उसे “काला धन” बताकर सरकारी जमाखाने में देने सम्बन्धी सुझाव तो आ ही चुके हैं, अब कुछ सुझाव इस प्रकार भी हैं –

1) सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक “हिन्दू मन्दिर धार्मिक सम्पत्ति काउंसिल” का गठन किया जाए। इस काउंसिल में सुप्रीम कोर्ट के एक वर्तमान, दो निवृत्त न्यायाधीश, एवं सभी प्रमुख हिन्दू धर्मगुरु शामिल हों। इस काउंसिल में पद ग्रहण करने की शर्त यह होगी कि सम्बन्धित व्यक्ति न पहले कभी चुनाव लड़ा हो और न काउंसिल में शामिल होने के बाद लड़ेगा (यानी राजनीति से बाहर)। इस काउंसिल में अध्यक्ष एवं कोषाध्यक्ष का पद त्रावणकोर के राजपरिवार के पास रहे, क्योंकि 250 वर्ष में उन्होंने साबित किया है कि खजाने को खा-पीकर “साफ़” करने की, उनकी बुरी नीयत नहीं है।

2) इस काउंसिल के पास सभी प्रमुख हिन्दू मन्दिरों, उनके शिल्प, उनके इतिहास, उनकी संस्कृति के रखरखाव, प्रचार एवं प्रबन्धन का अधिकार हो।

3) इस काउंसिल के पास जो अतुलनीय और अविश्वसनीय धन एकत्रित होगा वह वैसा ही रहेगा, परन्तु उसके ब्याज से सभी प्रमुख मन्दिरों की साज-सज्जा, साफ़-सफ़ाई एवं प्रबन्धन किया जाएगा।

4) इस विशाल रकम से प्रतिवर्ष 2 लाख हिन्दुओं को (रजिस्ट्रेशन करवाने पर) अमरनाथ, वैष्णो देवी, गंगासागर, सबरीमाला, मानसरोवर (किसी एक स्थान) अथवा किसी अन्य स्थल की धार्मिक यात्रा मुफ़्त करवाई जाएगी। एक परिवार को पाँच साल में एक बार ही इस प्रकार की सुविधा मिलेगी। देश के सभी प्रमुख धार्मिक स्थलों पर काउंसिल की तरफ़ से सर्वसुविधायुक्त धर्मशालाएं बनवाई जाएं, जहाँ गरीब से गरीब व्यक्ति भी अपनी धार्मिक यात्रा में तीन दिन तक मुफ़्त रह-खा सके।

5) इसी प्रकार पुरातात्विक महत्व के किलों, प्राचीन स्मारकों के आसपास भी “सिर्फ़ हिन्दुओं के लिए” इसी प्रकार की धर्मशालाएं बनवाई जाएं जिनका प्रबन्धन काउंसिल करेगी।

6) नालन्दा एवं तक्षशिला जैसे 50 विश्वविद्यालय खोले जाएं, जिसमें भारतीय संस्कृति, भारतीय वेदों, भारत की महान हिन्दू सभ्यता इत्यादि के बारे में विस्तार से शोध, पठन, लेखन इत्यादि किया जाए। यहाँ पढ़ने वाले सभी छात्रों की शिक्षा एवं आवास मुफ़्त हो।

ज़ाहिर है कि ऐसे कई सुझाव माननीय सुप्रीम कोर्ट को दिये जा सकते हैं, जिससे हिन्दुओं द्वारा संचित धन का उपयोग हिन्दुओं के लिए ही हो, सनातन धर्म की उन्नति के लिए ही हो, न कि कोई सेकुलर या नास्तिक इसमें “मुँह मारने” चला आए। हाल के कुछ वर्षों में अचानक हिन्दू प्रतीकों, साधुओं, मन्दिरों, संस्कृति इत्यादि पर “सरकारी” तथा “चमचात्मक” हमले होने लगे हैं। ताजा खबर यह है कि उड़ीसा की “सेकुलर” सरकार, पुरी जगन्नाथ मन्दिर के अधीन विभिन्न स्थानों पर जमा कुल 70,000 एकड़ जमीन “फ़ालतू” होने की वजह से उसका अधिग्रहण करने पर विचार कर रही है। स्वाभाविक है कि इस जमीन का “सदुपयोग”(?) फ़र्जी नेताओं के पुतले लगाने, बिल्डरों से कमाई करने, दो कमरों में चलने वाले “डीम्ड” विश्वविद्यालयों को बाँटने अथवा नास्तिकों, गैर-हिन्दुओं एवं सेकुलरों की समाधियों में किया जाएगा…। भारत में “ज़मीन” का सबसे बड़ा कब्जाधारी “चर्च” है, जिसके पास सभी प्रमुख शहरों की प्रमुख जगहों पर लाखों वर्गमीटर जमीन है, परन्तु सरकार की नज़र उधर कभी भी नहीं पड़ेगी, क्योंकि कांग्रेस के अनुसार “सफ़ेद” और “हरा” रंग पवित्रता और मासूमियत का प्रतीक है, जबकि “भगवा” रंग आतंकवाद का…।

