Aurangzeb and Kashi Vishwanath Temple

Written by रविवार, 15 जून 2008 12:54

औरंगजेब और काशी विश्वनाथ सम्बन्धी एक नकली “सेकुलर” कहानी की धज्जियाँ

 
कुछ दिनों पूर्व “तमिलनाडु मुस्लिम मुनेत्र कड़गम” (TTMK) (नाम सुना है कभी???) के एक नेता एम एच जवाहिरुल्ला ने एक जनसभा में फ़रमाया कि “औरंगजेब के खिलाफ़ सबसे बड़ा आरोप है कि उसने काशी विश्वनाथ का मन्दिर ध्वस्त किया था, हालांकि यह सच है, लेकिन उसने ऐसा क्यों किया था यह भी जानना जरूरी है” उसके बाद उन्होंने स्व बीएन पांडे की एक पुस्तक का हवाला दिया और प्रेस को बताया कि असल में औरंगजेब के एक वफ़ादार राजपूत राजा की रानी का विश्वनाथ मन्दिर में अपमान हुआ और उनके साथ मन्दिर में लूट की घटना हुई थी, इसलिये औरंगजेब ने मन्दिर की पवित्रता बनाये रखने के लिये(???) काशी विश्वनाथ को ढहा दिया था”… (हुई न आपके ज्ञान में बढ़ोतरी)। एक कट्टर धार्मिक बादशाह, जो अपने अत्याचारों और धर्म परिवर्तन के लिये कुख्यात था, जिनके खानदान में दारुकुट्टे और हरमों की परम्परा वाले औरतबाज लोग थे, वह एक रानी की इज्जत के लिये इतना चिंतित हो गया? वो भी हिन्दू रानी और हिन्दू मन्दिर के लिये कि उसने “सम्मान” की खातिर काशी विश्वनाथ का मन्दिर ढहा दिया? कोई विश्वास कर सकता है भला? लेकिन इस प्रकार की “सेकुलर”(?) कहानियाँ सुनाने में वामपंथी लोग बड़े उस्ताद हैं।

जब अयोध्या आंदोलन अपने चरम पर था, उस वक्त विश्व हिन्दू परिषद ने अपने अगले लक्ष्य तय कर लिये थे कि अब काशी और मथुरा की बारी होगी। हालांकि बाद में बनारस के व्यापारी समुदाय द्वारा अन्दरूनी विरोध (आंदोलन से धंधे को होने वाले नुकसान के आकलन के कारण) को देखते हुए परिषद ने वह “आईडिया” फ़िलहाल छोड़ दिया है। लेकिन उसी समय से “सेकुलर” और वामपंथी बुद्धिजीवियों ने काशी की मस्जिद के पक्ष में माहौल बनाने के लिये कहानियाँ गढ़ना शुरु कर दिया था, जिससे यह आभास हो कि विश्वनाथ का मन्दिर कोई विवादास्पद नही है, न ही उससे लगी हुई मस्जिद। हिन्दुओं और मीडिया को यह यकीन दिलाने के लिये कि औरंगजेब एक बेहद न्यायप्रिय और “सेकुलर” बादशाह था, नये-नये किस्से सुनाने की शुरुआत की गई, इन्हीं में से एक है यह कहानी। इसके रचयिता हैं श्री बी एन पांडे (गाँधी दर्शन समिति के पूर्व अध्यक्ष और उड़ीसा के पूर्व राज्यपाल)।

बहरहाल, औरंगजेब को “संत” और परोपकारी साबित करने की कोशिश पहले शुरु की सैयद शहाबुद्दीन (आईएफ़एस) ने, जिन्होंने कहा कि “मन्दिर को तोड़कर मस्जिद बनाना शरीयत के खिलाफ़ है, इसलिये औरंगजेब ऐसा कर ही नहीं सकता” (कितने भोले बलम हैं शहाबुद्दीन साहब)। फ़िर जेएनयू के स्वघोषित “सेकुलर” बुद्धिजीवी कैसे पीछे रहते? उन्होंने भी एक सुर में औरंगजेब और अकबर को महान धर्मनिरपेक्षतावादी बताने के लिये पूरा जोर लगा दिया, जबकि मुगल काल के कई दस्तावेज, डायरियाँ, ग्रन्थ आदि खुलेआम बताते हैं कि उस समय हजारों मन्दिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं। यहाँ तक कि अरुण शौरी जी ने 2 सितम्बर 1669 के मुगल अदालती दस्तावेज जिसे “मासिरी आलमगिरी” कहा जाता है, उसमें से एक अंश उद्धृत करके बताया कि “बादशाह के आदेश पर अधिकारियों ने बनारस में काशी विश्वनाथ का मन्दिर ढहाया”, और आज भी उस पुराने मन्दिर की दीवार औरंगजेब द्वारा बनाई गई मस्जिद में स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है।