जब से केरल के स्वामी पद्मनाभ मन्दिर के खजाने के दर्शन हुए हैं, तमाम सेकुलरों एवं वामपंथियों की नींद उड़ी हुई है, दिमाग पर बेचैनी तारी है, दिल में हूक सी उठ रही है और छाती पर साँप लोट रहे हैं। पिछले 60 साल से लगातार हिन्दुओं के विरुद्ध “विष-वमन” करने एवं लगातार हिन्दू धर्म व भारतीय संस्कृति को गरियाने-धकियाने-दबाने के बावजूद सनातन धर्म की पताका विश्व के कई देशों में फ़हरा रही है, बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में मन्दिर से निकले इस खजाने ने मानो सेकुलर-वामपंथी सोच के जले पर नमक छिड़क दिया है।

हिन्दू तो पहले से ही जानते हैं कि मन्दिरों में श्रद्धापूर्वक भगवान को अर्पित किया हुआ टनों से सोना-जवाहरात मौजूद है, इसलिए हिन्दुओं को पद्मनाभ स्वामी मन्दिर की यह सम्पत्ति देखकर खास आश्चर्य नहीं हुआ, परन्तु “कु-धर्मियों” के पेट में दर्द शुरु हो गया। हिन्दुओं द्वारा अर्पित, हिन्दू राजाओं एवं पुजारियों-मठों द्वारा संचित और संरक्षित इस सम्पत्ति को सेकुलर तरीके से “ठिकाने लगाने” के सुझाव भी आने लगे हैं, साथ ही इस सम्पत्ति को “काला धन” (http://www.iretireearly.com/1-4-trillion-indias-black-money-stashed-in-swiss-banks.html) (Black Money in India) बताने के कुत्सित प्रयास भी जारी हैं। एक हास्यास्पद एवं मूर्खतापूर्ण बयान में केरल के एक वामपंथी नेता ने, इस धन को मुस्लिम और ईसाई राजाओं से लूटा गया धन भी बता डाला… अतः इस लेख के माध्यम से मैं सुप्रीम कोर्ट से अपील करता हूँ कि वह “स्वयं संज्ञान” लेते हुए ताजमहल के नीचे स्थित 22 सीलबन्द कमरों को खोलने का आदेश दे, जिसकी निगरानी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो ताकि पता चले कि कहीं शाहजहाँ और मुमताज सोने की खदान पर तो आराम नहीं फ़रमा रहे? इन सीलबन्द कमरों को खोलने से यह भी साफ़ हो जाएगा कि क्या वाकई ताजमहल एक हिन्दू मन्दिर था? इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करके यह माँग भी की जाना चाहिए कि ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे, अजमेर दरगाह के नीचे एवं गोआ के विशाल चर्चों तथा केरल के आर्चबिशपों के भव्य मकानों की भी गहन जाँच और खुदाई की जाए ताकि जो सेकुलर-वामपंथी हिन्दू मन्दिरों के खजाने पर जीभ लपलपा रहे हैं, वे भी जानें कि “उधर” कितना “माल” भरा है। हिन्दुओं एवं उनके भगवान के धन पर बुरी नज़र रखने वालों को संवैधानिक एवं कानूनी रूप से सबक सिखाया जाना अति-आवश्यक है… वरना आज पद्मनाभ मन्दिर का नम्बर आया है, कल भारत के सभी मन्दिर इस “सेकुलर-वामपंथी” गोलाबारी की रेंज में आ जाएंगे…

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चलते-चलते :-

पद्मनाभ मन्दिर की सम्पत्ति को लेकर कई तरह के "विद्वत्तापूर्ण सुझाव" आ रहे हैं कि इस धन से भारत के गरीबों की भलाई होना चाहिए, इस धन से जनकल्याण के कार्यक्रम चलाए जाएं, बेरोजगारी दूर करें, सड़कें-अस्पताल बनवाएं… इत्यादि। यानी यह कुछ इस तरह से हुआ कि परिवार के परदादा द्वारा गाड़ी गई तिजोरी खोलने पर अचानक पैसा मिला, तो उसमें से कुछ "दारुकुट्टे बेटे" को दे दो, थोड़ा सा "जुआरी पोते" को दे दो, एक हिस्सा "लुटेरे पड़पोते" को दे दो… बाकी का बैंक में जमा कर दो, जब मौका लगेगा तब तीनों मिल-बाँटकर "जनकल्याण"(?) हेतु खर्च करेंगे … :) :)। जबकि "कुछ सेकुलर विद्वान" तो पद्मनाभ मन्दिर की सम्पत्ति को सीधे "काला धन" बताने में ही जुट गए हैं ताकि उनके 60 वर्षीय शासनकाल के "पाप" कम करके दिखाए जा सकें…। ये वही लोग हैं जिन्हें "ए. राजा" और "त्रावणकोर के राजा" के बीच अन्तर करने की तमीज नहीं है…
Published in ब्लॉग
शुक्रवार, 08 जुलाई 2011 21:46