खैर, वापस आते हैं मूल कहानी की ओर… लेखक फ़रमाते हैं कि “एक बार औरंगजेब बंगाल की ओर यात्रा के दौरान लवाजमे के साथ बनारस के पास से गुजर रहा था, तब साथ चल रहे हिन्दू राजाओं ने औरंगजेब से विनती की कि यहाँ एक दिन रुका जाये ताकि रानियाँ गंगा स्नान कर सकें और विश्वनाथ के दर्शन कर सकें, औरंगजेब राजी हो गया(???)। बनारस तक के पाँच मील लम्बे रास्ते पर सेना तैनात कर दी गई और तमाम रानियाँ अपनी-अपनी पालकी में विश्वनाथ के दर्शनों के लिये निकलीं। पूजा के बाद सभी रानियाँ वापस लौट गईं सिवाय एक रानी “कच्छ की महारानी” के। महारानी की तलाश शुरु की गई, मन्दिर की तलाशी ली गई, लेकिन कुछ नहीं मिला। औरंगजेब बहुत नाराज हुआ और उसने खुद वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मन्दिर की तलाशी ली। अन्त में उन्हें पता चला कि गणेश जी की मूर्ति के नीचे एक तहखाना बना हुआ है, जिसमें नीचे जाती हुई सीढ़ियाँ उन्हें दिखाई दीं। तहखाने में जाने पर उन्हें वहाँ खोई हुई महारानी मिलीं, जो कि बुरी तरह घबराई हुई थीं और रो रही थी, उनके गहने-जेवर आदि लूट लिये गये थे। हिन्दू राजाओं ने इसका तीव्र विरोध किया और बादशाह से कड़ी कार्रवाई करने की माँग की। तब महान औरंगजेब ने आदेश दिया कि इस अपवित्र हो चुके मन्दिर को ढहा दिया जाये, विश्वनाथ की मूर्ति को और कहीं “शिफ़्ट” कर दिया जाये तथा मन्दिर के मुख्य पुजारी को गिरफ़्तार करके सजा दी जाये। इस तरह “मजबूरी” में औरंगजेब को काशी विश्वनाथ का मन्दिर गिराना पड़ा… ख्यात पश्चिमी इतिहासकार डॉ कोनराड एल्स्ट ने इस कहानी में छेद ही छेद ढूँढ निकाले, उन्होंने सवाल किये कि –

1) सबसे पहले तो इस बात का कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है कि औरंगजेब ने इस प्रकार की कोई यात्रा दिल्ली से बंगाल की ओर की थी। उन दिनों के तमाम मुगल दस्तावेज और दिन-ब-दिन की डायरियाँ आज भी मौजूद हैं और ऐसी किसी यात्रा का कोई उल्लेख कहीं नहीं मिलता, और पांडे जी ने जिस चमत्कारिक घटना का विवरण दिया है वह तो अस्तित्व में थी ही नहीं।

2) औरंगजेब कभी भी हिन्दू राजाओं या हिन्दू सैनिकों के बीच में नहीं रहा।

3) जैसा कि लिखा गया है, क्या तमाम हिन्दू राजा अपनी पत्नियों को दौरे पर साथ रखते थे? क्या वे पिकनिक मनाने जा रहे थे?

4) सैनिकों और अंगरक्षकों से चारों तरफ़ से घिरी हुई महारानी को कैसे कोई पुजारी अगवा कर सकता है?

5) हिन्दू राजाओं ने औरंगजेब से कड़ी कार्रवाई की माँग क्यों की? क्या एक लुटेरे पुजारी(???) को सजा देने लायक ताकत भी उनमें नहीं बची थी?

6) जब मन्दिर अपवित्र(?) हो गया था, तब उसे तोड़कर नई जगह शास्त्रों और वेदों के मुताबिक मन्दिर बनाया गया, लेकिन कहाँ, किस पवित्र जगह पर?