Facebook Notes on Swami Padmanabh Temple Treasure

पद्मनाभ मन्दिर की सम्पत्ति मामले में मेरे कुछ छोटे-छोटे फ़ेसबुक नोट्स…

पाठकों, शुभचिंतकों एवं मित्रों…

कई मित्रों ने फ़ोन पर कहा कि हम फ़ेसबुक पर नहीं हैं और न ही इतना समय है कि फ़ेसबुक के नोट्स को पढ़ें और कमेण्ट करें, तो क्या करें…।

ऐसे सभी पाठकों के लिए भविष्य में प्रमुख मुद्दों पर मेरे द्वारा फ़ेसबुक पर जारी किए गये छोटे-छोटे नोट्स को एक जगह संकलित करके एक ब्लॉग पोस्ट बना दूंगा, ताकि जो मित्र फ़ेसबुक पर नहीं हैं वे भी इन्हें पढ़ सकें।

पद्मनाभ मन्दिर की सम्पत्ति के मामले में एक पोस्ट लिख चुका हूं… पेश हैं इसी सम्बन्ध में कुछ फ़ेसबुक नोट्स…
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3 जुलाई 2011

केरल के स्वामी पद्मनाभ मन्दिर में अब तक मिली 65000 करोड़ की सम्पत्ति को देखकर सेकुलरों एवं वामपंथियों की लार, घुटनों तक टपकने लगी है। इस अकूत सम्पत्ति को मुगलों से बचा लिया, अंग्रेजों से भी बचा लिया,,, परन्तु लगता है कांग्रेसी लुटेरों से बचा पाना नामुमकिन होगा। सत्य साँईं ट्रस्ट की सम्पत्ति पर नज़रें गड़ाए बैठे सेकुलर-वामपंथी गठजोड़ की आँखें फ़टी रह गईं पद्मनाभ मन्दिर की सम्पत्ति देखकर…।
यदि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इस खजाने को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित किया जाता है तो इसे रुपयों में बदलकर कश्मीर, बांग्लादेश और असम की सीमाओं को इलेक्ट्रानिक सर्वेलेंस वाली बाड़ लगाने, 100 ड्रोन (मानवरहित जासूसी विमान) खरीदने, सीमा पर तैनात सभी सैन्यकर्मियों के खाते में पन्द्रह-पन्द्रह हजार रुपये का बोनस देने, सभी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट पुलिस दस्तों के जवानों के खाते में दस-दस हजार रुपये का बोनस देने, देश की सभी गौशालाओं को 1-1 लाख रुपये देने जैसे पवित्र कार्यों में खर्च किया जाये। इन खर्चों की निगरानी भी सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की समिति अथवा CVC करे…
नरेगा जैसी मूर्खतापूर्ण, भ्रष्टाचार तथा हरामखोरी को बढ़ावा देने वाली योजनाओं में लगाने अथवा सेकुलर-वामपंथी नागों से इस खजाने को बचाने के लिए, जोरशोर से यह माँग उठाई जाए।
(यदि सुझाव पसन्द आए हों तो इसे अधिकाधिक शेयर करें तथा भाजपा एवं अन्य हिन्दूवादी संगठनों के नेताओं तक पहुँचाएं, जो अभी तक चुप ही बैठे हुए हैं… जबकि उधर धीरे-धीरे मिशनरी और सेकुलर ताकतें लगातार हिन्दू मन्दिरों-मठों और साधु-सन्तों के पीछे पंजे झाड़कर पड़ी हुई हैं)
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केरल की पत्रिका "मलयाला मनोरमा" की "एक्स्क्लूसिव" खबर के अनुसार, राष्ट्रीय संग्रहालय के निदेशक सीवी आनन्द बोस ने पद्मनाभ मन्दिर से निकलने वाले खजाने एवं दुर्लभ मूर्तियों व सिक्कों के आकलन हेतु राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों का एक पैनल बनाया है जो खजाने की वास्तविक कीमत आँकेगा। कुछ गम्भीर सवाल इस प्रकार हैं -
1) मलयाला मनोरमा पत्रिका को यह सारी खबरें कौन लीक कर रहा है और इसके पीछे क्या उद्देश्य हैं?
2) जब सुप्रीम कोर्ट ने सम्पत्ति के बारे में जानकारी प्रकाशित करने पर रोक लगाई थी तो मलयाला मनोरमा ने मूल्यवान वस्तुओं की सूची कैसे छापी?
3) मन्दिर के खजाने को देखकर सबसे अधिक मलयाला मनोरमा की नींद क्यों खराब हो रही है?
4) राष्ट्रीय संग्रहालय के निदेशक को किसने यह अधिकार दिया कि आकलन समिति में किसी विदेशी मूल्यांकनकर्ता को शामिल करें?
5) क्या आनन्द बोस ने यह समिति गठित करने से पहले कोई प्रेस कान्फ़्रेंस आयोजित की? आखिर किसने यह समिति बनाने की अनुमति दी? यह खबरें सबसे पहले मलयाला मनोरमा को ही क्यों मिल रही हैं?
6) क्या विदेशी मूल्यांकनकर्ता को शामिल करने में त्रावणकोर राजपरिवार के सदस्यों की सहमति है?
7) क्या इतने बड़े खजाने को विश्व भर में सरेआम "सार्वजनिक" किये जाने से अन्य मन्दिरों-मठों की सुरक्षा खतरे में नहीं पड़ी है?
सबसे अन्त में एक और सवाल कि भाजपा सहित सभी प्रमुख हिन्दू संगठन इस मुद्दे पर "मुँह में दही जमाकर" क्यों बैठे हैं? अभी तक इनकी तरफ़ से कोई "आधिकारिक बयान अथवा सुझाव" ठोस रूप में सामने क्यों नहीं आया?
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6 जुलाई

शास्त्रों में कहा गया है कि जमीन में गड़े धन की रक्षा हेतु पूर्वजों के रूप में साँप तैनात होते हैं…ताकि वह धन सिर्फ़ "सुपात्र" के हाथ ही लगे… यह तो सतयुग की बात थी…। अब चूंकि कलियुग आ गया है तो मामला उल्टा है, अब "साँप" तहखानों के दरवाजे के बाहर खड़े हैं और धन पर कुंडली जमाने का इंतजार कर रहे हैं… :) :)
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7 जुलाई 2011


श्री पद्मनाभ मन्दिर की सम्पत्ति को मीडिया ने यूँ सरेआम उजागर करके क्या भारत की सुरक्षा को खतरे में नहीं डाल दिया है? अमेरिका की अर्थव्यवस्था की वाट लगी पड़ी है, मध्य-पूर्व के देशों में अस्थिरता फ़ैली हुई है, यूरोप के कुछ देश भूखे-नंगे हो रहे हैं या हो चुके हैं, ऐसी परिस्थिति में भारत के मन्दिरों की अकूत सम्पत्ति का यह प्रदर्शन कहाँ तक उचित है?
- पहले भी अंग्रेज और मुगल हमें लूटने आए थे, लूट कर चले गये… उनकी कई "जायज और नाजायज औलादें" अभी भी यहाँ मौजूद हैं… संसद के 525 सदस्यों में से 250 से अधिक पर लूट-डकैती जैसे आपराधिक मामले चल रहे हैं, कोई नहीं जानता कि इन सांसदों में से कितने, विदेशी शक्तियों के हाथों बिके हुए हैं…
(यह "कोण" सबसे खतरनाक है, क्योंकि अम्बानियों, टाटाओं और जेपीयों के हाथों बिके हुए सांसद इतनी विशाल सम्पत्ति को "ठिकाने लगाने" के लिये "कुछ भी" कर सकते हैं)
- ऐसे में क्या यह कार्रवाई पद्मनाभ मन्दिर, उडुपी मठ, गुरुवायूर, कांची, पुरी, सोमनाथ, काशी विश्वनाथ, वैष्णो देवी, सिद्धिविनायक, स्वर्ण मन्दिर, शिर्डी के साँई इत्यादि जैसे सैकड़ों मन्दिरों की सुरक्षा, यहाँ काम कर रहे ट्रस्टों की विश्वसनीयता, भक्तों की आस्था और श्रद्धा के साथ सामूहिक खिलवाड़ नहीं है? सभी प्रमुख मन्दिरों पर अचानक खतरा मंडराने लगा है…
- भारत इस समय चारों तरफ़ से भिखमंगे और सेकुलर-जिहादी देशों से घिरा हुआ है, इस समय मन्दिरों की सम्पत्ति को सार्वजनिक करना, कहाँ की समझदारी है? (यह तो ऐसे ही हुआ, मानो गुण्डों के मोहल्ले में कोई सेठ कई तोला सोना पहनकर, सब को दिखाता हुआ इतराए)
मीडिया को संयम बरतना चाहिए, लेकिन "ब्रेकिंग न्यूज़" की आपाधापी में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की भी धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं, और ऐसा दर्शाया जा रहा है मानो धन-सम्पत्ति सिर्फ़ मन्दिरों में ही है, चर्च या मस्जिदों में नहीं…
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7 जुलाई 2011