दिमाग में सबसे पहले सवाल उठता है कि पांडे जी को औरंगजेब के बारे में यह विशेष ज्ञान कहाँ से प्राप्त हुआ? खुद पांडे जी अपने लेखन में स्वीकार करते हैं कि उन्होंने इसके बारे में डॉ पट्टाभि सीतारमैया की पुस्तक में इसका उल्लेख पढ़ा था (यानी कि खुद उन्होंने किसी मुगल दस्तावेज का अध्ययन नहीं किया था, न ही कहीं का “रेफ़रेंस” दिया था)। औरंगजेब को महात्मा साबित करने के लिये जेएनयू के प्रोफ़ेसर के एन पणिक्कर की थ्योरी यह थी कि “काशी विश्वनाथ मन्दिर ढहाने का कारण राजनैतिक रहा होगा। उस जमाने में औरंगजेब के विरोध में सूफ़ी विद्रोहियों और मन्दिर के पंडितों के बीच सांठगांठ बन रही थी, उसे तोड़ने के लिये औरंगजेब ने मन्दिर तोड़ा” क्या गजब की थ्योरी है, जबकि उस जमाने में काशी के पंडित गठबन्धन बनाना तो दूर “म्लेच्छों” से बात तक नहीं करते थे।

खोजबीन करने पर पता चलता है कि पट्टाभि सीतारमैया ने यह कहानी अपनी जेलयात्रा के दौरान एक डायरी में लिखी थी, और उन्होंने यह कहानी लखनऊ के एक मुल्ला से सुनी थी। अर्थात एक मुल्ला की जबान से सुनी गई कहानी को सेकुलरवादियों ने सिर पर बिठा लिया और औरंगजेब को महान साबित करने में जुट गये, बाकी सारे दस्तावेज और कागजात सब बेकार, यहाँ तक कि “आर्कियोलॉजी विभाग” और “मासिरी आलमगिरी” जैसे आधिकारिक लेख भी बेकार।

तो अब आपको पता चल गया होगा कि अपनी गलत बात को सही साबित करने के लिये सेकुलरवादी और वामपंथी किस तरह से किस्से गढ़ते हैं, कैसे इतिहास को तोड़ते-मरोड़ते हैं, कैसे मुगलों और उनके घटिया बादशाहों को महान और धर्मनिरपेक्ष बताते हैं। एक ग्राहम स्टेंस को उड़ीसा में जलाकर मार दिया जाता है या एक जोहरा के परिवार को बेकरी में जला दिया जाता है (यह एक क्रूर और पाशविक कृत्य था) लेकिन उस वक्त कैसे मीडिया, अंतरराष्ट्रीय समुदाय, ईसाई संगठन और हमारे सदाबहार घरेलू “धर्मनिरपेक्षतावादी” जोरदार और संगठित “गिरोह” की तरह हल्ला मचाते हैं, जबकि इन्हीं लोगों और इनके साथ-साथ मानवाधिकारवादियों को कश्मीर के पंडितों की कोई चिन्ता नहीं सताती, श्रीनगर, बारामूला में उनके घर जलने पर कोई प्रतिनिधिमंडल नहीं जाता, एक साजिश के तहत पंडितों के “जातीय सफ़ाये” को सतत नजर-अंदाज कर दिया जाता है। असम में बांग्लादेशियों का बहुमत और हिन्दुओं का अल्पमत नजदीक ही है, लेकिन इनकी असल चिंता होती है कि जेलों में आतंकियों को अच्छा खाना मिल रहा है या नहीं? सोहराबुद्दीन के मानवाधिकार सुरक्षित हैं या नहीं? अबू सलेम की तबियत ठीक है या नहीं? फ़िलिस्तीन में क्या हो रहा है? आदि-आदि-आदि। अब समय आ गया है कि इनके घटिया कुप्रचार का मुँहतोड़ जवाब दिया जाये, कहीं ऐसा न हो कि आने वाली पीढ़ी इन “बनी-बनाई” कहानियों और “अर्धसत्य” के बहकावे में आ जाये (हालांकि कॉन्वेंट स्कूलों के जरिये इतिहास को विकृत करने में वे सफ़ल हो रहे हैं), क्योंकि NDTV जैसे कई कथित “धर्मनिरपेक्ष” मीडिया भी इनके साथ है। इस बारे में आप क्या सोचते हैं???

कुछ करेंगे या ऐसे ही बैठे रहेंगे? और कुछ नहीं तो कम से कम इस लेख की लिंक मित्रों को “फ़ॉरवर्ड” ही कर दीजिये…


, , , , , , , , , , ,


सन्दर्भ – डॉ कोनराड एल्स्ट एवं बी शान्तनु
Read 1854 times Last modified on शुक्रवार, 30 दिसम्बर 2016 14:16
Super User

 

I am a Blogger, Freelancer and Content writer since 2006. I have been working as journalist from 1992 to 2004 with various Hindi Newspapers. After 2006, I became blogger and freelancer. I have published over 700 articles on this blog and about 300 articles in various magazines, published at Delhi and Mumbai. 


I am a Cyber Cafe owner by occupation and residing at Ujjain (MP) INDIA. I am a English to Hindi and Marathi to Hindi translator also. I have translated Dr. Rajiv Malhotra (US) book named "Being Different" as "विभिन्नता" in Hindi with many websites of Hindi and Marathi and Few articles. 

www.google.com