1) राष्ट्रीय संग्रहालय के डॉ सीवी आनन्द बोस ने कहा है कि पद्मनाभ मन्दिर से निकलने वाली दुर्लभ एवं पुरातात्विक सामग्री की जाँच व मूल्यांकन के लिए फ़्रांस से विशेषज्ञ बुलाए जा रहे हैं।
2) डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी काफ़ी समय से सोनिया गाँधी के परिवार द्वारा इटली में संचालित दुर्लभ एवं पुरातत्व सामग्री के दो शो-रूम पर तस्करी का आरोप लगाते रहे हैं… (रॉबर्ट वढेरा की भी दिल्ली में "एंटीक पीस" की दुकान है)…
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अब दो पुरानी खबरों पर निगाह डालिए -
1) सन 2004 में इटली के राष्ट्रपति की भारत यात्रा में भारत और इटली के बीच जो व्यवसायिक समझौते हुए उसमें से प्रमुख था - भारत और इटली के बीच अंतरिक्ष कार्यक्रमों में सहयोग (जबकि इटली की कम्पनियाँ अंतरिक्ष के क्षेत्र में विशेषज्ञ नहीं हैं)। इसी समझौते का फ़ायदा उठाकर इटली की कम्पनियों ने भारत के "चन्द्रयान अभियान" के बहुत से ठेके हथियाए, अन्त में यह चन्द्रयान अभियान "तकनीकी गड़बड़ियों"(?) की वजह से फ़ेल हो गया। इस सौदे में तथा चन्द्रयान अभियान में इटली की कम्पनियों की अनुभवहीनता(?) के कारण भारत के करोड़ों रुपये डूब गये, इसमें इटली की कम्पनियों ने कितने वारे-न्यारे किये, किसी को पता नहीं।
2) अजंता एलोरा की प्रसिद्ध गुफ़ाओं की मूर्तियों एवं पेंटिंग्स के संरक्षण और रखरखाव के लिए भारत की ओर से जयपाल रेड्डी और इटली के संस्कृति मंत्री ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, जिसके अनुसार अजंता-एलोरा गुफ़ाओं का संरक्षण इटली के "विशेषज्ञ" करेंगे तथा जरुरत पड़ने पर वे मूर्तियों एवं पेंटिंग्स को "अध्ययन एवं रासायनिक देखरेख" के लिए देश से बाहर भी ले जा सकेंगे…

अब इन चारों खबरों को आपस में जोड़िए-घटाईये, और "कुल निष्कर्ष" निकालने लायक तो आप सभी समझदार हैं ही, मैं अधिक जुर्रत नहीं करूंगा… :)
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8 जुलाई

एक बड़े घटनाक्रम के तहत अचानक समूचे केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने सामूहिक इस्तीफ़ा दे दिया है… असल में प्रधानमंत्री ने कल बयान दिया था कि "पद्मनाभ स्वामी मन्दिर ट्रस्ट का पुनर्गठन किया जा रहा है…"।
उल्लेखनीय है कि शरद पवार, ए राजा सहित कई मंत्रियों ने इस बात पर दुःख जताया था कि उनका पूरा जीवन "व्यर्थ" चला गया, और वे स्वामी पद्मनाभ की कोई "सेवा" न कर सके… :) :)
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जैसा कि पहले भी अर्ज कर चुका हूं कि व्यवसाय की व्यस्तताओं के कारण फ़िलहाल ब्लॉग लेखन कम है लेकिन फ़ेसबुक पर छोटे नोट्स लगातार जारी हैं… यह झलकी उन्हीं मे से कुछ की थी। आशा है पसन्द आएगी…
किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर ऐसे ही फ़ेसबुक अपडेट्स आगे भी यहाँ ब्लॉग पर देता रहूंगा…
नमस्कार…
Published in ब्लॉग
सोमवार, 04 जुलाई 2011 11:37

Padmanabha Swami Temple Kerala Wealth

पद्मनाभ स्वामी मन्दिर के खजाने पर वामपंथी-सेकुलर गठजोड़ की काली नीयत का साया…   

केरल के विश्वप्रसिद्ध स्वामी पद्मनाभ मन्दिर के तहखानों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत खोला गया, और जैसी कि खबरें छन-छनकर आ रही हैं (या जानबूझकर लीक करवाई जा रही हैं) उनके अनुसार यह खजाना लगभग 60 से 70 हजार करोड़ तक भी हो सकता है (हालांकि यह आँकड़ा अविश्वसनीय और बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया प्रतीत होता है), परन्तु मन्दिर (http://en.wikipedia.org/wiki/Padmanabhaswamy_Temple)(Padmanabha Swamy Temple) के तहखानों से मिली वस्तुओं की लिस्ट में भगवान विष्णु की एक भारी-भरकम सोने की मूर्ति, ठोस सोने के जवाहरात मढ़े हुए नारियल, कई फ़ुट लम्बी सोने की मोटी रस्सियाँ, कई किलो सोने के बने हुए चावल के दाने, सिक्के, गिन्नियाँ, मुकुट एवं हीरे मिलने का सिलसिला जारी है (http://www.daijiworld.com/news/news_disp.asp?n_id=106959&n_tit=Kerala+Temple+Treasure%3A+Value+of+Wealth+Rises+to+1%2C00%2C000+Crore)(Wealth of Padmanabh Temple)
उल्लेखनीय है कि भगवान पद्मनाभ का यह मन्दिर बहुत प्राचीन काल से करोड़ों विष्णु भक्तों की आस्था का केन्द्र रहा है। त्रावणकोर के महाराजा मार्तण्ड वर्मन का राजवंश भगवान पद्मनाभ स्वामी का बहुत बड़ा भक्त रहा है, इस राजवंश ने अपनी सारी सम्पत्ति तथा भक्तों द्वारा भेंट की गई बहुमूल्य सामग्रियों को मन्दिर के नीचे 6 तहखानों में छिपा रखा था। इस मन्दिर का सारा प्रबन्धन एवं खर्च एक ट्रस्ट करता है, जिसका गठन त्रावणकोर राजवंश (http://en.wikipedia.org/wiki/Travancore_Royal_Family)(Travancore Royal Family) द्वारा ही किया गया है। (त्रावणकोर राजवंश ने सन 1750 में ही पूरे घराने को "पद्मनाभ दास" यानी भगवान पद्मनाभ के दास घोषित कर दिया था, इस घराने की रानियाँ "पद्मनाभ सेविनी" कहलाती हैं) कांग्रेस-सेकुलरों तथा वामपंथी सरकारों द्वारा जिस तरह से पिछले 10-15 सालों में लगातार हिन्दू आस्थाओं की खिल्ली उड़ाना, हिन्दू मन्दिरों की धन-सम्पत्ति हड़पने की कोशिशें करना, हिन्दू सन्तों एवं धर्माचार्यों को अपमानित एवं तिरस्कारित करने का जो अभियान चलाया जा रहा है, वह “किसके इशारे” पर हो रहा है यह न तो बताने की जरुरत है और न ही हिन्दू इतने बेवकूफ़ हैं जो यह समझ न सकें। कांची के शंकराचार्य जी को ऐन दीपावली की रात (http://intellibriefs.blogspot.com/2004/12/geopolitical-conspiracy-behind.html)(Kanchi Shankaracharya Arrest) को गिरफ़्तार किये जाने से लेकर, स्वामी लक्षमणानन्द सरस्वती की हत्या, नित्यानन्द को सैक्स स्कैण्डल में फ़ाँसना (http://zeenews.india.com/news/karnataka/court-summons-3-in-nithyananda-sex-scandal_710831.html)(Nityananda Sex Scandal fraud), असीमानन्द को बम विस्फ़ोट में घसीटना, साध्वी प्रज्ञा को हिन्दू आतंकवादी दर्शाना (Sadhvi Pragya Arrest) तथा बाबा रामदेव, आसाराम बापू, और सत्य साईं बाबा को “ठग”, “लुटेरा” इत्यादि प्रचारित करवाना जैसी फ़ेहरिस्त लगातार जारी है, इसी कड़ी में ताजा मामला है स्वामी पद्मनाभ मन्दिर का।
एक याचिकाकर्ता टीपी सुन्दरराजन (पता नहीं यह असली नाम है या कोई छिपा हुआ धर्म-परिवर्तित) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके स्वामी पद्मनाभ मन्दिर ट्रस्ट की समस्त गतिविधियों तथा आर्थिक लेनदेन को “पारदर्शी”(?) बनाने हेतु मामला दायर किया था। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार दो जज श्री एमएन कृष्णन तथा सीएस राजन, केरल के मुख्य सचिव के जयकुमार, मन्दिर के मुख्य प्रशासक हरिकुमार, आर्कियोलोजी विभाग के एक अधिकारी तथा त्रावणकोर राजवंश के दो प्रमुख सदस्यों की उपस्थिति में तहखानों को खोलने तथा निकलने वाली वस्तुओं की सूची एवं मूल्यांकन का काम शुरु किया गया। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश था कि जब तक सूची पूरी करके न्यायालय में पेश न कर दी जाए, तब तक किसी अखबार या पत्रिका में इस खजाने का कोई विवरण प्रकाशित न किया जाए, परन्तु सबसे पहले एक सेकुलर पत्रिका(?) मलयाला मनोरमा ने इस आदेश की धज्जियाँ उड़ाईं और भगवान विष्णु की मूर्ति की तस्वीरें तथा सामान की सूची एवं उसके मूल्यांकन सम्बन्धी खबरें प्रकाशित कीं। चटखारे ले-लेकर बताया गया कि मन्दिर के पास कितने करोड़ की सम्पत्ति है, इसका कैसे “सदुपयोग”(?) किया जाए… इत्यादि। हालांकि न तो याचिकाकर्ता ने और न ही मलयाला मनोरमा ने आज तक कभी भी चर्च की सम्पत्ति, उसे मिलने वाले भारी-भरकम विदेशी अनुदानों (http://dialogueindia.in/magazine/Article/tamil-tigers-tatha-father-gesper-avam-2g-spectram-ghotala)(Donations received by Church in India), चर्च परिसरों में संचालित की जा रही व्यावसायिक गतिविधियों से होने वाली आय तथा विभिन्न मस्जिदों एवं मदरसों को मिलने वाले ज़कात एवं खैरात के हिसाब-किताब एवं ‘पारदर्शिता’ पर कभी भी माँग नहीं की। ज़ाहिर है कि ऐसी पारदर्शिता सम्बन्धी “सेकुलर मेहरबानियाँ” सिर्फ़ हिन्दुओं के खाते में ही आती हैं। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि- 1) सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त इस समिति में उपस्थित किसी “भेदिये” के अलावा मन्दिर का कौन सा कर्मचारी इन “हिन्दू विरोधी” ताकतों से मिला हुआ है? 2) क्या सुप्रीम कोर्ट मलयाला मनोरमा (Malayala Manorama) के खिलाफ़ “अदालत की अवमानना” का मुकदमा दर्ज करेगा? 3) इस विशाल खजाने की गिनती और सूचीबद्धता की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई है? 4) मलयाला मनोरमा जैसी “चर्च पोषित” पत्रिकाएं मन्दिर और तहखानों के नक्शे बना-बनाकर प्रकाशित कर रहे हैं, ऐसे में सुरक्षा सम्बन्धी गम्भीर सवालों को क्यों नज़रअन्दाज़ किया जा रहा है, क्योंकि खजाने की गिनती और मन्दिर में हजारों दर्शनार्थियों के नित्य दर्शन एक साथ ही चल रहे हैं, धन-सम्पत्ति की मात्रा और मन्दिर में आने वाले चढ़ावे की राशि को देखते हुए, क्या किसी आतंकवादी अथवा माफ़िया संगठन के सदस्य दर्शनार्थी बनकर इस स्थान की “रेकी” नहीं कर सकते? तब इन “सेकुलर-वामपंथी” पत्रकारों एवं अखबारों को यह प्रकाशित करने का क्या हक है?

यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है कि त्रावणकोर राजवंश के सभी सदस्यों को इस खजाने के बारे में पीढ़ियों से जानकारी थी, परन्तु भारत के वर्तमान राजनैतिक राजवंशों की तरह, क्या मार्तण्ड वर्मा राजवंश ने इस सम्पत्ति को स्विस बैंक में जमा किया? नहीं। चाहते तो आराम से ऐसा कर सकते थे, लेकिन उन्होंने सारी सम्पत्ति भगवान पद्मनाभ मन्दिर को दान देकर, उसका कुछ हिस्सा भक्तों की सुविधा एवं सहूलियत तथा मन्दिर के विभिन्न धार्मिक संस्कारों एवं विकास के लिये उपयोग किया। इतने बड़े खजाने की जानकारी और कब्जा होने के बावजूद त्रावणकोर राजवंश द्वारा अपनी नीयत खराब न करना और क्या साबित करता है? ज़ाहिर है कि मार्तण्ड वर्मा राजवंश ने इस सम्पत्ति को पहले मुगलों की नीच दृष्टि से बचाकर रखा, फ़िर अंग्रेजों को भी इसकी भनक नहीं लगने दी… परन्तु लगता है वर्तमान “सेकुलर-वामपंथी गठजोड़ की लूट” से शायद इसे बचा पाना सम्भव नहीं होगा। आप खुद ही सोचिये कि यदि आप अपनी श्रद्धानुसार कोई बहुमूल्य वस्तु अपने भगवान को अर्पित करते हैं, तो वह मन्दिर की सम्पत्ति होना चाहिए, परन्तु ऐसा है नहीं…। मन्दिरों-मठों की विशाल सम्पत्ति पर सेकुलरिज़्म और वामपंथी-मिशनरी की “काली नीयत” का साया पड़ चुका है, ये लोग सत्य साँई ट्रस्ट (http://www.srisathyasai.org.in/)(Satya Sai Trust) पर भी नज़रें गड़ाये हुए हैं और मौका पाते ही निश्चित रूप से उसे “सरकारी ट्रस्ट” बनाकर उसमें घुसपैठ करेंगे। यह काम पहले भी मुम्बई के सिद्धिविनायक ट्रस्ट में कांग्रेसियों एवं शरद पवार की टीम ने कर दिखाया है।

तात्पर्य यह कि आप जो भी पैसा मन्दिरों में यह सोचकर दान करते हैं कि इससे गरीबों का भला होगा या मन्दिर का विकास होगा… तो आप बहुत ही भोले और मूर्ख हैं। जो पैसा या अमूल्य वस्तुएं आप मन्दिर को दान देंगे, वह किसी सेकुलर या वामपंथी की जेब में पहुँचेगी… अथवा इस पैसों का उपयोग हज के लिए सब्सिडी देने, नई मस्जिदों के निर्माण में सरकारी सहयोग देने, ईसाईयों को बेथलेहम की यात्रा में सब्सिडी देने में ही खर्च होने वाला है। रही मन्दिरों में सुविधाओं की बात, तो सबरीमाला का हादसा अभी सबके दिमाग में ताज़ा है… केरल में हमेशा से सेकुलर-वामपंथी गठजोड़ ही सत्ता में रहा है, जो पिछले 60 साल में इन पहाड़ियों पर पक्की सीढ़ियाँ और पीने के पानी की व्यवस्था तक नहीं कर पाया है, जबकि अय्यप्पा स्वामी के इस मन्दिर से देवस्वम बोर्ड को प्रतिवर्ष करोड़ों की आय होती है। लगभग यही स्थिति तिरुपति स्थित तिरुमाला के मन्दिर ट्रस्ट की है, जहाँ सुविधाएं तो हैं परन्तु ट्रस्ट में अधिकतर स्वर्गीय(?) “सेमुअल” राजशेखर रेड्डी के चमचे भरे पड़े हैं जो धन का मनमाना “सदुपयोग”(?) करते हैं।

देश की आजादी के समय पूरे देश में चर्चों के संचालन-संधारण की जिम्मेदारी पूरी तरह से विदेशी आकाओं के हाथ मे थी, जबकि यहाँ उनके “भारतीय नौकर” चर्चों का सारा हिसाब-किताब देखते थे। 60 साल बाद भी स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया है और सभी प्रमुख बिशपों का नामांकन सीधे वेटिकन से होता है तथा चर्च व मिशनरी की अधिकांश सम्पत्ति पर नियन्त्रण विदेश से एवं विदेशी बिशपों द्वारा ही होता है। ज़ाहिर है कि चर्च की अकूत सम्पत्ति एवं कौड़ियों के मोल मिली हुई खरबों रुपये की जमीन पर जो व्यावसायिक गतिविधियाँ संचालित होती हैं, उसकी जाँच अथवा बिशपों के घरों में बने तहखानों की तलाशी जैसा “दुष्कृत्य”(?), सेकुलरिज़्म के नाम पर कभी नहीं किया जाएगा।

इस सम्बन्ध में सुझाव यह है कि इस तमाम सम्पत्ति का एक ट्रस्ट बनाया जाए जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान न्यायाधीश करें एवं इसके ब्याज से प्राप्त आय के समस्त खर्चों पर एक समिति निगरानी रखे जिसमें CVC भी शामिल हो। फ़िलहाल इस फ़ण्ड के कुछ हिस्से से भारत की पूरी सीमा पर मजबूत इलेक्ट्रानिक बाड़  लगाई जाए, 50 ड्रोन विमान खरीदे जाएं, 400 स्पीड बोट्स खरीदी जाएं जो सभी प्रमु्ख समुद्र तटों और बन्दरगाहों पर तैनात हों, सीमा पर तैनात होने वाले प्रत्येक सैनिक को 50,000 रुपये का बोनस दिया जाए, पुलिस विभाग के सभी एनकाउंटर ATS दलों के सदस्यों को 25,000 रुपये दिए जाएं, देश के सभी शहरी पुलिस थानों को 4-4 और ग्रामीन थानों को 2-2 तेज और आधुनिक जीपें दी जाएं, तथा एके-47 के समकक्ष रायफ़ल बनाने वाली भारतीय तकनीक विकसित कर बड़ा कारखाना लगाया जाए। इतना करने के बाद भी बहुत सा पैसा बचेगा जिसे सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कें बनाने, वॉच टावर लगाने, प्रमुख नदियों में नहरों का जाल बिछाने, नक्सल प्रभावित इलाकों में बिजली-सड़क पहुँचाने जैसे कामों में लगाया जाए, शर्त सिर्फ़ एक ही है कि इन खर्चों पर नियन्त्रण किसी स्वतन्त्र समिति का हो, वरना सेकुलर-वामपंथी गठजोड़ इसका उपयोग "कहीं और" कर लेंगे…

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चलते-चलते एक विषयान्तर नोट :- मैकाले की संतानें अक्सर भारत को “पिछड़ा” और “अज्ञानी” बताते नहीं थकतीं, परन्तु सैकड़ों साल पहले बने पद्मनाभ मन्दिर के सुव्यवस्थित तहखाने, इनमें हवा के आवागमन और पानी की व्यवस्था तथा बहुमूल्य धातुओं को खराब होने से बचाये रखने की तकनीक, ऐसे मजबूत लॉकरों की संरचना, जिन्हें खोलने में आज के आधुनिक विशेषज्ञों को 6-6 घण्टे लग गये… क्या यह सब हमारे पुरखों को कोई अंग्रेज सिखाकर गया था? पता नहीं किस इंजीनियरिंग की दुहाई देते हैं आजकल के “सो-कॉल्ड” आधुनिक (यानी भारतीय संस्कृति विरोधी) लोग। क्या ये लोग कभी बता पाएंगे कि राजस्थान में बड़े और भारी पत्थरों से बने हुए आमेर के किले को बनाने में कौन सी पश्चिमी इंजीनियरिंग का इस्तेमाल हुआ? वे महाकाय पत्थर इतनी ऊँची पहाड़ी पर कैसे पहुँचे? चूने की जुड़ाई होने के बावजूद इतने सालों से कैसे टिके हुए हैं? ज़ाहिर है कि उनके पास कोई जवाब नहीं है…। लेकिन हाँ, अंग्रेजी किताबें पढ़कर… हिन्दुओं, हिन्दू संस्कृति, भगवा रंग, मन्दिरों-मठों की परम्पराओं इत्यादि को गरियाने जितनी अक्ल अवश्य आ गई है।
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